उजियारा लाने का एक जतन और: चौथा न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल सामाजिक शोध संस्थान: की ओर से अभिवादन।
दावोस स्विट्जरलैंड में हुई विश्व आर्थिक मंच (डब्ल्यूईएफ) की बैठक में अर्जेंटीना के नए राष्ट्रपति जेवियर माइली ने चेतावनी दी कि, ‘पश्चिम खतरे में है’। अपनी आकर्षक शैली में, माइली ने ‘सामूहिकता’ – यानी, सामाजिक कल्याण, कर और राज्य की नीतियों – को दुनिया की समस्याओं का ‘मूल कारण’ बताया जैसे इनसे ही बड़े पैमाने पर ग़रीबी और दुःख पैदा हुआ है। माइली ने घोषणा की कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता ‘मुक्त उद्यम, पूंजीवाद और आर्थिक स्वतंत्रता’ है। माइली का भाषण मिल्टन फ्रीडमैन और शिकागो बॉयज़ की रूढ़िवादिता की ओर वापसी को दर्शाता है, जिन्होंने गला काट सफलता का फ़लसफ़ा अपने नवउदारवादी एजेंडे के लिए आधार के रूप में इस्तेमाल किया था। 1970 के दशक के बाद से, इस विकृत नीति ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के संरचनात्मक समायोजन कार्यक्रमों के माध्यम से दक्षिणी गोलार्ध के अधिकांश हिस्से को तबाह कर दिया है, और पश्चिम में फैक्ट्री रेगिस्तान बना दिए हैं (जिसे डोनाल्ड ट्रम्प ने 2017 में अपने उद्घाटन भाषण में ‘अमेरिकी नरसंहार’ कहा था)। धुर दक्षिणपंथ का यही एजेंडा है: एक तरफ, अरबपति वर्ग को अपने हित साधने के लिए समाज पर बर्बरता करने (सामाजिक नरसंहार) की छूट देना और, दूसरी तरफ, उक्त नरसंहार के पीड़ितों को उनके लिए लाभकारी नीतियों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिए उकसाना।
माइली मोटे तौर पर सही हैं कि पश्चिम खतरे में है। लेकिन वह सामाजिक लोकतांत्रिक नीतियों के कारण नहीं बल्कि दुनिया में अपने धीरे-धीरे घटते प्रभुत्व को स्वीकार करने की असमर्थता के कारण खतरे में है।
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने ग्लोबल साउथ इनसाइट्स (जीएसआई) के साथ मिलकर बदलते वैश्विक परिदृश्य पर दो महत्वपूर्ण लेख तैयार किए हैं। इनमें एक ऐतिहासिक अध्ययन ‘हाइपर-इंपीरियलिज्म: ए डेंजरस, डिकैडेंट न्यू स्टेज’ और हमारा बहत्तरवां डोसियर ‘द चर्निंग ओफ़ द ग्लोबल ऑर्डर’ शामिल हैं। (यह डोसियर उक्त अध्ययन का एक ‘कार्यकारी सारांश’ है, इसलिए मैं इन दोनों लेखों को एक ही मान कर चलूँगा)। हमारा मानना है कि यह हमारे संस्थान द्वारा अपने आठ साल के इतिहास में दिया गया सबसे महत्वपूर्ण सैद्धांतिक बयान है।
उपरोक्त दोनों लेखों में हमने चार महत्वपूर्ण बिंदुओं को रेखांकित किया है:
