Amadou Sanogo (Mali), Je pense de ma tête, 2016.

अमादौ सनोगो (माली), मैं अपने दिमाग़ से सोचता हूँ, 2016.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

अक्टूबर 2021 में, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक आयोग (ईसीएलएसी) ने महामारी और शिक्षा प्रणालियों पर एक सेमिनार का आयोजन किया था। एक पूरे शैक्षणिक वर्ष के दौरान इस क्षेत्र के 99% छात्रों की फ़ेस-टू-फ़ेस कक्षाएँ लगभग पूरी तरह से बंद रहीं या आंशिक रूप से चलीं, और दूसरी ओर 600,000 से अधिक बच्चे महामारी के कारण अपनी देखभाल करने वालों के चले जाने की वजह से दुःख झेल रहे थे। अन्य अनुमानों से पता चलता है कि मौजूदा संकट के कारण 31 लाख बच्चे और युवा स्कूल छोड़ने और इनमें से 300,000 से अधिक मज़दूरी करने के लिए मजबूर हो जाएँगे। सेमिनार में, ईसीएलएसी की कार्यकारी सचिव एलिसिया बर्सेना ने कहा कि महामारी, क्षेत्र में आर्थिक अशांति तथा शिक्षा में बाधा के आपसी समायोजन ने ‘एक स्थिर संकट’ पैदा किया है।

दुनिया भर में स्थिति इसी तरह से ख़राब है, और ‘स्थिर संकट’ शब्द को वैश्विक स्तर पर इस्तेमाल करने की ज़रूरत है। संयुक्त राष्ट्र ने नोट किया कि ‘दुनिया भर में 150 करोड़  से अधिक छात्र और युवा कोविड-19 महामारी के कारण बंद स्कूल और विश्वविद्यालयों से प्रभावित हो रहे हैं या प्रभावित हुए हैं’; कम से कम 100 करोड़ स्कूली बच्चों के पढ़ाई में पिछड़ने का ख़तरा है। संयुक्त राष्ट्र ने कहा है, ‘ग़रीब घरों में रहने वालों के पास घर पर इंटरनेट, पर्सनल कंप्यूटर, टीवी या यहाँ तक ​​कि रेडियो भी नहीं है, जो कि मौजूदा शैक्षिक असमानताओं के प्रभावों को बढ़ाता है’। कुल बच्चों में से क़रीब एक तिहाई -कम से कम 46.3 करोड़ बच्चों– की डिस्टैन्स एजुकेशन के लिए ज़रूरी प्रौद्योगिकियों तक पहुँच नहीं है; इन बच्चों में से तीन चौथाई बच्चे ग्रामीण इलाक़ों से आते हैं, जिनमें से ज़्यादातर बेहद ग़रीब घरों से आते हैं। लॉकडाउन के दौरान स्कूल बंद होने और ऑनलाइन सीखने के लिए बुनियादी ढाँचे की कमी के कारण, कई बच्चे ‘शायद फिर कभी स्कूल नहीं जाएँ, [और] दुनिया भर में शिक्षा क्षेत्र में हुई प्रगति में गिरावट आने का ख़तरा है’।

 

Mao Xuhui (China), I Leave the Trace of Wings in the Air, 2014–2017.

माओ जुहुई (चीन), मैं पंखों के निशान हवा में छोड़ता जाता हूँ, 2014–2017.

 

2015 में, संयुक्त राष्ट्र के 193 सदस्य देशों ने पंद्रह वर्षों के भीतर सत्रह सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को पूरा करने के लिए सतत विकास के 2030 एजेंडे पर सहमति जताई थी। एसडीजी की संपूर्ण प्रक्रिया, जो साल 2000 में ग़रीबी कम करने के लिए सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों के रूप में शुरू हुई थी, के लिए दुनिया भर में व्यापक सहमति थी। चौथा एसडीजी लक्ष्य ‘समावेशी और समान गुणवत्ता वाली शिक्षा सुनिश्चित करना और सभी के लिए आजीवन सीखने के अवसरों को बढ़ावा देना’ है। इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया के एक हिस्से के रूप में, संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक ने मिलकर ‘अधिगम की ग़रीबी’ नामक एक अवधारणा विकसित की थी। किसी बच्चे के दस साल का होने के बाद भी यदि वो सरल पाठों को पढ़ने और समझने में असमर्थ हो तो यह उसकी अधिगम की ग़रीबी यानी लर्निंग पावर्टी को दर्शाता है। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 53% बच्चे और ग़रीब देशों में 80% बच्चे लर्निंग पूअर (अधिगम में ग़रीब) हैं। महामारी से पहले ही, यह स्पष्ट था कि 2030 तक दुनिया के 43% बच्चों के लिए एसडीजी की आकांक्षाएँ पूरी नहीं होंगी। संयुक्त राष्ट्र की नयी रिपोर्ट ने बताया है कि 2020 में कक्षा 1 से 8 में पढ़ने वाले 10.1 मिलियन यानी 9% और बच्चे ‘पढ़ने की न्यूनतम दक्षता के स्तर से नीचे आ गए हैं’ और महामारी ने ‘पिछले 20 वर्षों के दौरान शिक्षा में प्राप्त हुई उन्नति को ख़त्म कर दिया है‘। अब यह बिना अपवाद के माना जा रहा है कि चौथा एसडीजी बहुत लंबे समय तक पूरा नहीं किया जा सकेगा।

 

Said Aniff Hossanee (Mauritius), The Thinker, 2020.

