प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
25 मई 2022, अफ़्रीका दिवस के दिन, अफ़्रीकी संघ (एयू) के अध्यक्ष, मौसा फ़की महामत ने 1963 में बने अफ़्रीकी एकता संगठन (ओएयू), जो कि 2002 में एयू बन गया था, के स्थापना दिवस पर अपने भाषण में कहा कि अफ़्रीका ‘उससे दूर, रूस और यूक्रेन के बीच, चल रहे युद्ध का शिकार’ बन गया है। उस युद्ध ने ‘नाज़ुक वैश्विक भू-राजनीतिक और भू-सामरिक संतुलन’ को बिगाड़ दिया है, और ‘हमारी अर्थव्यवस्थाओं की संरचनात्मक कमज़ोरी को उजागर’ दिया है। दो नयी और प्रमुख समस्याएँ सामने आई हैं: जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ता खाद्य संकट और कोविड-19 के साथ तेज़ हुआ स्वास्थ्य संकट।
एक तीसरी लंबे समय से चल रही समस्या यह भी है कि अफ़्रीका के अधिकांश देशों के पास अपने बजट का प्रबंधन करने की बहुत कम स्वतंत्रता है, क्योंकि क़र्ज़ का बोझ बढ़ रहा है और उसे चुकाने की लागत बढ़ रही है। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ़) में अफ़्रीकी विभाग के निदेशक एबेबे एमरो सेलासी ने कहा है कि, ‘सार्वजनिक ऋण अनुपात पिछले दो दशकों में अपने उच्चतम स्तर पर है और कई कम आय वाले देश क़र्ज़ संकट में हैं या उसकी कगार पर हैं’। आईएमएफ़ द्वारा अप्रैल 2022 में जारी क्षेत्रीय आर्थिक आउटलुक रिपोर्ट का शीर्षक स्पष्ट है: ‘ए न्यू शॉक एंड लिटिल रूम टू मैनुवर’ (एक नया झटका और बच निकलने की मामूली जगह)।
अफ़्रीकी महाद्वीप पर क़र्ज़ ऐसे लटका हुआ है मानो कई गिद्ध जाग गए हों। अधिकांश अफ़्रीकी देशों पर ब्याज उनके राजस्व से कहीं ज़्यादा है; इसलिए बजट कटौती उपायों के माध्यम से उसे प्रबंधित किया जाता है। यानी सरकारी रोज़गार के साथ-साथ शिक्षा और स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्रों में बड़ी कटौतियाँ। चूँकि इन देशों पर बक़ाया क़र्ज़ का लगभग दो-तिहाई हिस्सा विदेशी मुद्राओं में है, इसलिए क़र्ज़ की अदायगी कोई नया उधार लिए बिना असंभव है। यानी ऋण-ग्रस्तता का एक ऐसा चक्र, जिसमें स्थायी राहत की कोई जगह नहीं है। जी 20 की ऋण सेवा निलंबन पहल (डीएसएसआई) या उसका ऋण उपचार हेतु सामान्य ढाँचा आदि, जो भी योजनाएँ पेश की जा रही हैं, वे उस तरह की ऋण माफ़ी प्रदान नहीं करतीं जो कि इन अर्थव्यवस्थाओं में फिर से जान फूँकने के लिए ज़रूरी हैं।
अक्टूबर 2020 में, जुबली ऋण अभियान ने इतने बड़े क़र्ज़ों को दूर करने के लिए दो व्यवहारिक उपायों का प्रस्ताव रखा था। आईएमएफ़ के पास 25 करोड़ तोला से भी ज़्यादा सोना रखा है, इस सोने की कुल क़ीमत 16860 करोड़ डॉलर है; इसमें से यदि आईएमएफ़ 6.7% सोना बेच दे, तो वो डीएसएसआई देशों के 820 करोड़ डॉलर के क़र्ज़ को चुकाने के लिए ज़रूरी धन से भी अधिक धन जुटा सकता है। जुबली ऋण अभियान ने यह भी सुझाव दिया था कि अमीर देश अपने आईएमएफ़ विशेष आहरण अधिकार आवंटन में से 9% से भी कम की पेशकश करके ऋण रद्द करने के लिए अरबों डॉलर जुटा सकते हैं। क़र्ज़ के बोझ को कम करने का एक तरीक़ा यह भी हो सकता है कि विश्व बैंक और आईएमएफ़ को ऋण भुगतान ही न किया जाए; इन दोनों बहुपक्षीय संस्थानों का उद्देश्य है सामाजिक विकास की उन्नति सुनिश्चित करना न कि अपनी वित्तीय उदारता को बढ़ाना। लेकिन अगस्त 2020 में अपने अध्यक्ष के नाटकीय भाषण के बावजूद विश्व बैंक इस एजेंडे पर आगे नहीं बढ़ा है। मई 2020 से दिसंबर 2021 तक आईएमएफ़ द्वारा किए गए मामूली ऋण निलंबन से भी शायद ही कोई फ़र्क़ पड़ने वाला है। इन वाजिब सुझावों के अलावा, यदि अवैध टैक्स स्वर्गों में पड़े लगभग 40 लाख करोड़ डॉलर को यदि उत्पादक इस्तेमाल में ले आया जाए तो अफ़्रीकी देशों को बढ़ते क़र्ज़ के जाल से बचने में मदद मिल सकती है।