1. उत्तरी गोलार्ध व दक्षिणी गोलार्ध द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली अवधारणाओं के गहन विश्लेषण के माध्यम से, हमने दिखाया है कि उत्तरी गोलार्ध एक गुट के रूप में काम करता है, जबकि दक्षिणी गोलार्ध एक ढीला समूह है। उत्तरी गोलार्ध का नेतृत्व संयुक्त राज्य अमेरिका करता है, जिसने गुट के अन्य सदस्य देशों (जिनमें से कई ऐतिहासिक औपनिवेशिक शक्तियां हैं) पर अपना अधिकार बढ़ाने के लिए कई उपकरण तैयार किए हैं। इन उपकरणों में निम्नलिखित संरचनाएं शामिल हैं: फ़ाइव आइज़ ख़ुफ़िया गठबंधन (जो अमेरिका और ब्रिटेन के बीच 1941 में स्थापित होने के बाद अब चौदह देशों गठबंधन है); 1949 में स्थापित उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो), और 1974 में स्थापित ग्रुप ऑफ़ सेवन (G7)। इनके व अन्य संरचनाओं के माध्यम से, संयुक्त राज्य अमेरिका और उत्तरी गोलार्ध स्थित उसके राजनीतिक सहयोगी अपने देशों एवं दक्षिणी गोलार्ध के देशों पर अपना रौब जमाते हैं। इन लेखों में शामिल विस्तृत विश्लेषण सार्वजनिक आँकड़ों और जीएसआई द्वारा निर्मित आँकड़ों पर निर्भर है। लब्बोलुआब यह है कि दुनिया एक ही विश्व व्यवस्था के अनुसार चल रही है और इस व्यवस्था को एक साम्राज्यवादी गुट खतरनाक तरीके से प्रबंधित कर रहा है। ऐसा नहीं है कि दुनिया में एक से ज़्यादा साम्राज्यवाद हों, या कोई अंतर-साम्राज्यवादी टकराव हो।
2. इसके विपरीत, दक्षिणी गोलार्ध के देश ऐतिहासिक रूप से क्षेत्रीय व राजनीतिक संबद्धता पर आधारित कुछ ढीले गठबंधनों और संबंधों के अलावा काफ़ी असंगठित रहे हैं। दक्षिणी गोलार्ध का न तो कोई राजनीतिक केंद्र है और न ही इसके पास कोई वैचारिक रूप से संचालित परियोजना है।
उत्तरी गोलार्ध के विभिन्न मंच (सैन्य, वित्तीय, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक आदि) विभिन्न अक्षों पर और (नाटो, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष, सूचना प्रणाली जैसे) उपकरणों के माध्यम से विश्व प्रणाली पर अपनी शक्ति का प्रयोग करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय वित्तीय प्रणाली, कच्चे माल, प्रौद्योगिकी और विज्ञान पर उत्तरी गोलार्ध के नियंत्रण में लगातार गिरावट के बावजूद, इस गुट ने मुख्य रूप से सैन्य बल और सूचना के प्रबंधन के माध्यम से अपना प्रभुत्व बरकरार रखा है। इन दोनों लेखों में, हमने सूचना के सवाल पर चर्चा नहीं की है, हालाँकि हम इसके बारे में पहले लिख चुके हैं और डिजिटल संप्रभुता पर आगे आने वाले एक अध्ययन में इस सवाल को फिर से उठाएंगे। इन लेखों को हमने मुख्य रूप से सैन्य खर्च के सवाल पर केंद्रित रखा है, और दिखाया है कि अमेरिका के नेतृत्व वाला गुट कुल विश्व सैन्य खर्च में से 74.3% खर्च करता है। अकेला अमेरिका प्रति व्यक्ति सैन्य खर्च के वैश्विक औसत से 12.6 गुना अधिक खर्च करता है (इस खर्च में इज़रायल दूसरे स्थान पर है और प्रति व्यक्ति सैन्य खर्च के विश्व औसत से 7.2 गुना अधिक खर्च करता है)। इसे ठीक से समझने के लिए, आप चीन का सैन्य व्यय देखें। चीन कुल विश्व सैन्य खर्च में से केवल 10% खर्च करता है तथा इसका प्रति व्यक्ति सैन्य खर्च संयुक्त राज्य अमेरिका से 22 गुना कम है। 