प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
19 जनवरी 2022 को अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने वाशिंगटन डीसी में स्थित व्हाइट हाउस के ईस्ट रूम में एक प्रेस कॉन्फ़्रेंस की। इस प्रेस कॉन्फ़्रेंस में (दो डेमोक्रेट्स सांसदों के दलबदल के परिणामस्वरूप) 1.75 ट्रिलियन डॉलर निवेश बिल को पारित करने में बाइडेन की विफलता से लेकर संयुक्त राज्य अमेरिका और रूस के बीच बढ़ते तनाव के बारे में चर्चा हुई। हाल ही में एनबीसी द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण के अनुसार, संयुक्त राज्य अमेरिका में 54% वयस्क अपने राष्ट्रपति को नापसंद करते हैं और 71% लोगों को लगता है कि उनका देश ग़लत दिशा में जा रहा है।
ट्रम्प के राष्ट्रपति शासन काल के दौरान बढ़े राजनीतिक और सांस्कृतिक विभाजन का भारी असर सरकार की कोविड-19 महामारी को नियंत्रित करने की क्षमता पर और अमेरिका के समाज पर अब भी पड़ रहा है। संक्रमण से बचने के लिए ज़रूरी बुनियादी प्रोटोकॉल को भी पूरी तरह से अपनाया नहीं जा रहा है। संयुक्त राज्य अमेरिका में जिस गति से वाइरस का संक्रमण फैला, कोविड-19 से संबंधित ग़लत सूचना भी उतनी ही तेज़ी से फैली। वहाँ बड़ी संख्या में लोग सनसनीख़ेज दावों -जैसे कि गर्भवती महिलाओं को वैक्सीन नहीं लेना चाहिए, वैक्सीन बाँझपन को बढ़ावा देती है, सरकार टीकों से होने वाली मौतों के आँकड़ों को छिपा रही है- पर विश्वास करते हैं।
प्रेस कॉन्फ़्रेंस में बाइडेन ने मोनरो सिद्धांत (1823) -जो अमेरिकी गोलार्ध को संयुक्त राज्य अमेरिका के ‘पिछवाड़े (बैकयार्ड)’ की तरह मानता है- के बारे में एक मुखर टिप्पणी की। बाइडेन ने कहा कि ‘वो अमेरिका का पिछेवाड़ा नहीं है। मैक्सिकन सीमा के दक्षिण में जो कुछ है वो अमेरिका का द्वार (फ़्रंटयार्ड) है’। संयुक्त राज्य अमेरिका केप हॉर्न से लेकर रियो ग्रांडे तक के पूरे गोलार्ध को एक संप्रभु क्षेत्र के रूप में नहीं, बल्कि, किसी-न-किसी रूप से, अपने ‘अहाते’ के रूप में मानता रहता है। इसका कोई मतलब नहीं कि बाइडेन ने इसके बाद कहा कि, ‘हम समान लोग हैं,’ क्योंकि उन्होंने जिस रूपक -अहाता- का इस्तेमाल किया वो संयुक्त राज्य अमेरिका के लैटिन अमेरिका और बाक़ी दुनिया के प्रति मालिकाना रवैये की ओर संकेत करता है। क्यूबा और वेनेज़ुएला में उपकेंद्रों के साथ लैटिन अमेरिका और यूरेशिया में फैले संकट का कारण यही मालिकाना रवैया ही है।
संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगियों द्वारा ईरान और रूस पर थोपे गए संकट को कम करने के लिए जिनेवा और वियना में बातचीत चल रही है। ईरान के परमाणु कार्यक्रम से संबंधित जॉइंट कॉम्प्रीहेन्सिव प्लान ऑफ़ ऐक्शन (जेसीपीओए) को फिर से शुरू करने और पूर्वी यूरोप पर हावी होने के अमेरिकी प्रयासों का अब तक कोई नतीजा नहीं निकला है। बातचीत जारी है, लेकिन क्योंकि अमेरिका की सरकार दुनिया का वर्णन अपने वर्चस्व पर आधारित दुनिया के अनुसार करती है और उभरती बहुध्रुवीय व्यवस्था को अस्वीकार करती है, इसलिए इस प्रकार की वार्ताएँ बाधित होती रहती हैं।
