विकासशील देशों ने इज़रायल को अदालत में घसीटा : तीसरा न्यूज़लेटर (2024)
प्यारे दोस्तो,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
11 जनवरी को दक्षिण अफ्रीका के उच्च न्यायालय की वकील आदिला हासिम, अंतरराष्ट्रीय न्यायालय (ICJ) के न्यायाधीशों के सामने खड़ी हुईं और कहा: ‘नरसंहार की घोषणा कभी भी पहले से नहीं की जाती है। लेकिन इस अदालत के सामने पिछले 13 सप्ताह का सबूत है जो निर्विवाद रूप से नरसंहार के आरोप को उचित ठहराने के लिए [इज़रायल के] आचरण और संबंधित इरादों का एक पैटर्न दिखाता है’। यह पंक्ति गाज़ा में इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनियों के नरसंहार के खिलाफ दक्षिण अफ्रीका की 84-पेज लंबे शिकायत दस्तावेज़ पर हासिम की ज़िरह का केंद्रबिंदु थी। इज़रायल और दक्षिण अफ्रीका दोनों 1948 के नरसंहार सम्मेलन के पक्षकार हैं।
दक्षिण अफ़्रीकी सरकार द्वारा प्रस्तुत दस्तावेज़ में इज़रायल द्वारा किए गए अत्याचार सूचीबद्ध हैं। इसके साथ ही इसमें महत्त्वपूर्ण रूप से वरिष्ठ इज़रायली अधिकारियों द्वारा नरसंहार के इरादे से की गई घोषणाएं भी दर्ज हैं। इसके नौ पन्नों (पृ. 59 से 67 तक) में इज़रायली राज्य के अधिकारियों की ‘नरसंहार के इरादे की अभिव्यक्तियां’ जैसे कि ‘दूसरा नकबा’ और ‘गाज़ा नकबा’ आदि दर्ज हैं। (नकबा एक अरबी शब्द है जिसका अर्थ है तबाही। इस शब्द को 1948 में फ़िलिस्तीनियों को उनके घरों से निष्कासित कर इज़रायल की स्थापना के संदर्भ में इस्तेमाल किया जाता है)। नरसंहार के इरादे की ये भयावह घोषणाएं 7 अक्टूबर के बाद से इज़रायली सरकार के भाषणों एवं बयानों में फ़िलिस्तीनियों के लिए ‘राक्षस’, ‘जानवर’ और ‘जंगल’ जैसे शब्दों से लैस नस्लवादी भाषा के साथ बार-बार दिखाई दे रही हैं। ऐसे कई उदाहरणों में से एक है इज़रायल के रक्षा मंत्री योव गैलेंट द्वारा 9 अक्टूबर 2023 को दिया गया बयान जिसमें उन्होंने कहा कि उनकी सेना ‘गाज़ा की पूर्ण घेराबंदी कर रही है। न बिजली, न भोजन, न पानी, न ईंधन। सब कुछ काट दिया गया है। हम मानव रूपी जानवरों से लड़ रहे हैं और हम उसके अनुसार कार्य कर रहे हैं’।
दक्षिण अफ्रीका के एक अन्य वकील टेम्बेका न्गकुकैटोबी ने इन शब्दों को ‘ सुनियोजित अमानवीकरण की भाषा’ बताया। इस तरह की भाषा के अलावा इज़रायल द्वारा किया जा रहा हमला – जिसमें अब तक 24,000 से अधिक फ़िलिस्तीनी लोगों की जान जा चुकी है, और जिसके चलते गाज़ा की लगभग पूरी आबादी विस्थापित हो चुकी है और 90% आबादी के सामने खाने का संकट पैदा हो गया है — इज़रायल पर नरसंहार के आरोप का पर्याप्त आधार है।
उचित ही अदिला हासिम के पहले नाम का अर्थ अरबी में न्याय है और खोसा भाषा में टेम्बेका न्गकुकैतोबी के पहले नाम का अर्थ भरोसेमंद है।
