प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
इस सप्ताह, 14 से 18 अक्टूबर तक चले Dilemmas of Humanity सम्मेलन में दुनिया भर के राजनीतिक नेताओं, कार्यकर्ताओं और जनपक्षधर बुद्धिजीवियों ने हिस्सा लिया। इस सम्मेलन में आज मानवता के सामने मौजूद प्रमुख समस्याओं पर चर्चा की गई और उन समस्याओं के समाधान के लिए प्रस्ताव पेश किए गए। जोहान्सबर्ग (दक्षिण अफ़्रीका) में एकत्रित प्रतिभागियों को इज़राइल द्वारा फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ छेड़े गए नरसंहार की वीभिषिका का भयजदा गवाह बनने पर मजबूर होना पड़ा। 17 अक्टूबर को, लगातार हो रही बमबारी के ग्यारहवें दिन, इज़राइल ने ग़ाज़ा शहर में अल–अहली अरब अस्पताल पर बमबारी करके दुनिया को चौंका दिया, जहाँ हज़ारों नागरिकों का इलाज हो रहा था और हमलों से बचने के लिए बहुत लोग उस अस्पताल में मौजूद थे। ग़ाज़ा के स्वास्थ्य मंत्रालय के शुरुआती अनुमान के मुताबिक, 500 से ज़्यादा लोग मारे गए, हालाँकि आने वाले दिनों में मृतकों की संख्या में निश्चित तौर पर बढ़ोतरी होगी। नरसंहार से एक दिन पहले, संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के पास ग़ाज़ा में युद्धविराम के लिए एक प्रस्ताव पारित करने का अवसर था, जिससे अस्पताल पर हुई बमबारी टल सकती थी। हालाँकि, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस और जापान ने इस प्रस्ताव को पारित नहीं होने दिया।
Dilemmas of Humanity conference के उद्घाटन सत्र के दौरान, जिसे कई लोगों ने दूसरा नकबा कहा है, फ़िलिस्तीनी पीपुल्स पार्टी के सदस्य अरवा अबू हशश ने अपने देश पर हो रहे हमले के संदर्भ में भावुकता और जोश से भरा भाषण दिया। इस सप्ताह के न्यूज़लेटर में उनका भाषण शामिल है। उनके भाषण को 18 अक्टूबर को अपडेट किया गया है ताकि वर्तमान आँकड़ों और स्रोतों का ठीक से पता चल सके।
मुझे फ़िलिस्तीनी प्रतिनिधिमंडल की ओर से बोलने की अनुमति दें, जिसे अभी हमारे बीच होना था, लेकिन कठिन परिस्थितियों और दम घोंटने वाली नाकेबंदी के कारण वह इस सम्मेलन में भाग नहीं ले सके, जिसका सामना फ़िलिस्तीनी जनता कर रही है। इस समय, जब मैं आपको संबोधित कर रहा हूँ, ग़ाज़ा और फ़िलिस्तीन के घिरे हुए लोग फ़ासीवादी ज़ायोनिस्ट (यहूदीवादी) शक्तियों द्वारा चलाए जा रहे नरसंहार अभियान का सामना कर रहे हैं। लगातार बारहवें, इज़रायली युद्ध मशीन फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार जारी रखे हुए है, जिसके परिणामस्वरूप बच्चे, महिलाएँ, युवा और बुज़ुर्ग मारे जा रहे हैं। 7 अक्टूबर के बाद से बच्चों सहित 3,400 से अधिक फ़िलिस्तीनी शहीद हो चुके हैं। कई पीढ़ियों के शहीद होने के बाद दर्जनों परिवारों को नागरिक रजिस्टर से पूरी तरह मिटा दिया गया है, और अस्पतालों, स्कूलों, मस्जिदों, चर्चों, सरकारी भवनों तथा मीडिया हाउसों सहित बुनियादी ढाँचे को पूरी तरह नष्ट कर दिया गया है। इसके कारण ग़ाज़ा में दस लाख से अधिक लोगों को अपने घरों से विस्थापित होना पड़ा, साथ ही दम घोंटने वाली घेराबंदी करके और भोजन, दवा, ईंधन आपूर्ति, पानी तथा बिजली की आपूर्ति काटकर क्षेत्र के बीस लाख से अधिक निवासियों को भूखा मारने का प्रयास किया गया।
