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युद्धों का अंत समझौते से होता है, यूक्रेन में भी यही होगा: तीसरा न्यूज़लेटर (2025)

भारी आर्थिक नुक़सान की वजह से यूरोप की जनता में यूक्रेन-युद्ध के ख़िलाफ़ आवाज़ें उठने लगी हैं।

उड़ने के लिए एक नहीं दो पंख, आइशा ख़ालिद और इमरान कुरेशी (पाकिस्तान), 2017

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

उत्तरी अटलांटिक संधि संगठन (नाटो) के मौजूदा सेक्रेटरी जनरल मार्क रूटे कवि नहीं हैं। नाटो के अन्य सेक्रेटरी जनरलों की तरह वह भी एक औसत दर्जे के यूरोपीय राजनेता हैं जिन्हें संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएस) ने अपने लिए नाटो के सारथी के तौर पर बिठा रखा है। (वैसे रूटे चौदह साल से नीदरलैंड के प्रधानमंत्री हैं और किसी तरह कुर्सी बचाए रखने में सफल रहे हैं, पर नेता नहीं बन सके) 12 दिसंबर 2024 को रूटे ने ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में नोबेल पुरस्कार समारोह में एक भाषण दिया। यह आयोजन उस इमारत में हुआ था, जिसका पुनर्निर्माण 1873 में राजा लियोपोल्ड द्वितीय ने करवाया था, जिसने 1885 से 1908 के बीच कांगो पर अपने एकाधिकार के दौरान उसे जमकर लूटा था। रूटे का यह भाषण नाटो की वेब्साइट पर अजीब रूप में छपा है, एक सामान्य लेख की बजाय कविता के रूप में। वैसे तो पूरा भाषण मामूली सा ही है लेकिन इसके चार अनुच्छेद मैं साझा करना चाहता हूँ:

ब्रुसेल्स से यूक्रेन बस एक दिन की दूरी पर है।
और इतनी ही दूरी पर गिर रहे हैं रूसी बम
इतनी ही दूरी पर उड़ रहे हैं ईरानी ड्रोन
और वहाँ से थोड़ी ही दूर उत्तर कोरियाई सैनिक लड़ रहे हैं।
यह युद्ध हर दिन अधिक तबाही और मौत का कारण बनता है।
यूक्रेन में हर हफ्ते हर तरफ से 10,000 से अधिक लोग मारे जाते हैं या घायल होते हैं।
फरवरी 2022 से अब तक 10 लाख से भी अधिक मौतें।

….

रूस, चीन ही नहीं उत्तर कोरिया और ईरान भी लगे हुए हैं
उत्तर अमेरिका और यूरोप को कमज़ोर करने में।
हमारी स्वतंत्रता को कमज़ोर करने में।
वे वैश्विक व्यवस्था को फिर से गढ़ना चाहते हैं।
एक अच्छी व्यवस्था के लिए नहीं, बल्कि अपना दबदबा बनाने के लिए

वे हमें आज़मा रहे हैं।
और बाक़ी दुनिया देख रही है।

नहीं, हम युद्ध में नहीं हैं।
लेकिन शांत भी नहीं बैठे हैं।

…..

और आख़िर नाटो देशों ख़ासतौर से यूरोप के नागरिकों के लिए मैं कहूँगा:
अपने बैंकों और पेंशन फंड से कहो कि उनका रक्षा उद्योग में निवेश न करना
स्वीकार नहीं है।
रक्षा अवैध ड्रग और पोर्नोग्राफी नहीं है।
रक्षा में निवेश हमारी सुरक्षा में निवेश है।
यह आवश्यक है!

….

एक दशक पहले, मित्र देशों ने माना था, रक्षा में फिर निवेश करने का वक़्त है।
सीमा तय की गयी 2%।
2023 तक, नाटो देशों ने ‘कम-से-कम’ 2% निवेश स्वीकार किया।
कम-से-कम…
मैं आपको बता दूँ; हमें 2% से कहीं ज़्यादा की ज़रूरत है।

.

