सलौआ रौदा चौकैर (लेबनान), काम, 1948.

 

प्यारे दोस्तों,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

संयुक्त राष्ट्र अंतर्राष्ट्रीय बाल आपात निधि (यूनिसेफ़) की रिपोर्ट है कि वैश्विक खाद्य संकट से सबसे अधिक प्रभावित पंद्रह देशों में हर मिनट एक बच्चा भुखमरी का शिकार हो रहा है। इन पंद्रह देशों में से बारह देश अफ़्रीका में हैं (बुर्किना फासो से सूडान तक), एक कैरिबियन (हैती) में है, और दो एशिया (अफ़ग़ानिस्तान और यमन) में हैं। अंतहीन युद्धों ने इन देशों में राज्य संस्थानों की ऋण और बेरोज़गारी, मुद्रास्फीति और ग़रीबी के व्यापक संकटों से निपटने की क्षमता क्षीण कर दी है। दो एशियाई देशों के साथ अफ़्रीका के साहेल क्षेत्र के देशों (विशेषकर माली और नाइजर) में भुखमरी का स्तर अब लगभग नियंत्रण से बाहर हो चुका है। जैसे कि स्थिति पहले से ही ख़राब थी ही, उसके ऊपर से पिछले हफ़्ते अफ़ग़ानिस्तान में भूकंप भी आ गया, जिसमें एक हज़ार से अधिक लोग मारे गए, और एक ऐसे समाज को एक और विनाशकारी झटका लगा जहाँ 93% आबादी भुखमरी की शिकार है।

इन संकटग्रस्त देशों में, सरकारों और संयुक्त राष्ट्र के विश्व खाद्य कार्यक्रम (डब्ल्यूएफ़पी) की ओर से खाद्य सहायता दी जा रही है। इन देशों में लाखों शरणार्थी लगभग पूरी तरह से संयुक्त राष्ट्र की एजेंसियों पर निर्भर हैं। डब्ल्यूएफ़पी रेडीटूयूज़ चिकित्सीय भोजन प्रदान करता है, जो मक्खन, मूंगफली, दूध पाउडर, चीनी, वनस्पति तेल और विटामिनों से बना खाने योग्य एक पेस्ट है। अगले छह महीनों में, इन सामग्रियों की लागत में 16% तक की वृद्धि का अनुमान है; यही वजह है कि 20 जून को डब्ल्यूएफ़पी ने घोषणा की थी कि वह राशन में 50% की कटौती करेगा। यह कटौती पूर्वी अफ़्रीका में, जहाँ क़रीब 50 लाख शरणार्थी रहते हैं, प्रत्येक चार शरणार्थियों में से तीन को प्रभावित करेगी। यूनिसेफ़ की कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा है, ‘हम बच्चों की बर्बादी (चाइल्ड वेस्टिंग) के चरम स्तर की स्थितियों को देख रहे हैं, जैसे टिंडरबॉक्स (जलावन के डिब्बे) में आग लगने की शुरुआत हो रही हो’।

 

उज़ो एगोनू (नाइजीरिया), राज्यविहीन लोग, एक असेंबली, 1982.

 

 

स्पष्ट है कि बढ़ती भुखमरी खाद्य मूल्य मुद्रास्फीति से संबंधित है, जो कि यूक्रेन युद्ध की वजह से तेज़ हुई है। रूस और यूक्रेन दुनिया भर में जौ, मक्का, रेपसीड, सूरजमुखी के बीज, सूरजमुखी के तेल और गेहूँ के अलावा उर्वरकों के प्रमुख निर्यातक हैं। यह युद्ध विश्व खाद्य क़ीमतों के लिए विनाशकारी रहा है, लेकिन केवल इस युद्ध को बढ़ती क़ीमतों का एक मात्र मानना ग़लत होगा। विश्व खाद्य क़ीमतों में लगभग बीस साल पहले वृद्धि शुरू हो गई थी, और 2021 में कई कारणों से क़ीमतें नियंत्रण से बाहर चली गईं। इसके पीछे ये कारण हैं:

