प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
यूक्रेन के ख़िलाफ़ रूस का युद्ध शुरू हुए एक महीना से ज़्यादा समय हो गया है। 16 मार्च 2022 को, कज़ाकिस्तान के राष्ट्रपति कसीम-जोमार्ट टोकायेव ने अपने लोगों को चेतावनी देते हुए कहा कि ‘विश्व बाज़ारों में अनिश्चितता और अशांति बढ़ रही है, और उत्पादन तथा व्यापार शृंखला ढह रही है’। इसके एक हफ़्ते बाद, व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (यूएनसीटीएडी) ने इस युद्ध के कारण दुनिया भर पर पड़ने वाले असर पर एक संक्षिप्त अध्ययन जारी किया। अध्ययन के अनुसार, ‘खाद्य और ईंधन की बढ़ती क़ीमतों का विकासशील देशों में सबसे कमज़ोर तबक़ों के लोगों पर तत्काल प्रभाव पड़ेगा, जिसके परिणामस्वरूप अपनी आय का सबसे बड़ा हिस्सा भोजन पर ख़र्च करने वाले परिवारों में भुखमरी और कठिनाइयाँ बढ़ जाएँगी’। कज़ाकिस्तान के दक्षिण में स्थित, किर्गिज़ गणराज्य के सबसे ग़रीब परिवारों में मौजूदा मूल्य वृद्धि से पहले ही उनकी आय का 65% भोजन पर ख़र्च होता था; और अब खाद्य मुद्रास्फ़ीति में 10% की वृद्धि का प्रभाव किर्गिज़ लोगों के लिए विनाशकारी साबित होगा।
1991 में सोवियत संघ के पतन के बाद, दक्षिणी गोलार्ध के देशों पर अपनी खाद्य सुरक्षा और खाद्य संप्रभुता परियोजनाओं को भंग करने और अपने उत्पादन और भोजन की खपत को वैश्विक बाज़ारों के साथ एकीकृत करने का भारी दबाव डाला गया। अपने हालिया संबोधन में, राष्ट्रपति टोकायेव ने घोषणा की कि अब से कज़ाक सरकार ‘कृषि उपकरण, उर्वरक, ईंधन और बीजों के भंडारण का प्रबंध’ करेगी।
हालाँकि विश्व भर के अनाज उत्पादन का 22% ही अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं को पार करता है, लेकिन बड़ी अनाज उत्पादक कम्पनियाँ अनाज उत्पादन के इनपुट और अनाज की क़ीमतों (आउट्पुट) दोनों को नियंत्रित करती हैं। केवल चार निगम -बेयर, कोर्टेवा, केम चाइना और लिमाग्रेन- दुनिया भर के आधे से अधिक बीज उत्पादन को नियंत्रित करते हैं, और चार अन्य निगम -आर्चर-डेनियल्स-मिडलैंड, बंज, कारगिल और लुई ड्रेफ़स- प्रभावी रूप से वैश्विक खाद्य क़ीमतें निर्धारित करते हैं।
दुनिया में बहुत कम देश ऐसी खाद्य प्रणाली विकसित करने में सक्षम हुए हैं जो बाज़ार के उदारीकरण की उथल-पुथल से मुक्त हो (इसपर अधिक जानकारी के लिए हमारा रेड अलर्ट नं. 12 पढ़ें)। सूखे के दौरान खाद्य निर्यात पर प्रतिबंध लगाने या किसानों की आजीविका की रक्षा के लिए आयात शुल्क बढ़ाने जैसे साधारण नीतियों के लिए अब देशों को विश्व बैंक और अन्य बहुपक्षीय एजेंसियों द्वारा दंडित किया जाता है। राष्ट्रपति टोकायेव का बयान ग़रीब देशों में खाद्य बाज़ारों के उदारीकरण पर पुनर्विचार करने की इच्छा को दर्शाता है।