27 दिसंबर 2021 को वियना में शुरू हुए जेसीपीओए वार्ता के आठवें दौर के शुरुआती रुझानों से लगता है कि बात आगे बढ़ने की उम्मीद कम है। संयुक्त राज्य अमेरिका इस तरह से वहाँ पहुँचा जैसे कि ईरान भरोसा करने लायक़ न हो, जबकि वास्तव में (2017 में ईरान को समझौता पत्र का पालन करने के लिए दो बार प्रमाणित करने के बाद) वो संयुक्त राज्य अमेरिका था जो कि 2018 में जेसीपीओए से बाहर हो गया था। इस रवैये के साथ-साथ बाइडेन प्रशासन यह भी चाहता था कि प्रक्रिया तात्कालिक रूप से आगे बढ़े।
अमेरिका चाहता है कि ईरान और रियायतें दें, इस तथ्य के बावजूद कि शुरुआती सौदे पर बीस महीनों से अधिक समय तक बातचीत हुई थी और इस तथ्य के बावजूद कि कोई भी अन्य पक्ष संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके बाहरी साथी, इज़राइल को संतुष्ट करने के लिए समझौते को फिर से खोलने के लिए तैयार नहीं है। रूसी वार्ताकार मिखाइल उल्यानोव ने कहा कि ईरान और रूस के बीच बढ़ती नज़दीकियों को इंगित करने के लिए ‘कृत्रिम समय सीमा’ की कोई आवश्यकता नहीं है। खाड़ी के अरब देशों, तुर्की और पश्चिम द्वारा सीरियाई सरकार को उखाड़ फेंकने के असफल प्रयास, ख़ासकर 2015 से सीरिया में रूसी सैन्य हस्तक्षेप के बाद से किए गए प्रयासों के प्रति ईरान और रूस के साझा विरोध से दोनों देशों के बीच संबंध मज़बूत हुए हैं।
ईरान के प्रति अमेरिका के शत्रुतापूर्ण रवैये से भी ज़्यादा ख़तरनाक है रूस और यूक्रेन के प्रति उसकी नीति, जिसके किए सैनिकों की टोलियाँ तैयार हैं और युद्ध की बयानबाज़ी लगातार तेज़ हो रही है। इस तनाव का केंद्र है उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) का रूसी सीमा की ओर विस्तार, जो कि संयुक्त राज्य अमेरिका और सोवियत संघ के बीच हुए समझौते, कि नाटो जर्मनी की पूर्वी सीमा से आगे नहीं जाएगा, का उल्लंघन करता है। यूक्रेन इस तनाव का मुख्य केंद्र है, हालाँकि यहाँ पर भी बहस स्पष्ट नहीं है। जर्मनी और फ़्रांस ने कहा है कि वे नाटो में यूक्रेन को शामिल करने का स्वागत नहीं करेंगे, और चूँकि नाटो में सदस्यता के लिए सार्वभौमिक सहमति की आवश्यकता होती है, इसलिए वर्तमान में यूक्रेन का नाटो में शामिल होना असंभव है। असहमति का असल कारण यह है कि ये विभिन्न दल यूक्रेन की स्थिति को कैसे समझते हैं।
रूस का तर्क है कि 2014 का तख़्तापलट करवाने और दक्षिणपंथी राष्ट्रवादियों -और फ़ासीवादी तत्वों- को सत्ता में लाने के लिए अमेरिका ज़िम्मेदार है, और ये सभी कुछ नाटो हथियार प्रणालियों के द्वारा और यूक्रेन में नाटो सदस्य सेनाओं की मौजूदगी से रूस को धमकाने के लिए पश्चिम की किसी चाल का हिस्सा है। लेकिन पश्चिम का तर्क है कि रूस पूर्वी यूक्रेन पर क़ब्ज़ा करना चाहता है। रूस ने नाटो से एक लिखित गारंटी देने के लिए कहा है, कि यूक्रेन को बातचीत आगे बढ़ाने के लिए सैन्य गठबंधन में शामिल होने की शर्त मानने की अनुमति नहीं दी जाएगी; नाटो ने इसे टाल दिया है।
