तीसरी दुनिया के ख़िलाफ़ तख़्तापलट: चिली, 1973
डोसियर नं. 68
पेट्रीसिया इज़राइल और अल्बर्टो पेरेज़ (चिली), अमेरिका जाग रहा है, 1972। सिल्कस्क्रीन प्रिंट, 144 x 110 सेमी।
इस डोसियर में शामिल तस्वीरें और कलाकृतियाँ 1973 के चिली तख़्तापलट के बाद सुरक्षित बची रहीं तस्वीरों और कलाकृतियों में से ली गई हैं। तख़्तापलट से पहले, ये Museo de la Solidaridad (सॉलिडेरिटी म्यूज़ियम) के संग्रह में शुमार थीं। यह म्यूज़ियम अमेरिका और यूरोप से कलाकृतियों के दान को प्रोत्साहित करने के लिए पॉपुलर यूनिटी सरकार द्वारा शुरू की गई एक परियोजना थी। यह परियोजना 1971 में शुरू होकर 1973 के तख़्तापलट तक जारी रही, और इसका उद्देश्य चिली के लोगों के लिए अंतर्राष्ट्रीय कला का एक संग्रहालय बनाना था। हालाँकि, तख्तापलट के बाद, उनमें से कई कलाकृतियाँ नष्ट हो गईं।
संग्रहालय तबाह कर देने के लिए तख़्तापलट शासन के अनेकों प्रयासों के बावजूद, चिली के भूमिगत और निर्वासित सांस्कृतिक कार्यकर्ताओं ने 1975 और 1990 के बीच साल्वाडोर अलेंदे इंटरनेशनल म्यूजियम ऑफ रेसिस्टेंस के नाम से विदेश में इस संस्थान को पुनर्जीवित किया। चिली में लोकतंत्र की वापसी के बाद, 1991 में इस परियोजना को वापस चिली में शुरू किया गया और अब इसे साल्वाडोर अलेंदे सॉलिडेरिटी म्यूजियम (MSSA) कहा जाता है।
(ऑगस्टो पिनोशे के सिपाहियों द्वारा मार्क्सवादी किताबों व ‘अमेरिका जाग रहा है‘ तस्वीर के जलाए जाने वाली तस्वीर के अलावा) इस डोसियर में शामिल सभी छवियाँ MSSA से साभार ली गई हैं।
ऑगस्टो पिनोशे के सैनिक मार्क्सवादी किताबों और सिल्कस्क्रीन प्रिंट में बना ‘अमेरिका जाग रहा है‘ चित्र जला रहे हैं, 28 सितंबर 1973। श्रेय: सेंट्रल इंटेलिजेंस एजेंसी फ़्रीडम ओफ़ इन्फ़र्मेशन ऐक्ट, वीक्ली रिव्यू; विकिमीडिया कॉमन्स।
प्रस्तावना
पाब्लो मोनजे–रेयेस, INSTITUTO DE CIENCIAS ALEJANDRO LIPSCHUTZ CENTRO DE PENSAMIENTO E INVESTIGACIÓN SOCIAL Y POLÍTICA के निदेशक
चिली, उसकी समाजवादी कोशिशों पर हुए दमन, और लैटिन अमेरिकी क्षेत्र के अन्य देशों तथा वैश्विक दक्षिण के तमाम देशों में आज जारी प्रक्रियाओं के बीच के संबंध को चिली के आधिकारिक इतिहास और मीडिया आख्यानों में से व्यवस्थित रूप से मिटा दिया गया है। इन प्रक्रियाओं की परस्पर निर्भरता, पॉपुलर यूनिटी परियोजना के लिए एकजुटता व समर्थन, और अंतर्राष्ट्रीयता के नए रूपों को जन्म देने के लिए उपयोग की जाने वाली रणनीतियाँ कुछ वामपंथियों के स्मृति पटल से भी ग़ायब हो गई हैं; और इससे नवउदारवादी परियोजना को मज़बूत करने के लिए चिली की एक आदर्श स्थल के रूप विशिष्टता की पुष्टि होती है।
चिली और उसके बाहर व्यापक समझ यह है कि 1973 के तख़्तापलट के वित्तपोषण, संगठन और निष्पादन में संयुक्त राज्य अमेरिका की भागीदारी का कारण था ताँबे का राष्ट्रीयकरण। लेकिन, यह दृष्टिकोण हमें राष्ट्रीयकरण परियोजना की ताक़त तथा पॉपुलर यूनिटी सरकार की अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध नीति और रणनीतिक उपायों में इस परियोजना के प्रभावों की सराहना करने का मौक़ा नहीं देता है। डोसियर नं. 