प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
इज़रायली सरकार न केवल गाज़ा में, बल्कि वेस्ट बैंक में भी फ़िलिस्तीनियों के साथ जो कर रही है, उससे नज़रें हटाना असंभव है। इज़रायली विमान गाज़ा पर ताबड़तोड़ हमला कर रहे हैं। वहाँ का संचार नेटवर्क तबाह हो चुका है, जिससे लोगों का आपस में मिलना, विनाश पर पत्रकारों की रिपोर्टिंग, और फिलिस्तीनी अधिकारियों व संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों द्वारा प्रदान की जा रही मानवीय सहायता आदि सब कुछ प्रभावित हुआ है। इस हिंसा के ख़िलाफ़ दुनिया भर में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। फ़िलिस्तीनी लोगों पर इस क्रूर बर्बरता से दुनिया के अरबों लोग नाराज़ हैं। इज़रायली सरकार का दावा है कि वह ‘पोलिटिसाइड‘ कर रही है – यानी गाज़ा से संगठित फ़िलिस्तीनी बलों का सफ़ाया कर रही है। लेकिन दुनिया के लोग देख रहे हैं कि इज़रायली विमान और टैंक जेनॉसाइड (नरसंहार) के अलावा कुछ नहीं कर रहे। वो केवल गाज़ा के फ़िलिस्तीनी शरणार्थियों को विस्थापित कर रहे हैं और उनके ख़िलाफ़ हत्याकांड कर रहे हैं। गाज़ा के 81% निवासी वो लोग या उनके वंशज हैं जिन्हें 1948 में तथाकथित रूप से इज़रायल घोषित कर दिए गए इलाक़े से निष्कासित किया गया था। गाज़ा से आ रही तस्वीरें दिखाती हैं कि इज़रायली हमलों में कोई भी नहीं बख्शा जा रहा, न बच्चे, न महिलाएँ, न बुजुर्ग और न ही बीमार। एक के बाद एक नरसंहार और युद्ध हो रहे हैं। लेकिन दुनिया उन्हें रोकने में विफल रही है। यह दिखाता है कि हमारी अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था कितनी जर्जर है।
संयुक्त राष्ट्र में निहित इस अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था ने पहले यूक्रेन में युद्ध कराया और अब कोरियाई प्रायद्वीप और ताइवान के इर्द–गिर्द उत्तर–पूर्व एशिया में खतरनाक मुठभेड़ को बढ़ावा दे रही है। हालांकि अमेरिका और चीन के बीच, पूर्व अमेरिकी सदन की अध्यक्ष नैन्सी पेलोसी के ताइवान दौरे के बाद से, अगस्त 2022 से निलंबित सैन्य वार्ता के फिर से शुरू होने के संकेत मिल रहे हैं, लेकिन उत्तर–पूर्व एशिया के सागरों में तनाव कम होते नहीं दीखते। इस कारण से, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान, नो कोल्ड वॉर और इंटरनेशनल स्ट्रैटेजी सेंटर ने मिलकर ब्रीफिंग नं. 10, ‘अमेरिका और नाटो उत्तर–पूर्व एशिया का सैन्यीकरण कर रहे हैं‘ तैयार की है। आगे के न्यूज़लेटर में यह ब्रीफ़िंग पढ़ें।
22 अक्टूबर को, संयुक्त राज्य अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया ने अपना पहला संयुक्त हवाई अभ्यास आयोजित किया। अगस्त में ‘त्रिपक्षीय साझेदारी के एक नए युग का उद्घाटन करने के लिए‘ अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन, जापान के प्रधान मंत्री फुमियो किशिदा और दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति यून सुक येओल कैंप डेविड में मिले थे। इस बैठक के बाद ही यह सैन्य अभ्यास हुआ है। हालाँकि सैन्यीकरण को सही ठहराने के लिए उत्तर कोरिया को अक्सर क्षेत्रीय हौवे के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है, लेकिन अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय गठबंधन चीन को नियंत्रित करने के लिए वाशिंगटन के प्रयासों का एक प्रमुख तत्व है। उत्तर–पूर्व एशिया के सैन्यीकरण से क्षेत्र विरोधी गुटों में विभाजित हो सकता है, जिससे दशकों के पारस्परिक आर्थिक सहयोग को नुक़सान पहुँचेगा, और ताइवान को लेकर टकराव की संभावना भी बढ़ सकती है, जिससे पड़ोसी देश गठबंधनों के विभाजनकारी जाल में फँस सकते हैं।
जापान का पुनःसैन्यीकरण
