Yayoi Kusama (Japan), Infinity Mirrored Room – The Souls of Millions of Light Years Away, 2013.

यायोई कुसमा (जापान), असंख्य आईने वाला कमरा – लाखों प्रकाश वर्ष दूर की आत्माएँ, 2013.

 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

हिरोशिमा (जापान) में मई 2023 में आयोजित ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7) शिखर सम्मेलन के समापन पर, कनाडा, फ़्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, यूनाइटेड किंगडम और संयुक्त राज्य अमेरिका के विदेश मंत्री तथा यूरोपीय संघ (ईयू) के उच्च प्रतिनिधि ने एक लंबा और सूचनात्मक वक्तव्य जारी किया। ‘चीन’ शीर्षक वाले एक खंड में आठ अधिकारियों ने लिखा है कि वे ‘चीन के साथ खुलकर बातचीत करने और अपनी चिंताओं को सीधे व्यक्त करने के महत्व को पहचानते हैं’ और वे ‘वैश्विक चुनौतियों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता, वैश्विक स्वास्थ्य सुरक्षा और लैंगिक समानता सहित सामान्य हित वाले क्षेत्रीय मुद्दों पर भी मिलकर काम करने की आवश्यकता को स्वीकार करते हैं’। हाल के वर्षों में इन देशों द्वारा की गई गरमागरम बयानबाज़ी की तुलना में इस बयान का कूटनीतिक लहजा सबसे अलग है और यह G7 बैठक में इस्तेमाल की जाने वाली भाषा की तुलना में बहुत नरम है, जहाँ सरकार के प्रमुखों ने ‘आर्थिक दबदबा’ वाक्यांश का इस्तेमाल किया था, अप्रत्यक्ष रूप से चीन को निशाना बनाने के लिए ही ऐसा कहा गया था।

बैठक में दिए गए भाषणों को ध्यान से पढ़ने से पता चलता है कि G7 देशों के नेताओं के बीच मतभेद हैं, ख़ासकर जब चीन और उनकी अपनी घरेलू औद्योगिक नीतियों की बात आती है। निश्चित रूप से, कई यूरोपीय देश यूक्रेन में युद्ध को लंबा खींचने और ताइवान पर संभावित सैन्य संघर्ष के घरेलू आर्थिक परिणामों के बारे में असहज हैं। शायद यही बेचैनी है जिसने अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाईडेन को यह कहने के लिए प्रेरित किया, ‘हम चीन से अलग होने के बारे में नहीं सोच रहे हैं, हम चीन के साथ अपने संबंधों को जोखिम मुक्त और विविधतापूर्ण बनाना चाहते हैं।’

यूरोप के लिए, चीन से अलग होने का विचार अकल्पनीय है। 2022 में, यूरोपीय संघ के आँकड़े बताते हैं कि चीन इस क्षेत्र से निर्यात किए गए सामानों का तीसरा सबसे बड़ा ख़रीदार था और इस क्षेत्र में आयात किए जाने वाले सामानों का सबसे बड़ा भागीदार भी था, जिसमें चीन द्वारा आयात किए जाने वाले अधिकांश सामान अधिक मूल्य के थे। यूक्रेन में शांति समझौते पर बातचीत करने से पश्चिम के इनकार से यूरोप की घरेलू अर्थव्यवस्थाएँ पहले ही गंभीर रूप से प्रभावित हो चुकी हैं; बढ़ते चीनी बाज़ार से कट जाना एक आत्मघाती झटका होगा।

G7 बैठक संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों (यूरोप और जापान) के बीच के फ़ासले को दिखाता है, लेकिन हित और राय के इन मतभेदों को बढ़ा-चढ़ाकर नहीं आँका जाना चाहिए। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में हम अपने काम के हिस्से के रूप में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप तथा जापान के बीच सहयोग की प्रकृति पर शोध और विश्लेषण कर रहे हैं – समीर अमीन ने जिसे ‘ट्रायड’ कहा था; हमारा शोध अभी भी जारी है, हम इस न्यूज़लेटर में कुछ आँकड़े प्रस्तुत कर रहे हैं।

