प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
2003 में, ब्राजील, भारत और दक्षिण अफ़्रीका के उच्च अधिकारी फार्मास्युटिकल दवाओं के व्यापार में अपने पारस्परिक हितों पर चर्चा करने के लिए मैक्सिको में मिले। भारत विभिन्न दवाओं के दुनिया के सबसे बड़े उत्पादकों में से एक है। इसमें एचआईवी–एड्स के इलाज में इस्तेमाल होने वाले दवाएँ भी शामिल हैं। ब्राज़ील व दक्षिण अफ़्रीका दोनों को एचआईवी रोगियों के इलाज और कई अन्य उपचार–योग्य बीमारियों के लिए सस्ती दवाओं की आवश्यकता थी। लेकिन विश्व व्यापार संगठन द्वारा स्थापित सख्त बौद्धिक संपदा कानूनों के कारण ये तीनों देश एक–दूसरे के साथ आसानी से व्यापार करने में असमर्थ थे। उपरोक्त बैठक से कुछ महीने पहले, तीनों देशों ने बौद्धिक संपदा और व्यापार के मुद्दों पर चर्चा करने और उन्हें सुलझाने के लिए आईबीएसए का गठन किया। इसका मक़सद वैश्विक उत्तर के देशों द्वारा गरीब देश से अपनी कृषि सब्सिडी ख़त्म करने की माँग को चुनौती देना भी था। दक्षिण–दक्षिण सहयोग की धारणा ने इन चर्चाओं को आकार दिया।
दक्षिण–दक्षिण सहयोग में दिलचस्पी 1940 के दशक में शुरू हुई थी, जब संयुक्त राष्ट्र आर्थिक व सामाजिक परिषद ने अफ़्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका में उपनिवेशवाद से आज़ाद हुए नए देशों के बीच व्यापार सहायता के लिए अपना पहला तकनीकी सहायता कार्यक्रम स्थापित किया था। छह दशक बाद, जब आईबीएसए का गठन हुआ, तब संयुक्त राष्ट्र ने 19 दिसंबर 2004 को दक्षिण–दक्षिण सहयोग दिवस के रूप में मनाया। इसके साथ ही संयुक्त राष्ट्र ने दक्षिण–दक्षिण सहयोग के लिए एक विशेष इकाई भी बनाई थी (जिसे 2013 से संयुक्त राष्ट्र के दक्षिण–दक्षिण सहयोग कार्यालय के नाम से जाना जाता है)। इस संस्था का गठन विकासशील देशों के बीच व्यापार प्राथमिकताओं की वैश्विक प्रणाली पर 1988 के समझौते के आधार पर हुआ था। 2023 में, इस समझौते में अफ़्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका के 42 सदस्य देश शामिल हैं, जो सामूहिक रूप से चार अरब लोगों और संयुक्त रूप से 16 ट्रिलियन डॉलर (वैश्विक व्यापारिक आयात के लगभग 20%) के बाज़ार का प्रतिनिधित्व करते हैं। यह दर्ज करना महत्वपूर्ण है कि दक्षिणी देशों के बीच व्यापार बढ़ाने का यह दीर्घकालिक एजेंडा 2009 में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका से बने ब्रिक्स के गठन का इतिहास है।
ब्रिक्स परियोजना इस सवाल पर केंद्रित है कि क्या नव–औपनिवेशिक व्यवस्था के निचले छोर पर मौजूद देश आपसी व्यापार और सहयोग के माध्यम से उस व्यवस्था से बाहर निकल पाएँगे या (ब्रिक्स में शामिल देशों सहित) बड़े देश विषमताओं का लाभ उठाते हुए छोटे देशों से ज़्यादा शक्तिशाली बन असमानताओं को दूर करने की बजाय उन्हें पुन: उत्पन्न करेंगे। मार्क्सवादी निर्भरता सिद्धांत पर हमारा नया डोसियर, दक्षिण में पूंजीवादी परियोजना के इस तर्क पर सवाल उठता है कि ऋण आयात करके और सस्ती वस्तुओं का निर्यात करके दक्षिण के देश नव–औपनिवेशिक व्यवस्था से मुक्त हो सकते हैं। ब्रिक्स परियोजना की सीमाओं के बावजूद, यह स्पष्ट है कि दक्षिण–दक्षिण व्यापार में वृद्धि और (विकास के वित्तपोषण आदि हेतु) दक्षिणी संस्थानों का विकास नव–औपनिवेशिक व्यवस्था को भले ही तुरंत न तोड़ सके, लेकिन उसके लिए एक चुनौती ज़रूर है। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ब्रिक्स की शुरुआत से ही इस परियोजना के विकास और विरोधाभासों पर बारीकी से नजर रखी है।