आज दुनिया की साम्राज्यवादी शक्तियों, मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका और कुछ सहयोगी पश्चिमी देशों के स्पष्ट समर्थन के साथ फ़िलिस्तीनी जनता का नरसंहार किया जा रहा है। ये देश फ़िलिस्तीनी–इज़राइली संघर्ष के सार को आतंकवाद के मुद्दे के रूप में फिर से परिभाषित करने का एक भयानक लेकिन निरर्थक प्रयास कर रहे हैं, फ़िलिस्तीनी जनता और उनके प्रतिरोध की तुलना आईएसआईएस से कर रहे हैं और हमास तथा फ़िलिस्तीनी जनता को समग्र रूप से उसी खाँचे के भीतर रख रहे हैं जिसे वे ‘आतंक के विरुद्ध लड़ाई‘ कहते हैं। सोची समझी रणनीति के तहत इस आख्यान को स्थापित करते हुए इन शक्तियों का सबसे पहला लक्ष्य इज़राइल द्वारा की जाने वाली हत्याओं और दैनिक अपराधों को वैध बनाना है। वे चाहते हैं कि दुनिया को इस संघर्ष के पीछे की सच्चाई का पता न चले और दुनिया इस वास्तविकता को लगातार नज़रअंदाज़ करती रहे कि फ़िलिस्तीनी मुद्दा राष्ट्रीय मुक्ति के संघर्ष का विषय है।
आज जब हम दुनिया भर से पूँजीवादी व्यवस्था के संकट पर चर्चा करने के लिए एकत्रित हुए हैं – ताकि हम इस व्यवस्था से उबरने के लिए विकल्प प्रस्तावित कर सकें और एक समाजवादी विकल्प तैयार कर सकें – तो हमें सबसे बुनियादी कार्यों में से एक का सामना करना पड़ रहा है, जिसके लिए हमें सटीक ढंग से इस प्रणाली के उपकरणों की पहचान करनी होगी। फ़िलिस्तीन में आज चल रहे संघर्ष की प्रकृति को समझने के लिए, अरब और मगरेब (पश्चिम) क्षेत्र में इज़रायली क़ब्ज़े को एक आवश्यक उपकरण तथा एक उन्नत सैन्य अड्डे के रूप में समझना महत्वपूर्ण है जो क्षेत्र में साम्राज्यवादियों के हितों की रक्षा करता है और उनके नियंत्रण तथा आधिपत्य को सुनिश्चित करता है। यह विचारों की लड़ाई का हिस्सा है जिस पर हमने Dilemmas of Humanity के बैनर तले होने वाले कार्यों के माध्यम से बार–बार ज़ोर दिया है।
इज़राइल, जो 75 साल पहले अस्तित्व में नहीं था, उसे ब्रिटिश साम्राज्यवाद और बाद में फ्रांसीसी तथा अन्य यूरोपीय साम्राज्यवादी ताक़तों ने आधुनिक इतिहास में जातीय नरसंहार के सबसे हिंसक कृत्यों में से एक के माध्यम से स्थापित किया। इस प्रक्रिया को अमेरिकी साम्राज्यवाद का पूर्ण समर्थन प्राप्त था। जैसे ही इन साम्राज्यवादी शक्तियों ने हमारे क्षेत्र के संसाधनों को ज़ब्त करने और संपत्ति को लूटने की कोशिश की, उनके हित ज़ायोनिस्ट आंदोलन के साथ जुड़ गए, जिसने यूरोप में यहूदियों के मुद्दों के समाधान का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव था फ़िलिस्तीनी भूमि पर उपनिवेश बनाकर, उसकी जनता को ज़मीन से बेदख़ल करके इज़राइल राज्य की स्थापना करना।
संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ इन साम्राज्यवादी ताक़तों ने फ़िलिस्तीनियों के ख़िलाफ़ इज़रायल की रोज़मर्रा की क्रूर आक्रामकता का समर्थन करना और उसे उचित ठहराना जारी रखा है। इस आक्रामकता में भूमि चोरी करना, घरों को ध्वस्त करना, अवैध बस्तियों का निर्माण करनास तथा फ़िलिस्तीन में हर दिन निर्दोष युवाओं, महिलाओं तथा बुज़ुर्गों को गिरफ़्तार करना, हिरासत में लेना, अपमानित करना और मारना शामिल है।