जुलाई 2020 में, ‘चीन के ख़िलाफ़ एक नया शीत युद्ध मानवता के हितों के ख़िलाफ़ है’ शीर्षक के साथ जारी किया गया बयान व्यापक रूप से पढ़ा गया और उसे व्यापक समर्थन मिला। नो कोल्ड वॉर (शीत युद्ध नहीं) अभियान, जिसने उस बयान को तैयार किया था, के अंतर्गत पिछले दो सालों से अफ़्रीका, एशिया, लैटिन अमेरिका और यूरोप में चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका द्वारा लगाए गए दबाव कार्यक्रम के प्रभाव, और उसके परिणामस्वरूप पश्चिम में बढ़ रहे नस्लवाद पर चर्चाएँ बढ़ाने के लिए कई महत्वपूर्ण वेबिनार आयोजित किए गए हैं। नो कोल्ड वॉर अभियान के एक विश्लेषण के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा अपनाए जा रहे इन हथकंडों का उद्देश्य है अन्य देशों को चीन, और रूस के साथ व्यावसायिक रूप से जुड़ने से हतोत्साहित करना। चीनी फ़र्मों की तुलना में अमेरिकी कंपनियाँ ख़ुद को पीछे खड़ी पा रही हैं, और यूरोप के लिए रूस से ऊर्जा निर्यात करना अमेरिका से किए जाने वाले निर्यात की तुलना में काफ़ी सस्ता है। अमेरिका ने इस आर्थिक प्रतिस्पर्धा का जवाब व्यावसायिक आधार पर नहीं दिया, बल्कि इसे उसने अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और विश्व शांति के लिए ख़तरा मान लिया। दुनिया को इस तरह से विभाजित करने के बजाय, नो कोल्ड वॉर अभियान का आह्वान है कि संयुक्त राज्य अमेरिका, चीन और रूस आपस में ‘मानवता को एकजुट करने वाले सामान्य मुद्दों’ पर ‘आपसी बातचीत’ के आधार पर संबंध बनाएँ।
यूक्रेन के ख़िलाफ़ चल रहे इस युद्ध के दौरान, नो कोल्ड वॉर अभियान ने ‘ब्रीफ़िंग्स’ के नाम से एक नया प्रकाशन शुरू किया है; जिसमें दुनिया भर के अहम मुद्दों से जुड़े तथ्य दिए जाएँगे। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान के न्यूज़लेटर्स में इन आवधिक ब्रीफ़िंग्स को साझा किया जाएगा (जिन्हें आप यहाँ पर भी पढ़ सकते हैं)। पहले अंक में, नो कोल्ड वॉर अभियान ने ‘वैश्विक भुखमरी और यूक्रेन में युद्ध’ शीर्षक के साथ निम्नलिखित ब्रीफ़िंग जारी की है।
यूक्रेन में चल रहे युद्ध और रूस के ख़िलाफ़ संयुक्त राज्य अमेरिका व पश्चिमी देशों द्वारा लगाए गए प्रतिबंधों ने, दुनिया में खाद्य, उर्वरक और ईंधन की क़ीमतों को आसमान तक पहुँचा दिया है तथा विश्व खाद्य आपूर्ति को ख़तरे में डाल दिया है। यह टकराव वैश्विक भुखमरी के मौजूदा संकट को बढ़ा रहा है और अरबों लोगों -विशेष रूप से दक्षिणी गोलार्ध में लोगों- के जीवन स्तर और कल्याण को ख़तरे में डाल रहा है ।
‘दुनिया के रोटी की टोकरी’ में चल रहा युद्ध
रूस और यूक्रेन मिलकर दुनिया भर में उत्पादित होने वाली गेहूँ का लगभग 30 प्रतिशत और कुल कैलोरी का लगभग 12 प्रतिशत उत्पादन करते हैं। पिछले पाँच सालों से, ये दोनों देश दुनिया के मक्के का 17 प्रतिशत, जौ (पशु आहार के एक महत्वपूर्ण स्रोत) का 32 प्रतिशत, और सूरजमुखी तेल (कई देशों में खाना पकाने के लिए महत्वपूर्ण रूप से इस्तेमाल किया जाने वाला तेल) का 75 प्रतिशत उत्पादित कर रहे हैं। इन सबके साथ-साथ, रूस उर्वरकों (फ़र्टिलायज़र) और प्राकृतिक गैस (उर्वरक उत्पादन के एक प्रमुख घटक) का दुनिया में सबसे बड़ा निर्यातक है; नाइट्रोजन उर्वरकों का 15 प्रतिशत, पोटाश उर्वरकों का 17 प्रतिशत, प्राकृतिक गैस का 20 प्रतिशत वैश्विक व्यापार रूस से होता है।