द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद, संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली का निर्माण किया जो जापान और यूरोप की अधीनता तथा एकीकरण पर आधारित थी। अधीनता और एकीकरण की यह प्रक्रिया संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा निर्मित सैन्य तंत्र में स्पष्ट थी, 1949 में स्थापित उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) और 1951 की यूएस-जापान सुरक्षा संधि इन्हें जोड़ने वाली कड़ी थी। पराजित शक्तियों – जर्मनी, इटली और जापान – में अमेरिकी सैन्य ठिकानों की एक प्रणाली की स्थापना करने के दौरान वाशिंगटन ने यूरोप या जापान से किसी प्रकार की संप्रभु सैन्य या राजनयिक परियोजना पर बातचीत करना ज़रूरी नहीं समझा (चार्ल्स डी गॉल की भव्य भावना से प्रेरित फ़्रांस ने थोड़ा नखरा तो दिखाया लेकिन तब भी वह  नाटो से अलग नहीं हुआ बल्कि केवल 1966 में गठबंधन की सैन्य कमान से फ़्रांसीसी सेना को हटा लिया गया)।

फ़िलहाल फ़ाइव आइज़ देशों (ऑस्ट्रेलिया, कनाडा, न्यूज़ीलैंड, यूनाइटेड किंगडम, और इज़राइल – क्योंकि वे एक दूसरे के साथ तथा अमेरिका के साथ ख़ुफ़िया जानकारी साझा करते हैं इसलिए ये आँख की तरह काम करते हैं), यूरोप और जापान में 408 ज्ञात अमेरिकी सैन्य ठिकाने हैं। आश्चर्यजनक रूप से, अकेले जापान में 120 अमेरिकी सैन्य ठिकाने हैं, जबकि जर्मनी में 119 सैन्य ठिकाने। यह समझना महत्वपूर्ण है कि ये ठिकाने केवल सैन्य शक्ति के साधन नहीं हैं, बल्कि इनसे राजनीतिक शक्ति भी मिलती है। 1965 में, यूएस स्टेट डिपार्टमेंट के ब्यूरो ऑफ़ इंटेलिजेंस एंड रिसर्च के थॉमस ह्यूजेस ने ‘नाटो का महत्व – वर्तमान और भविष्य’ शीर्षक से एक महत्वपूर्ण ज्ञापन लिखा। ह्यूजेस ने लिखा, ‘नाटो, यूरोप में अमेरिकी राजनीतिक प्रभाव का प्रयोग करने के लिए स्थापित तथा आसानी से उपलब्ध साधन के रूप में अमेरिका के लिए आवश्यक है’ और अंततः ‘यह यूरोप में अमेरिकी हितों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण है’। इस तरह की व्यवस्था जापान में पहले ही लागू हो चुकी थी, जैसा कि 1962 के इस अमेरिकी सैन्य ज्ञापन में विस्तार से लिखा गया है। यूरोप और जापान में अमेरिकी सैन्य ठिकानों का नेटवर्क वाशिंगटन के प्रति उनकी राजनीतिक अधीनता का प्रतीक है।

 

Yinka Shonibare (Nigeria), Scramble for Africa, 2003.

यिंका शोनिबारे (नाइजीरिया), अफ्रीका के लिए छीना-झपटी, 2003.

1951 में यूएस-जापान सुरक्षा संधि पर हस्ताक्षर करने के साथ, जापान के प्रधान मंत्री शिगेरु योशिदा ने अपने देश पर अमेरिकी सेना के प्रभुत्व को स्वीकार किया लेकिन आशा व्यक्त की कि जापानी सरकार आर्थिक विकास पर ध्यान केंद्रित करने में सक्षम होगी। इसी तरह के सिद्धांत यूरोप में अपनाए गए थे।

युद्ध के बाद के युग में, संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान के बीच एक आर्थिक ब्लॉक बनना शुरू हुआ। 1966 में, रेमंड वर्नोन ने अर्थशास्त्र के एक महत्वपूर्ण त्रैमासिक जर्नल Quarterly Journal of Economics में ‘अंतर्राष्ट्रीय निवेश और उत्पाद चक्र में अंतर्राष्ट्रीय व्यापार’ (‘International Investment and International Trade in the Product Cycle’) शीर्षक से एक लेख प्रकाशित किया, जिसमें उन्होंने दिखाया कि कैसे बड़े अंतर्राष्ट्रीय निगमों ने एक अनुक्रमिक संरचना का निर्माण किया: माल पहले संयुक्त राज्य अमेरिका में उत्पादित होगा और बेचा जाएगा, फिर यूरोप में बिकेगा, उसके बाद में जापान में, और अंतत: उसके बाद उन्हें दुनिया के अन्य भागों में बेचा जाएगा। 1985 में, ग्लोबल कंसल्टिंग फ़र्म मैकिन्से के टोक्यो कार्यालय के प्रबंध निदेशक केनिची ओह्माई (Kenichi Ohmae) ने अपनी पुस्तक ट्रायड पावर: द कमिंग शेप ऑफ़ ग्लोबल कॉम्पिटिशन में इस व्यवस्था पर और प्रकाश डाला। ओह्माई ने उदाहरण दिया कि कैसे अंतर्राष्ट्रीय निगमों को संयुक्त राज्य अमेरिका, पश्चिमी यूरोप और जापान में एक साथ काम करना पड़ता है; बढ़ती पूँजी लागत, उच्च अनुसंधान और विकास लागत, एक जैसे उपभोक्ता आस्वाद, और संरक्षणवाद के उदय ने अंतर्राष्ट्रीय निगमों के लिए इन देशों में काम करना आवश्यक बना दिया, जिसे ओह्माई ने सामूहिक रूप से ट्रायड कहा, और फिर कहीं और बाज़ारों और अवसरों की तलाश की जाती है (जहाँ दुनिया के दस में से सात लोग रहते हैं)।

