शांति जैसा शब्द युद्ध की गोली से भी तेज़ है: सातवाँ न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
26 जनवरी को उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) ने स्टेडफ़ास्ट डिफ़ेंडर 2024 नामक एक विशाल सैन्य अभ्यास शुरू करने की घोषणा की, जो मई के अंत तक जारी रहेगा। नाटो देशों (और एक भागीदार देश, स्वीडन) के 90,000 से अधिक सैनिक, पचास नौसैनिक बेड़ों और अस्सी से अधिक हवाई दस्तों के साथ गठबंधन की क्षमता का प्रदर्शन करने और ‘उभरते खतरों के बीच सभी सहयोगियों की रक्षा के लिए तत्पर रहने का कड़ा संदेश देने हेतु’ तेरह देशों में तैनात होंगे। नाटो के इकतीस सदस्य देशों में से छह (फ़िनलैंड, एस्टोनिया, लातविया, लिथुआनिया, पोलैंड और नॉर्वे) की सीमाएँ रूस के साथ लगती हैं। नाटो का यह अभ्यास ठीक उसी समय हो रहा है, जब यूरोपीय संघ ने घोषणा की है कि वह यूक्रेन को अब से 2027 के बीच 50 अरब यूरो की वित्तीय सहायता प्रदान करेगा, जो कि पिछले दो वर्षों में उत्तरी अटलांटिक द्वारा किए गए समर्थन की तुलना में कम है। अब जबकि उत्तरी गोलार्ध के देशों में यूक्रेन युद्ध को लेकर वहाँ की जनता का समर्थन कम हो रहा है, सरकारों ने नाटो के माध्यम से रूसी सीमा पर तनाव बढ़ाने का फ़ैसला किया है।
स्टेडफ़ास्ट डिफ़ेंडर 2024 अभ्यास की घोषणा के बाद, नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग संयुक्त राज्य अमेरिका गए और पेंटागन में अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से मिले। दिलचस्प यह है कि उनकी सार्वजनिक टिप्पणियों में यूक्रेनी जनता के लिए किसी प्रकार की चिंता दिखाई नहीं देती। इसके बजाय स्टोल्टेनबर्ग ने रूस और चीन के बारे में उत्तरी गोलार्ध के देशों की चिंता का ज़िक्र करते हुए कहा कि यूक्रेन के लिए समर्थन ‘हमारी अपनी सुरक्षा में एक निवेश है क्योंकि अगर राष्ट्रपति पुतिन यूक्रेन में जीतते हैं तो दुनिया और अधिक ख़तरनाक हो जाएगी‘, उन्होंने चेतावनी दी कि इस संघर्ष के परिणाम पर ‘चीन की भी गहरी नज़र है’। उनके लिए यूक्रेन की जनता व उसकी भलाई मायने नहीं रखती, मायने रखती है रूस (और उसकी वजह से चीन) को ‘कमज़ोर‘ देखने की उत्तरी गोलार्ध की भू–रणनीतिक आवश्यकता, जैसा कि ऑस्टिन ने दो साल पहले कीव में कहा था।
इस संघर्ष, इसके वैश्विक निहितार्थ और शांति की संभावना पर प्रकाश डालने के लिए, इस न्यूज़लेटर का शेष भाग नो कोल्ड वॉर की ब्रीफ़िंग संख्या 12: The War in Ukraine Must End (यूक्रेन में युद्ध समाप्त होना चाहिए।) को समर्पित है।
दो साल पहले 24 फरवरी 2022 को रूसी सेना यूक्रेन में दाखिल हुई थी। यह कार्रवाई यूक्रेन में युद्ध की शुरुआत नहीं थी। हालाँकि इस कार्रवाई से लगभग 2014 से जारी टकराव में गति ज़रूर आई। उस वर्ष, संयुक्त राज्य अमेरिका के आदेश पर, यूक्रेन पर एक नयी सरकार थोपी गई थी, जिसका लक्ष्य देश को यूरोपीय संघ के क़रीब लाना था। इसके बाद देश के रूसी भाषी क्षेत्रों में निरंतर उत्पीड़न की शुरुआत हुई। संघर्ष तेज़ी से आगे बढ़ा, क्रीमिया वास्तव में एक बार फिर रूस का हिस्सा बन गया और यूक्रेन का डोनबास क्षेत्र यूक्रेनी धुर–राष्ट्रवादियों तथा रूसी भाषियों के बीच संघर्ष के मोर्चे में तब्दील हो गया। मई 2019 में, यूक्रेनी राष्ट्रपति वलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने पदभार संभाला और डोनबास में लड़ाई को समाप्त करने का वचन दिया। बजाय इसके, नाटो के दबाव के कारण, संघर्ष तेज़ हो गया, अंततः तीन साल बाद रूस ने हस्तक्षेप किया। यूक्रेन, रूस और दुनिया के लोगों के लिए यह ज़रूरी है कि युद्ध रोका जाए और मुद्दे को युद्ध के मैदान से बातचीत की मेज़ पर लाया जाए।
युद्ध का क्या प्रभाव पड़ा है?