हाल के वर्षों में, संयुक्त राज्य अमेरिका के इशारों पर, जापान ने द्वितीय विश्व युद्ध के बाद से अपना सबसे व्यापक सैन्यीकरण किया है। जापान की हार के बाद, अमेरिकी अधिकारियों द्वारा एक नया युद्धोत्तर संविधान तैयार किया था जो 1947 में लागू हुआ था। इस ‘शांति संविधान‘ के तहत, जापान ने ‘युद्ध…’ और ‘अंतर्राष्ट्रीय विवादों को हल करने के लिए धमकाने या बल प्रयोग जैसे साधनों का उपयोग हमेशा के लिए त्यागने‘ का वादा किया था। लेकिन, 1949 में चीनी क्रांति और 1950 में कोरियाई युद्ध शुरू होने के साथ ही, अमेरिका ने जापान में अपना रुख बदल दिया। अमेरिकी विदेश विभाग के इतिहासकारों के अनुसार, ‘एक पुनः सशस्त्र और उग्र जापान के विचार से अब अमेरिकी अधिकारी चिंतित नहीं थे; इसके बजाय, [उन्हें] साम्यवाद का विस्तार, विशेषकर एशिया में, वास्तविक ख़तरा प्रतीत हो रहा था।‘ जापान के ‘शांति संविधान‘ में संशोधन करने और उस संविधान को दरकिनार करने का ज़िम्मा दक्षिणपंथी राष्ट्रवादी लिबरल डेमोक्रेटिक पार्टी (एलडीपी) ने उठाया, जिसे शीत युद्ध के दौरान अमेरिकी केंद्रीय खुफिया एजेंसी (सीआईए) से लाखों डॉलर की सहायता मिली थी। यह पार्टी (केवल 1993-1994 और 2009-2012 को छोड़कर) जापान पर 1955 से लगभग बिना किसी रुकावट के शासन कर रही है।
पिछले एक दशक में, एलडीपी ने जापान की रक्षा नीति को बदल डाला है। 2014 में, संविधान में संशोधन करने में असमर्थ, शिंजो आबे के नेतृत्व वाली एलडीपी सरकार ने ‘सक्रिय शांतिवाद‘ को बढ़ावा देने के नाम पर संविधान की ‘पुनर्व्याख्या‘ कर विदेशों में युद्ध में शामिल होने से जापानी सैनिकों को रोकने वाला प्रतिबंध हटा दिया। यानी जापान अमेरिका जैसे सहयोगियों की सहायता करने हेतु अब सैन्य हस्तक्षेप में भाग लेने के लिए सक्षम हो गया। 2022 में, किशिदा प्रशासन ने चीन को ‘जापान में शांति और स्थिरता हासिल करने में अब तक की सबसे बड़ी रणनीतिक चुनौती‘ करार दिया और सैन्य खर्च को सकल घरेलू उत्पाद के 1% तक सीमित रखने की युद्धोतर प्रतिबद्धता से उलट जाकर 2027 तक अपने सैन्य खर्च को दोगुना कर सकल घरेलू उत्पाद का 2% (नाटो देशों के बराबर) करने की योजना का ऐलान किया। इसके अलावा, प्रशासन ने 1956 की वह नीति रद्द कर दी जो मिसाइली हमलों से बचाव के लिए जापान की मिसाइल क्षमता को सीमित करती थी और इसकी बजाय एक ऐसी नीति अपनाई जो कि जवाबी हमले की अनुमति देती है। इस कदम ने जापान के लिए साल 2025 से 400 अमेरिकी टॉमहॉक मिसाइलें खरीदने का मार्ग प्रशस्त कर दिया है, जिन मिसाइलों के द्वारा जापान को अपने पूर्वी तटों पर स्थित चीनी और रूसी नौसैनिक अड्डों पर हमला करने की अनुमति होगी।
उपनिवेशवाद के अपराधों से दोषमुक्त हुआ जापान
ऐतिहासिक रूप से, एशिया–प्रशांत क्षेत्र में बहुपक्षीय गठबंधन बनाने के वाशिंगटन के प्रयास जापानी उपनिवेशवाद की विरासत के कारण विफल रहे हैं। शीत युद्ध के दौरान, अमेरिका ने इस क्षेत्र के देशों के साथ द्विपक्षीय गठबंधनों के नेटवर्क का सहारा लिया, जिसे सैन फ्रांसिस्को प्रणाली के नाम से जाना जाता है। इस प्रणाली का पहला कदम सैन फ्रांसिस्को शांति संधि (1951) था, जिसने ऐलाइड शक्तियों और जापान के बीच शांतिपूर्ण संबंध स्थापित किये। एक सहयोगी के रूप में जापान के एकीकरण की प्रक्रिया को तेज़ करने के लिए, अमेरिका ने सैन फ्रांसिस्को शांति सम्मेलन से जापानी उपनिवेशवाद के पीड़ितों (चीन, ताइवान में कुओमिंतांग के नेतृत्व वाले प्रशासन और उत्तरी व दक्षिणी कोरिया) को बाहर रखा और टोक्यो को उसके (नरसंहार, यौन दासता, मानव प्रयोग और जबरन श्रम आदि) उपनिवेश व युद्ध के अपराधों से दोषमुक्त कर दिया।
अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच नया त्रिपक्षीय गठबंधन पुरानी बाधाओं को दूर करने में इसलिए सक्षम रहा है क्योंकि दक्षिण कोरिया के यून प्रशासन ने जापान के सिर से उसके द्वारा कोरिया में औपनिवेशिक शासन (1910-1945) के दौरान किए गए अपराधों का इल्ज़ाम हटा दिया है। विशेष रूप से, यून प्रशासन ने 2018 में दक्षिण कोरिया के सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए फैसले को वापिस ले लिया है, जिसके तहत मित्सुबिशी जैसी जापानी कंपनियों को कोरियाई लोगों से जबरन श्रम करवाने के लिए जिम्मेदार ठहराया गया था। जवाबदेह ठहराए जाने के बजाय, जापान को एक बार फिर से दोषमुक्त कर दिया गया है।
एशियाई नाटो की शुरुआत?
