प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
1947 के बाद से, डूम्सडे क्लॉक (क़यामत के दिन की घड़ी) मानव निर्मित तबाही की संभावना को माप रही है। अर्थात् इस घड़ी का उद्देश्य है दुनिया को परमाणु प्रलय की संभावनाओं से संबंधित चेतावनी देना। इस घड़ी को परमाणु वैज्ञानिकों के बुलेटिन ने, जो इस घड़ी का रख-रखाव करते हैं, शुरुआत में मध्यरात्रि से सात मिनट पहले के समय पर सेट किया था। यहाँ मध्यरात्रि का समय दुनिया के अंत के बारे में बताता है। मध्यरात्रि समय से घड़ी कितनी पीछे है उससे दुनिया पर परमाणु प्रलय की संभावना को समझा जाता है। घड़ी मध्यरात्रि से अब तक सबसे दूर साल 1991 में थी, जब इसे मध्यरात्रि से 17 मिनट पीछे सेट किया गया था। आज के समय में यह घड़ी मध्यरात्रि के सबसे क़रीब पहुँच चुकी है। 2020 के बाद से, यह घड़ी ‘क़यामत के दरवाज़े’ पर बैठी है और मध्यरात्रि से केवल 100 सेकंड पीछे है। यह ख़तरनाक स्थिति बनी 2019 में, जब मध्यम-दूरी परमाणु शक्ति संधि से संयुक्त राज्य अमेरिका ने एकतरफ़ा तरीक़े से अपना हाथ खींच लिया। आयरलैंड की पूर्व राष्ट्रपति और संयुक्त राष्ट्र में मानवाधिकारों के लिए पूर्व उच्चायुक्त मैरी रॉबिन्सन ने कहा है कि यह ‘मानवता के सामने उत्पन्न अब तक की सबसे ख़तरनाक स्थिति है’।
इस ‘सबसे ख़तरनाक स्थिति’ पर होने वाली चर्चा में योगदान देने के लिए, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ‘स्टडीज़ ऑन कंटेम्पररी डिलेमाज़ (समकालीन संकटों का अध्ययन)’ के नाम से एक सीरीज़ शुरू की है। इन संकटों में जलवायु और पर्यावरणीय तबाही, सैन्य ख़र्च की बर्बादी और युद्ध के ख़तरों, तथा निराशा और व्यक्तिवाद की गहराती संवेदनशीलता के प्रश्न शामिल हैं। इन संकटों का समाधान करना हमारी क्षमता से बाहर नहीं है; हमारे ग्रह पर इन संकटों से निपटने के लिए आवश्यक संसाधन मौजूद हैं। हमारे पास विचारों या संसाधनों की कमी नहीं है; समस्या यह है कि हमारे पास राजनीतिक शक्ति की कमी है। दुनिया के लिए आवश्यक नीतियाँ दशकों से संयुक्त राष्ट्र चार्टर के अंदर बंद पड़ी हैं, जिन्हें विशेषाधिकार, संपत्ति और सत्ता पर क़ाबिज़ लोग नजरअंदाज़ करते रहे हैं। समकालीन संकटों का अध्ययन करने के पीछे हमारा उद्देश्य यह है कि मौजूदा समय के व्यापक मुद्दों पर बहस को इस उम्मीद के साथ प्रोत्साहित किया जाए कि ये बहसें निकट प्रलय को रोकने के लिए सामाजिक ताक़तों को प्रेरित करेंगी।
इस सीरीज़ का पहला अध्ययन मंथ्ली रिव्यू और नो कोल्ड वॉर के सहयोग से तैयार किया गया है। ‘द यूनाइटेड स्टेट्स इज़ वेजिंग ए न्यू कोल्ड वॉर: ए सोशलिस्ट पर्सपेक्टिव’ नामक अध्ययन में शामिल निबंध संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा परमाणु प्रधानता क़ायम रखकर या ‘सीमित परमाणु युद्ध’ शुरू करके या किसी भी तरीक़े से अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की नीति का बहुत क़रीब से मूल्यांकन करता है। प्रिंसटन यूनिवर्सिटी ने 2020 में परमाणु युद्ध का नाटकीय अनुकरण किया था। उससे पता चला है कि अगर किसी भी परमाणु शक्ति द्वारा एक भी सामरिक हमला किया जाता है, तो वैसी स्थिति में 9.15 करोड़ लोगों की तत्काल मृत्यु हो सकती है। इसके अलावा शोधकर्ताओं ने लिखा है कि ‘परमाणु (रसायनों) की वर्षा और उसके अन्य दीर्घकालिक प्रभावों से होने वाली मौतें इस अनुमान में भारी वृद्धि कर सकती हैं’।