किसी भी संघर्ष में हताहतों की संख्या विवाद का विषय बन जाती है। हालांकि, इस बात पर शायद ही असहमति है कि इस युद्ध में 5,00,000 से अधिक यूक्रेनी और रूसी सैनिक मारे गए या घायल हुए हैं, कि साठ लाख से अधिक यूक्रेनी जनता देश छोड़कर जा चुकी है, और (युद्ध–पूर्व की की लगभग 4.4 करोड़ आबादी में से) सत्तर लाख से अधिक यूक्रेनी जनता आंतरिक रूप से विस्थापित हो गई है। यदि युद्ध नहीं रोका गया तो हज़ारों लोग मारे जाएँगे और लाखों लोग पीड़ित होंगे।
विश्व बैंक के अनुसार, यूक्रेन की अर्थव्यवस्था तबाह हो गई है, साल 2022 में ही इसमें 29% की गिरावट आई है। युद्ध का प्रभाव पूरी दुनिया पर पड़ा है। संघर्ष के शुरुआती महीनों में ही गेहूँ की क़ीमतें 21% और कुछ उर्वरकों की क़ीमतें 40% बढ़ गईं थी। कई क्षेत्रों में खाद्य और ऊर्जा की क़ीमतों में तेज़ वृद्धि से दक्षिणी गोलार्ध के देश विशेष रूप से प्रभावित हुए हैं, जबकि यूरोपीय अर्थव्यवस्था मंदी की ओर बढ़ रही है। अन्य देशों में, बड़ी मात्रा में संसाधनों को युद्ध में ख़र्च किया गया है, जबकि उनका उपयोग सामाजिक और आर्थिक ख़र्च के लिए किया जा सकता था। अमेरिका और यूरोप पहले ही युद्ध पर 200 अरब डॉलर से अधिक ख़र्च कर चुके हैं। दिसंबर 2023 में, यूक्रेनी सशस्त्र बलों के प्रमुख ने अमेरिकी रक्षा मंत्री लॉयड ऑस्टिन से ‘जीत‘ हासिल करने के लिए 350-400 अरब डॉलर की माँग की।
वास्तव में, कितनी ही बड़ी धनराशि सैन्य विजय हासिल नहीं कर पाएगी। यूक्रेनी ‘जवाबी हमले‘ की विफलता के बाद यह ज़ाहिर है कि सैन्य स्थिति में कोई महत्त्वपूर्ण बदलाव नहीं हुआ है, और न ही इसकी कोई पुख़्ता उम्मीद है। लगातार जारी इस बड़े मानवीय व आर्थिक नुकसान से कोई उद्देश्य पूरा नहीं होगा।
किन मुद्दों को हल करने की आवश्यकता है?