अंतरराष्ट्रीय न्यायालय की सुनवाई में, इज़रायल दक्षिण अफ्रीका की शिकायत पर विश्वसनीय प्रतिक्रिया देने में असमर्थ रहा। इज़रायल के विदेश मंत्रालय के कानूनी सलाहकार ताल बेकर अपनी दलील में हमास को दोषी ठहराने की कोशिश करते रहे, जबकि वह विवाद में कोई पक्ष ही नहीं है। बेकर ने कहा कि इज़रायल नहीं बल्कि हमास गाज़ा में ‘भयावह माहौल’ का कारण है।
इज़रायल द्वारा अपना पक्ष रखने के बाद अंतरराष्ट्रीय न्यायालय के पंद्रह न्यायाधीशों ने विचार-विमर्श शुरू किया। 11-12 जनवरी को पेश की गई दलीलें केवल यह सुनिश्चित करने के लिए प्रथम दृष्टया सुनवाई का हिस्सा थीं कि क्या इस मुक़दमे को आगे बढ़ाने के लिए पर्याप्त सबूत हैं या नहीं। वैसे यह मुक़दमा आगे चलता है तो इसमें कई साल लग जाएंगे। हालाँकि, दक्षिण अफ्रीका ने अदालत से ‘अंतरिम उपाय’ लागू करने का आग्रह करते हुए कहा कि न्यायाधीश इज़रायल द्वारा फ़िलिस्तीनियों का नरसंहार तुरंत प्रभाव से बंद करने हेतु आपातकालीन आदेश सुनाएँ। यदि ऐसा होता है तो इज़रायल की पहले से ही डगमगाती छवि और उसके प्रमुख समर्थक संयुक्त राज्य अमेरिका की साख को बड़ा झटका लगेगा। इस तरह का आदेश पहले भी सुनाया जा चुका है। 2019 में गाम्बिया, रोहिंग्या लोगों पर म्यांमार सरकार द्वारा किये जा रहे हमले को रोकने का अंतरिम आदेश अदालत से जारी करवाने में सफल रहा था। दुनिया को न्यायालय के फैसले का इंतजार है।
सुनवाई शुरू होने से एक दिन पहले अमेरिका ने एक बयान जारी कर कहा कि ‘इज़रायल पर लग रहे नरसंहार के आरोप बेबुनियाद हैं’। एक बार फिर से, अमेरिकी सरकार ने इज़रायल का पूरा समर्थन किया और उपरोक्त शब्दों के अलावा नरसंहार के लिए हथियार व अन्य रसद प्रदान की। यही कारण है कि दक्षिण अफ्रीका अब संयुक्त राज्य अमेरिका और यूके के ख़िलाफ़ अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में एक याचिका दायर करने की तैयारी कर रहा है।
नवंबर 2023 में, जब इन हमलों को दुनिया भर में नरसंहार की तरह देखा जाने लगा था, तब अमेरिकी कांग्रेस ने इज़रायल के लिए सैन्य सहायता में 14.5 अरब डॉलर का पैकेज पारित किया था। जब सुनवाई चल रही थी, तब अमेरिकी राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद के प्रवक्ता जॉन किर्बी ने प्रेस को बताया कि अमेरिका ‘इज़रायल को उनकी ज़रूरत के उपकरण और क्षमताएं प्रदान करना जारी रखेगा’। और अमेरिका ने 9 और 29 दिसंबर को ऐसा किया भी, जब उसने इज़रायल को अतिरिक्त हथियार दिए। जब किर्बी से जान-माल के नुक़सान पर कांग्रेस के भीतर की चिंताओं के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि ‘हमें अभी भी कोई संकेत नहीं मिला है कि (इज़रायल) सशस्त्र संघर्ष के कानूनों का उल्लंघन कर रहा है।’ पूर्व एडमिरल किर्बी ने बस यह स्वीकार किया कि ‘बहुत अधिक नागरिक हताहत हुए हैं।’ हालाँकि, नागरिकों पर हमले बंद करने का आह्वान करने के बजाय, उन्होंने कहा कि इज़रायल को ‘इसे कम करने के लिए कदम उठाने चाहिए’। दूसरे शब्दों में, अमेरिका ने इज़रायल को फ़िलिस्तीनियों के साथ जो चाहे करने की खुली छूट दे दी है और हथियार भी दिए हैं।