2022 में नाटो ने पहली बार 2022 में चीन को सुरक्षा चुनौती बताया था। उस वर्ष के शिखर सम्मेलन में एशिया–प्रशांत क्षेत्र के नेताओं ने भी भाग लिया था, जिसमें जापान, दक्षिण कोरिया, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के नेता शामिल थे (इन चारों देशों ने 2023 के शिखर सम्मेलन में भी भाग लिया)। इस बीच, मई में, यह सामने आया कि नाटो जापान में एक ‘संपर्क कार्यालय‘ खोलने की योजना बना रहा था, हालांकि ऐसा लगता है कि यह प्रस्ताव अभी के लिए स्थगित कर दिया गया है।
अमेरिका–जापान–दक्षिण कोरिया के बीच त्रिपक्षीय गठबंधन एशिया में नाटो–स्तरीय क्षमताओं, यानी सशस्त्र बलों, अधोसंरचना और सूचना के संबंध में अंतरसंचालन की क्षमताओं, को प्राप्त करने की दिशा में एक बड़ा कदम है। अगस्त में कैंप डेविड बैठक में हुआ समझौता प्रत्येक देश को वार्षिक बैठकों और सैन्य अभ्यासों में भाग लेने के लिए प्रतिबद्ध करता है। ये युद्ध अभ्यास तीनों सेनाओं को आँकड़े साझा करने और वास्तविक समय में अपनी गतिविधियों का समन्वय करने की अनुमति देते हैं। इसके अलावा, जापान और दक्षिण कोरिया के बीच जनरल सिक्योरिटी ऑफ मिलिट्री इंफॉर्मेशन एग्रीमेंट (GSOMIA) – जिसके लिए अमेरिका बेक़रार है – के तहत दोनों देश आपसी सैन्य खुफिया जानकारी बड़े स्तर पर साझा कर सकते हैं। यानी केवल ‘डीपीआरके की मिसाइलों और परमाणु कार्यक्रमों तक सीमित‘ जानकारी नहीं, बल्कि ‘चीन और रूस से होने वाले ख़तरों‘ की जानकारी भी साझा होगी। इसके माध्यम से अमेरिका, जापान और दक्षिण कोरिया एक नज़रिए से ऑपरेट करेंगे, और यही उत्तर–पूर्व एशिया के सैन्य रंगमंच में अंतरसंचालन के लिए नींव का पत्थर है।
शांति अभियान
इस साल की शुरुआत में, एशिया–प्रशांत के संदर्भ में, चीन में अमेरिकी राजदूत निकोलस बर्न्स ने घोषणा की कि उनका देश ‘इस क्षेत्र का नेता‘ है। जबकि चीन ने ‘अविभाज्य सुरक्षा‘ की अवधारणा प्रस्तावित की है, जिसका अर्थ है कि किसी एक देश की सुरक्षा बाकी सभी देशों की सुरक्षा पर निर्भर है। अमेरिका एक शत्रुतापूर्ण दृष्टिकोण अपना रहा है, और विशेष गुट बनाना चाहता है। एशिया के प्रति वाशिंगटन का आधिपत्यवादी रवैया यहाँ तनाव बढ़ा रहा है और क्षेत्र को टकराव व युद्ध की ओर धकेल रहा है – विशेष रूप से ताइवान में, जिसे बीजिंग ने ‘रेड लाइन‘ मुद्दा करार दिया है। उत्तर–पूर्व एशिया में स्थिति को शांत बनाए रखने के लिए यह जरूरी है कि अमेरिकी प्रभुत्व को बरकरार रखने पर केंद्रित रणनीति से दूरी बनाई जाए। इस अभियान का नेतृत्व वही लोग करे सकेंगे जो कि पहले से ही जुझारू संघर्ष लड़ रहे हैं। इनमें गैंगजॉन्ग के ग्रामीण निवासी शामिल हैं, जो 2007 से अमेरिकी युद्धपोतों के लिए एक नौसैनिक अड्डा बनाने का विरोध कर रहे हैं। इनमें ओकिनाव के लोग शामिल हैं जो ताइवान के लोगों के लिए अमेरिका का विमान वाहक अब और नहीं बनना चाहते, क्योंकि उन्हें क्षेत्र में युद्ध होने से सबसे ज़्यादा नुक़सान उठाना पड़ेगा।