1776 और 2019 के बीच, संयुक्त राज्य अमेरिका ने दुनिया भर में कम से कम 392 हस्तक्षेप किए, उनमें से आधे 1950 और 2019 के बीच किए। इन हस्तक्षेपों में 2003 में इराक के खिलाफ किया गया अवैध युद्ध भी शामिल है (इस साल की डबल्यूईएफ़ बैठक में, इराक के प्रधान मंत्री मोहम्मद शिया’ अल- सूडानी ने उत्तरी गोलार्ध के सैनिकों को इराक छोड़ने के लिए कहा)। संयुक्त राज्य अमेरिका के नेतृत्व में उत्तरी गोलार्ध द्वारा किया जाने वाला यह विशाल सैन्य खर्च उसकी विदेश नीति के सैन्यीकरण को दर्शाता है। इस सैन्यीकरण के कम चर्चित पहलुओं में से एक है संयुक्त राज्य अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम में ‘रक्षा कूटनीति’ सिद्धांत का विकास (जो कि यूके रक्षा मंत्रालय की 1998 की रणनीतिक रक्षा समीक्षा में दर्ज है)। संयुक्त राज्य अमेरिका में, रणनीतिक विचारक राष्ट्रीय शक्ति के स्रोतों के लिए संक्षिप्त नाम DIME का उपयोग करते हैं (D से डिप्लोमेसी यानी कूटनीति, I से इन्फ़र्मेशन यानी सूचना, M से मिलिटरी यानी सेना और E से इकनॉमिक यानी आर्थिक [बल])।
3. पिछले साल, उत्तरी गोलार्ध के दो केंद्रीय संस्थानों, यूरोपीय संघ और नाटो, ने संयुक्त रूप से ‘अपने एक अरब नागरिकों के लाभ हेतु हमारे सामान्य उद्देश्यों को आगे बढ़ाने के लिए हमारे पास उपलब्ध सभी राजनीतिक, आर्थिक या सैन्य उपकरणों को इस्तेमाल करने’ की प्रतिज्ञा ली थी। सटीक शब्दों में कहें तो, उनकी शक्ति का प्रयोग – जिसमें बड़ा हिस्सा सैन्य शक्ति और सैन्य कूटनीति का है – मानवता की सेवा के लिए नहीं बल्कि केवल उनके अपने ‘नागरिकों’ की सेवा करने के लिए किया जाएगा।
सेना पर इतना भारी खर्च बेवजह नहीं हो रहा। इसकी क़ीमत उत्तरी गोलार्ध में सामाजिक कल्याण पर होने वाले व्यय को चुकानी पड़ती है, और उत्तरी गोलार्ध की सैन्य शक्ति का उपयोग देशों को डराने-धमकाने के लिए, और – यदि वे अवज्ञा करें तो उन्हें – गोला-बारूद से दंडित करने के लिए किया जाता है। अकेले 2022 में, इन साम्राज्यवादी देशों ने दक्षिणी गोलार्ध के विभिन्न देशों में अपने सैन्य बलों को 317 जगह तैनात किया था। इनमें से सबसे ज़्यादा (31 जगह) तैनाती माली में की गई। माली वो देश है जो दृढ़ता से अपनी संप्रभुता की मांग कर रहा है, और जो (2020 और 2021 में) जन-समर्थित तख्तापलट करने में सफल रहा, और पहला ऐसा साहेल देश बना जिसने (2022 में) फ्रांसीसी सेना को अपने क्षेत्र से बाहर निकाला है।
