रेड अलर्ट संख्या 9 चीन के ख़िलाफ़ अमेरिका का हाइब्रिड युद्ध।
क्या अमेरिका चीन के ख़िलाफ़ युद्ध करने की कोशिश कर रहा है?
पिछले कई दशकों से अमेरिका ने चीन के ख़िलाफ़ व्यापार युद्ध छेड़ा हुआ है। संयुक्त राज्य अमेरिका की चिंता के दो प्रमुख कारण हैं: 1) व्यापार असंतुलन, जिससे चीन को लाभ होता है और, 2) चीन की प्रौद्योगिकी क्षेत्र में वृद्धि। अमेरिका चीन के ख़िलाफ़ कई तरह के हथकंडों का इस्तेमाल करता रहा है। जैसे चीन पर डॉलर के अनुसार अपनी मुद्रा का पुनर्मूल्यांकन करने का दबाव बनाना, चीन की घरेलू बौद्धिक संपदा के विकास को धीमा करने के लिए उस पर बौद्धिक संपदा की ‘चोरी’ रोकने के लिए दबाव डालना, और चीन के बेल्ट एंड रोड परियोजना को बाधित करना।
अमेरिका ने अब चीनी अर्थव्यवस्था के ख़िलाफ़ युद्ध शुरू कर दिया है। हुआवेई और ज़ेडटीई को उनके आपूर्तिकर्ताओं और उनके बाज़ारों से अलग करने की कोशिशें चीन की अर्थव्यवस्था को प्रभावित करेंगी। अमेरिका ने हुआवेई और ज़ेडटीई के लिए चिप्स व अन्य सामान बनाने वाली लगभग 152 कम्पनियों पर प्रतिबंध लगा दिया है। अमेरिका की सरकार की क्लीन नेटवर्क पहल के नाम पर बढ़े प्रतिबंध अमेरिकी कम्पनियों को चीनी क्लाउड सेवाओं और अंडर-सी केबल्स का उपयोग करने से रोकेंगे और चीनी ऐप्स को ऐप स्टोर पर प्रदर्शित नहीं होने देंगे। अमेरिकी सरकार ने दूसरे देशों पर इस अभियान में शामिल होने के लिए दबाव डाला है।
अमेरिकी सरकार ने चीन के पूर्वी किनारे पर अपनी सैन्य कार्रवाइयाँ बढ़ा दी हैं। इन कार्रवाइयों में ऑस्ट्रेलिया, भारत, जापान और अमेरिका के चतुष्कोणीय सुरक्षा संवाद यानी क्वाड्रिलैटरल सिक्योरिटी डाइयलॉग (क्वाड) को 2017 में पुनर्स्थापित करना, अमेरिका की भारत-प्रशांत रणनीति (जिसका साल 2020 का प्रमुख दस्तावेज़ है, ‘रीगेन द एडवांटेज’) को पुख़्ता करना और साइबर हथियारों सहित नये हथियार तैयार करना शामिल है। इन सब गतिविधियों के साथ-साथ चीन (विशेष रूप से हांगकांग, शिनजियांग और ताइवान से सम्बंधित मामलों में) के ख़िलाफ़ आक्रामक बयानबाज़ी और कोरोनावायरस महामारी को ‘चीनी वायरस’ साबित करने की कोशिशें भी जारी हैं। उनके लिए साक्ष्य कोई मायने नहीं रखता, चीन को बदनाम करने के लिए नस्लवादी और कम्युनिस्ट-विरोधी विचार ही काफ़ी हैं।
अमेरिका चीन के ख़िलाफ़ अपना दबाव क्यों बढ़ा रहा है?