जब जर्मनी के नौसेना प्रमुख और वाइस एडमिरल के-अचिम शॉनबैक ने दिल्ली में कहा कि रूस के व्लादिमीर पुतिन को पश्चिमी नेताओं से ‘सम्मान’ मिलना चाहिए, तो उन्हें इस्तीफ़ा देना पड़ा। इस बात से कोई फ़र्क़ नहीं पड़ा कि शॉनबैक की टिप्पणी इस धारणा पर आधारित थी कि पश्चिम को चीन का मुक़ाबला करने के लिए रूस की ज़रूरत है। रूस का अनादर और उसे अधीन बनाना ही स्वीकार्य है। जिनेवा वार्ता में भी यही पश्चिमी दृष्टिकोण काम कर रहा है; ये वार्ता जारी रहेगी लेकिन तब तक इसका कोई फ़ायदा नहीं होगा जब तक कि संयुक्त राज्य अमेरिका और उसके सहयोगी यह मानते रहेंगे कि अन्य शक्तियों को अपनी संप्रभुता अमेरिकी वर्चस्व वाली विश्व व्यवस्था के आगे आत्मसमर्पित कर देनी चाहिए।
इतिहास जिस दिशा में जा रहा है, उससे पता चलता है कि अमेरिकी-प्रभुत्व वाली विश्व व्यवस्था के दिन समाप्त होने वाले हैं। इसलिए हमने अपने डोज़ियर संख्या 36 (जनवरी 2021) को ‘साँझ: संयुक्त राज्य अमेरिका के प्रभुत्व का क्षरण और बहुध्रुवीय भविष्य’ नाम दिया था। दुनिया भर के 26 शोध संस्थानों के द्वारा मिलकर तैयार किए गए ‘हम भविष्य का निर्माण करेंगे: ग्रह को बचाने की योजना (जनवरी 2022)’ में, हमने एक पुनर्गठित, अधिक लोकतांत्रिक दुनिया के लिए निम्नलिखित दस बिंदु सामने रखे थे :
1. संयुक्त राष्ट्र चार्टर (1945) के महत्व की पुष्टि करें।
2. ज़ोर दें कि संयुक्त राष्ट्र के सदस्य देश प्रतिबंधों और बल के उपयोग की विशिष्ट आवश्यकताओं (अध्याय VI और VII) सहित इस चार्टर का पालन करें।
3. बहुपक्षीय प्रणाली के एक बड़े हिस्से को प्रभावित करने वाले निर्णयों में संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की एकाधिकार शक्ति पर पुनर्विचार करें; संयुक्त राष्ट्र महासभा को वैश्विक व्यवस्था के अंदर लोकतंत्र पर गंभीर संवाद में शामिल करें।
4. इस बात पर ज़ोर दें कि बहुपक्षीय निकाय -जैसे कि विश्व व्यापार संगठन (डब्ल्यूटीओ)- संयुक्त राष्ट्र चार्टर और मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा (1948) के अनुसार नीतियाँ बनाएँ; ग़रीबी, भुखमरी, आवासहीनता, और अशिक्षा बढ़ाने वाली नीतियों को रद्द करें।
5. सुरक्षा, व्यापार नीति, और वित्तीय विनियमन के प्रमुख क्षेत्रों में बहुपक्षीय प्रणाली की केंद्रीयता की पुष्टि करें, ताकि नाटो जैसे क्षेत्रीय निकाय और आर्थिक सहयोग और विकास के संगठन (ओईसीडी) जैसे संकीर्ण संस्थान संयुक्त राष्ट्र और उसकी एजेंसियों (जैसे व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन) के अनुसार अपनी नीतियों का निर्माण करें।
6. क्षेत्रीय तंत्र और विकासशील देशों के एकीकरण को मज़बूत करने वाली नीतियाँ बनाएँ।
