लेस्ली अमीन (बेनिन), दलदल, 2022.

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

1958 में, नाइजर के एक कवि और ट्रेड यूनियन नेता अब्दुलाय ममानी ने ज़िंदर क्षेत्र के चुनावों में नाइजीरियाई प्रोग्रेसिव पार्टी के उम्मीदवार हमानी डिओरी को हरा दिया। इस चुनाव परिणाम ने फ्रांसीसी औपनिवेशिक अधिकारियों के लिए एक समस्या खड़ी कर दी, क्योंकि वो चाहते थे कि डिओरी नए नाइजर का नेतृत्व करें। ममानी नाइजर की वामपंथी सवाबापार्टी के उम्मीदवार थे। उनकी पार्टी ने फ्रांस के खिलाफ स्वतंत्रता आंदोलन में अहम भूमिका निभाई थी। सवाबासर्वहारा जनता की पार्टी थी; किसानों और श्रमिकों की पार्टी थी जिन्हें आज़ाद नाइजर से बेहतर ज़िंदगी की उम्मीद थी। सवाबाशब्द हवकी भाषा के शब्द ‘सवकी’ से जुड़ा है, जिसका अर्थ है अपने दुखों से छुटकारा पाना।

उक्त चुनाव परिणाम अंततः रद्द कर दिया गया, और ममानी ने दुबारा चुनाव नहीं लड़ने का फैसला किया, क्योंकि उन्हें पता था कि समीकरण उनके खिलाफ बिछाया गया था। 1960 में दोबारा हुए चुनाव में जीतकर डिओरी नाइजर के पहले राष्ट्रपति बने।

1959 में अधिकारियों ने सवाबा पार्टी पर प्रतिबंध लगा दिया और ममानी पहले घाना, माली और फिर अल्जीरिया में निर्वासन में चले गए। उन्होंने अपनी कविता एस्पोइर (‘आशा‘) में लिखा था कि, ‘आओ अपनी लाचारी का अंत कर दें1991 में नाइजर में लोकतंत्र बहाली के बाद ही ममानी वतन वापिस लौट सके। 1993 में, नाइजर में 1960 के बाद पहला बहुदलीय चुनाव आयोजित किया गया। कुछ ही समय पहले पुन: स्थापित हुई सवाबा पार्टी केवल दो ही सीटें जीत पाई। उसी साल ममानी की एक कार दुर्घटना में मृत्यु हो गई। ममानी की यह पंक्ति – आओ अपनी लाचारी का अंत कर दें‘ –  नाइजर पर फ्रांस की नवउपनिवेशवादी पकड़ से आज़ाद होने की एक पीढ़ी की उम्मीद को दर्शाती है।

Yancouba Badji (Niger), Départ pour la route clandestine d’Agadez (Niger) vers la Libye (‘Departure for the Clandestine Route From Agadez (Niger) to Libya’), n.d.

यांकूबा बडजी (नाइजर), अगाडेज़ (नाइजर) से लीबिया के गुप्त मार्ग के लिए प्रस्थान‘)