हमारे हाइपर-इम्पीरीयलिज़म अध्ययन के भाग IV ‘द वेस्ट इन डिक्लाइन’ में हमने पश्चिम के पतन को तथ्यात्मक परिप्रेक्ष्य में रखा है जो कि माइली की ‘पश्चिम खतरे में है’ जैसी आतंक फैलाने वाली बात को खारिज करता है। तथ्य दिखाते हैं कि तीसरी महामंदी की शुरुआत के बाद से, उत्तरी गोलार्ध विश्व अर्थव्यवस्था पर अपना नियंत्रण बनाए रखने की कोशिश कर रहा है; क्योंकि प्रौद्योगिकी एवं कच्चे माल पर उसका एकाधिकार, और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश पर प्रभुत्व जैसे उसके उपकरण मौलिक रूप से नष्ट हो चुके हैं। 2004 में चीन ने वैश्विक औद्योगिक उत्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका को पछाड़ दिया था, तब से संयुक्त राज्य अमेरिका उत्पादन में अपना आधिपत्य खो चुका है (2022 में, उतपादन में चीन की हिस्सेदारी 25.7% थी और अमेरिका की केवल 9.7%)। संयुक्त राज्य अमेरिका अब बड़े पैमाने पर शुद्ध पूंजी आयात पर निर्भर है, जो कि 2022 में एक लाख करोड़ डॉलर तक पहुंच गया था; इसलिए अमेरिका के पास अब उत्तरी गोलार्ध और दक्षिणी गोलार्ध में अपने सहयोगियों को आर्थिक लाभ प्रदान करने की आंतरिक क्षमता बहुत कम बची है। संयुक्त राज्य अमेरिका में पूंजी के मालिकों ने अपने मुनाफ़े के लिए देश का खजाना लूट कर देश में सामाजिक नरसंहार की आर्थिक स्थिति पैदा कर दी है। अमेरिका में दो पार्टी व्यवस्था पर आधारित पुराने राजनीतिक गठबंधन लगातार बदल रहे हैं, और वैधता व सहमति के ज़रिए विश्व अर्थव्यवस्था पर प्रभुत्व स्थापित कर सकने वाली राजनीतिक परियोजना विकसित करने की अभी अमेरिकी राजनीतिक प्रणाली में कोई संभावना नहीं है। यही कारण है कि अमेरिका के नेतृत्व वाला उत्तरी गोलार्ध डराने और धमकाने का सहारा लेता है, और अपने सार्वजनिक ऋण को बढ़ाकर अपने विशाल सैन्य तंत्र का निर्माण कर रहा है (क्योंकि देश में बुनियादी ढांचे और उत्पादन शक्ति के निर्माण के लिए इस ऋण का उपयोग करने के लिए बहुत कम सहमति है)।
4. संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा चीन पर थोपे गए नए शीत युद्ध की जड़ यही है कि चीन ने शुद्ध स्थिर पूंजी निर्माण में संयुक्त राज्य अमेरिका को पीछे छोड़ दिया है, जबकि अमेरिका इसमें लगातार नीचे जा रहा है। 1992 से हर साल, चीन पूंजी का शुद्ध निर्यातक रहा है, पूंजी निर्माण के इस अधिशेष ने (दस साल से जारी) बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव जैसी अंतरराष्ट्रीय परियोजनाओं को वित्तपोषित करना संभव बनाया है।
हमने दक्षिणी गोलार्ध में उभर रहे नए संगठनों, जैसे शंघाई सहयोग संगठन (2001), ब्रिक्स10 (2009), और संयुक्त राष्ट्र चार्टर की रक्षा हेतु दोस्तों का समूह (2021), का विश्लेषण किया है। ये अंतर्क्षेत्रीय मंच अभी भ्रूण अवस्था में हैं, पर फिर भी ये नए क्षेत्रवाद और बहुपक्षवाद के विकास का प्रमाण हैं। हालाँकि ये संरचनाएं उत्तरी गोलार्ध के गुट का मुकाबला करने के लिए एक गुट के रूप में काम करने की कोशिश नहीं कर रहीं, लेकिन ये दक्षिणी गोलार्ध के नए माहौल को दर्शाती हैं। यह नया माहौल न तो साम्राज्यवाद-विरोधी है और न ही पूंजीवाद-विरोधी है। यह नया माहौल निम्नलिखित चार मुख्य कारकों से प्रभावित हो रहा है:
