कैरेल होम्सी (मिस्र), आज़ाद मिस्र, 2009.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अला अब्द अल-फ़तह को मिस्र की जेलों में बार-बार अंदर बाहर होते हुए एक दशक से ज़्यादा का वक़्त बीत गया है, वो जेल के अंदर रहे या बाहर उन्हें सैन्य राज्य तंत्र के उत्पीड़न से कभी छुटकारा नहीं मिला। 2011 में, जब क्रांति अपने चरम पर थी, अला अपनी पीढ़ी की एक महत्वपूर्ण आवाज़ के रूप में उभरे थे और तब से वो एक महत्वपूर्ण आवाज़ रहे हैं; हालाँकि उनका देश उनकी आवाज़ को लगातार दबाने की कोशिश कर रहा है। 25 जनवरी 2014 को होस्नी मुबारक की सरकार की शिकस्त की तीसरी वर्षगाँठ पर, अला और कवि अहमद दौमा ने तोरा जेल, काहिरा की कालकोठरी से एक मार्मिक पत्र लिखा था। यह जेल, जिसमें अला और अन्य राजनीतिक क़ैदी बंद हैं, सुंदर नील नदी से बहुत दूर नहीं है और -काहिरा के ट्रैफ़िक के हिसाब से- मादा मस्र, जिसमें यह पत्र छपा था, के गार्डन सिटी कार्यालय से भी बहुत दूर नहीं है। काहिरा जैसे शहरों के जिन जेलों में राजनीतिक क़ैदियों को प्रताड़ित किया जाता है, वे अक्सर काफ़ी सामान्य इलाक़ों में स्थित होते हैं।

2011 के विद्रोह को असाधारण मानने के विचार के बारे में दौमा और अला ने लिखा कि ‘किसने कहा है कि हम अप्रतिम हैं? या कि हम एक मुग्ध पीढ़ी हैं?’ उन्होंने लिखा, ‘हम इंसान हैं, पर अंधेरे में हम उजाले की कामना करते हैं’। अरब नेटवर्क फ़ॉर ह्यूमन राइट्स इंफ़ॉर्मेशन का अनुमान है कि 2013 में राष्ट्रपति अब्देल फ़तह अल-सीसी के आने के बाद से मिस्र में 65,000 लोग राजनीतिक क़ैदी बन चुके हैं। अला को कई आरोपों में गिरफ़्तार किया जाता रहा है, लेकिन इनमें अधिकतर आरोप तुच्छ और द्वेषपूर्ण हैं, उन पर ऐसा ही एक  आरोप यह है कि उन्होंने एक विरोध प्रदर्शन आयोजित किया जो लगभग पंद्रह मिनट तक चला; उन पंद्रह मिनटों के लिए उन्हें पिछले एक दशक से ज़्यादा समय से क़ैद में रखा गया है।

 

 

दुनिया भर में कितने संवेदनशील लोगों को बेहूदा आरोप लगाकर जेलों में बंद किया जा रहा है? इंटरनेट पर उपलब्ध रिपोर्टें -जिनमें से अधिकतर पश्चिम में स्थित मानवाधिकार समूहों द्वारा तैयार की गई हैं- पूरी तरह से विश्वसनीय नहीं हैं, क्योंकि वे पश्चिमी सरकारों और पश्चिम-समर्थक सरकारों के आँकड़ों की अनदेखी करती हैं या उन्हें कम करके दिखाती हैं। उदाहरण के लिए, संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार इस बात से इनकार करती है कि उसने किसी भी राजनीतिक क़ैदी जेल में बंद कर रखा है, इस तथ्य के बावजूद कि अल्वारो लूना हर्नांडेज़ (ला रज़ा), होली लैंड फ़ाइव, लियोनार्ड पेल्टियर (अमेरिकन इंडीयन आंदोलन), मारियस मैनसन (अर्थ लिबरेशन फ़्रंट), मुमिया अबूजमाल (एमओवीई), और मुतुलु शकूर (ब्लैक लिबरेशन आर्मी) जैसे लोगों को मुक्त कराने के लिए अंतर्राष्ट्रीय अभियान चल रहे हैं। ‘ये लोग बिना किसी उचित कारण के जेल में बंद हैं, अक्सर इसलिए क्योंकि उन्होंने शांतिपूर्वक अपने मानवाधिकारों -जैसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता- का प्रयोग किया या दूसरों के अधिकारों का बचाव किया हो। हो सकता है कि उन्होंने किसी विरोधी दल का गठन किया हो। या हो सकता है कि किसी के उत्पीड़न और भ्रष्टाचार पर रिपोर्ट किया हो। हो सकता है कि किसी शांतिपूर्ण विरोध प्रदर्शन में भाग लिया हो’। ये अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन द्वारा 7 दिसंबर 2021 को कहे गए शब्द हैं। विडंबना ये है कि उनके शब्द अमेरिका के साथ-साथ सऊदी अरब और कोलंबिया जैसे अमेरिकी सहयोगियों पर लागू होते हैं।