7. दुनिया की सामाजिक चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुरक्षा के मुद्दों -विशेष रूप से, आतंकवाद का मुक़ाबला और नार्कोटिक्स का मुक़ाबला- का उपयोग रोकें।
8. हथियारों और सैन्यवाद पर ख़र्च की ऊपरी सीमा तय करें; सुनिश्चित करें कि बाह्य अंतरिक्ष को विसैन्यीकृत किया जाए।
9. हथियारों के उत्पादन पर ख़र्च किए जाने वाले संसाधनों को सामाजिक रूप से लाभकारी उत्पादन में ख़र्च करें।
10. सुनिश्चित करें कि सभी अधिकार किसी राज्य के नागरिकों के बजाए सभी लोगों के लिए उपलब्ध हों; ये अधिकार अब तक के सभी हाशिए के समुदायों, जैसे महिलाओं, आदिवासियों, अश्वेत लोगों, प्रवासियों, बिना दस्तावेज़ वाले लोगों, विकलांगों, LGBTQ+ लोगों, उत्पीड़ित जातियों के लोगों, और ग़रीबों पर लागू होने चाहिए।
इन दस बिंदुओं का पालन करने से ईरान और यूक्रेन में मौजूद संकटों के समाधान में मदद मिलेगी।
इस दिशा में आगे बढ़ने में विफलता, दुनिया के प्रति वाशिंगटन के अहंकारी रवैये का परिणाम है। बाइडेन के प्रेस कॉन्फ़्रेंस के दौरान, उन्होंने परमाणु युद्ध के ख़तरों पर पुतिन को व्याख्यान देते हुए कहा कि पुतिन ‘दुनिया पर वर्चस्व बनाने के लिए बहुत अच्छी स्थिति में नहीं हैं’। उनका मतलब था कि केवल संयुक्त राज्य अमेरिका ही ऐसा करने के लिए अच्छी स्थिति में है। फिर, बाइडेन ने कहा, ‘आपका चिंतित होना जायज़ है यदि आप पर, आप जानते हैं, एक परमाणु शक्ति आक्रमण करने वाली हो… यदि वो आक्रमण करते हैं — [जो कि] द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से नहीं हुआ है’। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से किसी परमाणु शक्ति ने किसी देश पर आक्रमण नहीं किया है? संयुक्त राज्य अमेरिका एक परमाणु शक्ति है और उसने वियतनाम से लेकर ग्रेनाडा, पनामा, अफ़ग़ानिस्तान और इराक़ जैसे दुनिया भर के देशों पर लगातार आक्रमण किया है। बाइडेन ने भी इस अवैध युद्ध के हक़ में मतदान किया था। दुनिया और संयुक्त राष्ट्र चार्टर के प्रति इसी अहंकारी दृष्टिकोण के कारण ही हमारी दुनिया संकट में है।
बाइडेन की बात सुनकर मुझे मारियो बेनेडेटी की 1985 की कविता, एल सुर टैम्बियन एक्ज़िस्टे (‘एक दक्षिण भी मौजूद है’) की याद आ गई। यह कविता ह्यूगो शावेज़ की पसंदीदा कविता थी। इसके दो अंश पढ़ें:
स्टील
विशाल चिमनियों
अवैध वनस्पतियों
सायरन गीत
नीयोन आसमान
क्रिसमस की बिक्री
परमेश्वर पिता के विभिन्न पंथों
और सेना के सम्मान चिह्नों की पूजा में मग्न
साम्राज्य की चाबियाँ लिए हुए
उत्तर ही है जो राज करता है
…
लेकिन यहाँ तले के भी नीचे
जड़ों के क़रीब
वह जगह है जहाँ स्मृति
कुछ नहीं भूलती
और लोग हैं जो अपनी पूरी कोशिश करते हुए
जी रहे हैं और मर जाते हैं
और इस जीने मरने के बीच वे हासिल करते हैं
वो जिसे असंभव माना जाता रहा
पूरी दुनिया को बताना
कि इसमें एक दक्षिण भी मौजूद है।
स्नेह-सहित,
विजय।