मौजूदा संकट से वैश्विक खाद्य आपूर्ति में कमी आने का ख़तरा है। संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि यूक्रेन की लगभग 30 प्रतिशत कृषि भूमि युद्धक्षेत्र बन सकती है; इसके अलावा, रूस के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंधों ने रूस को खाद्य पदार्थ, उर्वरक और ईंधन का निर्यात करने में गंभीर रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया है। इससे वैश्विक क़ीमतों में उछाल आया है। युद्ध शुरू होने के बाद से, गेहूँ की क़ीमतों में 21 प्रतिशत, जौ में 33 प्रतिशत और कुछ उर्वरकों की क़ीमतों में 40 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।
दक्षिणी गोलार्ध के देश ‘पिस रहे हैं’
इस झटके का दर्दनाक असर दुनिया भर के लोग महसूस कर रहे हैं, लेकिन इसका सबसे ज़्यादा असर दक्षिणी गोलार्ध के देशों में पड़ा है। संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने हाल ही में टिप्पणी की कि ‘एक शब्द में कहें तो, विकासशील देश पिस रहे हैं’।
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार, 45 अफ़्रीकी और ‘सबसे कम विकसित’ देश रूस या यूक्रेन दोनों में से किसी से अपनी कुल गेहूँ उपभोग का कम से कम एक तिहाई आयात करते हैं -इनमें से 18 देश कम से कम 50 प्रतिशत आयात करते हैं। दुनिया का सबसे बड़ा गेहूँ आयातक देश, मिस्र, रूस और यूक्रेन से अपने आयात का 70 प्रतिशत से अधिक प्राप्त करता है, जबकि तुर्की 80 प्रतिशत से अधिक प्राप्त करता है।
दक्षिणी गोलार्ध के देशों में अभी से ही क़ीमतों के बड़े झटके और आपूर्ति की कमी सामने आने लगी है, जिससे खपत और उत्पादन दोनों प्रभावित हो रहे हैं। केन्या में, कुछ क्षेत्रों में ब्रेड की क़ीमतों में 40 प्रतिशत और लेबनान में 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। और इस बीच, दुनिया में सोयाबीन का सबसे बड़ा उत्पादक, ब्राज़ील, फ़सल की पैदावार में बड़ी कमी का सामना कर रहा है। ब्राज़ील अपने पोटाश उर्वरक में से लगभग आधा हिस्सा रूस और पड़ोसी बेलारूस से ख़रीदता है (और बेलारूस पर भी प्रतिबंध लगाए जा रहे हैं), और इसके पास केवल तीन महीने की सप्लाई बची है तथा किसानों को कम उर्वरक ख़र्च करने का निर्देश दिया जा रहा है।
‘संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरी दुनिया में प्रतिबंध लगा रखा है’
अमेरिका और रूस के ख़िलाफ़ पश्चिमी प्रतिबंधों से स्थिति सीधे तौर पर ख़राब हो रही है। हालाँकि प्रतिबंधों को यह कहकर उचित ठहराया गया है कि इनसे रूसी सरकार के नेताओं और अभिजात वर्ग को निशाना बनाया गया है, जबकि इस तरह के उपायों से सभी लोगों, विशेष रूप से कमज़ोर समूहों को सबसे अधिक नुक़सान होता है और इसका वैश्विक प्रभाव पड़ता है।