‘हम पृथ्वी पर सबसे ग़रीब इलाक़ों में से एक में रहते हैं’, माली के पूर्व राष्ट्रपति अमादौ तौमानी टौरे ने मुझसे महामारी से ठीक पहले कहा था। माली अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र का हिस्सा है, जहाँ की 80% आबादी 2 डॉलर प्रतिदिन से भी कम पर जीवन यापन करती है। युद्ध, जलवायु परिवर्तन, राष्ट्रीय ऋण और जनसंख्या वृद्धि के साथ ग़रीबी और बढ़ेगी ही। फ़रवरी 2021 में जी5 साहेल (साहेल के लिए पाँच देशों के समूह) के नेताओं के सातवें शिखर सम्मेलन में, राष्ट्राध्यक्षों ने ‘ऋण के अत्यधिक पुनर्गठन’ का आह्वान किया, लेकिन आईएमएफ़ ने चुप्पी साध ली और अनसुना कर दिया। जी5 साहेल की शुरुआत फ़्रांस ने 2014 में पाँच साहेल देशों -बुर्किना फासो, चाड, माली, मॉरिटानिया और नाइजर- के राजनीतिक गठन के रूप में की थी। 2017 में सैन्य गठबंधन (जी 5 साहेल संयुक्त बल एफ़सी-जी5एस) -जो कि साहेल में फ़्रांसीसी सैन्य उपस्थिति को कवच प्रदान करता है- के गठन के साथ इसका वास्तविक उद्देश्य सामने आया। अब यह दावा किया जा सकता है कि फ़्रांस ने वास्तव में इन देशों पर आक्रमण नहीं किया था, क्योंकि उनकी औपचारिक संप्रभुता बरक़रार है, बल्कि फ़्रांस ने साहेल में प्रवेश केवल इसलिए किया था ताकि इन देशों को अस्थिरता के ख़िलाफ़ उनकी लड़ाई में सहायता कर सके।
समस्या का एक कारण यह भी है कि इन देशों से मानव राहत और विकास के बजाए सैन्य ख़र्च में वृद्धि करने की माँग की जाती है। जी5 साहेल देश अपने पूरे बजट का 17% से 30% अपनी सेनाओं पर ख़र्च करते हैं। पाँच में से तीन साहेल देशों ने पिछले एक दशक के दौरान अपने सैन्य ख़र्च में बहुत अधिक वृद्धि की है: बुर्किना फासो में 238%, माली में 339% और नाइजर में 288% की वृद्धि हुई है। हथियारों का कारोबार उनको तबाह कर रहा है। फ़्रांस के नेतृत्व में और उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) की शह के साथ पश्चिमी देश इन देशों पर ज़ोर डालते हैं कि यह देश अपने सामने खड़े किसी भी प्रकार के संकट को सुरक्षा संकट के रूप में देखें। पूरा विमर्श सुरक्षा के बारे में है जबकि सामाजिक विकास के बारे में कोई भी बात हाशिये पर धकेल दी जाती है। यहाँ तक कि संयुक्त राष्ट्र के लिए भी, विकास के प्रश्न से ज़्यादा युद्ध पर ध्यान देना अहम हो चुका है।
मई 2022 के पहले दो हफ़्तों के दौरान, माली की सैन्य सरकार ने अपने देश से फ़्रांसीसी सेना को बाहर निकाल दिया और जी 5 साहेल में अपनी सदस्यता ख़त्म कि दी। इसके पीछे कारण था माली में फ़्रांसीसी सैन्य हमलों में हताहत होने वाले नागरिकों की संख्या और माली सरकार के प्रति फ़्रांसीसी सरकार के अहंकारी रवैये के ख़िलाफ़ जनता में बढ़ती नाराज़गी। सैन्य जुंटा का नेतृत्व करने वाले कर्नल असीमी गोएटा ने कहा कि फ़्रांस के साथ हुआ समझौता ‘न शांति लेकर आया, और न ही सुरक्षा या संधि’। गोएटा ने ये भी कहा कि जुंटा ‘माली में रक्तपात को रोकना’ चाहता है। फ़्रांस अपना सैन्य बल माली से निकालकर उसके साथ के दोश नाइजर में ले गया।