समीर अमीन ने ट्रायड शब्द का प्रयोग एक बहुत अलग उद्देश्य के लिए किया। 1980 में, उन्होंने ‘विश्व पूँजीवादी व्यवस्था (यूरोप, उत्तरी अमेरिका, जापान, ऑस्ट्रेलिया) के मध्य क्षेत्र के क्रमिक एकीकरण’ के बारे में लिखा और इसके तुरंत बाद इस ‘मध्य क्षेत्र’ को ट्रायड ने नाम से संबोधित करना शुरू किया। अमेरिकी सरकार ने जिसे ‘सामान्य हित’ कहना शुरू कर किया, यूरोप और जापान के अभिजात वर्ग ने अपने स्वयं के राष्ट्रीय हित को उसी का हिस्सा स्वीकार कर लिया। इन ‘सामान्य हितों’ को आकार देने के लिए 1970 के दशक में नये संस्थान और नयी शब्दावलियाँ उभरीं, जिसमें शामिल हैं त्रिपक्षीय आयोग [Trilateral Commission] (1973 में डेविड रॉकफ़ेलर द्वारा स्थापित, जिसका मुख्यालय पेरिस, टोक्यो और वाशिंगटन में था) और ‘त्रिपक्षीय कूटनीति’ [‘trilateral diplomacy’] (जो एक एकीकृत राजनयिक विश्वदृष्टि के तहत पश्चिमी यूरोप, जापान और संयुक्त राज्य अमेरिका को एक साथ लाया)।

इन त्रिपक्षीय हलक़ों में बुद्धिजीवियों ने संयुक्त राज्य अमेरिका को केंद्रीय शक्ति के रूप में देखा, जिसके मातहत देश थे (यूरोप और जापान), जो बाक़ी दुनिया को स्थिर बनाए रखने के लिए सहायक देशों (जैसे दक्षिण कोरिया) पर नियंत्रण बनाए रखने में सक्षम थे। त्रिपक्षीय आयोग के वास्तुकारों में से एक और अमेरिकी राष्ट्रपति जिमी कार्टर के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार ज़बिग्न्यू ब्रेज़िंस्की (Zbigniew Brzezinski) द्वारा बहुत कठोर भाषा का उपयोग किया गया था। द ग्रैंड चेसबोर्ड: अमेरिकन प्राइमेसी एंड इट्स जियोस्ट्रेटेजिक इंपीरेटिव्स (1997) में, ब्रेज़ज़िंस्की ने लिखा, ‘इसे शब्दावली में ढालने के लिए प्राचीन साम्राज्यों के अधिक क्रूर युग की ओर वापस जाना होगा, शाही भू-रणनीति की तीन प्रमुख अनिवार्यताएँ हैं, मातहतों के बीच आपसी टकराव को रोकना और एक दूसरे पर सुरक्षा की निर्भरता को बनाए रखना, सहयोगियों को अपने वश में रखना तथा उनकी सुरक्षा का प्रबंध करना, और बर्बर लोगों को एक साथ आने से रोकना। आप अनुमान लगा सकते हैं कि ब्रेज़िंस्की की कल्पना में बर्बर कौन हैं।

Dan Mills (USA), Current Wars & Conflicts… (with, by continent, Belligerent and Supporter groups marked with black and red circles respectively, and Asylum Seekers, Internally Displaced, Refugees, and Stateless marked with a letter for every million, and killed marked with a letter for every 250k), 2017.

डैन मिल्स (यूएसए), वर्तमान युद्ध तथा संघर्ष… (महाद्वीप के नक़्शे के साथ, जुझारू और समर्थक समूहों को क्रमशः काले और लाल घेरे से दर्शाया गया है, और शरण चाहने वालों, आंतरिक रूप से विस्थापित, शरणार्थियों तथा स्टेटलेस को A, I, R तथा S अक्षर से दर्शाया गया, एक अक्षर 10 लाख संख्या को इंगित करता है, मारे गए लोगों को K अक्षर से दर्शाया गया, एक अक्षर 2 लाख 50 हज़ार की संख्या को बताता है), 2017.