- दक्षिणी गोलार्ध-आधारित मंचों के निर्माण पर केंद्रित बहुपक्षवाद और क्षेत्रवाद।
- क्षेत्रीय और महाद्वीपीय अर्थव्यवस्थाओं के निर्माण पर केंद्रित नया आधुनिकीकरण, जहां व्यापार और भंडारण के लिए डॉलर के बजाय स्थानीय मुद्राओं का उपयोग हो।
- संप्रभुता, जिससे पश्चिमी हस्तक्षेप में बाधा उत्पन्न होगी। इन हस्तक्षेपों में सैन्य हस्तक्षेप एवं डिजिटल उपनिवेशवाद शामिल हैं, जिनसे अमेरिकी खुफिया हस्तक्षेप को फ़ायदा मिलता है।
- पश्चिम के सदियों पुराने ऋण जाल और अतिरिक्त कार्बन बजट के दुरुपयोग के साथ-साथ उपनिवेशवाद की लंबी विरासत की भरपाई के लिए सामूहिक सौदेबाजी के ज़रिए, पश्चिम पर क्षतिपूर्ति के लिए दबाव बनाना।
इन लेखों में किया गया विश्लेषण सतह से नीचे जाकर, वर्तमान संकटों का ऐतिहासिक भौतिकवादी मूल्यांकन प्रदान करता है। उत्तरी गोलार्ध के संस्थानों द्वारा तैयार किए गए दस्तावेज़, जैसे कि 2024 के लिए डब्ल्यूईएफ की वैश्विक जोखिम रिपोर्ट, हमारे सामने खड़े खतरों (जलवायु आपदा, सामाजिक ध्रुवीकरण, आर्थिक मंदी) की सूची प्रदान करते हैं, लेकिन इन ख़तरों एवं संकटों को ठीक से समझा नहीं सकते। हमारा विश्लेषण इन खतरों को अति-साम्राज्यवादी गुट द्वारा प्रबंधित विश्व व्यवस्था के परिणाम के रूप में समझने के लिए एक सिद्धांत प्रदान करता है।
इन लेखों के बारे में सोचते हुए, मुझे इराकी कवि बुलंद अल-हैदरी (1926-1996) की कविताएँ याद आ गईं। जब सब कुछ व्यर्थ लगने लगा, तो अल-हैदरी ने लिखा कि ‘सूरज नहीं उगेगा’ और ‘घर के निचले हिस्से में, मेरे मर चुके बच्चों के, खामोश कर दिए गए, कदमों के निशान हैं’। लेकिन उन्होंने लिखा, हम ‘शक्तिविहीन थे’ पर आशा बनी रही। सभ्यता तबाह हो रही है, और अल-हैदरी ने लिखा कि ‘तुम चप्पू लेकर आ गए’। ‘हमारे कल का इतिहास ऐसा ही है, और इसका स्वाद कड़वाहट है’, उन्होंने निष्कर्ष दिया कि ‘ऐसी धीमी चाल होता है, हमारी गरिमा का जुलूस: हमारा एकमात्र सहारा जब तक कि हम, अंतत:, एक स्वतंत्र चप्पू की तरह उठ नहीं जाते’।
यही प्रत्याशा ईरानी कवि फ़ोरो फ़ारोख़ज़ाद (1934-1967) की क्लासिक कृति ‘समवन हू इज़ नॉट लाइक एनीवन’ (1966) में झलकती है:
मैंने सपना देखा था कि कोई आ रहा है। मैंने एक लाल तारे का सपना देखा था, और मेरी आँखों की पलकें फड़कती रहती हैं और मेरे जूते बार-बार ध्यान खींचने की कोशिश करते हैं और अगर मैं झूठ बोल रहा हूँ तो मैं अंधा हो जाऊँ? मैंने उस लाल तारे का सपना देखा तब जब मैं सोया नहीं था। कोई आ रहा है, कोई आ रहा है कोई बेहतर आ रहा है।
स्नेह सहित,
विजय।