प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
28 जुलाई से 5 अगस्त 1973 तक जर्मन डेमोक्रेटिक रिपब्लिक (डीडीआर) के पूर्वी बर्लिन में युवाओं व छात्रों का 10वां विश्व महोत्सव मनाया गया। इसमें 140 देशों के 25,600 मेहमानों सहित अस्सी लाख लोगों ने भाग लिया था। वर्ल्ड फेडरेशन ऑफ डेमोक्रेटिक यूथ (WFDY) इस उत्सव का आयोजन करता था, जिसका गठन नवंबर 1945 में लंदन (यूनाइटेड किंगडम) में आयोजित विश्व युवा सम्मेलन में हुआ था। साल 1973 का उत्सव युगांतकारी था। उस साल वियतनाम के लोग अमेरिका का विरोध कर रहे थे, मोज़ाम्बिक से काबो वर्डे तक, पुर्तगाल के अफ़्रीकी उपनिवेशों के लोग सत्ता अपने हाथ में लेने की तैयारी कर रहे थे, और चिली की पॉपुलर यूनिटी सरकार बहुराष्ट्रीय तांबा कंपनियों व वाशिंगटन के साथ ज़बरदस्त टकराव में थी।
इन नई संभावनाओं में युवाओं को अपने लिए एक बेहतर भविष्य दिख रहा था। कम्युनिस्ट ब्लैक पैंथर एंजेला डेविस को जेल से रिहा करवाने के लिए चले अभियान के दौरान कई युवा राजनीतिक रूप से परिपक्व हुए थे और उनमें से कई 1973 के उत्सव में भाग लेने के लिए आए थे। इस उत्सव में एंजेला डेविस अंतरिक्ष में जाने वाली पहली महिला, सोवियत संघ की वेलेंटीना टेरेशकोवा, के साथ मंच पर विराजमान थीं। उत्सव में शामिल युवाओं ने 45 देशों के 100 से भी अधिक समूहों या एकल कलाकारों का संगीत सुना। दक्षिण अफ्रीका की मिरियम मेकबा और चिली की इंति–इलिमानी ने गाया कि:
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे।
हजारों जंजीरें हम तोड़ेंगे।
हम जीतेंगे, हम जीतेंगे,
बेकारी (या फासीवाद) को हराएँगे।
किसान, सैनिक, खनिक,
और देश की महिलाएँ भी,
छात्र और श्रमिक, सब कर्मचारी,
हम अपना कर्तव्य निभाएंगे.
हम ज़मीन में महिमा बोएँगे।
समाजवाद ही आएगा।
सब मिलकर इतिहास बनाएँगे।
जीतेंगे, जीतेंगे, जीतेंगे।
अब समय बदल चुका है। विश्व बैंक के एक ताज़ा अध्ययन के अनुसार, दुनिया भर में 15-24 वर्ष के बीच की आयु के 1.21 बिलियन युवाओं – यानी दुनिया की आबादी के लगभग 15.5 प्रतिशत हिस्से – में से सत्तर प्रतिशत युवा ‘आर्थिक रूप से ख़ाली (disengaged) हैं या अपनी योग्यता से नीचे का काम कर रहे (under-engaged) हैं‘। ख़ाली होने का मतलब है कि वो लोग ‘न तो शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं, न रोजगार में हैं और न ही प्रशिक्षण ले रहे हैं‘। इन्हें NEET कहा जाता है यानी, not in education, employment, or training। साल 2021 में, दुनिया भर में, लगभग 448 मिलियन युवा ख़ाली थे या अपनी योग्यता से नीचे का काम कर रहे थे। यह निराशाजनक है। लैटिन अमेरिका, दक्षिण एशिया और उप–सहारा अफ्रीका में, ख़ाली रहने या योग्यता से नीचे का काम रहे रहे लोगों की संख्या 70 – 80 प्रतिशत से भी पार जा