अनिफ़ होसैनी (मॉरीशस), विचारक, 2020.

 

संयुक्त राष्ट्र और विश्व बैंक ने भी चेतावनी दी है कि इस ‘स्थिर संकट’ का छात्रों के आर्थिक भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। उनका अनुमान है कि ‘कोविड-19 के कारण बंद हुए स्कूलों और आर्थिक झटकों के कारण बच्चों की इस पीढ़ी को वर्तमान मूल्य पर जीवन भर की कमाई में 17 ट्रिलियन डॉलर या आज के वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के लगभग 14% का आर्थिक घाटा होने का जोखिम है’। छात्रों को केवल जीवन भर की कमाई में ही खरबों डॉलर का नुक़सान नहीं होने वाला है, बल्कि वे सामाजिक, सांस्कृतिक और बौद्धिक ज्ञान और कौशल से भी वंचित होने जा रहे हैं जो कि मानवता की प्रगति के लिए महत्वपूर्ण हैं।

प्रारंभिक शिक्षा से लेकर कॉलेज शिक्षा तक के संस्थान शिक्षा के व्यावसायीकरण पर ज़ोर दे रहे हैं। मानविकी (ह्यूमैनिटीज़) में बुनियादी प्रशिक्षण की कमी एक वैश्विक समस्या बन गई है, जिसके कारण दुनिया की आबादी इतिहास, समाजशास्त्र, साहित्य और कलाओं से वंचित हो रही हैं, जो वास्तव में समाज में रहने और एक संसार के नागरिक होने के सही अर्थों की एक समृद्ध समझ पैदा करते हैं। इस तरह की शिक्षा जिंगोइज़्म (अंधराष्ट्रीयता) और ज़ेनोफ़ोबिया (प्रवासियों/विदेशियों से घृणा) के ज़हर -जो कि हमें तेज़ी से विनाश और विलुप्त होने की ओर ले जा रहे हैं- को फैलने से रोकती है।

इस ‘स्थिर संकट’ में सांस्कृतिक संस्थान सबसे बुरी तरह से फँसे हैं। दुनिया भर के 104,000 संग्रहालयों पर महामारी के प्रभाव पर यूनेस्को के एक अध्ययन में पाया गया कि साल 2020 में इनमें से लगभग आधे संस्थानों की सरकारी वित्तीय मदद में भारी कमी आई, जो कि उसके अगले साल बहुत ज़्यादा नहीं बढ़ी। लॉकडाउन के कारण और वित्तीय मदद की समस्याओं के कारण, 2020 में दुनिया के सबसे लोकप्रिय कला संग्रहालयों की उपस्थिति में 77% की गिरावट आई है। महामारी के अलावा, प्लेटफ़ॉर्म पूँजीवाद -इंटरनेट-आधारित मंचों में निहित आर्थिक गतिविधियाँ- के उदय के कारण सांस्कृतिक उपभोग के निजीकरण में तेज़ी आई है। सांस्कृतिक प्रदर्शन के सार्वजनिक रूप जैसे, सार्वजनिक शिक्षा, सार्वजनिक संग्रहालय व दीर्घाएँ और सार्वजनिक संगीत कार्यक्रम आदि नेटफ़्लिक्स और स्पॉटिफ़ाई जैसे मंचों की रफ़्तार से नहीं बढ़ पाए। उप-सहारा अफ़्रीका में केवल 29% लोगों के पास इंटरनेट तक पहुँच है; और ये सांस्कृतिक जीवन की असमानताओं को और भी गंभीर चिंता का विषय बना देता है।

 

Wycliffe Mundopa (Zimbabwe), Easy Afternoon, 2020.

वाइक्लिफ़ मुंडोपा (ज़िम्बाब्वे), फ़ुर्सत की दोपहर, 2020.