इस महीने के अंत में, पंद्रहवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन 22-24 अगस्त तक दक्षिण अफ़्रीका के जोहान्सबर्ग में होने वाला है। यह सम्मेलन एक ऐसे समय में हो रहा है जब ब्रिक्स के दो सदस्य, रूस और चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा छेड़े गए एक नए शीत युद्ध का सामना कर रहे हैं, जबकि बाकी सदस्य देशों पर इस टकराव में हिस्सेदार बनने का दबाव बनाया जा रहा है। अब आप नो कोल्ड वॉर मंच के साथ मिलकर तैयार की गई ब्रीफिंग नं. 9 पढ़ें, जो आगामी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन की एक संक्षिप्त लेकिन आवश्यक भूमिका प्रस्तुत करती है।
दक्षिण अफ़्रीका के जोहान्सबर्ग में होने जा रहा पंद्रहवां ब्रिक्स शिखर सम्मेलन (22-24 अगस्त) इतिहास बना सकता है। ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्राध्यक्ष ब्राजील के ब्रासीलिया में हुए 2019 के शिखर सम्मेलन के बाद अपनी पहली फ़ेस–टू–फ़ेस बैठक के लिए एकत्र होंगे। यह बैठक यूक्रेन में सैन्य युद्ध की शुरुआत के अठारह महीने बाद हो रही है। इस युद्ध ने न केवल अमेरिका के नेतृत्व वाली पश्चिमी शक्तियों और रूस के बीच के तनाव को शीत युद्ध के बाद से अभुतपूर्व स्तर पर पहुँच दिया है, बल्कि वैश्विक उत्तर और दक्षिण के बीच का मतभेद भी बढ़ाया है।
उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली, (पारंपरिक और सामाजिक मीडिया नेटवर्क दोनों में) सूचना के प्रवाह पर नियंत्रण (पारंपरिक और सामाजिक मीडिया नेटवर्क, दोनों पर) और देशों के विरुद्ध एकतरफा प्रतिबंधों के अंधाधुंध उपयोग के माध्यम से वाशिंगटन और ब्रुसेल्स द्वारा बाकी दुनिया पर थोपी गई एकध्रुवीय अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था में दरारें बढ़ रही हैं। संयुक्त राष्ट्र के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में कहा था कि, ‘शीत युद्ध के बाद का दौर समाप्त हो गया है। एक नई वैश्विक व्यवस्था की ओर बदलाव का दौर चल रहा है।‘
इस वैश्विक संदर्भ में, जोहान्सबर्ग शिखर सम्मेलन में तीन महत्वपूर्ण बिंदुओं पर बात होनी है: (1) ब्रिक्स सदस्यता का संभावित विस्तार, (2) ब्रिक्स के न्यू डेवलपमेंट बैंक (एनडीबी) की सदस्यता का विस्तार, और (3) अमेरिकी डॉलर के उपयोग का विकल्प स्थापित करने में एनडीबी की भूमिका। ब्रिक्स में दक्षिण अफ़्रीका के राजदूत अनिल सुकलाल के अनुसार, (सऊदी अरब, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, मैक्सिको और इंडोनेशिया सहित) बाईस देशों ने (सऊदी अरब, अर्जेंटीना, अल्जीरिया, मैक्सिको और इंडोनेशिया सहित) ब्रिक्स समूह में शामिल होने के लिए औपचारिक रूप से आवेदन किया है और दो दर्जन से अधिक देशों ने सदस्यता की रुचि व्यक्त की है। चुनौतियों के बावजूद, ब्रिक्स को अब विश्व अर्थव्यवस्था में और विशेष रूप से वैश्विक दक्षिण में आर्थिक विकास की एक प्रमुख प्रेरक शक्ति के रूप में देखा जा रहा है।
वर्तमान में ब्रिक्स