हमारे अध्ययन में, मंथ्ली रिव्यू के संपादक जॉन बेलामी फ़ोस्टर लिखते हैं: ‘मौजूदा शक्तियाँ जिस प्रकार से मानवता के अस्तित्व को ख़तरे में डालने वाले जलवायु परिवर्तन के पूर्ण विनाशकारी प्रभावों से बड़े पैमाने पर इनकार करती हैं, वैसे ही वे शक्तियाँ परमाणु युद्ध के पूरे ग्रह पर पड़ने वाले प्रभावों से भी इनकार करती हैं, जबकि परमाणु हमले के बारे में वैज्ञानिक शोध हमें बताता है कि, यह पृथ्वी के सभी महाद्वीप की आबादी को प्रभावी ढंग से ख़त्म कर देगा’। इसलिए, शांति का आह्वान उतनी ही मज़बूती के साथ किया जाना चाहिए जितना कि जलवायु आपदा से ग्रह को बचाने के लिए किया जा रहा है।
1945 में हिरोशिमा और नागासाकी पर अमेरिकी परमाणु हमलों के बाद, विश्व शांति परिषद ने स्टॉकहोम अपील जारी की:
हम लोगों को डराने और बड़े पैमाने पर लोगों की हत्या करने वाले उपकरणों के रूप में परमाणु हथियारों को ग़ैर-क़ानूनी घोषित करने की मांग करते हैं।
हम मांग करते हैं कि इसे लागू करने के लिए सख़्त अंतर्राष्ट्रीय नियंत्रण लागू की जाए।
हम मानते हैं कि जो कोई भी सरकार किसी अन्य देश के ख़िलाफ़ पहले परमाणु हथियारों का इस्तेमाल करती है, वो मानवता के ख़िलाफ़ अपराध कर रही है और उसे युद्ध अपराधी के रूप में देखा जाना चाहिए।
हम दुनिया के सभी सोचने-विचारने वाले पुरुषों और महिलाओं से इस अपील पर हस्ताक्षर करने का आह्वान करते हैं।
दो सप्ताह के भीतर, 15 करोड़ लोगों ने इस अपील पर हस्ताक्षर किए थे।
1947 में, हिबाकुशा (परमाणु हमले में बचे लोगों) और हिरोशिमा के तत्कालीन मेयर शिंजो हमाई ने हिरोशिमा दिवस की शुरुआत की थी, तब से हर 6 अगस्त को इसे एक वार्षिक समारोह की तरह मनाया जाता है। हिरोशिमा के शांति स्मारक संग्रहालय और पार्क में शांति की घंटी सुबह 8:15 बजे बजती है, ठीक उसी समय जब बम विस्फोट हुआ था, और काग़ज़ के सारस और लालटेन जेनबाकू डोम के पास पानी पर तैरने लगते हैं। जेनबाकू डोम ही एकमात्र इमारत है जो उस नरसंहार के बाद खड़ी हुई है। हिरोशिमा दिवस का न अब वो महत्व रह गया है और न ही ऊर्जा बची है। सामूहिक जीवन को बचाने की प्रक्रिया के हिस्से के रूप में ऐसे दिन को पुनर्जीवित करना अनिवार्य है।
इस शृंखला में जारी हुआ हमारा दूसरा अध्ययन यूक्रेन युद्ध के एक महीने बाद से शुरू हो गया था, जब ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ब्रिटेन की संसद के सदस्य और यूके लेबर पार्टी के पूर्व नेता जेरेमी कॉर्बिन व पीस एंड जस्टिस प्रोजेक्ट में उनकी टीम के साथ बातचीत शुरू की थी। हमने महसूस किया कि शांति के लिए जारी आंदोलन में यूक्रेन युद्ध से निकली अन्य आपदाओं, जैसे आसमान छूती मुद्रास्फीति, पर बात करने की तत्काल आवश्यकता है। हमने 20वीं शताब्दी के उपनिवेशवाद-विरोधी संघर्षों में पैदा हुई और गुटनिरपेक्ष आंदोलन (1961) में संस्थागत रूप से व्याख्यायित गुटनिरपेक्षता की महत्वपूर्ण अवधारणा के माध्यम से तत्काल संकट पर विचार करने के लिए ब्राज़ील, यूनाइटेड किंगडम, दक्षिण अफ्रीका, भारत आदि से कई लेखकों को आमंत्रित किया। ये निबंध -जिन्हें मॉर्निंग स्टार, ग्लोबट्रॉटर, और द पीस एंड जस्टिस प्रोजेक्ट के सहयोग से निर्मित किया गया है- अब लुकिंग ओवर द होराइज़न एट नॉनअलाइनमेंट एंड पीस, स्टडीज़ ऑन कंटेम्पररी डिलेमाज़ नं 2 के नाम से उपलब्ध हैं।