रवानगी की आशा में, ऐलेग्ज़ैंडर बेर्डिशेफ़ (जॉर्जिया), 2024

रूटे ने ऐसी कोई कविता फ़िलिस्तीन या सूडान के लिए नहीं लिखी, जहाँ इससे कहीं ज़्यादा बर्बादी हुई है। सिर्फ़ यूक्रेन के लिए लिखी वो भी कई तथ्य छिपाते और ग़लत बताते हुए, एक ऐसे दौर में जब कि यूरोप में भी इस तनाव को जारी रखने की गुंजाइश नहीं। रूटे की कविता पहले से ही कठोर आर्थिक नीतियों (राज्य के ख़र्च में कटौती, जिसकी सबसे अधिक मार कल्याणकारी नीतियों और योजनाओं को झेलनी पड़ती है) की मार झेल रहे नाटो देशों को अपनी जीडीपी का कम-से-कम 2% रक्षा क्षेत्र में ख़र्च करने के लिए कह रही है। डॉनल्ड ट्रम्प ने पहले ही इस सीमा को बढ़ाकर 5% करने का सुझाव दे दिया है।

नो कोल्ड वॉर की ब्रीफ़िंग संख्या 16 में ग्लोबल दक्षिण और यूरोप में किस तरह यूक्रेन युद्ध को लेकर काफ़ी विरोध हो रहा है, इसका स्पष्ट विश्लेषण है। इसे ध्यान से पढ़ें, डाउनलोड करें और दूसरों के साथ साझा करें। इस दस्तावेज़ की साफ़गोई रूटे के प्रलाप का सीधा जवाब पेश करती है।

यूरोप के लिए 2025 की चुनौती: यूक्रेन में और आगे बढ़ने के नाटो के असफल प्रयासों को रोकना

2022 में जब से यूक्रेन युद्ध की शुरुआत हुई है, दुनिया की आबादी के बड़े हिस्से वाले ग्लोबल दक्षिण ने इस तनाव को लेकर यूएस की नीति की मुख़ालफ़त की है। एक हालिया सर्वे में सामने आया कि इस युद्ध के चलते यूएस ने रूस पर जो प्रतिबंध लगाए, उन्हें ग्लोबल दक्षिण के सिर्फ़ दो देशों ने लागू किया है, भारत ने तो युद्ध के पहले साल में रूस से तेल आयात को दस गुना बढ़ा दिया था। दक्षिण अफ़्रीका के राष्ट्रपति सिरिल रामाफ़ोसा जैसे ग्लोबल दक्षिण के नेताओं ने कहा कि पूर्वी यूरोप में नाटो का विस्तार करने की यूएस नीति ही इस युद्ध की वजह है।

हाल तक यूएस और उसके सहयोगी यूरोपीय देश इस युद्ध का मज़बूती से समर्थन करते आए हैं। लेकिन यह स्थिति अब तेज़ी से बदलती दिख रही है। मीडिया ने ट्रम्प के इस बेबुनियाद दावे को उछाला कि वह 24 घंटे में युद्ध ख़त्म कर सकते हैं लेकिन इस कयासबाजी से यह ठोस सचाई ज़्यादा मज़बूत है कि युद्ध को लेकर आम राय बदल रही है। इससे युद्ध के हमेशा के लिए ख़त्म होने की उम्मीद पैदा हुई है।

खिड़की, गुलशन करमुस्तफ़ा, 1980

पूरे यूरोप में आर्थिक संबंध बहाल करने की ज़रूरत

इस स्थिति में आए बदलाव की सबसे बड़ी वजह आर्थिक है। उदाहरण के लिए 1 जनवरी 2025 को रूस और यूक्रेन के बीच एक पंचवर्षीय गैस पारगमन (ट्रान्ज़िट) समझौता ख़त्म हो गया, इससे यूक्रेन से होकर यूरोप तक होने वाला गैस का निर्यात पूरी तरह बंद हो गया और यह पक्का हो गया कि यूक्रेन सरकार अपने क्षेत्र में फैली पूरी पाइपलाइन को बंद कर देगी। यूएस एक दशक से यही चाह रहा है कि रूस से यूरोप में गैस का सीधा निर्यात ख़त्म हो जाए और उसकी मुराद पूरी हुई। लेकिन इससे यूरोप की जनता के जीवन स्तर में गिरावट आई है, क्योंकि बिजली के दाम आसमान छूने लगे हैं और इसके साथ ही यूरोप की अर्थव्यवस्था को भी बड़ा धक्का लगा है। युद्ध की वजह से बढ़ी क़ीमतों का कई विकासशील अर्थव्यवस्थाओं पर भी असर पड़ा है।