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सैन्य गुटों के संबंध में यूक्रेन की स्थितिः शीत युद्ध की समाप्ति के बाद यूरोप के पास शांतिपूर्ण आर्थिक विकास करने का अवसर था। पश्चिमी यूरोप के उच्च मूल्य वर्धित विनिर्माण और सेवा उद्योगों को पूर्व सोवियत संघ की ऊर्जा, कच्चे माल, कृषि और अंतरिक्ष जैसे उच्च–प्रौद्योगिकी उद्योगों के साथ जोड़कर और सैन्य ख़र्च को कम करके विशाल क्षमता वाली एक सुसंगत और संतुलित अर्थव्यवस्था विकसित की जा सकती थी। पूर्वी एशिया में शीत युद्ध के ध्रुवीकरण और संघर्ष का प्रभाव सर्वाधिक पड़ा था मगर वह इससे उबर गया। (जैसा कि कोरियाई युद्ध और उसके बाद होने वाले वियतनाम तथा इंडोचाइना युद्धों में देखा गया)। पारस्परिक रूप से लाभकारी आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने और सैन्य तथा राजनीतिक गुटों से दूरी बनाने के कारण यह दुनिया का सबसे अधिक प्रगति करने वाला आर्थिक क्षेत्र बन गया। इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि 1990 के बाद से, दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (ASEAN) की जीडीपी में 400% से अधिक की वृद्धि हुई है। हालांकि, यूरोप में, अमेरिका ने इस बात पर ज़ोर दिया कि ऐसी नीतियों का पालन नहीं किया जाएगा और इसके बजाय, इस क्षेत्र का उपयोग पूर्वी यूरोप में नाटो सैन्य गुट का विस्तार करने के लिए किया गया। यह सब कुछ जर्मनी के एकीकरण के समय की गई प्रतिबद्धता, कि नाटो रूस की तरफ़ ‘एक इंच पूर्व की ओर‘ आगे नहीं बढ़ेगा, को तोड़कर किया गया। अमेरिका को इस बात का अच्छी तरह एहसास था कि नाटो के विस्तार से रूस और पूरे यूरोप में तनाव बढ़ जाएगा। विशेष रूप से यूक्रेन के नाटो में प्रवेश की संभावना एक संवेदनशील मुद्दा था, जिसके बाद मॉस्को तत्काल परमाणु–सशस्त्र गुट के हमले की सीमा के भीतर आ जाता है। पूर्वी यूरोप और रूस के कई विशेषज्ञों ने नाटो को बार–बार सलाह दी कि वह इस तरह के विस्तार की कोशिश न करे। इनमें सबसे महत्त्वपूर्ण सुझाव अमेरिकी शीत युद्ध नीति के मूल सिद्धांतकार जॉर्ज केनन ने दिया था, जिन्होंने 1997 में भविष्यवाणी की थी कि, ‘नाटो का विस्तार शीत युद्ध के बाद के पूरे दौर में अमेरिकी नीति की सबसे घातक ग़लती होगी।‘ दिसंबर 2021 में, रूस ने एक समझौते का प्रस्ताव रखा कि यूक्रेन नाटो का सदस्य न बने। मार्च 2022 में हुई वार्ता में, यूक्रेन ने नाटो के सामूहिक रक्षा अनुच्छेद से प्रेरित होकर, सुरक्षा गारंटी के बदले में तटस्थ स्थिति अपनाने का प्रस्ताव रखा, जिसमें पोलैंड, इज़राइल, तुर्की और कनाडा को गारंटर के रूप में शामिल किया जा सकता था। लेकिन नाटो द्वारा इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई, मई 2022 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन ने आनन–फानन यूक्रेन की यात्रा की और नाटो का पक्ष रखा, जिसके बाद शांति के प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई। और इस तरह युद्ध को तत्काल प्रभाव से समाप्त करने की संभावना अवरुद्ध हो गई।