चुकी है। दुनिया की बेरोज़गार आबादी का 40 प्रतिशत हिस्सा युवाओं का है। निश्चित रूप से इन सच्चाइयों का युवाओं पर भारी असर पड़ा है: 10 से 19 वर्ष के युवाओं में, हर सात में से एक युवा मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं से जूझ रहा है और 15 से 19 वर्ष के किशोरों में आत्महत्या मौत का चौथा बड़ा कारण है। अल्जीरिया में, इन युवाओं के लिए एक शब्द है: हिट्टिस। हिट्टिस का शाब्दिक अर्थ है दीवारें। इस शब्द का प्रयोग अपने पैरों पर खड़े होने में अक्षम, दीवारों के सहारे खड़े युवाओं के लिए किया जाता है।
1973 में पूर्वी बर्लिन में आए युवाओं में देखी गई अपार खुशी और आशा की भावनाएँ आज की दुनिया के अधिकांश युवाओं में मौजूद नहीं हैं। जो लोग राजनीतिक रूप से सजग हैं, वो जलवायु आपदा से निपटने के लिए त्वरित कारवाई करने में महान शक्तियों की विफलता से हतोत्साहित हैं। बाकी लोग सोशल मीडिया के भंवर में फंसे हुए हैं, जहां एल्गोरिदम राजनीति को गैर–राजनीतिक बना देते हैं, और अक्सर संघर्ष निर्माण की संभावना या उम्मीद जगाने की बजाय द्वेष और क्रोध की भावनाएँ उत्पन्न करते हैं।
लेकिन, कुछ जगहों में 1973 जैसा उत्साह बचा हुआ है। जैसे युवाओं के नेतृत्व में चल रहे पुनर्वितरण या मान्यता के संघर्ष और धरना प्रदर्शन अभी भी इस उत्साह से लबरेज हैं। इन युवाओं के नारे 1973 के युवाओं की याद दिलाते हैं। हाँ, नवउदारवाद इनके संघर्षों को अवरुद्ध करता है और इन्हें झूठे समाधान पेश किए जाते हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राष्ट्र की वर्ल्ड यूथ रिपोर्टें ‘युवा सामाजिक उद्यमिता‘ और ‘युवा नागरिक भागीदारी‘ जैसी अवधारणाओं को ‘पवित्र‘ रूप में पेश करती हैं। बावजूद इसके, युवाओं के नारे उन्हें पेश किए जा रहे समाधानों से कहीं ज़्यादा समृद्ध और तीखे हैं। युवा जानते हैं कि कौशल प्रशिक्षण या सामाजिक उद्यमिता जैसी अवधारणाओं द्वारा 70 प्रतिशत से भी ज़्यादा लोगों के आर्थिक रूप से ख़ाली होने की समस्या का समाधान नहीं हो सकता।
इस सप्ताह हम 1973 के विश्व महोत्सव को याद कर रहे हैं ताकि हम मौजूदा दौर में युवाओं के लिए उपलब्ध संभावनाओं पर अपने विश्वास को पुनर्जीवित कर सकें और बंजर पूंजीवादी समाधानों से बेहतर समाधानों की उम्मीद को सँजो सकें। बर्लिन स्थित अंतर्राष्ट्रीय अनुसंधान केंद्र डीडीआर (आईएफडीडीआर) में हमारे सहयोगी 1973 के विश्व महोत्सव की सालगिरह मना रहे हैं, और वियतनाम से क्यूबा, गिनी–बिसाऊ से अमेरिका और चिली पर उसके प्रभाव को दर्शाने के लिए 28 जुलाई से 5 अगस्त 2023 तक एक अभियान चला रहे हैं। (आप IFDDR के सोशल मीडिया चैनलों पर उनके अभियान को देख सकते हैं)।