 

महामारी के दौरान शिक्षकों के साथ जिस तरह से व्यवहार किया गया है, वह हमारी दुनिया में काम और शिक्षा के महत्व के निम्न स्तर को दर्शाता है। केवल 19 देशों में शिक्षकों को कोविड-19 वैक्सीन प्राप्त करने के लिए फ़्रंटलाइन कार्यकर्ताओं के साथ प्रथम प्राथमिकता समूह में रखा गया था।

पिछले कुछ हफ़्तों से, इस न्यूज़लेटर में ‘ग्रह को बचाने की योजना‘ पर बात होती रही है, जिसे हमने बोलिवेरियन एलायंस फ़ॉर द पीपुल्ज़ अव अमेरिकाज़ – पीपुल्स ट्रेड ट्रीटी (एएलबीए-टीसीपी) के नेतृत्व में दुनिया भर के 26 शोध संस्थानों के साथ मिलकर तैयार किया है। हम उस लेख के बारे में लगातार बात करते रहेंगे क्योंकि वह लेख साझा वैश्विक संघर्षों में आगे बढ़ने की दिशा को लेकर यथास्थितिवादी दृष्टिकोण को चुनौती देता है। उदाहरण के लिए, यदि शिक्षा की बात करें, तो हम जीडीपी या पैसे के मूल्य के आधार पर नहीं बल्कि शिक्षकों और छात्रों की ज़रूरतों के आधार पर दुनिया के लिए एक फ़्रेमवर्क तैयार कर रहे हैं। शिक्षा के विषय पर, हमने ग्यारह माँगों की एक -व्यापक नहीं लेकिन सांकेतिक- सूची तैयार की है। आप उन्हें यहाँ पढ़ सकते हैं।

कृपया योजना को ध्यान से पढ़ें। हम आपके सुझाव भी जानना चाहते हैं, हमें आशा है कि आप हमें plan@thetricontinental.org पर अपने सुझाव भेजेंगे। यदि आपको ये विचार उपयोगी लगते हैं, तो कृपया इन्हें व्यापक रूप से प्रसारित करें। यदि आप सोच रहे हैं कि इन विचारों को लागू करने के लिए पैसा कहाँ से आएगा, तो पूरी योजना पढ़ें (वैसे, इस समय में कम से कम 37 ट्रिलियन डॉलर अवैध टैक्स स्वर्गों -उन देशों के बैंकों में जहाँ टैक्स बेहद मामूली हैं या हैं ही नहीं- पड़े हैं)।

 

 

होंडुरास में इस दिशा में क़दम उठाए जा रहे हैं। 27 जनवरी को, राष्ट्रपति शियोमारा कास्त्रो ने देश की बागडोर संभाली है, सत्ता के शीर्ष तक पहुँचने वाली वह पहली महिला हैं। उन्होंने जीतने के तुरंत बाद होंडुरास के लगभग एक करोड़ लोगों में से दस लाख से अधिक लोगों को मुफ़्त बिजली देने का वादा किया। इससे होंडुरास के सबसे ग़रीब निवासियों की अपने सांस्कृतिक क्षितिज का विस्तार करने और महामारी के दौरान बच्चों की ऑनलाइन लर्निंग में भाग ले पाने की संभावना बढ़ेगी। जिस दिन राष्ट्रपति कास्त्रो की सरकार सत्ता में आई उसी दिन मैं निकारागुआ-साल्वाडोर की कवयित्रि क्लेरिबेल एलेग्रिया की सुंदर कविताएँ पढ़ रहा था। इन कविताओं में मध्य अमेरिका के लोगों के प्रगति एलेग्रिया की असीम प्रतिबद्धता दिखाई देती है। 1978 में, निकारागुआ की क्रांति से ठीक पहले, एलेग्रिया को उनके कविता संग्रह सोब्रेविवो (‘में ज़िंदा हूँ’) के लिए कासा डे लास अमेरिकाज़ पुरस्कार मिला था। डी जे फ्लेकोल के साथ मिलकर, उन्होंने सैंडिनिस्टा क्रांति, निकारागुआ पर किताब लिखी थी, ला रिवॉल्यूशन सैंडिनिस्टा: उना क्रॉनिका पॉलिटिका 1855-1979 (‘सैंडिनिस्टा क्रांति – एक राजनीतिक इतिहास, 1855-1979’), जो कि 1982 में प्रकाशित हुई थी। उनकी पुस्तक फ़्यूगुएस (1993) में से एक कविता कॉन्टाबिलिजांडो (‘लेखा’) हमें कविता और अहसास तथा मानव उन्नति के लिए सपने और उम्मीद के महत्व के बारे में बताती है:

न जाने कितने साल

अपने लोगों की मुक्ति का सपना देखूँगी

कुछ अमर मौतें

उस भूखे बच्चे की आँखें देखी हैं

तुम्हारी आँखें मुझे प्यार से नहलाती हैं

एक अविस्मरणीय दोपहर

और इस उमस भरे समय में

उठ रही है ललक ख़ुद को ढालने की

एक पद्य में

एक चीख़ में

फ़ोम के एक टुकड़े में।

स्नेह-सहित,

विजय।