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यूक्रेन के अंतर्गत रूसी भाषी अल्पसंख्यक की स्थितिः (इसका गठन 1991 में हुआ था) 2001 की जनगणना में पाया गया कि यूक्रेन की लगभग 30% आबादी रूसी को अपनी मूल भाषा मानती है। विभिन्न प्रकार के भाषाई और जातीय अल्पसंख्यक आबादी वाले देश केवल तभी अपनी एकता बनाए रख सकते हैं, यदि ऐसे अल्पसंख्यकों के अधिकारों का सम्मान किया जाए। 2014 के बाद यूक्रेनी सरकार द्वारा अपनाई गई नीतियों, जिनमें कई क्षेत्रों में रूसी भाषा के आधिकारिक उपयोग को रोकना शामिल था, के कारण यूक्रेन के भीतर एक विस्फोटक संकट पैदा होना तय था। यूरोप के वेनिस आयोग की परिषद, जिस पर निश्चित रूप से रूस समर्थक होने का आरोप नहीं लगाया जा सकता है, ने कहा: ‘राष्ट्रीय अल्पसंख्यकों से संबंधित वर्तमान क़ानून अल्पसंख्यकों की सुरक्षा के लिए पर्याप्त गारंटी प्रदान करने में पूरी तरह असफल है… कई अन्य प्रावधान जो अल्पसंख्यक भाषाओं के उपयोग को प्रतिबंधित करते हैं, 16 जुलाई 2019 से पहले से ही लागू हैं।‘ इस स्थिति को ठीक करने के केवल दो तरीक़े हैं: पुराने यूक्रेनी राज्य की सीमाओं के भीतर रूसी–भाषी अल्पसंख्यकों के भाषाई व अन्य सभी अधिकारों की बहाली की जाए या यूक्रेन से इन क्षेत्रों को अलग किया जाए। इसका क्या परिणाम निकलता है, यह वार्ता का प्रमुख विषय होगा। बहरहाल, यह स्पष्ट है कि यूक्रेनी राज्य के भीतर रूसी–भाषी अल्पसंख्यकों को उनके अधिकारों से वंचित रखने का कोई भी प्रयास सफल नहीं होगा, न ही रूस द्वारा पश्चिमी तथा उत्तरी यूक्रेन के यूक्रेनी–भाषी आबादी पर एक और राज्य थोपने का कोई भी प्रयास सफल होगा।
सैन्य तरीक़ों से इन मुद्दों को हल करने के सभी प्रयास निरर्थक ही सिद्ध होंगे और इनसे केवल यूक्रेनी जनता की पीड़ा ही बढ़ेगी। यदि युद्ध जारी रहा तो ये वास्तविकताएँ और अधिक स्पष्ट हो जाएँगी – यही कारण है कि इसे जितनी जल्दी हो सके रोका जाना चाहिए और बातचीत शुरू होनी चाहिए।
1961 में, सोवियत कवि वलोडिमिर मिकोलायोविच सोसिउरा ने शब्दों की शक्ति पर एक गीत लिखा था। सोसिउरा का जन्म 1898 में ज़ार साम्राज्य के अंतर्गत देबाल्टसेव (जो आज डोनेस्क में है) में हुआ था और 1965 में कीव में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्य के रूप में उनकी मृत्यु हुई। उन्होंने कई कविताएँ लिखीं जो यूक्रेन के लिए उनके देशभक्तिजन्य प्रेम और सोवियत संघ तथा साम्यवादी संघर्ष के प्रति उनकी प्रतिबद्धता के बीच झूलती रहीं। सबसे बढ़कर, सोसिउरा – जो प्रथम विश्व युद्ध में बखमुत में लड़े और फिर बाद में लाल सेना में शामिल हो गए – के मन में युद्ध के प्रति बहुत घृणा थी। उन्होंने नाज़ियों के ख़िलाफ़ युद्ध के महत्त्व को समझा, लेकिन – अपनी पीढ़ी के कई लोगों की तरह – इस युद्ध के कारण हुए जीवन के भयानक नुक़सान पर शोक व्यक्त किया, जैसे कि 2.7 करोड़ सोवियत नागरिक जो नाज़ी सेनाओं को हराने की लड़ाई में मारे गए थे, जिनमें से 1.9 करोड़ आम नागरिक थे। यह शब्दों के बारे में सोसिउरा की ख़ूबसूरत कविता का संदर्भ था:
मैं शब्द की ताक़त जानता हूँ।
यह खुखरी से ज़्यादा धारदार
और गोली से ज़्यादा तेज़ होता है,
हवाई जहाज़ से भी तेज़।
…
ओह, ख़ुशी के हथियार: शब्द!
मुझे तुम्हारे पास रहने की आदत है।
प्यार में डूबे हुए तुम फूल होते हो,
और बैर में डूबे बन जाते हो खुखरी।
स्नेह–सहित,
विजय।