चीन को उसके तकनीकी विकास के चलते पश्चिम के देशों के मुक़ाबले पीढ़िगत लाभ मिल सकता है। चीन का वैज्ञानिक और तकनीकी विकास उसके उच्च शिक्षा क्षेत्र में निवेश करने और चीन में विभिन्न वस्तुओं का निर्माण करने के लिए फ़र्मों से प्रौद्योगिकी स्थानांतरित करने की देश की क्षमता के कारण संभव हुआ है। 2018 में, चीनी विद्वानों ने पहली बार अमेरिका में अपने सहयोगियों की तुलना में अधिक वैज्ञानिक लेख प्रकाशित किए, और चीनी कम्पनियों ने अमेरिकी फ़र्मों की तुलना में अधिक पेटेंट आवेदन दायर किए। चीनी तकनीकी कम्पनियाँ अब ऐसी वस्तुओं का उत्पादन कर रही हैं जो अमेरिका, यूरोप और जापान के उत्पादों के मुक़ाबले बेहतर हैं। इनमें 5G, BeiDou (GPS से बेहतर मैपिंग तकनीक), हाई-स्पीड ट्रेनें और रोबोट शामिल हैं।
अमेरिका के दबाव का मुक़ाबला करने के लिए, चीन ने स्वतंत्र व्यापार और विकास का एजेंडा बनाया। विश्व वित्तीय संकट के बाद से, चीन अमेरिका और यूरोपीय बाज़ारों पर निर्भरता कम करने के लिए, अपने आंतरिक बाज़ार को मज़बूत बनाने और दक्षिणी गोलार्ध के देशों के साथ रिश्ते बढ़ाने के प्रयास कर रहा है। इन कारणों से चीन ने जो परियोजनाएँ शुरू कीं, उनमें बेल्ट एंड रोड परियोजना, द स्ट्रिंग ऑफ़ पर्ल्स परियोजना, चाइना-अफ़्रीका सहयोग संगठन, शंघाई सहयोग संगठन और चाइना-कम्युनिटी ऑफ़ लैटिन अमेरिकन एंड कैरिबियन स्टेट्स फ़ोरम शामिल हैं। चीनी सरकार ने दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों का संगठन (आसियान) पर भी ध्यान देना शुरू कर दिया है। इन गतिविधियों के साथ ही चीनी सरकार ने देश में ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम भी जारी रखा है।
चीन ऊर्जा के लिए आयात पर ही निर्भर है। जैसे कि ऑस्ट्रेलिया, क़तर और आसियान देशों से गैस का आयात का जाता है। चीन और रूस के बीच 6000 किलोमीटर की ‘पावर ऑफ़ साइबेरिया’ पाइपलाइन द्वारा चीन में 38 अरब घन मीटर प्राकृतिक गैस आएगा। चीन में 9 अरब घन मीटर गैस की खपत होती है। इस माँग को पूरा करने की दिशा में ये पाइपलाइन एक महत्वपूर्ण क़दम है। 2014 में, रूस की बहुराष्ट्रीय ऊर्जा निगम गज़प्रोम और चाइना नेशनल पेट्रोलियम कॉरपोरेशन ने 40 अरब डॉलर के तीस साल के सौदे पर हस्ताक्षर किया था।
चीन लगातार पश्चिम द्वारा नियंत्रित व्यापार और विकास संरचनाओं से अलग स्वतंत्र संस्थानों का निर्माण करने का प्रयास कर रहा है। जैसे कि 2014 में एशियन इन्फ्रास्ट्रक्चर इन्वेस्टमेंट बैंक की स्थापना। चीन विश्व व्यापार में डॉलर के प्रभुत्व को कम करना चाहता है। डॉलर के इस्तेमाल को ख़त्म करने के लिए प्रतिबद्ध चीन ने अमेरिकी डॉलर के अलावा अन्य मुद्राओं में अपने भंडार रखने और व्यापार करने का प्रस्ताव दिया है। यह वॉल स्ट्रीट के दबदबे को चुनौती देने वाला दीर्घकालिक लेकिन अपरिहार्य क़दम है। इस दिशा में रूस के साथ चीन का सहयोग ख़ासी ऊँचाइयाँ हासिल कर चुका है। रूस और चीन के बीच होने वाले व्यापार का लगभग 50% रूबल और युआन में होता है (वैश्विक युआन भंडार का लगभग 25% हिस्सा रूस के पास है)। रूस और चीन दोनों अपने डॉलर भंडार बेच रहे हैं। जनवरी 2020 में, रूस ने अपने डॉलर भंडार में से 10.1 अरब डॉलर यानी आधा डॉलर भंडार बेचकर, 4.4 अरब डॉलर का यूरो और 4.4 अरब डॉलर का युआन ख़रीदा है। जबकि, युआन वैश्विक मुद्रा भंडार का केवल 2% है।
नाटो के पूर्ववर्ती विस्तार और क्वाड की स्थापना के ख़िलाफ़, चीन और रूस भी सैन्य और राजनयिक यूरेशियन सुरक्षा ब्लॉक तैयार कर रहे हैं। उनके बीच के हथियार सौदों, सैन्य अभ्यासों और विशेष रूप से बढ़ते कूटनीतिक समन्वय द्वारा इसे समझा जा सकता है। उदाहरण के लिए, रूस और चीन के विदेश मंत्रालयों के प्रवक्ता मारिया ज़खारोवा और हुआ चुनयिंग ने जुलाई के अंत में कहा कि वे मिलकर चीन और रूस के ख़िलाफ़ चल रहे सूचना युद्ध का सामना करेंगे। चीनी राजनयिक अब ज़्यादा खरे बयान दे रहे हैं; उन्हें ‘वुल्फ़ वॉरियर डिप्लोमेट्स’ कहा जाने लगा है। एक लोकप्रिय फ़िल्म में ‘वुल्फ़ वॉरियर’ दल का एक चीनी सैनिक अमेरिकी नौसेना के किसी पूर्व-अधिकारी के नेतृत्व में काम कर रहे आतंकवादियों के एक समूह को मात देता है। (‘वुल्फ़ वॉरियर’ पहले हमला करने की आक्रामक राजनयिक रणनीति है, जैसे भेड़िया किसी जानवर या मनुष्य पर आक्रमण करता है।)
अमेरिका समझ चुका है कि चीन गोर्बाचेव की तरह संयुक्त राज्य अमेरिका की इच्छानुसार चीनी मॉडल का आत्मसमर्पण करने को तैयार नहीं है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के खंडित हो जाने की कोई संभावना नहीं है। चीनी मध्यम वर्ग -जो ‘बहुरंगी क्रांति’ का कारण बन सकता है- सरकार बदलने के मूड में नहीं है। वो सरकार द्वारा उठाए जा रहे क़दमों से संतुष्ट है और देख भी रहा है कि सरकार ने लोगों का जीवन स्तर सुधारा है और (जैसा कि हमारे ‘कोरोनाशॉक’ अध्ययनों से उजागर हुआ) पश्चिमी देशों की सरकारों के मुक़ाबले कोरोनावायरस महामारी का बेहतर प्रबंधन किया है। हार्वर्ड विश्वविद्यालय के एक अध्ययन से पता चलता है कि चीन की कम्युनिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली सरकार पर साल 2003 से साल 2016 के बीच जनता का विश्वास बढ़ा है। इसका मुख्य कारण सरकार द्वारा चलाए गए समाज कल्याण कार्यक्रम और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी व चीन की सरकार दोनों का भ्रष्टाचार रोकने का संकल्प शामिल है। 93% जनता मौजूदा सरकार को पसंद करती है।
अमेरिकी युद्ध परियोजना के सामने क्या विरोधाभास हैं?