अब यूरोप यूएस के लिक्विड गैस निर्यात पर निर्भर है, जो रूस की गैस से औसतन 30-40% प्रतिशत महँगी है। और तो और यह गैस (एलएनजी) फ्रैकिंग [ज़मीन के नीचे चट्टानों में दरारें पैदा कर उनमें से फँसी गैस या तेल निकालने की प्रक्रिया] के ज़रिए निकाली जाती है, जो परिस्थितिकी तंत्र के लिए बहुत ख़राब होता है और इसे यूरोप तक बड़े-बड़े एलएनजी कैरियर टैंकरों में पहुँचाना भी पर्यावरण के लिए नुक़सानदायक है।

यूरोप को हुए इतने बड़े आर्थिक नुक़सान की वजह से युद्ध के विरुद्ध आवाज़ें उठने लगी हैं, कम-से-कम मज़दूर वर्ग और परिवारों में तो ऐसा हो रहा है। ज़्यादा से ज़्यादा लोगों को समझ आ रहा है कि वे यूक्रेन युद्ध की दोहरी क़ीमत चुका रहे हैं: उनके दिए करों से इतने विशाल युद्ध और सैन्य प्रयासों के लिए ख़र्चा किया जा रहा है और साथ ही इसकी वजह से बिजली के बढ़ते दामों तथा सख़्त आर्थिक नीतियों का दंश भी उन्हें झेलना पड़ रहा है।

जर्मनी में ईसाई डेमोक्रैटिक, कंजरवेटिव, सोशल डेमोक्रैटिक और अन्य मध्यमार्गी-उदारवादी दलों के नेतृत्व ने यूएस द्वारा लादी गई नीतियाँ लागू कीं, जिससे उन्होंने अपनी अर्थव्यवस्था और समाज को नुक़सान पहुँचाया। हाल तक यूरोप के ज़्यादातर देश ऐसे ही यूएस की बात मान लिया करते थे और अब भी ऐसा कर रहे हैं, भले ही उनकी राजनीतिक पार्टियों की लोकप्रियता में इसकी वजह से कमी आ रही है। यूरोप के देशों में सत्ताधारी पार्टियों में से ज़्यादातर अब बेहद अलोकप्रिय हो चुकी हैं और वहाँ ज़ेनोफ़ोबिया और खुले तौर पर नव-फ़ासीवादी/फ़ासीवादी ताक़तों का उभार हुआ है। जर्मनी सहित यूरोप के अन्य हिस्सों में उन राजनीतिक दलों के लिए समर्थन बढ़ा है जो युद्ध के ख़िलाफ़ हैं। कुछ समय से कई राजनेताओं ने खुलकर कहना शुरू कर दिया है कि यूरोप की अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी है यूएस की घातक नीति से अलग हो जाना और रूस से सीधे गैस का आयात बहाल करना, इसके साथ ही ग्लोबल दक्षिण और ब्रिक्स देशों, ख़ासतौर से चीन के साथ व्यापारिक और निवेश संबंधी रिश्तों को फिर से सामान्य करना। पूर्व वित्त मंत्री ऑस्कर लैफौंते ने इस भावना को यह कहते हुए व्यक्त किया कि गैस की सप्लाई बहाल करने के लिए बस रूस को एक बार फ़ोन करने की देर है।

हंसी का तूफ़ान , ऑब्री विल्यम्ज़ (गुयाना), 1977

नाटो यूक्रेन का युद्ध नहीं जीत सकता

जनता की राय बदलने की दूसरी वजह है यूएस और नाटो, दोनों को यूक्रेन युद्ध में हुआ नुक़सान।