नाइजर देश अफ्रीका के सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में स्थित साहेल क्षेत्र के केंद्र में स्थित है। 1960 में प्रत्यक्ष उपनिवेशवाद से आज़ाद होने से पहले साहेल क्षेत्र के अधिकांश देश लगभग एक शताब्दी तक फ्रांसीसी शासन के अधीन रहे थे और अपनी तथाकथित आज़ादी के बाद से कमोबेश आज तक नवउपनिवेशवादी व्यवस्था के चंगुल में हैं। जब ममानी अल्जीरिया से नाइजर लौटे थे, लगभग उसी समय अल्फ़ा उमर कोनारे माली में राष्ट्रपति पद पर जीते थे। कोनारे एक मार्क्सवादी थे और छात्र नेता रह चुके थे। नाइजर की ही तरह माली पर ($3 बिलियन का) भारी कर्ज़ था। कर्ज़ की राशि में वृद्धि मुख्यत: सैन्य शासन के दौरान हुई थी। माली के राजकोष का साठ प्रतिशत हिस्सा कर्ज उतारने में जाता था; यानी कोनारे के पास वैकल्पिक एजेंडा चलाने का कोई रास्ता नहीं था। जब कोनारे ने संयुक्त राज्य अमेरिका से माली को इस स्थायी ऋण संकट से निपटने के लिए मदद माँगी, तो राष्ट्रपति बिल क्लिंटन के प्रशासन में अफ्रीकी मामलों के अमेरिकी सहायक सचिव जॉर्ज मूस ने सत्कर्म का फल सुखद होता हैकहकर माली की मदद की अर्ज़ी को टरका दिया। यानी, माली को कर्ज चुकाना पड़ा। तंग आ कर कोनारे ने 2002 में अपने पद का त्याग कर दिया। संपूर्ण साहेल कर्ज़ के अभेद्य व्यूह में फँसा हुआ था, जबकि बहुराष्ट्रीय निगम वहाँ के कीमती कच्चे माल से मुनाफा कमा रहे थे।

जब भी साहेल के लोग अपने हक़ों के लिए खड़े होते हैं, उन पर हमला कर दिया जाता है। माली के राष्ट्रपति मोदिबो कीटा के साथ ऐसा ही हुआ। तख्तापलट करके उन्हें सलाखों में कैद कर दिया गया, जहां 1977 में उनकी मौत हो गई। बुर्किना फासो के राष्ट्रपति थॉमस संकारा की 1987 में हत्या कर दी गई थी। इस तरह साहेल के लोगों को सज़ा मिलती रही है। अब नाइजर एक बार फिर से उस रास्ते पर चल पड़ा है जो फ़्रांस और अन्य पश्चिमी देशों को पसंद नहीं है। वो [पश्चिमी देश] चाहते हैं कि पड़ोसी अफ़्रीकी देश नाइजर में अपनी सेनाएँ भेजकर व्यवस्थाबहाल करें।। नाइजर और साहेल क्षेत्र में साकार हो रही घटनाओं को समझने के लिए, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान और इंटरनेशनल पीपल्स असेंबली ने रेड अलर्ट नं. 17 नाइजर में सैन्य हस्तक्षेप नहीं चाहिए तैयार किया है। न्यूज़लेटर के शेष हिस्से में इसी पर प्रकाश डाला गया है। रेड अलर्ट नं. 17 को आप यहाँ से डाउनलोड कर सकते हैं।

साहेल में फ़्रांसविरोधी और पश्चिमविरोधी भावना क्यों बढ़ रही है?

उन्नीसवीं सदी के मध्य से फ्रांसीसी उपनिवेशवाद उत्तर, पश्चिम और मध्य अफ्रीका में तेजी से फैला। 1960 तक, पश्चिम अफ्रीका में ही लगभग पाँच मिलियन वर्ग किलोमीटर (फ्रांस के आकार के आठ गुना इलाक़े) पर फ़्रांस का नियंत्रण स्थापित हो गया था। हालांकि सेनेगल से चाड तक राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों ने उस साल फ्रांस से स्वतंत्रता हासिल कर ली थी, लेकिन फ्रांसीसी सरकार ने अफ्रीकी वित्तीय समुदाय (सीएफए) (जिसे पहले अफ्रीका का औपनिवेशिक फ्रांसीसी समुदाय कहा जाता था) के माध्यम से वित्तीय और मौद्रिक नियंत्रण बनाए रखा। इसके तहत पश्चिम अफ़्रीका के पूर्व उपनिवेशों में फ्रांसीसी सीएफए फ्रैंक मुद्रा को जारी रखा गया और स्वतंत्र हुए नए देशों को अपने विदेशी मुद्रा भंडार का कम से कम आधा हिस्सा बांके डी फ्रांस में रखने के लिए मजबूर किया गया। संप्रभुता केवल इन मौद्रिक तंत्रों से ही बाधित नहीं थी: बल्कि जब क्षेत्र में कोई नई परियोजना उभरती, तो उसे फ्रांसीसी हस्तक्षेप (जैसे 1987 में बुर्किना फासो के थॉमस सांकरा की हत्या) का सामना करना पड़ता। फ्रांस ने नवऔपनिवेशिक संरचनाओं का जाल बरकरार रखा है, जिसके तहत फ्रांसीसी कंपनियों को क्षेत्र के प्राकृतिक संसाधन (जैसे नाइजर से यूरेनियम, जिससे फ़्रांस के एक तिहाई बल्ब जलते हैं) हड़पने की पूरी छूट है, लेकिन ये देश अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के ऋणमितव्ययिता एजेंडा के चंगुल में अपनी जनता की महत्वकांक्षाओं का गला घोटने को मजबूर हैं।