इज़राइल ने, 1948 में फ़िलिस्तीन के अधिकांश हिस्से पर क़ब्ज़ा कर लिया और [जातीय नरसंहार करके, जिसे नकबा के नाम से जाना जाता है] लगभग 8,00,000 फ़िलिस्तीनियों को विस्थापित कर दिया – जो उस समय की आबादी का बड़ा हिस्सा था – 1967 में ग़ाज़ा पट्टी और वेस्ट बैंक को छीनकर ऐतिहासिक फ़िलिस्तीन के बचे हुए हिस्से पर फिर से क़ब्ज़ा कर लिया। तब से, इज़राइल ने 200 से अधिक अवैध बस्तियों का निर्माण करके सभी अंतर्राष्ट्रीय समझौतों का लगातार उल्लंघन किया है, जिनमें से प्रत्येक में हज़ारों आवास हैं जहाँ अब 7,00,000 से अधिक निवासी रहते हैं। इन बस्तियों के निर्माण के लिए न केवल हज़ारों एकड़ फ़िलिस्तीनी भूमि पर क़ब्ज़ा किया गया, बल्कि कई फ़िलिस्तीनियों को उनकी भूमि तथा बुनियादी आजीविका से वंचित किया गया। फ़िलिस्तीनी शहरों और कस्बों को एक दूसरे से अलग करके फ़िलिस्तीनियों की आवाजाही और गतिशीलता में बाधा उत्पन्न की गई। जिस क्षेत्र को पूरी दुनिया फ़िलिस्तीनी क्षेत्र के रूप में पहचानती है वहाँ भी एक स्वतंत्र फ़िलिस्तीनी देश की संभावना को लगभग समाप्त कर दिया गया।
इसके अलावा, इज़राइल ने 5,000 से अधिक फ़िलिस्तीनियों को बंदी बना रखा है, जिनमें 1,264 ‘प्रशासनिक बंदी‘ भी शामिल हैं, जिन्हें बिना किसी आरोप या मुक़दमे के हिरासत में रखा गया है – जो अंतर्राष्ट्रीय क़ानून द्वारा निषिद्ध है – जिसमें 16 वर्ष से कम उम्र के 170 बच्चे और 30 महिलाएँ भी शामिल हैं। इनमें से 1,000 से अधिक क़ैदी बीमार हैं, जिनमें से 200 लम्बे समय से बीमार हैं, और इज़रायली जेल अधिकारियों द्वारा जानबूझकर उनका इलाज नहीं कराया जा रहा है। इन बंदियों को आवश्यक दवाएँ उपलब्ध नहीं कराई जा रही हैं, जिन्हें किसी तरह के ऑपरेशन की ज़रूरत है उनका ऑपरेशन नहीं कराया जा रहा है और बीमार बंदियों का क्लीनिक या अस्पतालों में इलाज करने के बजाय कारावास में रखा जा रहा है।
ग़ाज़ा सोलह वर्षों से अधिक समय से गला घोंटने वाली घेराबंदी का सामना कर रहा है, जिसपर इजराइल आज भारी मात्रा में विस्फोटकों और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर प्रतिबंधित हथियारों का उपयोग करके सबसे क्रूर नरसंहार कर रहा है। इस घेराबंदी और नाकाबंदी के दौरान, इज़राइल ने छह से अधिक ख़ूनी युद्ध शुरू किए, जिसके परिणामस्वरूप हज़ारों मौतें हुईं, लाखों लोग घायल हुए, जिनमें से कई स्थायी तौर पर विकलांग हुए, और कई परिवारों को विस्थापित होना पड़ा। ग़ाज़ा को बीस लाख फ़िलिस्तीनियों के लिए खुली जेल में तब्दील कर दिया गया। सैकड़ों घरों, स्कूलों, विश्वविद्यालयों, पूजा स्थलों तथा स्वास्थ्य केंद्रों पर गोलाबारी करके उन्हें नष्ट कर दिया गया, जिससे फ़िलिस्तीनियों के कभी न ख़त्म होने वाले विस्थापन का संकट पैदा हो गया, जिनमें से अधिकांश पहले से ही 1948 के नकबा के दौरान अपनी भूमि से निकाले गए शरणार्थी थे। आज, इज़राइल द्वारा ग़ाज़ा के निवासियों को जबरन विस्थापित करने का खुला प्रयास किया जा रहा है, इपनी इस मंशा को वे छिपाते नहीं हैं बल्कि विभिन्न टेलीविजन प्रसारणों में खुले तौर पर व्यक्त करते हैं।