अपने आर्थिक विकास के कारण चीन उन देशों के पूँजीवादी क्षेत्रों के साथ गठबंधन करने में कामयाब हो पाया है जो पहले अमेरिका के सुरक्षित सहयोगी थे। अमेरिका के मुक़ाबले ज़्यादा विकास सहायता देकर व्यापारिक सौदों में पश्चिमी फ़र्मों को पछाड़ने की क्षमता के कारण ऐसा मुमकिन हो रहा है। उदाहरण के लिए फिलीपींस और श्रीलंका के पूँजीपति ख़ेमों ने चीनी निवेश का स्वागत किया गया है।
चीनी सरकार ने देश के अंदर तकनीकी क्षेत्र में अपना हस्तक्षेप बढ़ाया है। सरकार ने प्रौद्योगिकी विकास के लिए 14 अरब डॉलर का निजी और सार्वजनिक फ़ंड दिया है। चीन की शीर्ष चिप कम्पनी -सेमीकंडक्टर मैन्युफैक्चरिंग इंटरनेशनल कॉरपोरेशन (SMIC)- को शंघाई में उसके प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव (IPO) में 75 करोड़ डॉलर फ़ंड मिला। इस तरह के फ़ंड देने से और देश के वैज्ञानिक विकास के परिणामस्वरूप, चीन जल्द ही अमेरिकी चिप फ़र्मों से आगे निकल सकता है।
विभिन्न देशों के पूँजीवादी ख़ेमों पर चीन का प्रभाव है। ऑस्ट्रेलियाई खनन कम्पनियाँ चीन द्वारा लौह अयस्क के आयात पर निर्भर हैं। ये कम्पनियाँ कैनबरा पर चीन के ख़िलाफ़ अत्याधिक आक्रामक रुख़ अख़्तियार न करने का दबाव बनाती हैं। सोया, जौ, मांस, फल, गैस और कच्चे खनिज मिलाकर, ऑस्ट्रेलिया का एक तिहाई निर्यात चीन को जाता है। ऑस्ट्रेलियाई सरकार, अपने दूरगामी परिप्रेक्ष्य के बावजूद खनन कम्पनियों के अल्पकालिक सरोकारों को ध्यान में रखने के लिए मजबूर है। लेकिन, चीन अभी से ही ख़ुद को सुरक्षित कर रहा है। चीन ने अर्जेंटीना और ब्राज़ील से सोया और मांस की ख़रीद बढ़ा दी है, और संभावना है कि आने वाले समय में चीन ब्राज़ील से खनन उत्पाद ख़रीदने लगेगा (ब्राज़ील की कम्पनी वेल चीन में खनन उत्पाद ले जाने के लिए बड़े जहाज़ों का उपयोग कर रही है)।
दूसरी ओर अमेरिकी सेना वेनेजुएला और ईरान और अब चीन के साथ लड़ाइयों में उलझी हुई है। अमेरिकी नौसेना में बीते एक वर्ष में चार सचिव बदले गए हैं, ये ट्रम्प प्रशासन की अराजकता को दर्शाता है। इन सब के नतीजे में, अमेरिकी नौसेना ने एक साथ कई युद्ध संभालने की क्षमता न होने के बारे में शिकायत की है। वहीं चीन अपना रक्षा तंत्र विकसित कर रहा है। चीन ने अपनी साइबर युद्ध तकनीकें मज़बूत की हैं, जिनमें अमेरिकी ख़बरों/संचार को सैटेलाइट से ही बंद करने की क्षमता शामिल है। चीन के डोंगफेंग मिसाइल दक्षिण चीन सागर में गश्त कर रहे जो अमेरिकी नौसेना के जहाज़ों को मार गिराने में सक्षम है।