प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
पाकिस्तान के लोगों के लिए आपदायें कोई नयी बात नहीं हैं। वे 2005, 2013 और 2015 में आए विनाशकारी भूकंप, और 2010 में भयावह बाढ़ का सामना कर चुके हैं। लेकिन, इस गर्मी में जिस तरह की आपदाएँ शुरू हुईं उसका सामना करने के लिए दुनिया का पाँचवा सबसे ज़्यादा आबादी वाला देश पाकिस्तान बिलकुल तैयार नहीं था। आपदाओं का यह सिलसिला अत्यधिक तापमान और राजनैतिक उथल–पुथल के साथ शुरू होकर अप्रत्याशित बाढ़ की वीभिषिका के साथ आगे बढ़ता रहा।
जनता के मन में पाकिस्तानी सरकार के प्रति निराशा बढ़ती जा रही है। मज़दूर किसान पार्टी के महासचिव तैमूर रहमान ने पीपुल्स डिस्पैच को बताया कि 2010 में आई बाढ़ के बाद से लोग इस बात को लेकर काफ़ी ‘आक्रोशित हैं कि पानी के अनियंत्रित प्रवाह को रोकने के लिए सरकार ने कुछ नहीं किया।‘ 2010 के बाद के दौर में भ्रष्ट राजनेताओं और धनाढ़्य संभ्रांतों द्वारा राहत कोषों में घपला करने के सुबूत मिलते रहे हैं। लोगों के ज़ेहन में भ्रष्टाचार की ये घटनाएँ अभी भी ताज़ा हैं। लोगों को यह पता है कि विनाशकारी औद्योगिक जटिलताएँ भ्रष्टाचार के निरंकुश चक्र को पैदा करती हैं।
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने इंटरनेशनल पीपुल्स असेंबली के साथ मिलकर पाकिस्तान में आई बाढ़ और इस आपदा के राजनीतिक प्रभावों पर आधारित रेड अलर्ट संख्या 15 को तैयार किया है।
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जल्मग्न पाकिस्तान: रेड अलर्ट संख्या 15
क्या पाकिस्तान में आई ये बाढ़ ‘भगवान का प्रकोप‘ है?
अगस्त के अंतिम सप्ताह में पाकिस्तान के विशाल भूभाग का एक तिहाई हिस्सा बाढ़ की वजह से जलमग्न हो गया था। सैटेलाइट से ली गई तस्वीरों से पता चला कि पानी की तेज़ धार ने सिंधु नदी के तटों को धराशायी करके दो प्रमुख प्रांतों, बलूचिस्तान और सिंध, के बड़े हिस्सों को जलमग्न कर दिया था। 30 अगस्त 2022 को, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने इसे ‘निरंकुश मानसून का प्रकोप‘ कहा, क्योंकि बारिश के पानी ने 1,000 से अधिक लोगों की जान ली और लगभग 33 मिलियन से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया। इस प्रकोप से उपजे तात्कालिक और दीर्घकालिक ख़तरों के कारण अपने घरों से पलायन करने को विवश होने वाले लोगों की हालत और भी ज़्यादा ख़राब है। ऊँची जगहों, जैसेकि राजमार्गों, पर डेरा डालकर रहने वाले लोग वर्तमान में भुखमरी की दहलीज़ पर खड़े हैं और पानी की वजह से होने वाली बीमारियों जैसे दस्त, पेचिश और हेपेटाइटिस से संक्रमित होने के जोखिम का सामना कर रहे हैं। खड़ी फ़सलों (कपास और गन्ना) और पशुधन को खोने वाले लोगों के ऊपर ग़रीबी का साया मंडरा रहा है। पाकिस्तान के योजना मंत्री अहसान इक़बाल का अनुमान है कि इस बार आने वाली बाढ़ की वजह से 10 अरब डॉलर से ज़्यादा की धनराशि का नुक़सान होगा।
पहली नज़र में बाढ़ का मुख्य कारण मौनसून की रिकॉर्ड तोड़ बारिश के बाद इस मौसम के अंत में हुई अत्यधिक बारिश जान पड़ती होती है। जलवायु परिवर्तन के पूर्व मंत्री मलिक अमीन असलम के अनुसार, पाकिस्तान में गर्मी का मौसम अत्यधिक गर्म रहा और अप्रैल तथा मई के महीने में एक लंबी अवधि के दौरान तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज़्यादा रहा, जिसकी वजह से पाकिस्तान ‘पृथ्वी का सबसे ग़र्म स्थान‘ बन गया था। इन अत्यधिक गर्म महीनों के परिणामस्वरूप देश के उत्तरी ग्लेशियर असामान्य रूप से पिघले। ग्लेशियरों से पिघला हुआ पानी ‘ट्रिपल डिप‘- भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में लगातार तीन सालों से ठंडे होते ला नीना– के कारण हुई मूसलाधार बारिश से मिला। इसके अलावा, कार्बन–ईंधन पर पलने वाले वैश्विक पूँजीवाद द्वारा जनित भयावह जलवायु परिवर्तन भी हिमनदों के पिघलने और मूसलाधार बारिश के लिए ज़िम्मेदार है।