20 दिसंबर 2021 को, ब्लिंकेन द्वारा की गई इस टिप्पणी के दो हफ़्ते सप्ताह के भीतर, मिस्र के राज्य सुरक्षा न्यायालय ने अला को पाँच साल और मोहम्मद अल-बकर और मोहम्मद ‘ऑक्सीजन’ इब्राहिम को चार साल की सज़ा सुनाई। उस समय अमेरिकी विदेश विभाग के प्रवक्ता नेड प्राइस ने अपने साप्ताहिक वक्तव्य में कहा कि अमेरिका इन फ़ैसलों से ‘निराश’ है। इसके कुछ हफ़्ते बाद, मिस्र के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अहमद हाफ़िज़, ने यह कहकर जवाब दिया कि, ‘मिस्र के अदालती फ़ैसलों पर टिप्पणी करना या उनसे छेड़-छाड़ करना अनुचित है’। यहीं पर यह सिलसिला ख़त्म हो गया। हर साल, अमेरिकी सरकार मिस्र को 1.4 बिलियन डॉलर की सहायता प्रदान करती है, इसमें से अधिकांश सहायता सेना की गतिविधियों के लिए होती है; हर साल, अमेरिका मानवाधिकारों की रक्षा के आधार पर इस सहायता में से 100 मिलियन डॉलर से थोड़ा अधिक वापस ले लेने पर बवाल मचाता है, हालाँकि बाद में ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के नाम पर वह पैसा मिस्र को दे दिया जाता है। ‘मानवाधिकार’ को लेकर बहुत शोर मचाया जाता है, लेकिन देश के भीतर की लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं का गला घोंटे जाने की कोई वास्तविक चिंता नहीं है। दौमा और अला ने लिखा था, ‘अंधेरे में हम उजाले की कामना करते हैं’। लेकिन अंधेरे में हथियारों के सौदे और ‘राष्ट्रीय सुरक्षा’ के मुद्दे लोकतंत्र और मानवाधिकारों को दरकिनार कर देते हैं।

 

स्लिमेन एल कामेल (ट्यूनीशिया), भेड़िये, 2016.

 

अरब स्प्रिंग -तहरीर स्क्वायर का स्टोन स्लैब जिसका केंद्र था- अब बिखर चुका है। ट्यूनीशिया, जहाँ से यह पूरी प्रक्रिया शुरू हुई थी, एक ऐसी सरकार के साथ संघर्ष कर रहा है जिसने अपनी लोकतांत्रिक संस्थानों को कोविड-19 महामारी से पहले से चल रहे  और महामारी द्वारा और तीव्र हुए सामाजिक संकट से निपटने की उम्मीद में निलंबित कर दिया है। 14 जनवरी को, जिस दिन 2011 में राष्ट्रपति ज़ैन अल-आबेदीन बेन अली का तख़्तापलट हुआ था, ट्यूनीशिया की वर्कर्स पार्टी ने ‘कोई लोकलुभावनवाद नहीं, कोई कट्टरवाद नहीं, कोई प्रतिक्रियावाद नहीं’ नारे के साथ ट्यूनिश के रिपब्लिक स्क्वायर से सेंट्रल बैंक तक मार्च किया। उन्होंने बेन अली, इस्लामवादियों के पुराने शासन और अब राष्ट्रपति क़ैस सैयद के ‘लोकलुभावनवाद’ का विरोध किया। वर्कर्स पार्टी का कहना है कि अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा और तीव्र हुआ आर्थिक संकट, जो कि 2011 की क्रांति का कारण बना था, अब भी सुलझा नहीं है। बुनियादी राजनीतिक अधिकारों को कुचलने के लिए ट्यूनीशिया में आंतरिक सुरक्षा बलों के इस्तेमाल के बारे में संयुक्त राष्ट्र ने भी चिंता व्यक्त की है।