पिछले दशक के मध्य में ब्रिक्स को कई समस्याओं का सामना करना पड़ा। भारत में प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी के सत्तारोहण (2014) और ब्राजील में राष्ट्रपति डिल्मा रूसेफ के खिलाफ तख्तापलट (2016) के बाद, समूह के दो सदस्य देश दक्षिणपंथी सरकारों के नेतृत्व में वाशिंगटन के नजदीक चले गए। भारत और ब्राजील दोनों अपने स्तर पर समूह में भागीदारी से पीछे हट गए। ब्राज़ील शुरू से ब्रिक्स की प्रमुख प्रेरक शक्तियों में से एक देश रहा था। उसकी अनुपस्थिति में समूह की एकता को भारी नुकसान हुआ। इन घटनाक्रमों ने 2015 में स्थापित एनडीबी और आकस्मिक रिजर्व व्यवस्था (सीआरए) की प्रगति को भी बाधित किया, जबकि ये संस्थाएँ ब्रिक्स की अब तक की सबसे बड़ी संस्थागत उपलब्धि को दर्शाती हैं। हालाँकि एनडीबी ने कुछ प्रगति की है लेकिन यह अपने मूल उद्देश्यों से पीछे रहा है। आज तक, बैंक ने लगभग 32.8 बिलियन डॉलर के वित्तपोषण को मंजूरी दी है (हालाँकि, वास्तव में जारी की गई रक़म इससे कम है); वहीं सीआरए – जिसके पास अंतरराष्ट्रीय भंडार में अमेरिकी डॉलर की कमी या अल्पकालिक भुगतान संतुलन या तरलता दबाव का सामना कर कर रहे देशों की सहायता के लिए 100 बिलियन डॉलर का फंड है – कभी सक्रिय ही नहीं किया गया।
हालाँकि, हाल के वर्षों में हुए घटनाक्रमों ने ब्रिक्स परियोजना को फिर से सशक्त बना दिया है। नए शीत युद्ध में वाशिंगटन और ब्रुसेल्स की बढ़ती आक्रामकता का जवाब देने के लिए मास्को और बीजिंग के निर्णय; 2022 में ब्राज़ील के राष्ट्रपति पद पर लुइज़ इनासियो लूला दा सिल्वा की वापसी और उसके परिणामस्वरूप एनडीबी के अध्यक्ष पद पर डिल्मा रूसेफ की नियुक्ति; और पश्चिमी शक्तियों से भारत तथा दक्षिण अफ़्रीका के अलग–अलग स्तर पर सापेक्ष अलगाव के परिणामस्वरूप एक ‘तूफ़ानी स्थिति‘ पैदा हुई है, जिसने (भारत और चीन के बीच अनसुलझे तनाव के बावजूद) ब्रिक्स में राजनीतिक एकता की भावना फिर से पैदा की है। इसके साथ ही वैश्विक अर्थव्यवस्था में ब्रिक्स के बढ़ते महत्व और इसके सदस्यों के बीच मजबूत हुए आर्थिक संपर्क ने भी अपना प्रभाव डाला है। 2020 में, क्रय शक्ति समानता के संदर्भ में ब्रिक्स के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वैश्विक हिस्सेदारी (31.5 प्रतिशत) जी-7 देशों की हिस्सेदारी (30.7 प्रतिशत) से आगे निकल गई और आगे भी इस अंतर के बढ़ने की संभावना है। ब्रिक्स देशों के बीच द्विपक्षीय व्यापार भी तेजी से बढ़ा है। ब्राजील और चीन हर साल रिकॉर्ड तोड़ते हुए 2022 में 150 अरब डॉलर के व्यापार पर पहुंचे; भारत में रूसी निर्यात अप्रैल से दिसंबर 2022 के बीच तीन गुना बढ़ा था, और सालाना रूप से बढ़ते हुए 32.8 बिलियन डॉलर हो गया; वहीं चीन और रूस के बीच व्यापार 2021 में 147 बिलियन डॉलर से लगभग 30 प्रतिशत बढ़कर 2022 में 190 बिलियन डॉलर हो गया था।
जोहान्सबर्ग में दांव पर क्या है?
इस गतिशील अंतर्राष्ट्रीय स्थिति और विस्तार के लिए बढ़ते अनुरोधों के बीच, ब्रिक्स के सामने कई महत्वपूर्ण प्रश्न खड़े हैं:
इच्छुक आवेदकों को ठोस जवाब देने के अलावा, विस्तार से ब्रिक्स का राजनीतिक और आर्थिक वजन बढ़ेगा, जिससे अंततः इसके सदस्यों से संबंधित अन्य क्षेत्रीय मंचों को भी मजबूती मिलेगी। लेकिन विस्तार के लिए एक तरफ़ सदस्यता के विशिष्ट स्वरूप पर निर्णय लेने की आवश्यकता होगी और दूसरी तरफ़ इससे आम राय बनाने की जटिलता बढ़ सकती है व निर्णय लेने की प्रक्रिया धीमी हो सकती है। इन मामलों से कैसे निपटा जाए?