2011 में उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) द्वारा लीबिया की तबाही के बाद पूरे साहेल क्षेत्र में अस्थिरता फैल गई। इससे साहेल में फ्रांस के खिलाफ आक्रोश बढ़ा। अलगाववादी समूहों, सहारा क्षेत्र के तस्करों और अलकायदा की शाखाओं ने सहारा के दक्षिणी क्षेत्र की ओर कूच किया और माली के लगभग दोतिहाई हिस्से, बुर्किना फासो के बड़े हिस्से और नाइजर के भी कुछ हिस्सों पर कब्जा कर लिया। ऑपरेशन बरखाने (2013) और नवउपनिवेशवादी जी-5 साहेल परियोजना के माध्यम से साहेल में फ्रांस का सैन्य हस्तक्षेप और नागरिकों पर फ्रांसीसी सैनिकों का हमला बढ़ने लगा। आईएमएफ की ऋणमितव्ययिता परियोजना, पश्चिम एशिया में पश्चिमी युद्ध और लीबिया के विनाश के कारण पूरे क्षेत्र में प्रवासन बढ़ा। प्रवासन के इन असल कारणों से निपटने के बजाय यूरोप ने सैन्य व विदेश नीति उपायों के माध्यम से साहेल में अपनी दक्षिणी सीमा बनाने की कोशिश की। इसे सुलभ बनाने के लिए यूरोप ने अफ्रीका के इस इलाक़े की नवउपनिवेशवादी सरकारों को अवैध निगरानी तकनीकों का निर्यात तक किया। फ्रांस, बाहर निकलो!’ का नारा साहेल का गला घोंटने पर आमादा नवउपनिवेशवादी संरचनाओं के खिलाफ क्षेत्र में बड़े पैमाने पर फैली अशांति को परिभाषित करता है।

विल्फ्रिड बालिमा (बुर्किना फासो), तीन कॉमरेड, 2018.

 

साहेल में इतने सारे तख्तापलट क्यों हुए हैं?

पिछले तीस वर्षों के दौरान साहेल देशों में राजनीति गंभीर रूप से कमजोर हुई है। कई पार्टियाँ जिनका इतिहास राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलनों या समाजवादी आंदोलनों (जैसे कि नाइजर की पार्टी नाइजीरियन पौर ला डेमोक्रैटी एट ले सोशलिज्मतारैया) से जुड़ा है, आज अपने देश में पश्चिमी एजेंडा के वाहक अभिजात वर्गों का प्रतिनिधित्व करती हैं। अलकायदातस्कर ताकतों के प्रवेश ने स्थानीय अभिजात वर्ग और पश्चिमी ताक़तों को क्षेत्र के राजनीतिक माहौल पर पहले से भी कड़े नियंत्रण लागू करने, ट्रेड यूनियनों की सीमित स्वतंत्रता को और कम करने और स्थापित राजनीतिक दलों में से वामपंथी नेताओं को बाहर करने का औचित्य दिया। मुद्दा यह नहीं है कि मुख्यधारा के राजनीतिक दलों के नेता कट्टर दक्षिणपंथी या केंद्रदक्षिणपंथी हैं, बल्कि यह है कि उनका रुझान जो भी हो, वो पेरिस और वाशिंगटन की इच्छाओं से वास्तविक रूप में आज़ाद नहीं हैं। वो – अगर ज़मीनी स्तर पर अक्सर इस्तेमाल किए जाने वाले शब्द का उपयोग किया जाए तो – पश्चिम की कठपुतलियाँबन गए हैं।