जब अंसार अल्लाह के नेतृत्व में यमन के लोगों ने लाल सागर के रास्ते इज़रायल को जा रहे जहाजों की आवाजाही को रोकने का फैसला किया, तो अमेरिका ने यमन पर हमला करने के लिए एक ‘गठबंधन’ तैयार कर लिया। अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में दक्षिण अफ्रीका द्वारा दलीलें पेश किए जाने के दिन, अमेरिका ने यमन पर बमबारी की। उनका संदेश स्पष्ट था: न केवल अमेरिका नरसंहार के लिए बिना शर्त समर्थन प्रदान करेगा; (बल्कि) उन देशों पर भी हमला करेगा जो इसे रोकने की कोशिश करेंगे।
इज़रायल द्वारा किए जा रहे अत्याचारों और फ़िलिस्तीनी लोगों के प्रतिरोध ने दुनिया भर में लाखों लोगों को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया है। इनमें से कई लोग अपने जीवन में पहली बार किसी प्रदर्शन में भाग ले रहे हैं। दुनिया की लगभग सभी भाषाओं में, सोशल मीडिया इज़रायल की क्रूर कार्रवाइयों की निंदा करती सामग्री से भरा पड़ा है। यह मुद्दा लोगों के ध्यान से बाहर नहीं जाता दीखता, पिछले सप्ताह के अंत में अमेरिका के इतिहास में पहली बार चार लाख के क़रीब लोगों ने राजधानी की सड़कों पर विरोध प्रदर्शनों में भाग लिया। इन प्रदर्शनों के प्रति बढ़ते उत्साह ने डेमोक्रेटिक पार्टी में चिंता पैदा कर दी है कि अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन न केवल मिशिगन जैसे प्रमुख राज्य में अरब अमेरिकी आबादी का वोट खो बैठेंगे, बल्कि ऐसा हो सकता है कि उदार-वामपंथी कार्यकर्ता भी उनके पुनर्निर्वाचन अभियान का समर्थन न करें।
पिछले दो वर्षों के दौरान, यूक्रेन युद्ध की शुरुआत से लेकर अब तक, पश्चिम की विश्वसनीयता में तेज़ी से गिरावट आई है। विश्वसनीयता में यह गिरावट यूक्रेन युद्ध या फ़िलिस्तीन के ख़िलाफ़ नरसंहार से शुरू नहीं हुई है, हालाँकि इन दोनों घटनाओं ने निश्चित रूप से नाटो देशों के प्रभुत्व के पतन को तेज़ कर दिया है। अंसार अल्लाह के प्रवक्ता मोहम्मद अल-बुखैती ने न्यूयॉर्क में फ़िलिस्तीन समर्थक मार्च का एक वीडियो पोस्ट किया। इस वीडियो में दर्ज भावनाएं शायद दुनिया के अधिकांश लोगों की भावनाओं को बयान करती हैं। अल्लाह ने वीडियो के साथ लिखा: ‘हम अमेरिकी जनता का विरोध नहीं करते, बल्कि अमेरिका की विदेश नीति का विरोध करते हैं जिसके कारण लाखों लोगों की मौत हुई है, दुनिया की सुरक्षा खतरे में है और अमेरिकियों का जीवन भी ख़तरनाक मोड़ पर खड़ा है। आइए हम लोगों के बीच न्याय स्थापित करने के लिए मिलकर संघर्ष करें।’