लेकिन मौसम की विसंगति बाढ़ के स्वरूप का पूरी तरह से निर्धारण नहीं करती है। पाकिस्तान में वनों की अनियंत्रित कटाई और बांधों, नहरों तथा पानी को नियंत्रित करने वाले साधनों जैसे बुनियादी ढाँचों की ख़स्ता हालत के कारण पानी का बढ़ता स्तर लोगों को ज़्यादा प्रभावित करता है। विश्व बैंक ने 2019 में कहा कि पाकिस्तान एक ‘हरित आपातकाल‘ का सामना कर रहा है क्योंकि हर साल लगभग 27,000 हेक्टेयर प्राकृतिक वनों को काट दिया जाता है, जिससे मिट्टी में बारिश के पानी का अवशोषण बेहद कठिन हो जाता है।
इसके अतिरिक्त, बांधों और नहरों (जो अब गाद से भरी हैं) में सरकारी निवेश की कमी ने पानी की भारी मात्रा को नियंत्रित करना बहुत कठिन बना दिया है। इन बांधों, नहरों और जलाशयों में सबसे महत्वपूर्ण सुक्कुर बैराज है। यह अपने आप में दुनिया की सबसे बड़ी सिंचाई प्रणाली है जो सिंधु को दक्षिणी सिंधु नदी से जोड़ती है, मंगला और तारबेला जलाशयों से मिलती है, और पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद की तरफ़ से पानी का रुख़ मोड़ती है। बाढ़ के मैदानों में हुए अवैध निर्माणों की वजह से मानव त्रासदी की संभावना बढ़ जाती है।
इन बाढ़ों से ईश्वर का कोई लेना–देना नहीं है। प्रकृति ने केवल पूँजीवाद जनित जलवायु विनाश और पाकिस्तान में पानी, भूमि और वन प्रबंधन की उपेक्षा के अंतर्निहित संकटों को गहरा कर दिया है।
पाकिस्तान के सामने मौजूद संकट क्या हैं?
बाढ़ ने उन समस्याओं को उजागर किया है जिसने पाकिस्तान को पंगु बनाकर रख दिया है। बाढ़ से पहले मई में किए गए सर्वेक्षणों से पता चलता है कि 54% आबादी मुद्रास्फीति को अपनी मुख्य समस्या मानती है। पाकिस्तानी सांख्यिकी ब्यूरो ने बताया कि सामानों की औसत क़ीमतों में उतार–चढ़ाव को मापने वाले थोक मूल्य सूचकांक में अगस्त तक 41.2% की वृद्धि हुई, जबकि वार्षिक मुद्रास्फीति दर 27% थी। वैश्विक स्तर पर बढ़ती मुद्रास्फीति और बाढ़ के कारण हुए 10 बिलियन डॉलर से अधिक के नुक़सान के बावजूद, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) ने कटौती पर आधारित उदारवादी नीतियों की शर्तों, जैसेकि ‘विवेकपूर्ण मौद्रिक नीति‘, के साथ केवल 1.1 बिलियन डॉलर देने का वादा किया है। ऐसे समय में जब देश की कृषि का बुनियादी ढाँचा पूरी तरह से नष्ट हो चुका है, तब आईएमएफ़ द्वारा कटौती पर आधारित उदारवाद की सख़्त शर्तें थोपना (यह क़दम 1943 के बंगाल अकाल के दौरान भारत से गेहूँ के निर्यात को जारी रखने की ब्रिटिश औपनिवेशिक नीति की याद दिलाता है) न्यायसंगत नहीं है। वैश्विक भूख सूचकांक 2021 के अनुसार 116 देशों की सूची में पाकिस्तान बानवे स्थान पर खड़ा था। इसका मतलब बाढ़ के प्रकोप के शुरू होने से पहले ही पाकिस्तान में भूख का गंभीर संकट मौजूद था। चूँकि देश के किसी भी बुर्जुआ राजनीतिक दल ने इन निष्कर्षों को गंभीरता से नहीं लिया है, इसलिए, निस्संदेह सुधार की सीमित संभावना के साथ देश का आर्थिक संकट विकराल रूप धारण करता जाएगा।
अब हम गंभीर राजनीतिक संकट के मुद्दे पर आते हैं। 75 साले पहले, 1947 में अंग्रेज़ों से मिली आज़ादी के बाद से, पाकिस्तान में अबतक 31 प्रधानमंत्री बन चुके हैं। अप्रैल 2022 में, देश के तीसवें प्रधानमंत्री इमरान ख़ान को पद से हटाकर वर्तमान प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ़ को प्रधानमंत्री बनाया गया। आतंकवाद और अदालत की अवमानना के आरोपों का सामना कर रहे ख़ान ने आरोप लगाया कि रूस के साथ उनके क़रीबी संबंधों के कारण वाशिंगटन के इशारे पर उनकी सरकार को गिराया गया। ख़ान की पाकिस्तान तहरीक–ए–इंसाफ़ (पीटीआई या ‘जस्टिस पार्टी‘) 2018 के चुनावों में बहुमत हासिल करने में असमर्थ रही थी। इस वजह से मुट्ठी भर सांसदों के जाने भर से उनके गठबंधन के ऊपर सत्ता से बेदख़ल होने का ख़तरा था। विपक्ष ने ठीक यही दाँव खेला। विपक्ष नये जनादेश के बिना सांसदों की दलबदली करके सत्ता हासिल करने में सफल रहा। सत्ता से बेदख़ल होने के बाद से इमरान ख़ान और पीटीआई की स्थिति मज़बूत हुई है। कराची और पंजाब में बाढ़ से पहले हुए जुलाई के उपचुनावों में उनको 20 में से 15 सीटों पर जीत हासिल हुई थी। अब बाढ़ पीड़ितों के लिए राहतकार्य की धीमी गति को लेकर शरीफ़ सरकार के ख़िलाफ़ लोगों में ग़ुस्सा बढ़ता जा रहा है, जो राजनीतिक संकट को और गंभीर बनाएगा।
क्या क़दम उठाए जाने चाहिए?