फ़िलिस्तीनी जनता 75 वर्षों से अधिक समय से क्रूर उपनिवेशीकरण के परिणामों का सामना कर रही है, और पश्चिमी साम्राज्यवादी तथा ज़ायोनिस्ट शक्तियों ने [इज़राइल के प्रति] अपने अटूट समर्थन को उचित ठहराने के लिए कई झूठे प्रचार किए हैं। इसमें फ़िलिस्तीनी भूमि को ‘लोगों के बिना भूमि‘ के रूप में चित्रित करना, फ़िलिस्तीनियों और इज़रायली निवासियों के बीच संघर्ष को एक धार्मिक संघर्ष के रूप में चित्रित करने का प्रयास करना और हाल ही में, इस संघर्ष को आतंकवाद के ख़िलाफ़ युद्ध के रूप में चित्रित करना शामिल है।
आज, पश्चिमी साम्राज्यवादी आख्यान को ख़त्म करना और उसकी जगह फ़िलिस्तीनी जनता की सच्ची कहानी, उनके वैध संघर्ष तथा उनकी मुक्ति और अधिकारों के लिए उनके प्रतिरोध को स्थापित करना हमारे लिए एक ज़रूरी काम है।
आज, हम एक और लड़ाई में भी शामिल हैं, भावनाओं की लड़ाई, जिस पर हमने इंटरनेशनल पीपुल्स असेंबली (आईपीए) के अपने काम में हमेशा ज़ोर दिया है। इस लड़ाई में, साम्राज्यवादी ताक़तें फ़िलिस्तीनी जनता सहित मानवता के भीतर से प्रतिरोध की संभावना तथा क्षमता में विश्वास को समाप्त कर देना चाहती हैं और इसके बजाय हताशा तथा पराजय पर आधारित एक विमर्श फैलाना चाहती हैं। 7 अक्टूबर को जो हुआ वह पिछले 75 वर्षों में फ़िलिस्तीनी जनता के संघर्ष का एक अभिन्न अंग है। उपनिवेशवाद और क़ब्ज़े के ख़िलाफ़ प्रतिरोध एक उचित मानव अधिकार है जो सभी अंतर्राष्ट्रीय क़ानूनों द्वारा संरक्षित है। जो कुछ हुआ उसे ‘हमले‘ या ‘आतंकवाद‘ के रूप में चित्रित करने का कोई भी प्रयास, क़ब्ज़ा करने वाले राज्य के आतंकवाद को छिपाने और इसे वैध बनाने का प्रयास है।
फ़िलिस्तीनी जनता को आज सभी स्वतंत्र लोगों से यथासंभव व्यापक एकजुटता की सख़्त ज़रूरत है। एकजुटता का यह आह्वान मानवीय या प्रतीकात्मक एकजुटता के आधार पर नहीं किया गया है बल्कि यह हमारे साझा संघर्ष का एक अभिन्न अंग है। आज फ़िलिस्तीन में जो हो रहा है वह उससे अलग नहीं है, जो भारत, इराक़, हैती, वेनेज़ुएला, क्यूबा या अन्य जगहों पर हो रहा है। किसी एक क्षेत्र में साम्राज्यवादी आक्रमण की हार हम सभी की जीत है।
मैं उन सभी सामाजिक आंदोलनों को धन्यवाद देता हूँ जो फ़िलिस्तीनी जनता के साथ एकजुटता से काम कर रहे हैं और आईपीए को भी धन्यवाद देता हूँ, जिसने हमेशा फ़िलिस्तीन के हित को अपना हित समझा है। यह सच है कि इज़रायल की हत्यारी मशीनरी निरंतर फ़िलिस्तीनियों की जान ले रही है, लेकिन हमारा मानना है कि इससे विरोध जारी रखने का हमारा संकल्प और मज़बूत होगा। मुझे फ़िलिस्तीनी कम्युनिस्ट कवि मुईन बसीसो के एक उद्धरण के साथ अपनी बात समाप्त करने की अनुमति दें: ‘हाँ, हम मर सकते हैं, लेकिन हम अपनी ज़मीन से मौत को उखाड़ फेंकेंगे।‘
प्रतिरोध की जीत! फ़िलिस्तीन की आज़ादी!
हमें उम्मीद है कि अरवा का यह जानकारी से भरा संदेश हमें प्रेरित करेगा। इस न्यूज़लेटर में शामिल अधिकांश पेंटिंग फ़िलिस्तीनी कलाकार मलाक मत्तार द्वारा बनाई गई है, जिन्होंने ग़ाज़ा पर इज़राइल के 2014 युद्ध के दौरान हवाई हमले में अपने पड़ोस का एक चौथाई हिस्सा नष्ट हो जाने के बाद 14 साल की उम्र में पेंटिंग शुरू की थी। आख़िरी पेंटिंग फ़िलिस्तीनी कलाकार हेबा ज़ागौट की है, जो अपने दो बच्चों के साथ 13 अक्टूबर को ग़ाज़ा पर इज़रायली हवाई हमले में मारी गईं। फ़िलिस्तीनी जनता के ख़िलाफ़ भयानक हिंसा अब रुकनी चाहिए। फ़िलिस्तीनी जनता स्वतंत्र होगी। दरअसल, वे पहले से ही स्वतंत्र हैं।
स्नेह–सहित,
विजय।