68, ‘तीसरी दुनिया के खिलाफ तख़्तापलट: चिली, 1973‘ में चिली का Instituto de Ciencias Alejandro Lipschutz Centro de pensamiento e investigación social y política (ICAL) और ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान चिली के ख़िलाफ़ 1973 के तख्तापलट तथा तीसरी दुनिया और गुट–निरपेक्ष देशों पर उसके प्रभाव का विश्लेषण प्रस्तुत कर रहे हैं। यह डोसियर ऐसे सबक सिखाता है जो तीसरी दुनिया के लोगों को न केवल आज बल्कि हमेशा याद रखने चाहिए। यह डोसियर इस बारे में भी महत्वपूर्ण जानकारी देता है कि तख़्तापलट होते क्यों हैं। विशेष रूप से, यह डोसियर चिली के ख़िलाफ़ तख्तापलट की साजिश में संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका को उजागर करता है। इसका प्रमाण उन दस्तावेज़ों से मिलता है जिन्हें उस समय गुप्त रखा गया था, क्योंकि वे अपनी जनता के हित में एक नई सामाजिक परियोजना चलाने के लिए अपनी स्वायत्तता का दावा करने वाले एक लोकतांत्रिक देश के आंतरिक मामलों में एक साम्राज्यवादी राष्ट्र के हस्तक्षेप को प्रकट कर सकते थे। यह डोसियर दो मुख्य बिंदुओं को रेखांकित करता है: पहला, ताँबे के राष्ट्रीयकरण के राजनीतिक उद्देश्य, और दूसरा, नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) के निर्माण के उद्देश्य से तीसरी दुनिया के देशों के बीच व्यापक बातचीत में राष्ट्रीयकरण की भूमिका।
चिली के आर्थिक विकास के ढांचे में राष्ट्रीयकरण कोई नवाचार नहीं था। इसे एडुआर्डो फ्रेई (1964-1970) की सरकार ने एक ज़रूरत के रूप में प्रस्तुत किया था, और आंशिक रूप से लागू किया था; लेकिन तत्कालीन सीनेटर साल्वाडोर अलेंदे ने पहली बार राष्ट्रीय संपत्तियों के उत्पादन का राष्ट्रीयकरण करने के लिए विभिन्न तरीकों का विषय उठाया था। 11 जुलाई 1971 (राष्ट्रीय गरिमा दिवस) के दिन कांग्रेस ने ताँबे के राष्ट्रीयकरण को मंजूरी दी थी। उस मौक़े पर राष्ट्रपति अलेंदे ने अपने भाषण के द्वारा यह ज़ाहिर कर दिया कि फ़्रेई का राष्ट्रीयकरण कार्यक्रम आगे क्यों नहीं बढ़ पाया:
हम ताँबा समझौतों की आलोचना करते हैं, हम चिलीकरण की आलोचना करते हैं, और हम उस राष्ट्रीयकरण की आलोचना करते हैं जिस पर अभी तक सहमति रही थी, और… हमने हमेशा कहा है, और हम अब दोहरा रहे हैं, कि हम व्यापक राष्ट्रीयकरण के पक्ष में हैं, ताकि धन का बड़ा हिस्सा देश से बाहर न जाए, ताकि चिली एक भिखारी देश न बना रहे जो हाथ फैलाकर कुछ मिलियन डॉलर की भीख मांगता है, जबकि हमारे देश का धन ताँबे की बड़ी अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को सींचता है।
हम पूंजी निर्यात करने वाला विकासशील देश नहीं बनना चाहते; हम सस्ता बेचकर महंगा खरीदने वाली रीत जारी नहीं रखना चाहते। यही कारण है पॉपुलर यूनिटी परियोजना के होने का; यह एक ऐसी परियोजना है जो चिली और चिली के लोगों की सेवा के मौलिक देशभक्ति कार्यक्रम में जुटी है। और इसीलिए मैं यहाँ हूँ, जनता के राष्ट्रपति के रूप में, इस कार्यक्रम को आगे, हर हाल में, आगे बढ़ाने के लिए।1
अलेंदे परिवर्तन की इस प्रक्रिया में ताँबा श्रमिकों की अग्रणी भूमिका के महत्व को पहचानते हुए उसके सशक्तिकरण पर ज़ोर देते हैं:
आर्थिक क्षेत्र में महत्व के अलावा… [इसकी] महत्वपूर्ण राजनीतिक अहमियत भी है। हम जो कदम उठाने जा रहे हैं, उससे हम अपनी निर्भरता, अपनी आर्थिक निर्भरता तोड़ सकेंगे। इसका मतलब होगा राजनीतिक स्वतंत्रता। हम अपने भविष्य के स्वामी स्वयं होंगे, अपने भाग्य के सच्चे संप्रभु स्वामी। हमारे ताँबे का हम क्या करेंगे यह हम पर, हमारी क्षमता पर, हमारे प्रयास पर और हमारे देश की प्रगति हेतु चिली में ताँबा उत्पादन सुनिश्चित करने के लिए हमारे दृढ़ समर्पण पर निर्भर करेगा। लोगों को समझना होगा – और वे समझते हैं – कि यह एक बड़ी राष्ट्रीय चुनौती है, और इस पर खदान श्रमिकों को ही नहीं बल्कि चिली की पूरी जनता को ध्यान देना होगा।2