इस तथ्य से कोई भी इनकार नहीं करता है कि लीबिया के ख़िलाफ़ 2011 के नाटो युद्ध के समय से साहेल क्षेत्र में अराजकता गहराने लगी थी। माली की पुरानी चुनौतियाँ, जिनमें दशकों से चल रहा तुआरेग विद्रोह और फुलानी चरवाहों तथा डोगन किसानों के बीच के संघर्ष शामिल हैं, लीबिया और अल्जीरिया से हथियारों और पुरुषों के आने के साथ और भी तेज़ हो गईं। अल-क़ायदा सहित तीन जिहादी समूह पता नहीं कहाँ से प्रकट हो गए, जिन्होंने पुराने क्षेत्रीय तनावों का इस्तेमाल करते हुए 2012 में उत्तरी माली को नियंत्रण में कर लिया और अज़वाग राज्य घोषित कर दिया। फ़्रांस ने इसके बाद जनवरी 2013 में सैन्य हस्तक्षेप किया।
इस क्षेत्र में यात्रा करते हुए आपको यह स्पष्ट हो जाता है कि साहेल में फ़्रांस -और अमेरिका- के हित केवल आतंकवाद और हिंसा तक सीमित नहीं है। दो घरेलू चिंताओं ने इन दोनों विदेशी शक्तियों को वहाँ एक विशाल सैन्य उपस्थिति बनाए रखने के लिए प्रेरित किया है। इस सैन्य उपस्थिति में अगाडेज़, नाइजर स्थित दुनिया का सबसे बड़ा ड्रोन बेस भी शामिल है, जिसे अमेरिका संचालित करता है। पहली बात यह है कि यह क्षेत्र नाइजर में पाए जाने वाले येलोकेक यूरेनियम सहित अन्य कई प्राकृतिक संसाधनों के लिए विख्यात है। अर्लिट (नाइजर) स्थित दो खदानें फ़्रांस के तीन में से एक लाइट बल्ब को बिजली देने के लिए पर्याप्त यूरेनियम का उत्पादन करती है; यही वजह है कि फ़्रांसीसी खनन फ़र्में (जैसे अरेवा) इस सैनिक गतिविधियों से भरे शहर में काम कर रही हैं। दूसरी बात है कि ये सैन्य अभियान इसलिए हो रहे हैं ताकि पश्चिम अफ़्रीका और पश्चिम एशिया जैसे क्षेत्रों को छोड़कर साहेल और लीबिया से होकर भूमध्य सागर के पार यूरोप की ओर जाने वाले प्रवासियों को रोका जा सके। साहेल की सीमा पर, मॉरिटानिया से लेकर चाड तक, यूरोप और अमेरिका ने एक अत्यधिक सैन्यीकृत बॉर्डर का निर्माण शुरू कर दिया है। उत्तरी अफ़्रीका की संप्रभुता को दरकीनार कर, यूरोप अपनी सीमा भूमध्य सागर के उत्तरी किनारे से बढ़ाकर सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी किनारे तक ले जा चुका है।
बुर्किना फासो और माली के सैन्य तख्तापलट फ़्रांसीसी हस्तक्षेप पर लगाम लगाने में लोकतांत्रिक सरकारों की विफलता का परिणाम हैं। माली में, दोनों काम सेना पर छोड़ दिए गए थे कि, वो फ़्रांसीसी सेना को बाहर निकाले और जी5 साहेल राजनीतिक परियोजना से ख़ुद को अलग कर ले। पूर्व राष्ट्रपति अल्फा उमर कोनारे ने मुझे लगभग दस साल पहले बताया था कि माली में टकराव देश की बिगड़ती अर्थव्यवस्था के कारण भड़क गए हैं। अंतर्राष्ट्रीय विकास संगठनों से मिलने वाला बुनियादी ढाँचा समर्थन और ऋण राहत की उनकी पहलों से इस देश को नियमित रूप से बाहर रखा जाता रहा है। चारों तरफ़ ज़मीन से घिरा (लैंडलॉक्ड) यह देश अपने भोजन का 70% से अधिक आयात करता है; जिसकी क़ीमतें पिछले एक महीने में आसमान छू गई हैं। माली को पश्चिम अफ़्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ईसीओडबल्यूएएस) के कठोर प्रतिबंधों का सामना करना पड़ रहा है। और ये केवल संकट को बढ़ाएगा, तथा माली की राजधानी बमाको के उत्तर में इसकी वजह से और अधिक टकराव होगा।
माली के उत्तर में जारी संघर्ष देश की तुआरेग आबादी के जीवन को प्रभावित करता है। यह समुदाय कई महान कवियों और संगीतकारों से समृद्ध है। उनमें से एक, सौएलौम डायघो, लिखते हैं कि ‘स्मृति के बिना व्यक्ति ऐसा है जैसे पानी के बिना रेगिस्तान’ (‘un homme sans mémoire est comme un desert sans eau’)। उपनिवेशवाद के पुराने रूपों की याद कई अफ़्रीकियों की ख़ुद को ‘और अधिक पीड़ित’ के रूप में देखने की समझ को पैना करती है (जिसके वर्णन एयू के महामत ने अपने भाषण में किया है) और इस बात में उनके विश्वास को और पक्का करती है कि यह उत्पीड़न अस्वीकार्य है।
स्नेह-सहित,
विजय।