ज़ाहिर है नाटो का यूक्रेन में विस्तार मौजूदा वैश्विक परिदृश्य में यूएस समर्थित आक्रामकता का इकलौता उदाहरण नहीं है। ग़ज़ा में भी इज़राइल और यूएस लगार फ़िलिस्तीनी जनता के जनसंहार करने में लगे हैं और इस क्षेत्र के अन्य मुल्कों के लोगों का उत्पीड़न कर रहे हैं, वहां संहारक नीतियाँ लागू कर रहे हैं। लेकिन यूरोप में अमेरिका और उसके मित्र देशों को रूस का सामना करना पड़ रहा है जिसके पास इस महाद्वीप की सबसे ताक़तवर सेना है और लगभग यूएस के मुक़ाबले के परमाणु हथियार भी। ऐसा लगता है कि यूएस किसी भी तरह यह छद्म युद्ध जीत नहीं पा रहा; स्थिति तभी बदल सकती है अगर नाटो सीधे सैन्य हस्तक्षेप करे और परमाणु युद्ध के ख़तरे को दावत दे।

यूक्रेन युद्ध को लंबा खींचा जा रहा है, जिसमें बच्चों सहित हज़ारों लोगों की मौत हो चुकी है और काफ़ी बर्बादी भी, इसी कारण जनता की राय इसे लेकर बदल रही है। यूक्रेन में हुए सर्वे से पता चलता है कि 52% आबादी इस हक़ में है कि ‘यूक्रेन को जल्द-से-जल्द युद्ध ख़त्म करने के लिए समझौता करना चाहिए’। सिर्फ़ 38% ही इस बात का समर्थन कर रहे हैं कि ‘यूक्रेन को जीत हासिल करने तक युद्ध जारी रखना चाहिए’।

रोमानिया में राष्ट्रपति चुनावों का पहला चरण नवंबर में हुआ और युद्ध का विरोध करने वाली उम्मीदवार डायना सोसोआका के चुनाव लड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया गया, इसके बावजूद पहले पायदान पर रहने वाले उम्मीदवार कैलिन जोर्जेस्कु भी युद्ध विरोधी ही थे। यूएस के समर्थन से रोमानिया ने यह चुनाव ही रद्द कर दिया।

दिसंबर 2024 में जर्मनी, ब्रिटेन, फ़्रांस, इटली, स्पेन, स्वीडन और डेनमार्क में हुए यूगॉव सर्वे में देखा गया कि समझौते के लिए लोगों का समर्थन बहुत बढ़ रहा है। इनमें से चार देशों – जर्मनी, फ़्रांस, स्पेन और इटली में तो लोग ज़्यादातर ‘समझौता करके लड़ाई ख़त्म करने के हक़ में थे फिर चाहे यूक्रेन के कुछ हिस्सों पर रूस का क़ब्ज़ा रहे’ बजाय इसके कि ‘यूक्रेन का तब तक साथ दिया जाए जब तक रूस पीछे नहीं हटता भले ही लड़ाई जितनी लंबी चले’।

अमेरिका में सिर्फ़ 23% आबादी सोचती है कि ‘यूक्रेन को समर्थन देना’ यूएस की विदेश नीति की प्राथमिकता होनी चाहिए।

सपने और पूर्वाभास, मारिया सेनोबिया इज़क्वेएर्दो गूट्येरेज़ (मेक्सिको), 1947

यूक्रेन की परिस्थिति

पूरे यूरोप में फिर से सामान्य, परस्पर लाभकारी आर्थिक रिश्ते स्थापित करना इस क्षेत्र की अर्थव्यवस्था के लिए ज़रूरी है, लेकिन यह अमेरिकी साम्राज्यवाद के यूरोप पर थोपे हुए भयानक यूक्रेन युद्ध को रोकने की दिशा में सिर्फ़ पहला क़दम होगा।

