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वेनेज़ुएला एक अनूठा गतिशील देश: बत्तीसवाँ न्यूज़लेटर (2024) 

वेनेजुएला का विपक्ष 28 जुलाई के राष्ट्रपति चुनाव में फिर से धोखाधड़ी का रोना रो रहा है, लेकिन सबूत पेश करने में विफल रहा है। इस बीच, लाखों चाविस्टा, जो समझते हैं कि अमेरिकी-हाइब्रिड युद्ध ही उनके देश में संकट की जड़ है, ‘नो वोल्वेरान’ – कुलीनतंत्र वापस नहीं आएगा- के नारे के साथ सड़कों पर उतर आए।

 

प्यारे दोस्तों, 

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन

मैं पिछले दो हफ्तों से वेनेज़ुएला के काराकास में हूँ, मैंने यहाँ 28 जुलाई को हुए राष्ट्रपति चुनावों से पहले के दिन भी देखे और बाद के भी। चुनावों के पास आते-आते दो बातें मेरे लिए एकदम साफ हो गईं। पहली, चाविस्तास् (ह्यूगो चावेज़ और बोलिवेरियन कार्यक्रम के समर्थक जिनका नेतृत्व अब राष्ट्रपति निकोलस मादुरो कर रहे हैं) के पास एक संगठित जनाधार होने का बहुत बड़ा फ़ायदा है। दूसरी, चरम दक्षिणपंथी मारिया कोरिना मचाडो और यूएस सरकार के नेतृत्व में जो विपक्ष था, वो जानता था कि बाज़ी उसके हाथ से गई इसलिए उसने चुनाव होने से भी पहले भावी चुनावों में धाँधली के आरोप लगाते हुए अपनी हार के संकेत देना शुरू कर दिया था। 2004 में पद से हटाने के लिए एक जनमत संग्रह हुआ जिसमें विपक्ष ने चावेज़ को हटाने की कोशिश की थी, इसके बाद से तो दक्षिणपंथ के लिए यह एक आम मुहावरा हो चुका है कि वेनेज़ुएला में चुनाव व्यवस्था अब ईमानदार नहीं।

28 जुलाई (चावेज़ की सत्तरवीं जयंती) को मतदान की रात बारह बजने के कुछ ही समय बाद नेशनल एलेक्टोराल काउन्सल (सीएनई) ने घोषणा की कि 80% वोटों की गिनती के बाद रुझान साफ थे: मादुरो ने फिर से चुनाव जीत लिया था। यह नतीजे सीएनई ने कुछ दिन बाद प्रमाणित कर दिए और बताया कि डाले गए 96.8% वोटों की गिनती में मादुरो (51.95%) ने चरम दक्षिणपंथी उम्मीदवार एडमंडो गोंजालेज (43.18%) को 1,082,740 वोटों से हरा दिया था (दूसरे विपक्षी उम्मीदवारों को मिलाकर महज़ 600,936 वोट मिले थे यानी अगर ये वोट भी गोंजालेज को मिलते तो भी वो जीत नहीं पाता)। दूसरे शब्दों में, 59.97% वोटरों की भागीदारी के बीच मादुरो को आधे से कुछ ज़्यादा वोट मिले। 

मैंने इन नतीजों के बारे में विपक्ष के एक उच्च-स्तरीय सलाहकार से बात की, जो अपनी पहचान गुप्त रखना चाहते हैं। उन्होंने कहा कि वो विपक्ष की निराशा से सहानुभूति रखते हैं लेकिन उन्हें लगता है कि अंतिम नतीजे सही ही हैं। उन्होंने समझाया कि 2013 में चावेज़ की मौत के एक ही महीने के बाद हुए राष्ट्रपति चुनावों में मादुरो को 50.62% वोट मिले थे, जबकि हेनरीके कपरिलेस को 49.12%। यह तेल के दामों के गिरने और प्रतिबंधों के सख्त होने से पहले की बात थी। उस समय चावेज़ नहीं रहे थे, विपक्ष को लगा उन्हें मौका मिल गया है लेकिन वो कामयाब नहीं हुआ। उन्होंने कहा, ‘चाविस्तास को हराना इसलिए मुश्किल है क्योंकि उनके पास चावेज़ का कार्यक्रम और अपने समर्थकों को बैलट बॉक्स तक लेकर जाने की क्षमता, दोनों ही हैं’। 