एक अफ़गान आयात कंपनी के निदेशक नूरुद्दीन ज़कर अहमदी ने संयुक्त राज्य अमेरिका की इस कार्रवाई के प्रभाव का आकलन करते हुए कहा: ‘संयुक्त राज्य अमेरिका सोचता है कि उसने केवल रूस और उसके बैंकों पर ही प्रतिबंध लगाया है। लेकिन संयुक्त राज्य अमेरिका ने पूरी दुनिया पर प्रतिबंध लगा दिया है।’
‘आपदा के ऊपर एक और आपदा’
यूक्रेन में चल रहा युद्ध और इसके कारण लगाए गए प्रतिबंध वैश्विक भुखमरी के पहले से मौजूद संकट को और बढ़ा रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र के खाद्य और कृषि संगठन ने पाया था कि ‘दुनिया में लगभग तीन में से एक व्यक्ति (2.37 अरब लोगों) के पास 2020 में पर्याप्त भोजन नहीं था’। पिछले दो सालों में, बड़े पैमाने पर कोविड-19 महामारी, जलवायु परिवर्तन, और संबंधित व्यवधानों के कारण बढ़ी खाद्य क़ीमतों के चलते स्थिति और ख़राब हुई है।
संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड एम. बेस्ली ने कहा कि ‘यूक्रेन [युद्ध] ने एक आपदा के ऊपर एक और आपदा खड़ी कर दी है। द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से इस तरह की कोई मिसाल नहीं मिलती है।’
बेस्ली ने चेतावनी दी कि, ‘अगर आपको लगता है कि अब हमें धरती पर नर्क मिल गया है, तो आप तैयार हो जाइए।
यूक्रेन पर अलग-अलग राय होने के बावजूद, यह स्पष्ट है कि दुनिया भर में अरबों लोग भुखमरी के इस संकट से पीड़ित होंगे जब तक कि युद्ध और प्रतिबंध समाप्त नहीं हो जाते।
1962 में, पोलैंड की कवयित्री विस्लावा सिम्बोर्स्का ने ‘स्टार्वेशन कैम्प नीयर जस्लो’ (जस्लो के पास भुखमरी का कैम्प) लिखी थी। दक्षिण-पूर्व पोलैंड में स्थित जस्लो, यूक्रेन-पोलैंड सीमा से बहुत दूर नहीं है। जस्लो नाजी डेथ कैम्प की जगह था, जहाँ हज़ारों लोगों -मुख्य रूप से यहूदियों- को बंदी बनाकर रखा गया था और भूख से मरने के लिए छोड़ दिया गया था। इतनी बड़ी हिंसा के बारे में कोई कैसे लिखता है? सिम्बोर्स्का ने इस तरह से लिखा था:
इसे लिखो। दर्ज करो इसे। साधारण स्याही से
साधारण काग़ज़ पर; कि उन्हें खाना नहीं दिया गया,
कि वे सब भूख से मर गए। सभी। कितने?
यह एक बड़ा घास का मैदान है। कितनी घास घेरता होगा
एक आदमी? लिखो: कि मुझे पता नहीं [कितने]।
इतिहास कंकालों की गिनती को समाप्त कर उसे शून्य बना देता है।
एक हज़ार और एक, एक हज़ार ही होते हैं।
जैसे कि वो एक कभी अस्तित्व में था ही नहीं:
एक काल्पनिक भ्रूण था, एक ख़ाली पालना था,
एक अस्तर था जो किसी के लिए नहीं खोला गया था,
हवा थी, जो हँसती थी, रोती थी और बढ़ रही थी,
सीढ़ियाँ थी, बगीचे की ओर बढ़ते शून्य के लिए,
गिनती की लाइन में उसकी जगह पर कोई निशान नहीं हैं…
हर एक मौत घृणास्पद है; उन 300 बच्चों की मौत भी जो हर दिन के हर घंटे में कुपोषण से मरते हैं।
स्नेह-सहित,
विजय।