1. महामारी के दौरान, देशों के अंदर और उनकी सीमाओं पर लगे गंभीर लॉक-डाउन के कारण प्रवासी मज़दूरों की आवाजाही में बड़ी रुकावटें आईं। यह अब अच्छी तरह से स्थापित हो चुका है कि प्रवासी मज़दूर – जिनमें शरणार्थी और शरण चाहने वाले भी शामिल हैं – कृषि उत्पादन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। प्रवासी-विरोधी भावना और लॉक-डाउन ने बड़े खेतों के लिए दीर्घकालिक समस्या पैदा कर दी है।

2. कोविड-19 महामारी का एक परिणाम था आपूर्ति शृंखला का टूटना। चीन ने – जो कि वैश्विक विनिर्माण का एक अहम केंद्र है – ज़ीरो-कोविड ​​​​नीति अपनाई, जिससे वस्तुओं के अंतर्राष्ट्रीय परिवहन के लिए व्यापक समस्या खड़ी हो गई; क्योंकि लॉक-डाउन के साथ-साथ बंदरगाह बंद रहे और जहाज़ महीनों तक समुद्र पर खड़े रहे। अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग की लगभग सामान्य स्थिति में वापसी और औद्योगिक उत्पादन की वापसी – जिसमें उर्वरक और भोजन शामिल हैं – धीमी रही है। खाद्य आपूर्ति शृंखला न केवल लॉजिस्टिक समस्याओं के कारण, बल्कि प्रसंस्करण संयंत्रों (प्रॉसेसिंग प्लांट्स) में कर्मचारियों की कमी के कारण चरमरा गई।

3. ख़राब मौसम की घटनाओं ने खाद्य प्रणाली की अव्यवस्था में एक प्रमुख भूमिका निभाई है। पिछले एक दशक में, 80 से 90% प्राकृतिक आपदाएँ सूखे, बाढ़ या भयंकर तूफ़ान के कारण हुई हैं। इस बीच, पिछले चालीस वर्षों के दौरान, पृथ्वी हर साल सूखे और मरुस्थलीकरण के कारण 12 मिलियन हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि खो चुकी है; इसी दौरान हमने अपनी कृषि योग्य भूमि का एक तिहाई हिस्सा क्षरण या प्रदूषण के कारण भी खो दिया है।

4. पिछले चालीस वर्षों में, विश्व में मांस (विशेष रूप से मुर्गी) की खपत में नाटकीय रूप से वृद्धि हुई है। हम ‘मांस की खपत के शिखर’ पर पहुँच चुके हैं; इस प्रकार के कुछ संकेतों के बावजूद, अनुमान है कि मांस की खपत में वृद्धि जारी रहेगी। मांस उत्पादन की पर्यावरणीय उपस्थिति बहुत ज़्यादा है: कृषि से होने वाले कुल उत्सर्जन का 57% मांस उत्पादन से आता है, जबकि पशुधन उत्पादन में पृथ्वी की कृषि योग्य ज़मीन का 77% हिस्सा इस्तेमाल होता है (भले ही मांस केवल वैश्विक कैलोरी आपूर्ति में 18% का योगदान देता हो)।

 

योलान्डा वाल्डेस रेमेंटेरिया (मेक्सिको), विविधता, 2009.

 

यूक्रेन युद्ध से पहले ही विश्व खाद्य बाज़ार दिक़्क़तों से घिरा हुआ था, और महामारी के दौरान कई देशों में क़ीमतें अब तक के सबसे उच्चतम स्तर तक पहुँच गई थीं। हालाँकि, युद्ध ने इस कमज़ोर खाद्य प्रणाली को लगभग तोड़ दिया है। सबसे महत्वपूर्ण समस्या विश्व उर्वरक बाज़ार में पैदा हुई है, जो महामारी के दौरान लचीला बना रहा था लेकिन अब संकट में है: क्योंकि रूस और यूक्रेन 28% नाइट्रोजन और फास्फोरस उर्वरक के साथ-साथ दुनिया के 40% पोटाश का निर्यात करते हैं, जबकि अकेला रूस विश्व के अमोनियम नाइट्रेट का 48% तथा 11% यूरिया निर्यात करता है। यदि कृषक उर्वरक के उपयोग में कटौती करेंगे तो भविष्य में फ़सल की पैदावार कम हो जाएगी, जब तक कि किसान और कृषि कंपनियाँ जैव उर्वरकों को इस्तेमाल करने के लिए तैयार नहीं हो जातीं। खाद्य बाज़ार की अनिश्चितता के कारण, कई देशों ने निर्यात प्रतिबंध लगा दिए हैं; इसके चलते जो देश खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भर नहीं हैं, उन देशों में भूख का संकट और भी बढ़ गया है।