मोरक्को में स्थिति भयावह है। राजा मोहम्मद VI के राजनीतिक शासन को मखज़ेन कहा जाता है (मखज़ेन शब्द का अर्थ है ‘गोदाम’, वह जगह जहाँ राजा के अधीनस्थों को भुगतान किया जाता है)। राजा की कुल सम्पत्ति 2.1 अरब डॉलर से 8 अरब डॉलर के बीच है, एक ऐसे देश में जहाँ हर पाँच में से एक व्यक्ति ग़रीबी रेखा से नीचे रहता है और जहाँ महामारी के दौरान सामाजिक समस्याएँ और तीव्र हुई हैं। 2011 में हुए 20 फ़रवरी के आंदोलन ने समाज को हिलाकर रख दिया था। उसके बाद, 2015 में मैंने मोरक्कन एसोसिएशन फ़ॉर ह्यूमन राइट्स के रबात कार्यालय का दौरा किया और देश में बुनियादी राजनीतिक स्वतंत्रता की कमी के बारे में सच्ची कहानियाँ सुनीं। अन्य देशों के बहादुर मानवाधिकार अधिवक्ताओं की तरह, मैं जिन मोरक्कोवासियों से मिला, उन्होंने उन लोगों के नाम बताए जिन्हें अन्यायपूर्ण तरीक़े से गिरफ़्तार किया गया था और उन्होंने देश में ‘सच्चाई और क़ानून का राज’ स्थापित करने की कठिनाई के बारे में बताया।

 

मोहम्मद मेलेही (मोरक्को), गुलाबी लौ, 1972.

 

उस समय, मैंने नामा असफ़री के मामले के बारे में सुना, जिन्हें 2010 में हिरासत में लिया गया था और जो पश्चिमी सहारा के अधिग्रहण के ख़िलाफ़ अपनी सक्रियता के लिए तीस साल की सज़ा काट रहे थे। उनके और खत्री दद्दा, एक युवा सहरावी पत्रकार, जिन्हें 2019 में गिरफ़्तार किया गया और जिन्हें बीस साल की सज़ा सुनाई गई थी, के मामले पर मानवाधिकार रक्षकों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र की विशेष दूत मैरी लॉलर की नज़र पड़ी। जुलाई 2021 में, लॉलर ने कहा, ‘मोरक्को और पश्चिमी सहारा में मानवाधिकारों से संबंधित मुद्दों पर काम करने वाले मानवाधिकार रक्षकों को न केवल उनकी वैध गतिविधियों के लिए ग़लत तरीक़े से अपराधी बनाया जाना जारी है, बल्कि उन्हें असमान रूप से जेल की लम्बी सज़ा सुनाई जाती है और जेल में रहने के दौरान उनके साथ क्रूर, अमानवीय और अपमानजनक व्यवहार किया जाता है और यातनाएँ दी जाती हैं’। इन दो पुरुषों और अनगिनत अन्य लोगों की तस्वीरें अक्सर मानवाधिकार संगठनों और वकीलों के कार्यालयों में मिल जाती हैं, जो कि उनकी ओर से अथक प्रयास करते हैं। ये अन्य लोग अला और कोलंबिया तथा भारत जैसे देशों में उनकी तरह के संघर्ष के उनके साथी हैं।

पिछले कुछ वर्षों से, मखज़ेन मोरक्को की प्रमुख वामपंथी पार्टी डेमोक्रेटिक वे को दबाने की कोशिश कर रहा है। इसने सार्वजनिक रूप से संगठित होने की कोशिश करते डेमोक्रेटिक वे के कार्यकर्ताओं का दमन किया है, और उन्हें बदनाम करने की कोशिश की है, और अब यह डेमोक्रेटिक वे को इस साल उनकी 5वीं कांग्रेस आयोजित करने के लिए सार्वजनिक जगह का उपयोग करने से रोक रहा है। बाधाओं के बावजूद, डेमोक्रेटिक वे के कार्यकर्ताओं ने जनवादी ताक़तों के एकजुट संघर्ष का आह्वान कर नये साल की शुरुआत की। उन्होंने माँग की है कि स्वतंत्रता और मानवाधिकारों का सम्मान किया जाए और राजनीतिक क़ैदियों को रिहा किया जाए। इन राजनीतिक क़ैदियों में रिफ़ मूवमेंट के सदस्य भी शामिल हैं; इस आंदोलन ने 2016 में एक सिटी ट्रैश कम्पेक्टर ट्रक द्वारा एक मछली विक्रेता की हत्या के बाद से हज़ारों लोगों को सामाजिक अधिकारों और न्याय की माँग के लिए संगठित किया है। डेमोक्रेटिक वे पार्टी दमनकारी मखज़ेन का भी विरोध करती है और सहरावी लोगों के आत्मनिर्णय का समर्थन करती है।