उत्तर–पूर्वी एशिया में इतिहास के बदसूरत और निराशाजनक पक्ष के खिलाफ अच्छे पक्ष को स्थापित करने के हक़ में लड़े गए संघर्षों की एक लंबी परंपरा रही है। किम नाम–जू (1946-1994) इन संघर्षों के योद्धाओं में से एक थे। वे एक कवि थे और दक्षिण कोरिया में तानाशाही के खिलाफ मिनजंग जन–आंदोलन में सक्रिय रहे। तानाशाही शासन ने उन्हें और कई अन्य लोगों को 1980 से 1988 तक कारावास में रखा। 1980 में ग्वांगजू हत्याकांड पर उनकी कविता पढ़ें:
वह मई का एक दिन था।
वह मई 1980 का एक दिन था।
वह मई 1980 की एक रात थी, ग्वांगजू में।
आधी रात को मैंने देखा
पुलिस की जगह लड़ाकू पुलिस आ गई।
आधी रात को मैंने देखा
लड़ाकू पुलिस की जगह सेना आ गई।
आधी रात को मैंने देखा
अमेरिकी नागरिक शहर छोड़कर जाने लगे।
आधी रात को मैंने देखा
शहर में आने की कोशिश कर रहे सभी वाहनों को रोक दिया गया।
ओह, कैसी निराशाजनक रात थी वह!
ओह, कैसी जानबूझकर थोपी गई रात थी वह!
वह मई का एक दिन था.
वह मई 1980 का एक दिन था।
वह मई 1980 का एक दिन था, ग्वांगजू में।
दोपहर को मैंने देखा
खुकरियों से लैस सैनिकों का एक दस्ता ।
दोपहर को मैंने देखा
सैनिकों का एक दस्ता जैसे किसी विदेशी मुल्क ने किया हो हमला।
दोपहर को मैंने देखा
सैनिकों का एक दस्ता जैसे डाकुओं का दल लोगों को हो लूटता।
दोपहर को मैंने देखा
सैनिको का एक दस्ता जैसे शैतान का कोई अवतार हो उतरा।
ओह, कैसी भयानक दोपहर थी वह!
ओह, कैसी क्रूर दोपहर थी वह!
वह मई का एक दिन था.
वह मई 1980 का एक दिन था।
वह मई 1980 की एक रात थी, ग्वांगजू में।
आधी रात में
शहर अनगिनत घावों से लैस दिल बन गया था।
आधी रात में
सड़क पर लावे की तरह खून का दरिया बह रहा था।
1 बजे
हवा ने एक युवा, मर चुकी महिला के खून से सने बालों को हिलाया।
आधी रात में
रात एक बच्चे की गोलियों की तरह बाहर निकल चुकी आँखों पर आकर रुक गई।
आधी रात में
हत्यारे लाशों के पहाड़ के बीच से आगे बढ़ते रहे।
ओह, कितनी डरावनी रात थी वह!
ओह, क़त्लेआम की कैसी सोची–समझी रात थी वह!
वह मई का एक दिन था.
वह मई 1980 का एक दिन था।
दोपहर में
आसमान लाल खून से सना कपड़ा बन गया था.
दोपहर में
गलियों में, हर दूसरे घर से चीखें सुनाई दे रही थीं।
मुडेउंग पर्वत ने अपनी ओढ़नी में अपना मुँह छिपा लिया।
दोपहर में
यंगसन नदी अपनी सांस रोककर मर गई।
ओह, ग्वेर्निका हत्याकांड भी इस हत्याकांड जितना भयानक नहीं था!
ओह, शैतान की साजिश भी इस सोची–समझी साज़िश जितनी ख़तरनाक नहीं थी!
आज ‘ग्वांगजू‘ की बजाय इस कविता में ‘गाज़ा‘ लिखा जा सकता है। उत्तर–पूर्वी एशिया में स्थितियाँ तेज़ी से बदल रही हैं और दक्षिण–पश्चिम एशिया में गाज़ा एक ऐसा युद्ध झेल रहा है जो अभी थमता हुआ नहीं दिख रहा। उत्तर–पूर्वी एशिया में जो कुछ हो रहा है उससे हम गाज़ा की स्थिति के बारे में अपनी समझ को पैना कर सकते हैं।
स्नेह–सहित,
विजय।