महोत्सव ख़त्म होने के एक महीने बाद जनरल ऑगस्टो पिनोशे के नेतृत्व में चिली की सेना ने राष्ट्रपति सल्वाडोर अलेंदे की पॉप्युलर यूनिटी सरकार पर हमला किया, और देश के वामपंथियों का दमन करना शुरू कर दिया। हमले में अलेंदे मारे गए। अगले महीने, सितंबर में, तख्तापलट की 50वीं वर्षगांठ पर, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान चिली के Instituto de Ciencias Alejandro Lipschutz Centro de Pensamiento e Investigación Social y Política (ICAL) के साथ मिलकर हमारा डोसियर 68 ‘तीसरी दुनिया के खिलाफ तख्तापलट: चिली, 1973′ प्रकाशित करेगा। डोसियर उस तख्तापलट और दुनिया पर उसके प्रभाव के बारे में बेहतर संदर्भ प्रदान करेगा, जिसका महत्व 1973 के युवा महोत्सव की आभा में धुँधला पड़ गया था। इसका वर्णन आईएफडीडीआर द्वारा लिखे गए एक लेख में किया गया है, जिसे आप इस न्यूज़लेटर के शेष भाग में पढ़ेंगे।
1970 में, वामपंथी ताकतों के गठबंधन ‘पॉपुलर यूनिटी‘ ने चिली में चुनाव जीता और सल्वाडोर अलेंदे राष्ट्रपति बने। इस जीत का उत्साह अन्य समाजवादी देशों में भी गूंज उठा, हालाँकि ज़मीनी स्तर पर स्थिति तनावपूर्ण ही रही। बात यह है कि संसाधन संपन्न देश एक स्वतंत्र रास्ता अपनाना चाहता था और अपने निष्कर्षण उद्योगों पर संप्रभुता चाहता था – जिस पर दशकों से अमेरिकी और यूरोपीय कंपनियों का वर्चस्व था। लेकिन पश्चिम को यह मंज़ूर नहीं था।
अलेंदे की नीतियाँ, जैसे कि खनन क्षेत्र का राष्ट्रीयकरण, उन लोगों को बुरी लगीं जिन्हें इन नीतियों से सबसे ज़्यादा नुक़सान होना था: यानी चिली का अभिजात वर्ग, बड़े ज़मींदार, विदेशी निगम और विदेशी सरकारें। शुरुआत से ही यह प्रतिक्रियावादी ख़तरा प्रगतिशील गठबंधन की सरकार पर काली छाया की तरह मंडराता रहा। उनके प्रतिनिधियों पर हमले होना और उनकी हत्याएँ असामान्य नहीं थीं।
मातृभूमि की नाजुक स्थिति को देखते हुए, ‘चिलियन कम्युनिस्ट यूथ‘ संगठन की तत्कालीन महासचिव ग्लेडिस मारिन ने एक साक्षात्कार में कहा था कि: ‘यहां बर्लिन में चिली के लिए एकजुटता बैठक आयोजित करने का अंतरराष्ट्रीय महत्व है क्योंकि यह ऐसे समय में आयोजित हुआ है, जो मेरी मातृभूमि के लिए बड़ा अहम है‘। मारिन डीडीआर में हो रहे 10वें विश्व महोत्सव में चिली से आए 60 प्रतिनिधियों का नेतृत्व कर रही थीं। चिली से आए प्रतिनिधि गठबंधन सरकार के विभिन्न संगठनों के सदस्य थे। ‘चिली‘ उस उत्सव में होने वाली चर्चा के अहम विषयों में से एक था और लगातार जारी साम्राज्यवादी आक्रमण का सामना कर रही चिली की पॉपुलर यूनिटी सरकार के साथ एकजुटता व ‘हम जीतेंगे‘ जैसे नारे पूरे महोत्सव में बार बार गूंज उठते थे।