ऐसा नहीं कि दक्षिणपंथ किसी सामाजिक परिवर्तन का वायदा नहीं करता; वे सरकारी तेल कंपनी का निजीकरण करना चाहते हैं; वे ज़ब्त की हुई ज़मीनों को कुलीनतंत्र को लौटा देना चाहते हैं और निजी पूँजी को लाकर चाहते हैं कि वेनेज़ुएला खुद को निगल जाए। उनका यह सामाजिक परिवर्तन का वायदा ही बहुमत के सपनों के बरक्स खड़ा है। इसीलिए दक्षिणपंथ नहीं जीत सकता और इसीलिए 2004 से धाँधली की बात करना उनकी रणनीति का एक अहम हिस्सा बना हुआ है।

इसलिए मतदान के दिन वोटिंग खत्म होने के तुरंत बाद, आधिकारिक नतीजों के ऐलान से पहले ही मचाडो और वाशिंगटन ने मानो कदमताल करते हुए धाँधलेबाज़ी का राग अलापना शुरू कर दिया, और जिस तरह के हमले की वे महीनों से तैयारी कर रहे थे उसकी शुरूआत कर दी। मचाडो के समर्थक तुरंत सड़कों पर उतर गए और चाविस्मो के चिह्नों पर हमले शुरू कर दिए: स्कूलों, मज़दूर वर्ग के इलाकों में स्वास्थ्य केंद्रों, सरकारी बस स्टेशन और बसों, चाविस्ता कम्यूनों और पार्टियों के दफ्तरों और चल रही बोलिवेरियन क्रांति की शुरूआत करने वाले लोगों की मूर्तियों पर हमले हुए (इनमें चावेज़ की एक और मूलनिवासियों के प्रमुख कोरोमोतो की मूर्ति भी शामिल है)। चुनावों के बाद यूनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी ऑफ वेनेज़ुएला (पीएसयूवी) के दो सदस्य, बॉलिवार राज्य की इसाबेल सिरिला और अरागुआ राज्य की मायौरी कोरोमोतो सिल्वा विल्मा, की हत्या कर दी गई, दो सार्जन्ट की भी हत्या कर दी गई और दूसरे चाविस्ता, पुलिस और अधिकारियों पर बर्बर हमले हुए और उन्हें कैद कर लिया गया।
 
इस खास किस्म की दक्षिणपंथी ताकतों के हमलों से साफ है कि ये वेनेज़ुएला के इंडीजेनास् और ज़ाम्बोस् के साथ साथ मज़दूर वर्ग और किसानों के इतिहास को मिटा देना हैं। मतदान के दिन से ही सैंकड़ों-हज़ारों चाविस्ता काराकास और दूसरी जगहों पर सड़कों पर उतर रहे हैं। इस न्यूज़लेटर में जो तस्वीरें हैं वो फ्रान्सिस्को ट्रियास द्वारा 2 अगस्त को महिलाओं की मार्च, ज़ोइ एलेक्जेंड्रा(पीपल्स डिस्पैच) द्वारा 31 जुलाई को मातृभूमि की रक्षा के लिए मज़दूर वर्ग की रैली (यह दोनों प्रदर्शन उन तमाम कार्यक्रमों में से हैं जो चुनावों के बाद से हुए हैं) और मेरे द्वारा 27 जुलाई को एक चुनावी रैली में ली गई हैं। इन सभी रैलियों में एक नारा लोगों में गूँज रहा था no volverán – वे नहीं लौटेंगे। इन लोगों का कहना है कि कुलीनतंत्र नहीं लौटेगा। 

आभार: विजय प्रशाद

बोलिवेरियन क्रांति की शुरूआत हुई 1999 में जब चावेज़ राष्ट्रपति पद पर आए। इसके बाद चुनावों का सिलसिला चला ताकि संविधान को बदला जा सके और कुलीनतंत्र की ओर से खड़ी की जा रही बाधा को खत्म किया जा सके (इस बाधा में वाशिंगटन भी शामिल रहा, जिसने चावेज़ का तख्तापलट करने की कोशिश की, उदाहरण के लिए 2002 का तख्तापलट की नाकाम कोशिश, और मादुरो को भी उनके पद से हटाने का प्रयास हुआ मसलन सत्ता परिवर्तन के लिए प्रतिबंधों का इस्तेमाल किया जा रहा है और वेनेज़ुएला की सरहद में घुसपैठ की कोशिशें भी हुईं)। चावेज़ की सरकार ने तेल के उद्योग का राष्ट्रीयकरण किया, किराए की दरों को फिर से तय किया (2001 के हाइड्रोकार्बनस् लॉ के ज़रिए) और राष्ट्र के मुनाफ़े पर कुंडली मारकर बैठे भ्रष्ट अधिकारियों की जमात को भी हटाया। 