एनडीबी की वित्तपोषण क्षमता, और वैश्विक दक्षिण के अन्य विकास बैंकों व अन्य बहुपक्षीय बैंकों के साथ समन्वय कैसे बढ़ाया जा सकता है? और, सबसे महत्वपूर्ण, एनडीबी, ब्रिक्स के थिंक टैंक नेटवर्क के साथ मिलकर, वैश्विक दक्षिण के लिए एक नई विकास नीति के निर्माण को कैसे बढ़ावा दे सकता है?
चूंकि, ब्रिक्स सदस्य देशों के पास अच्छे–ख़ासे अंतरराष्ट्रीय भंडार हैं (हालाँकि दक्षिण अफ़्रीका के पास कमोबेश कम भंडार है), इसलिए उन्हें सीआरए का उपयोग करने की आवश्यकता संभवत: नहीं पड़ेगी। इसके बजाय, यह फंड जरूरतमंद देशों को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष के राजनीतिक ब्लैकमेल में फँस कर ऋण के बदले विनाशकारी मितव्ययिता उपाय लागू करने का एक विकल्प प्रदान कर सकता है।
बताया जा रहा है कि ब्रिक्स एक आरक्षित मुद्रा के निर्माण पर चर्चा कर रहा है, जिससे अमेरिकी डॉलर के बिना व्यापार और निवेश करना संभव हो सकेगा। अगर यह प्रयास सफल होता है तो डॉलर का विकल्प बनाने के प्रयासों में यह एक और कदम हो सकता है, लेकिन सवाल यहाँ भी बरकरार हैं। ऐसी आरक्षित मुद्रा की स्थिरता कैसे सुनिश्चित की जा सकती है? इसे डॉलर का उपयोग न करने वाले नव निर्मित व्यापार तंत्रों (द्विपक्षीय चीन–रुस, चीन–ब्राजील, रुस–भारत और अन्य व्यवस्थाओं आदि) के साथ कैसे जोड़ा जा सकता है?
ब्राजील और दक्षिण अफ़्रीका जैसे देशों में बायोटेक, सूचना प्रौद्योगिकी, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे रणनीतिक क्षेत्रों में पुन: औद्योगीकरण को बढ़ावा देने तथा दक्षिण के लोगों की गरीबी व असमानता दूर करने जैसी बुनियादी मांगों को पूरा करने में सहयोग व प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की क्या भूमिका होगी?
वैश्विक दक्षिण के 71 देशों के नेताओं को जोहान्सबर्ग सम्मेलन में भाग लेने के लिए आमंत्रित किया गया है। इन सवालों का जवाब देने और वैश्विक विकास के अहम मुद्दों पर आगे बढ़ने के लिए शी, पुतिन, लूला, मोदी, रामफोसा और डिल्मा को बहुत काम करना पड़ेगा।
हमारा संस्थान लगातार इन घटनाक्रमों को देख रहा है। लेकिन ना तो हमें कोई झूठी उम्मीद है कि ब्रिक्स परियोजना वैश्विक मुक्ति का रास्ता खोल सकती है, और न ही कोई संशय है कि जो भी हो रहा है उसमें कोई नयापन नहीं है। दुनिया के विरोधाभास ही भविष्य की रूपरेखा को आकार देते हैं।
दक्षिण के इन प्रमुख देशों को जोहान्सबर्ग में दक्षिण अफ़्रीका की व्यापक असमानताओं का भी सामना करना पड़ेगा। ये दरारें वोनानी बिला की कविताओं का आधार हैं, जिनकी आवाज़ शर्ली विलेज (लिम्पोपो) से निकल कर हमें ब्रिक्स व उससे भी आगे की परियोजनाओं के लंबे रास्ते से रूबरू करवाती है:
जब साउथपैन्सबर्ग की पहाड़ियों में
सूरज ढल जाता है,
जीयानी शहर
एक और काला कोट;
मौत और निराशा का दर्पण
पहन लेता है।
डॉक्टर और नर्सें अपने पैरों पर खड़े हो जाएँ।
वे आराम न करें जब मजदूरों की हड़ताल
अपनी मशाल जलाती है।
[और] पंजों के बल खड़ी, ऊपर देखते हुए
बिना चेहरे वाले, बिना पूँछ वाले राक्षस से लड़ती है।
स्नेह–सहित,
विजय।