पाकिस्तान ‘जलवायु रंगभेद‘ से जूझ रहा है। 230 मिलियन से अधिक लोगों का यह देश कुल वैश्विक ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में केवल 1% का योगदान देता है, फिर भी यह जलवायु परिवर्तन के जोखिम से सबसे ज़्यादा प्रभावित देशों की सूची में आठवें स्थान पर आता है। धरती की जलवायु के विनाश में अपनी भूमिका को स्वीकार करने में पश्चिमी पूँजीवादी देशों की विफलता के कारण पाकिस्तान जैसे देश, जिनके उत्सर्जन का स्तर काफ़ी कम है, तीव्र जलवायु परिवर्तन का अधिकाधिक ख़ामियाज़ा भुगत रहे हैं। पश्चिमी पूँजीवादी देशों को कम–से–कम वैश्विक जलवायु कारवाई एजेंडा (Global Climate Action Agenda) को अपना पूरा समर्थन देना चाहिए।
वामपंथी और प्रगतिशील ताक़तों – जैसे मज़दूर किसान पार्टी – और अन्य नागरिक समूहों ने पाकिस्तान के चार प्रांतों में बाढ़ राहत अभियान चलाया है। वे मुख्य रूप से दूर–दराज़ के ग्रामीण इलाक़ों में पहुँचकर भुखमरी से निपटने के लिए खाद्य राहत अभियान चला रहे हैं। पाकिस्तानी वामपंथी सरकार से माँग कर रहे हैं कि वो मानवीय संकट को गहरा करने वाली कटौती पर आधारित उदारवादी नीतियों और मुद्रास्फीति को रोके।
1970 की गर्मियों में, बलूचिस्तान के पहाड़ी क्षेत्र में अचानक आई बाढ़ ने भीषण नुक़सान पहुँचाया। कुछ महीने बाद हुए आम चुनावों में नेशनल आवामी पार्टी के कवि गुल ख़ान नासिर बलूचिस्तान प्रांतीय विधानसभा में एक सीट जीतकर शिक्षा, स्वास्थ्य, सूचना, समाज कल्याण और पर्यटन मंत्री बने। गुल ख़ान नासिर ने अपने मार्क्सवादी विश्वासों के बल पर बलूच लोगों की सामाजिक क्षमता (इसमें प्रांतीय राजधानी क्वेटा में प्रांत का एकमात्र मेडिकल स्कूल स्थापित करना शामिल है) के निर्माण का काम शुरू किया। नासिर को अलोकतांत्रिक तरीक़े से पद से हटाकर जेल में डाल दिया गया। उनके लिए जेल कोई नयी जगह नहीं थी। वे पहले भी यहाँ आते जाते रहे थे। उन्होंने जेल के भीतर ही एक गीत ‘देमा क़दम‘ (‘आगे बढ़ते रहो‘) लिखा। 50 साल गुज़र जाने के बाद भी इस गीत का एक छंद उनकी जन्मभूमि में चल रहे उथल–पुथल का सटीक वर्णन करता प्रतीत होता है:
अगर तुम्हारे सिर के ऊपर मौजूद आसमान
ग़ुस्से, प्रचण्ड रोष,
गर्जन और बारिश और बिजली और तूफ़ान से भर जाता है।
रात कोयले–सी अँधेरी हो जाती है।
ज़मीन आग–सी हो जाती है।
समय बर्बर बन जाता है।
लेकिन तुम्हारा मक़सद वही है:
बढ़ते रहो, बढ़ते रहो, आगे बढ़ते रहो।
स्नेह–सहित,
विजय।