हाल के वर्षों में, ट्रायड की अवधारणा काफ़ी हद तक चर्चा से बाहर हो गई है। लेकिन वास्तविक विश्व व्यवस्था को बेहतर ढंग से समझने के लिए इस शब्द को फिर ले इस्तेमाल करना ज़रूरी है। साम्राज्यवादी खेमा केवल भौगोलिक रूप से परिभाषित नहीं है; ट्रायड तथा उत्तरी गोलार्ध (ग्लोबल नॉर्थ), हाल में जिस शब्द का ज़्यादा इस्तेमाल होने लगा है, दोनों पुराने शब्द भू-राजनीतिक अवधारणाओं को अभिव्यक्त करती हैं। दुनिया के अधिकांश हिस्से – दक्षिणी गोलार्ध – अब एक अमेरिकी नेतृत्व और प्रभुत्व वाली साम्राज्यवादी व्यवस्था का सामना कर रहे हैं जिसकी शक्ति एकीकृत सैन्य संरचना में निहित है। यह प्रणाली तीन समूहों से मिलकर बनी है: (1) संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और अन्य एंग्लो-अमेरिकन श्वेत उपनिवेशी देश; (2) यूरोप; और (3) जापान। उत्तरी गोलार्ध दुनिया की अल्पसंख्यक आबादी (14.2%) का निवास स्थल है, लेकिन वैश्विक सैन्य ख़र्च (66.0%) के अधिकांश हिस्से के लिए ज़िम्मेदार है। स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट के अनुसार, 2022 में कुल विश्व सैन्य ख़र्च 2.2 ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच गया, जिसमें ट्रायड और उसके क़रीबी सहयोगियों ने उस राशि में से 1.46 ट्रिलियन डॉलर ख़र्च किया (चीन का सैन्य ख़र्च 292 बिलियन डॉलर है, जबकि रूस 86 बिलियन डॉलर ख़र्च करता है)। यह विशाल सैन्य शक्ति है जो विश्व अर्थव्यवस्था पर अपनी कमज़ोर पकड़ के बावजूद ट्रायड को दुनिया के लोगों पर हावी रहने का अवसर देता है।

हाल के वर्षों में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने एक जापानी शस्त्रागार तथा एक जर्मन सैन्य निर्माण को फिर से बहाल किया है, द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से दोनों ही बंद पड़े थे, ताकि ये ‘मातहत’ रूस और चीन के साथ-साथ दक्षिणी गोलार्ध के नये उभरते हुए देशों के ख़िलाफ़ वाशिंगटन द्वारा छेड़े गए संकीर्ण नये शीत युद्ध को मज़बूत कर सकें। हालाँकि यूरोप और जापान के कुछ संभ्रांत अपने देशों में उत्पन्न हो रहे उन घरेलू संकटों को देख पा रहे हैं, जो अमेरिकी विदेश नीति के एजेंडे के कारण तेज़ हो रहे हैं, उनके भीतर अपने पैरों पर खड़े होने के लिए सांस्कृतिक और राजनीतिक आत्मविश्वास की बेहद कमी है।

2016 में, यूरोपीय संघ के उच्च प्रतिनिधि फ़ेडेरिका मोघेरिनी ने यूरोपीय संघ की वैश्विक रणनीति में संयुक्त राज्य अमेरिका से अलग यूरोप की ‘रणनीतिक स्वायत्तता’ की अवधारणा रखी। तीन साल बाद, फ़्रांस के इमैनुएल मैक्रॉन ने कहा कि नाटो ‘ब्रेन डेथ’ से पीड़ित है और ‘यूरोप के पास अपनी रक्षा करने की क्षमता है’। आज, यह स्पष्ट है कि इस दृढ़निश्चय – यूरोप की रणनीतिक स्वायत्तता और न ही ख़ुद की रक्षा करने की क्षमता – में कोई दम नहीं है। फ़्रांस में गॉलिज़्म के मामूली वापसी से यूरोपीय और जापानी नेताओं के भीतर इतना साहस नहीं आ जाता कि वे उस त्रिपक्षीय सौदेबाज़ी को तोड़ सकें जो अठत्तर साल पहले हुए थे। जब तक वह साहस नहीं आ जाता, तब तक यूरोप और जापान अपनी दासता की स्थितियों में उलझे रहेंगे, और ट्रायड जीवित रहेगा तथा फलता फूलता रहेगा।

स्नेह-सहित

विजय।