खाद्य उत्पादन में आत्मनिर्भरता पर तमाम बातचीत के बावजूद, अध्ययनों से यह पता चलता है कि इस दिशा जितना कार्रवाई होनी चाहिए उतनी नहीं हुई है। हमें बताया जा रहा है कि 21वीं सदी के अंत तक दुनिया के 141 देश आत्मनिर्भर नहीं रहेंगे और खाद्य उत्पादन उस समय की अनुमानित 15.6 अरब की आबादी में से 9.8 अरब लोगों की पोषण संबंधी माँगों को पूरा नहीं कर पाएगा। दुनिया के केवल 14% देश ही आत्मनिर्भर बचेंगे, जिनमें रूस, थाईलैंड और पूर्वी यूरोप दुनिया के लिए अनाज के प्रमुख उत्पादक होंगे। इस तरह के अंधकारमय पूर्वानुमान की स्थिति में यह ज़रूरी है कि विश्व खाद्य प्रणाली में मौलिक बदलाव लाए जाएँ; इस दिशा में कुछ माँगें ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान तथा अनुसंधान संस्थानों के नेटवर्क द्वारा विकसित ‘ग्रह को बचाने की योजना‘ में दी गई हैं।

अभी के लिए, संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने यह स्पष्ट कर दिया है कि यूक्रेन युद्ध और रूस के ख़िलाफ़ लगे प्रतिबंधों को तुरंत समाप्त किया जाना चाहिए ताकि खाद्य और उर्वरक के ये प्रमुख उत्पादक विश्व बाज़ार के लिए उत्पादन फिर से शुरू कर सकें।

 

 

खाद्य और पोषण आत्मनिर्भरता तथा सुरक्षा के लिए ब्राज़ीलियाई रिसर्च नेटवर्क (रेड पेंसन) द्वारा किए गए एक हालिया अध्ययन में कहा गया है कि लगभग 60% ब्राज़ीलियाई परिवारों के पास पर्याप्त भोजन नहीं है। देश के 212 मिलियन लोगों में से, जिनके पास खाने के लिए कुछ नहीं है, उन लोगों की संख्या 2020 के बाद से 19 मिलियन से बढ़कर 33.1 मिलियन हो गई है। ‘सरकार द्वारा चुनी गई आर्थिक नीतियाँ और महामारी के लापरवाह प्रबंधन से सामाजिक ग़ैर-बराबरी और भुखमरी में और भी अधिक निंदनीय वृद्धि हुई है’, रेड पेंसन में एक महामारी विशेषज्ञ एना मारिया सेगल ने कहा। लेकिन, केवल कुछ ही साल पहले, संयुक्त राष्ट्र ने ब्राज़ील के फ़ोम ज़ीरो और बोल्सा फ़मिलिया कार्यक्रमों की तारीफ़ की थी; इन कार्यक्रमों से भुखमरी और ग़रीबी दर में नाटकीय रूप से कमी आई थी। पूर्व राष्ट्रपति लूला डा सिल्वा (2003-2010) और डिल्मा रूसेफ़ (2011-2016) के नेतृत्व में ब्राज़ील ने संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को पूरा कर लिया था। लेकिन उनके बाद मिशेल टेमर (2016-2018) और जायर बोल्सोनारो (2019-वर्तमान) की सरकारों ने इन लाभों को उलट दिया है और ब्राज़ील को भुखमरी के उन सबसे बुरे दिनों में वापस लाकर खड़ा कर दिया है जब कवि और गायक सोलानो त्रिनिदाद ने गाया था ‘टेम जेंटे कॉम फॉम’ (‘लोग भूखे हैं’):

लोग भूखे हैं

लोग भूखे हैं

लोग भूखे हैं

अगर लोग भूखे हैं

उनको भोजन दो ,

अगर लोग भूखे हैं

उनको भोजन दो,

अगर लोग भूखे हैं

उनको भोजन दो। 

स्नेह-सहित,

विजय।