किसी विश्वसनीय राजनीतिक या लोकतांत्रिक मंच के अभाव में साहेल देशों के बहिष्कृत ग्रामीण और निम्नबुर्जुआ वर्ग नेतृत्व के लिए सशस्त्र बलों से संबद्ध अपने शहरी बच्चों की ओर रुख करते हैं। बुर्किना फासो के कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे (जो 1988 में जन्मे थे), जिनका पालनपोषण मौहौन के ग्रामीण प्रांत में हुआ और जिन्होंने औगाडौगौ में भूविज्ञान का अध्ययन किया, या माली के (1983 में जन्मे) कर्नल असिमी गोइता, जो मवेशी बाजार और काति सैन्य क्षेत्र से आते हैं, इन व्यापक वर्ग विभेदों का प्रतिनिधित्व करते हैं। आईएमएफ के कठोर मितव्ययिता कार्यक्रमों, पश्चिमी बहुराष्ट्रीय कंपनियों द्वारा उनके संसाधनों की चोरी और देश में पश्चिमी सैन्य चौकियों पर खर्च ने उनके समुदायों को पूरी तरह से हाशिए की ओर धकेल दिया है। उनके हक़ में बोलने वाले किसी वास्तविक राजनीतिक मंच की अनुपस्तिथि के कारण, देश का बड़ा हिस्सा इन युवा सैन्य पुरुषों के देशभक्तिपूर्ण इरादों के पीछे लामबंद हो गया है; हालाँकि इन युवाओं को इनके देशों की ट्रेड यूनियनों व किसान संगठनों जैसे जन आंदोलनों ने प्रेरित किया है। यही कारण है कि नाइजर में राजधानी नियामी से लेकर लीबिया से सटे हुए छोटे, दूरदराज के शहरों में बड़े पैमाने पर रैलियों में तख्तापलट का पक्ष लिया जा रहा है। ये युवा नेता किसी सुविचारित एजेंडे के साथ सत्ता में नहीं आए हैं। हालाँकि, वे थॉमस संकारा जैसे लोगों से कुछ हद तक प्रेरित ज़रूर हैं: उदाहरण के लिए, बुर्किना फासो के कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे संकारा की तरह लाल टोपी पहनते हैं, संकारा जैसी वामपंथी स्पष्टता के साथ बोलते हैं, और यहां तक कि संकारा की बोली की नकल भी करते हैं।

Pathy Tshindele (Democratic Republic of Congo), Sans Titre (‘Untitled’) from the series Power, 2016.

पाथी टीशिंडेल (डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो), ‘ताक़तश्रृंखला में से एक शीर्षकहीन कृति, 2016.

क्या नाइजर की सरकार को हटाने के लिए पश्चिम समर्थक सैन्य हस्तक्षेप होगा?

पश्चिम (विशेषकर फ्रांस) ने नाइजर तख्तापलट की तीखी और तीव्र निंदा की। नाइजर की नई सरकार, जिसका नेतृत्व एक सिविलियन (और पूर्व वित्त मंत्री अली महामन लैमिन ज़ीन) कर रहे हैं, ने फ्रांसीसी सैनिकों को देश छोड़ने के लिए कहा और फ्रांस को यूरेनियम निर्यात में कटौती करने का फैसला किया है। फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका जिसने अगाडेज़ (नाइजर) में दुनिया का सबसे बड़ा ड्रोन बेस बनाया है दोनों ही अपने स्वयं के सैन्य बलों के साथ सीधे हस्तक्षेप करने के इच्छुक नहीं हैं। 2021 में, फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका ने रवांडा की सेना से सैन्य हस्तक्षेप करवा कर मोज़ाम्बिक में अपनी निजी कंपनियों, टोटलएनर्जीज़ और एक्सॉनमोबिल की रक्षा की थी। पश्चिम की पहले इच्छा थी कि नाइजर में पश्चिम अफ्रीकी राज्यों का आर्थिक समुदाय (ECOWAS) उनकी ओर से आक्रमण करे, लेकिन ECOWAS सदस्य देशों में बड़े पैमाने पर फैली अशांति और ट्रेड यूनियनों व जनसंगठनों के विरोध ने क्षेत्रीय संगठन की शांतिरक्षा ताक़तोंको रोक दिया। इस साल 19 अगस्त को, ECOWAS ने नाइजर के अपदस्थ राष्ट्रपति और नई सरकार से मिलने के लिए एक प्रतिनिधिमंडल भेजा। ECOWAS ने अपने सैनिकों को स्टैंडबाय मोड पर रखा है और चेतावनी दी है कि उसने सैन्य हस्तक्षेप के लिए एक अज्ञात डीडेचुन रखा है।