कॉर्बिन ने मौजूदा समय में शांति के विचार के बारे में बुकलेट में लिखा है कि:
कुछ लोग कहते हैं कि युद्ध के समय शांति पर चर्चा करना एक प्रकार की कमज़ोरी का संकेत है; लेकिन सच इसके उलट है। यह दुनिया भर में शांति के लिए प्रदर्शन करने वालों की बहादुरी का परिणाम था कि कुछ सरकारों को अफ़ग़ानिस्तान, इराक़, लीबिया, सीरिया, यमन या दर्जनों अन्य संघर्षों में शामिल होने से रोका जा सका।
शांति का मतलब केवल युद्ध का न होना नहीं है; इसका मतलब है वास्तविक सुरक्षा का होना। इस बात की सुरक्षा होना कि आप खा सकेंगे, आपके बच्चे शिक्षित होंगे और उनकी देखभाल की जाएगी, और जब आपको स्वास्थ्य सेवाओं की ज़रूरत होगी तो वे उपलब्ध होंगी। करोड़ों लोगों के लिए, यह सुरक्षा अभी वास्तविक नहीं है; [और] यूक्रेन युद्ध के दुष्परिणाम करोड़ों और लोगों से इसे दूर ले जाएँगे।
इस बीच, कई देश अब हथियारों पर ख़र्च बढ़ा रहे हैं और अधिक-से-अधिक ख़तरनाक हथियारों में संसाधनों का निवेश कर रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका ने अभी-अभी अपने सबसे बड़े रक्षा बजट को मंज़ूरी दी है। हथियारों के लिए उपयोग किए जाने वाले ये संसाधन वे संसाधन हैं जो स्वास्थ्य, शिक्षा, आवास या पर्यावरण संरक्षण में उपयोग नहीं किए जाने थे।
यह एक संकटमय और ख़तरनाक समय है। भयावहता का खेल देखना और फिर भविष्य में इससे भी बड़ी लड़ाइयों की तैयारी करना यह सुनिश्चित नहीं करेगा कि जलवायु संकट, ग़रीबी संकट, या खाद्य आपूर्ति का समाधान हो। यह हम सभी पर निर्भर है कि हम सभी के लिए शांति, सुरक्षा और न्याय का एक नया रास्ता तय करने वाले आंदोलनों का निर्माण व समर्थन करें।
शांति की दुनिया बनाने हेतु इस तरह का एक स्पष्ट बयान वह उपचार है जो मैरी रॉबिन्सन द्वारा चेताई गई ‘मानवता के सामने उत्पन्न अब तक की सबसे ख़तरनाक स्थिति’ से पार पाने के लिए ज़रूरी है।
संयुक्त राष्ट्र महासभा के अवसर पर संयुक्त राष्ट्र के चार्टर की रक्षा के लिए 19 सदस्य देशों का मित्र समूह (ग्रूप ऑफ़ फ़्रेंड्स) ’21वीं सदी के सामान्य ख़तरों और चुनौतियों का सामूहिक, समावेशी और प्रभावी समाधान तैयार करने हेतु’ बहुपक्षवाद को मज़बूत करने की आवश्यकता पर चर्चा के लिए इकट्ठा हुआ। सामूहिक और सामान्य: ये हमारे समय के कीवर्ड होने चाहिए। कम विभाजन, ज़्यादा सामूहिकता; युद्ध के लिए कम तैयारियाँ और शांति के लिए ज़्यादा तैयारियाँ।
ग्रुप ऑफ़ फ्रेंड्स की भाषा गुटनिरपेक्ष आंदोलन और 1955 में बांडुंग, इंडोनेशिया में आयोजित अफ्रीकी-एशियाई सम्मेलन की विरासत से निकली है। जब नये उत्तर-औपनिवेशिक देशों के नेता बांडुंग में गुटनिरपेक्षता और शांति के बारे में बात करने के लिए इकट्ठा हुए थे तब मलेशिया के समाजवादी कवि उस्मान अवांग (1929-2001) ने युद्ध की कुरूपता के बारे में एक कविता बुंगा पोपी (‘खसखस’) लिखी थी:
ख़ून से, मिट्टी में सड़ रहे मवाद से,
प्यार को युद्ध से कुचलने वाले पागलों के
हथियारों के आगे
जान गँवा चुके कंकालों से,
लाल फूल ख़ूबसूरती से खिलते हैं,
प्यार की आस लगाए।
स्नेह-सहित,
विजय।