राष्ट्रीय खाते में बहुराष्ट्रीय तेल कंपनियों से रॉयल्टी का ज़्यादा हिस्सा आने लगा। सरकारी तेल कंपनी पेट्रोलेओस डी वेनेज़ुएला, एसए (पीडीवीएसए) ने सामाजिक और आर्थिक विकास फंड (फॉनदेस्पा) का गठन किया जिससे तेल उद्योग के मज़दूरों, उनके समुदायों के हित की योजनाएँ और अन्य कार्यक्रम चलाए जा सकें। तेल से मिलने वाली संपदा का इस्तेमाल देश के औद्योगीकरण के लिए किया जाना था और तेल की फ़रोख्त तथा आयातों पर वेनेज़ुएला की निर्भरता को खत्म किया जाना था। बोलिवेरियन एजेंडे का एक मुख्य बिन्दु है अर्थव्यवस्था में विविधता लाना, इसमें देश में खेती का पुनरुत्थान भी शामिल है और ऐसा करने के लिए प्लान फॉर दि होम्लैन्ड के पाँचवे रणनीतिक उद्देश्य ‘इस गृह पर जीवन को बचाने और मनुष्य जाति की रक्षा’ के लिए काम कर इसे प्राप्त करना होगा।

तेल से मिले धन की वजह से ही चावेज़ सरकार सार्वजनिक खर्च 61% (77,200 करोड़ डॉलर) बढ़ा पाई जिसका इस्तेमाल इसने बड़े-बड़े कार्यक्रमों के ज़रिए जनता की बेहतरी के लिए किया, जैसे कि 1999 के संविधान में दिए गए अधिकारों सही में लागू करने के लिए चलाए गए तमाम मिशन। उदाहरण के लिए 2003 में सरकार ने तीन मिशन शुरू किए (रॉबिंसन, रिबास और सुक्रे) जिनके तहत शिक्षकों को कम आय वर्ग वाले इलाकों में मुफ़्त साक्षरता और उच्च शिक्षा देने के लिए भेजा गया। ज़मोरा मिशन के ज़रिए भूमि सुधार का काम किया गया और वुएल्ता अल कैंपो मिशन में लोगों को शहरी झुग्गियों से निकलकर ग्रामीण इलाकों में बसने के लिए प्रोत्साहित किया गया। मरसल मिशन के ज़रिए सस्ता और पौष्टिक खाना लोगों तक पहुँचाया गया ताकि जनता विदेशी प्रासेस्ड खाना छोड़ सके। इसके साथ ही बार्र्रिओ आडेन्ट्रो मिशन ने मज़दूर वर्ग और गरीब जनता को अच्छी स्वास्थ्य सेवाएँ मुहैया करवाईं, और विविएन्दा मिशन के तहत 50 लाख से ज़्यादा घर बनाए गए। 

इन तमाम मिशनों के ज़रिए वेनेज़ुएला की गरीबी दर 1999 से अब तक 37.6% घट गई है (अत्याधिक गरीबी में गिरावट बेहतरीन रही है: 1999 में यह 16.6% थी जबकि 2011 में 7%, यानी 57.8% की गिरावट, और मिशनों का असर जब से पड़ने लगा, यानी 2004, अगर तब से हिसाब लगाया जाए तो अत्याधिक गरीबी में 70% की कमी आई है)। वेनेज़ुएला 1999 से पहले ऐसे देशों में से था जहाँ असमानता अपने सबसे बुरे चरण में थी, और अब यह सबसे कम आसमान समाजों में शामिल है, इसका गिनी गुणांक 54% गिर गया है (इस क्षेत्र में सबसे कम), इन सबसे पता चलता है कि आधारभूत सामाजिक नीतियों का रोज़ाना की ज़िंदगी पर क्या असर पड़ता है।

पिछले बीस सालों में, मैं लगातार वेनेज़ुएला जाता रहा हूँ और मैंने सैंकड़ों मज़दूर वर्ग के चाविस्ता से बात की है – जिनमें कई अश्वेत महिलाएँ भी हैं। जब से प्रतिबंध और सख्त हुए हैं वेनेज़ुएला की जनता को बहुत ज़्यादा अभाव झेलने पड़ रहे हैं और वे खुलकर क्रांति की दिशा के बारे में शिकायत भी कर रहे हैं। वे समस्याओं को नकार नहीं रहे, लेकिन विपक्ष से उलट, वे जानते हैं कि संकट की मूल वजह यूएस की ओर से चल रहा छद्म युद्ध है। बढ़ती सामाजिक असमानता और भ्रष्टाचार के बीच भी उन्हें इन बुराइयों की जड़ें प्रतिबंधों की हिंसक नीति में देखना आता है (और यह बात तो अब वाशिंगटन पोस्ट  ने भी स्वीकार कर ली है)।  
         