लेकिन जीत की निश्चितता को करारा झटका लगा। नई सरकार के प्रतिनिधि के रूप में एशिया तक अपनी लंबी विदेश यात्रा से लौटने के तुरंत बाद, मारिन को 11 सितंबर 1973 को पिनोशे के तख्तापलट के बाद छिपने के लिए मजबूर होना पड़ा। पश्चिमी जर्मनी में तख्तापलट का खुशी से स्वागत किया गया, और पिनोशे तानाशाही में चिली और पश्चिम जर्मनी के बीच व्यापार तेजी से बढ़ी। 1974 में, पश्चिम जर्मनी से चिली को होने वाले निर्यात में 40 प्रतिशत और चिली से आने वाले आयात में 65 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई। पश्चिमी जर्मनी के पुराने राजनेता और क्रिश्चियन सोशल यूनियन (सीएसयू) के अध्यक्ष रहे फ्रांज जोसेफ स्ट्रॉस ने उस समय तख्तापलट पर निंदनीय टिप्पणी की थी: ‘चिली में फैली अराजकता के बाद, अब चिलीवासियों के लिए “व्यवस्था” का विचार अचानक मीठा लगने लगा है‘।
मारिन, चिली से निर्वासित हो गईं, और उन्होंने बंधु देशों में अपनी यात्राएँ फिर से शुरू कर दीं। यह कदम उन्हें फिर से डीडीआर में ले आया, [क्योंकि] डीडीआर उन स्थानों में से एक था जहां निर्वासित चिलीवासियों, जैसे मिशेल बाचेलेट (जो 2006 में चिली के राष्ट्रपति बने), को शरण मिली थी। चिली की घटनाओं ने डीडीआर में एकजुटता आंदोलन को गहरा किया। तख्तापलट के तुरंत बाद बर्लिन की सड़कों पर लोग स्वत: एकत्रित हो गये और पॉपुलर यूनिटी सरकार के प्रति अपना समर्थन व्यक्त किया। डीडीआर की सॉलिडैरिटी कमेटी ने बर्लिन में चिली सेंटर की स्थापना की, जिसने लगभग 2,000 चिली आप्रवासियों के लिए धन और व अन्य सहायता इकट्ठा करने का ज़िम्मा लिया। अंतर्राष्ट्रीय एकजुटता अभियान शुरू किए गए, और चिली की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव लुइस कोरवलन की रिहाई के लिए भी एक अभियान चला। उसी साल विश्व महोत्सव में चिली के प्रतिनिधियों की मौजूदगी ने एकजुटता आंदोलन को और मजबूत किया था, और 1973 के तख्तापलट के बाद के वर्षों में यह महत्वपूर्ण साबित हुआ। जैसा कि मारिन ने उत्सव में उत्साही युवाओं से कहा था: ‘हम बड़ी उम्मीदों के साथ बर्लिन आए हैं… यह उत्सव साम्राज्यवाद के खिलाफ हमारे विश्वव्यापी संघर्ष को और मजबूत करेगा।‘
इंटी–इलिमानी के संस्थापकों में से एक, जॉर्ज कूलन, जो बर्लिन उत्सव में गाने के लिए सैंटियागो से आए थे, ने मुझे बताया कि:
हम संघ नेताओं, कलाकारों, श्रमिकों, सामाजिक संगठनों, पत्रकारों और छात्रों के एक बहुत बड़े प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। … कुछ महीने पहले, चिली की अर्थव्यवस्था की नींव पर निक्सन कंपनी प्रशासन के गुप्त हमलों और पॉप्युलर यूनिटी सरकार को उखाड़ फेंकने की इच्छा रखने वाली ताकतों को मिलने वाले वित्तपोषण के कारण साल्वाडोर अलेंदे ने चिली को एक मूक वियतनाम कहा था। प्रतिरोध की भावना से लैस, दुनिया भर के युवाओं ने शानदार एकजुटता का प्रदर्शन करते हुए, महोत्सव के उद्घाटन पर पॉप्युलर यूनिटी सरकार का गीत गाया था: ‘हम जीतेंगे। हजारों जंजीरें हम तोड़ेंगे।‘
स्नेह–सहित,
विजय।