अफ्रीकी संघ, जिसने शुरू में तख्तापलट की निंदा की थी और नाइजर को सभी संघीय गतिविधियों से निलंबित कर दिया था, ने हाल ही में कहा कि सैन्य हस्तक्षेप नहीं होना चाहिए। इस बयान के बाद भी, घाना अपने सैनिकों को नाइजर भेज सकता है जैसी अफवाहें रुकी नहीं हैं(जबकि घाना के प्रेस्बिटेरियन चर्च ने हस्तक्षेप न करने की चेतावनी दी है और ट्रेड यूनियनों ने संभावित आक्रमण की निंदा की है)। पड़ोसी देशों ने नाइजर के साथ लगी अपनी सीमाएँ बंद कर दी हैं।

इस बीच, नाइजर में सेना भेजने वाली बुर्किना फासो और माली की सरकारों ने कहा है कि नाइजर सरकार के खिलाफ किसी भी सैन्य हस्तक्षेप को उनके अपने देशों पर आक्रमण के रूप में लिया जाएगा। साहेल में एक नया संघ बनाने के बारे में गंभीर बातचीत चल रही है, जिसमें बुर्किना फासो, गिनी, माली और नाइजर शामिल होंगे, जिनकी कुल आबादी 85 मिलियन से अधिक है। सेनेगल से चाड तक की आबादी में हो रही सुगबुगाहट से पता चलता है कि अफ्रीकी महाद्वीप के इस महत्वपूर्ण क्षेत्र में यह आखिरी तख्तापलट नहीं होगा। वेस्ट अफ्रीकन पीपुल्स ऑर्गनाइजेशन जैसे मंचों का विकास इस क्षेत्र में राजनीतिक उन्नति के लिए महत्वपूर्ण साबित हुआ है।

सेनिहिमैप (नाइजर), शीर्षक रहित, 2006.

11 अगस्त को, बेनिन की कम्युनिस्ट पार्टी के महासचिव, फिलिप टोयो नौडजेनौमे ने अपने देश के राष्ट्रपति को पत्र लिखकर एक सटीक और सरल प्रश्न पूछा: किसके हित साधने के लिए बेनिन नाइजर के ख़िलाफ़ युद्ध में उतरा है, और अपनी बंधुजनता को भूख से मरने के लिए मजबूर कर रहा है? ‘आप बेनिन के लोगों को फ्रांस के रणनीतिक हितों के लिए नाइजर के लोगों का गला घोंटने के लिए प्रतिबद्ध करना चाहते हैं‘, उन्होंने आगे कहा; ‘मैं मांग करता हूं किआप हमारे देश को नाइजर की बंधु जनता के खिलाफ किसी भी आक्रामक अभियान में शामिल करने से इनकार करें… [और] शांति, सद्भाव और अफ्रीकी जनता के विकास के लिए हमारे लोगों की आवाज सुनें।साहेल क्षेत्र में जनता की आशाओं का गला दबाने वाली नवउपनिवेशवादी संरचनाओं का सामना करने का दृढ़ साहस दिखाई दे रहा है। लोग लाचारी का अंत करना चाहते हैं।

स्नेहसहित,

विजय।