1975 के बाद से, मोरक्को ने पश्चिमी सहारा पर क़ब्ज़ा कर रखा है; लेकिन इस क़ब्ज़े के लिए उसके पास बहुत कम क़ानूनी आधार है। अगस्त 2020 में, अमेरिकी सरकार ने अब्राहम समझौते पर हस्ताक्षर किया; जिसके तहत मोरक्को और संयुक्त अरब अमीरात ने हथियारों के सौदों और मोरक्को द्वारा पश्चिमी सहारा के क़ब्ज़े के लिए अमेरिका की मान्यता के बदले में इज़राइल (और प्रभावी रूप से फ़िलिस्तीन के स्थायी क़ब्ज़े) को मान्यता दी। मोरक्को-अल्जीरिया सीमा पर तनाव बढ़ने के कारण पोलिसारियो फ़्रंट (सहरावी लोगों का स्वतंत्रता आंदोलन) ने इस समझौते का विरोध किया है। डेमोक्रेटिक वे ने भी इस समझौते – जिससे इसके ख़िलाफ़ मखज़ेन का दमन बढ़ा है- के ख़िलाफ एक साहसी रुख़ अपनाया है।

 

 

रिपोर्टर्स विदाउट बॉर्डर्स ने अपने 2021 वर्ल्ड प्रेस फ़्रीडम इंडेक्स में मोरक्को को 180 देशों में से 136वाँ स्थान दिया है। इस इंडेक्स में इतना पीछे होने का कारण है उमर रदी, माती मोंजीब, हिचम मंसूरी और अब्देल-समद ऐत अय्याश जैसे लेखकों और पत्रकारों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का उल्लंघन करना। फ़ातिमा अल-अफ़रीकी ने अपने सामने मौजूद इन ख़तरों के बारे में मज़बूती लिखा है: ‘संदेश मिला, ओ पहरेदारों, यादों के बोरों और मेरी खोपड़ी के सपनों के पीछे तुम्हारी मशीनगनों के साथ… मैं समझ गई कि ये तुम हो जो मेरी कमज़ोरियों और संभावित ग़लतियों का निरीक्षण कर रहे हो। मैं सफ़ेद झंडा उठाती हूँ और हार की घोषणा करती हूँ, और मैं युद्ध के मैदान से हट जाऊँगी’। उन्होंने ऐसे ही बहादुरी के साथ काफ़ी कुछ लिखा है।

अला की तरह उमर रदी कैसाब्लांका के ओकाचा जेल की एक सेल में बंद हैं। उन्होंने हमें एक संदेश भेजा है: ‘अत्याचार नियति नहीं है; आज़ादी हासिल करनी होगी, भले ही इसमें लंबा समय लगे। इसके अलावा, अगर इस परेशान नयी पीढ़ी, जो पुरानी और तथाकथित नयी व्यवस्था से पहले पैदा हुई थी, की क़ीमत चुकाने का मेरा समय आ गया है, तो मैं इसे पूरे साहस के साथ चुकाने के लिए तैयार हूँ, और मैं अपने भाग्य के पास एक शांत, मुस्कुराते हुए दिल और शांत विवेक के साथ जाऊँगा’।

उमर, अला, फ़ातिमा, अहमद और दुनिया भर के अन्य राजनीतिक क़ैदी अपने भाग्य की ओर नहीं जाएँगे। हम उनके लिए खड़े रहेंगे। हम यहाँ हैं। जब तक हम ज़िंदा हैं हम खड़े रहेंगे।

स्नेह-सहित,

विजय।