यूक्रेन में नाटो के विस्तार के प्रयास ही वहाँ के वर्तमान हालात के लिए ज़िम्मेदार हैं। वहाँ बहुत बड़ी आबादी रूसी-भाषी अल्पसंख्यकों (कुल आबादी का लगभग 30%) की है। ये देश के पूर्वी हिस्से में बहुसंख्यक हैं और दक्षिणपूर्वी हिस्से में अल्पसंख्यक। कनाडा और बेल्जियम जैसे देशों के अनुभवों से साफ़ है कि द्विभाषी राष्ट्र तब तक ही एक रह सकते हैं जब तक तमाम समुदायों को भाषाई और अन्य अधिकारों की मज़बूत गांरटी दी जाए और ऐसी नीतियों से बचा जाए जो किसी भी समुदाय को अस्वीकार्य हों।

इसके बावजूद 2014 के पहले तख़्तापलट के बाद यूएस के समर्थन से कीव सरकार ने रूसी-भाषी अल्पसंख्यकों के अधिकारों को दबाने वाली नीतियाँ लागू कीं। काउन्सिल ऑफ यूरोप्स  वेनिस कमिशन, जिसे कोई भी रूस समर्थक नहीं कह सकता, ने कहा, ‘मौजूदा लॉ ऑन नैशनल मायनॉरिटीज़ अल्पसंख्यकों की सुरक्षा की गारंटी देने के लिए पूरी तरह नाकाफ़ी है… अल्पसंख्यकों की भाषा के उपयोग को रोकने वाले कई प्रावधान 16 जुलाई 2019 से ही लागू हैं’।

युद्ध को हमेशा के लिए ख़त्म करने के लिए ज़रूरी है कि रूसी-भाषी आबादी के दमन और यूक्रेन को नाटो की सदस्यता – दोनों ही सवालों को हल किया जाए।

वूडू अंतरिक्ष यात्री, मिशेक मसामवु (ज़िम्बाब्वे), 2012

युद्ध ख़त्म किए जाने की शर्तें

यूक्रेन में युद्ध ख़त्म करने के लिए यूरोप को ईमानदारी और गम्भीरता से प्रयास करने चाहिए। जनता शांति और प्रगति चाहती है, उसकी राय पर आगे बढ़ना चाहिए और साथ ही मज़दूर वर्ग के शांति के लिए मज़बूत संघर्ष पर भी। यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करने के लिए यूरोप की सामाजिक और राजनीतिक ताक़तों को निम्न क़दम उठाने चाहिए:

  1. बिना शर्तों के शांति समझौते पर चर्चा की शुरुआत।
  2. युद्धविराम की माँग।
  3. यूक्रेन को नाटो की सदस्यता दिए जाने का विरोध।
  4. यूक्रेन भर में भाषाई अधिकारों और यूक्रेन के पूर्वी और दक्षिणपूर्वी हिस्सों में रहने वाले रूसी-भाषियों के आत्मनिर्णय सहित अन्य अधिकारों को मान्यता देना।
  5. यूक्रेन युद्ध में नाटो देशों के हस्तक्षेप को ख़त्म करना, जिसमें सब तरह के हथियारों की बिक्री को रोकना और यूक्रेन से सभी सैनिकों और प्रशिक्षकों को वापस बुलाना शामिल है – इससे जो धन बचेगा उसका इस्तेमाल जनहित के कार्यों पर ख़र्च और सार्वजनिक सेवाओं को बेहतर करने में लगाया जाए।

इस क्षेत्र में यूएस की नीति से जो तबाही हुई है उससे उबरने में यूरोप और बाक़ी दुनिया को काफ़ी वक़्त लगेगा। हमेशा के लिए यूक्रेन युद्ध को ख़त्म करना ही पहला क़दम है।

रुदन, बर्टीना लोपेस (मोज़ाम्बीक), 1970

नो कोल्ड वॉर ने जो उपाय बताए हैं वो न सिर्फ़ तार्किक और मानवीय हैं बल्कि आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता भी। सब युद्धों का अंत समझौतों से होता है। इसका भी ऐसे ही होगा।

सस्नेह,

विजय