चुनावों के बाद के हफ्ते में हुईं विशाल रैलियों के दौरान लोगों ने खुलकर बताया कि उनके सामने कौन से दो विकल्प थे: कोशिश करके बोलीवेरियन प्रक्रिया को मादुरो की सरकार के ज़रिए आगे बढ़ाना या फिर फरवरी 1989 में लौट जाना जब कार्लोस अनड्रेस पेरेज़ ने देश में आईएमएफ़ का तैयार किया गया आर्थिक एजेंडा, जिसे paquetazo (पैकेट) कहा गया, थोप दिया। पेरेज़ ने यह अपने खुद के चुनावी वायदे और पार्टी (Acción Democrática) के खिलाफ जाकर किया, जिसने एक शहरी विद्रोह खड़ा कर दिया, जिसे Caracazo (काराकाज़ो) के नाम से जाना जाता है। इसमें सरकारी ताकतों ने एक ही दिन में 5,000 लोगों की हत्या की थी (हालांकि मरने वालों की संख्या के विभिन्न आँकड़े दिए जाते हैं)।

दरअसल कई लोगों का मानना है कि मचाडो देश को एक इससे भी बदत्तर युग में ले जायेंगी क्योंकि उनमें पेरेज़ जैसा सामाजिक लोकतांत्रिक कपट नहीं है और वे अपने वर्ग के हितों के लिए अपने ही देश को बहुत बड़ा झटका देने के लिए भी तैयार रहेंगी। इन विकल्पों के चुनाव को वेनेज़ुएला की एक कहावत बहुत अच्छे से समझाती है:  chivo que se devuelve se ‘esnuca (जो बकरी लौटकर आती है अपनी गर्दन तुड़वाती है)। 

कनाडा के अरबपति और बैरिक गोल्ड के मालिक पीटर मंक ने लिखा कि चावेज़ एक ‘खतरनाक तानाशाह’ था, उनकी तुलना हिटलर से करते हुए उनके तख्तापलट की बात कही। यह 2007 की बात है जब मंक इस बात से नाराज़ था चावेज़ वेनेज़ुएला के सोने के निर्यात पर नियंत्रण चाहते थे। चावेज़ की सरकार में आम रुझान था वैश्विक अर्थव्यवस्था से ‘डिलिंक’ या पृथक होना जिसका मतलब था ग्लोबल नॉर्थ की बहुराष्ट्रीय कंपनियों और ताकतवर देशों को वेनेज़ुएला जैसे देशों का एजेंडा तय करने से रोकना। 

‘डिलिंकिंग’ का यह विचार ही हमारे नए डोसियर, How Latin America Can Delink from Imperialism (लैटिन अमेरिका कैसे खुद को साम्राज्यवाद से पृथक कर सकता है),  का मुख्य बिन्दु है। बोलिवेरियन अलायंस फॉर द पीपल्स ऑफ अवर अमेरिका – पीपल्स ट्रैड ट्रीटी (ALBA-TCP) 2030 स्ट्रटीजिक एजेंडा के आधार पर डोसियर में चार प्रमुख क्षेत्र सुझाए हैं जिनमें डिलिंक करके एक संप्रभु विकास नीति की नींव रखी जा सकती है: वित्त, व्यापार, रणनीतिक संपदा और लजिस्टिकल इंफ्रास्ट्रक्चर। यही बोलिवेरियन प्रक्रिया करना चाहती है और इसलिए यूएस साम्राज्यवाद तथा बैरिक गोल्ड जैसे बहुराष्ट्रीय कॉर्पोरेशन इस सरकार पर इतने तीखे हमले कर रहे हैं। 

चुनाव के अगले दिन बारिश हुई। उस दिन बोलिवेरियन प्रक्रिया की रक्षा के लिए निकाली गई रैलियों में से एक में एक चाविस्ता ने वेनेज़ुएला के कवि विक्टर ‘एल चीनो’ वालेर मोरा (1935-1984) की 1961 कविता की चंद पक्तियाँ पढ़ीं, कविता का नाम है ‘Maravilloso país en movimiento’ (गतिशील अनूठा देश)।       

एक गतिशील अनूठा देश
जहाँ सब होता है विकसित या पाता है पूर्णविराम 
जहाँ बीता कल बढ़ता है आगे या हो जाता है विदा।
  
जो तुम्हें नहीं जानते 
वे कहेंगे तुम एक नामुमकिन संघर्ष के भँवर में फँसे हो।

लेकिन लगातार मज़ाक बनते भी
तुम आनंद से तनकर खड़े हो। 

तुम आज़ाद होंगे। 

अगर अपराधी तुम्हारे किनारे तक न भी आयें
तुम किसी दिन जाओगे उन तक। 

मेरा तुम पर रहेगा विश्वास हमेशा 
एक गतिशील अनूठे देश। 

सस्नेह,
विजय