2007 में तीसरी महामंदी की शुरुआत के बाद से, उत्तरी गोलार्ध धीरे-धीरे विश्व अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी, विज्ञान और कच्चे माल पर अपना नियंत्रण खो रहा है। उत्तरी गोलार्ध में अरबपतियों ने सामाजिक संपत्ति का एक बड़ा हिस्सा टैक्स हेवेन और अनुत्पादक वित्तीय निवेशों में स्थानांतरित कर अपनी ‘टैक्स हड़ताल‘ को और कड़ा कर दिया है। इससे उत्तरी गोलार्ध के देशों के पास आर्थिक शक्ति बने रहने के साधन सीमित हो गए हैं और दक्षिणी गोलार्ध में निवेश करने की उनकी क्षमता भी कम हो चुकी है। इस महीने के अंत में, ट्राइकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ‘द चर्निंग ऑफ़ द ग्लोबल ऑर्डर’ नामक डोसियर और ‘हाइपर-इंपीरियलिज्म: ए डेंजरस डिकैडेंट न्यू स्टेज’ नामक अपना अध्ययन जारी करेगा, जिसमें वर्तमान व्यवस्था की विकृतियों और दक्षिणी गोलार्ध के उदय से बने नए माहौल का विवरण होगा। दक्षिण अफ्रीका द्वारा अंतरराष्ट्रीय न्यायालय में दायर की गई याचिका और कई दक्षिणी देशों से इस कदम के लिए मिल रहा समर्थन इसी नए माहौल का संकेत है।
दुनिया के अधिकांश लोगों को यह स्पष्ट हो चुका है कि पृथ्वी के बड़े संकटों, चाहे जलवायु संकट हो या तीसरी महामंदी के परिणाम का संकट हो, का समाधान ढूंढने में उत्तरी गोलार्ध विफल रहा है। उत्तरी गोलार्ध के देशों ने ‘लोकतंत्र संवर्धन’, ‘सतत विकास’, ‘मानवीय विराम’ जैसे जुमले उछालकर वास्तविकता को ढकने की कोशिश की। ब्रिटेन के विदेश मंत्री डेविड कैमरन से लेकर जर्मनी के विदेश मंत्री एनालेना बेयरबॉक ‘सतत युद्धविराम’ जैसा हास्यास्पद सूत्र प्रस्तुत कर रहे हैं। खोखले शब्द वास्तविकता को छुपा नहीं सकते। इज़रायल को एक तरफ़ हथियार देना और ‘सतत युद्धविराम’ की बात करना या अलोकतांत्रिक सरकारों का समर्थन करते हुए ‘लोकतंत्र संवर्धन’ की बात करना, यह उत्तरी गोलार्ध के राजनीतिक वर्ग के पाखंड को दर्शाता है।
12 जनवरी को, जर्मन सरकार ने एक बयान जारी कर कहा कि वह ‘इज़रायल के खिलाफ लगाए गए नरसंहार के आरोप को दृढ़ता से और स्पष्ट रूप से ख़ारिज करती है।’ नामीबिया की सरकार ने जर्मन सरकार को याद दिलाया कि उन्होंने ‘1904-1908 में 20वीं सदी का पहला नरसंहार किया था, जिसमें अमानवीय और क्रूर तरीके से हजारों निर्दोष नामीबियाई लोग मारे गए थे’। इसे हेरेरो और नामाक्वा नरसंहार के नाम से जाना जाता है। नामीबिया की सरकार ने कहा कि जर्मनी ने ‘अभी भी नामीबिया की धरती पर किए गए नरसंहार का पूरी तरह से प्रायश्चित नहीं किया है’। इसलिए, नामीबिया इज़रायल के अभियोग को अस्वीकार करने के जर्मन सरकार के ‘चौंकाने वाले फैसले पर गहरी चिंता व्यक्त करता है’। यह निश्चय ही दक्षिणी गोलार्ध की बदल रही फ़िज़ा का ही एक संकेत है।
इस बीच, इज़रायल का कहना है कि वह इस नरसंहार को ‘जब तक आवश्यक होगा‘ जारी रखेगा, हालांकि इसे जारी रखने के लिए उसके द्वारा पेश किए जा रहे कारण तेज़ी से कमजोर पड़ते जा रहे हैं। इस हिंसा का असल कारण है नाटो की घटती वैधता, जिसकी नैतिकता एक खूनी पाखंड लगती है।
स्नेह-सहित,
विजय।