अलेंदे इस प्रक्रिया को तीसरी दुनिया के परियोजना में मौजूद अंतर्राष्ट्रीयतावाद के नए रूपों से भी जोड़ते हैं:
वियतनाम युद्ध के कारण ताँबे की कीमत निर्विवाद रूप से ऊंची बनी हुई है। लेकिन हम चिलीवासी, अपनी चेतना से, ताँबे की कीमत में गिरावट पसंद करेंगे, और यह चाहेंगे कि अपनी स्वतंत्रता के लिए लड़ रही उस छोटे देश की संकल्पित जनता के खिलाफ यह हमला समाप्त हो। हमारे पास यह समझने के लिए पर्याप्त क्रांतिकारी चेतना है कि ताँबे की कीमत कम हो सकती है, और हम यह स्वीकार कर सकते हैं, बशर्ते वियतनाम में शांति बहाल हो और वियतनाम के लोगों को अपना जीवन जीने का अधिकार मिले। …
दूर बैठी [बाहरी] ताक़तों के योजनाबद्ध विकास और शोषण द्वारा हम पर थोपे गए विदेशी क़ब्ज़े की सीमाओं के कारण हम अपने लोगों की क्षमताओं को विकसित नहीं कर पाए। हमें यह भी समझना चाहिए कि यह [कदम] हमारी क्षमता के लिए चुनौतीपूर्ण होगा… [लेकिन] चिली के लोग अच्छा काम करेंगे, और सौभाग्य से हमारे पास विश्व बाजार में ज़ाम्बिया, कांगो, पेरू, और तांबा निर्यातक देशों की अंतर सरकारी परिषद (CIPEC), जिसे हमारे जैसे छोटे उत्पादक देशों के हितों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर गठित किया गया था, [आदि] में हमारे हमवतन लोगों के साथ साझा करने को आम भाषा भी है।3
चिली और NIEO के संबंध में, 1972 में सैंटियागो डे चिली में आयोजित व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) के तीसरे सत्र में अलेंदे का बयान विशेष तौर पर अहम है। इस सम्मेलन में, राष्ट्रपति अलेंदे ने एक क्रांतिकारी परिप्रेक्ष्य से अपनी सरकार की स्थिति और उसकी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक संबंध नीति के उद्देश्यों को रेखांकित किया, जिसकी प्रासंगिकता आज भी बरकरार है। अलेंदे ने कहा कि इस क्रांतिकरी परिप्रेक्ष्य का उद्देश्य है ‘रूढ़िवादी और मौलिक रूप से अन्यायपूर्ण आर्थिक एवं व्यापार व्यवस्था को हटा कर मानव और मानवीय गरिमा की नई अवधारणा पर आधारित एक न्यायपूर्ण व्यवस्था को स्थापित करना तथा अल्पविकसित देशों की प्रगति को बाधित कर समृद्ध देशों को लाभ पहुँचाने वाले अंतरराष्ट्रीय श्रम विभाजन का पुनर्निर्माण करना’4। इसका मतलब यह है कि अलेंदे ने जो कार्यक्रम संबंधी, राजनीतिक और वैचारिक मुद्दे उठाए वे साम्राज्यवाद के परिणामों से पीड़ित देशों/समाजों में आज भी प्रासंगिक हैं।
साल्वाडोर अलेंदे की अध्यक्षता में चली पॉपुलर यूनिटी परियोजना, एक व्यापक, मुक्तिकामी, तीसरी दुनियावादी परियोजना थी जिसने लोकतांत्रिक व संप्रभु आर्थिक पथ के ज़रिए एक समाजवादी समाज का निर्माण किया था। साम्राज्यवादियों को यह क़तई स्वीकार्य नहीं था।
11 सितंबर 1973 को, जनरल ऑगस्टो पिनोशे के नेतृत्व में चिली की सेना का प्रतिक्रियावादी वर्ग बैरकों से निकलकर राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे व लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित पॉपुलर यूनिटी गठबंधन सरकार के तख़्तापलट के लिए निकल पड़ा। राष्ट्रपति निवास ला मोनेडा पर हुए हमले में अलेंदे की मौत हो गई। सेना और अन्य सुरक्षा बलों ने समाज के संगठित वर्गों पर हमला शुरू कर दिया। बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियाँ हुईं और दमन का राज स्थापित किया गया। यातनाएँ देने और हत्याएँ करने के लिए ख़ास अड्डे बनाए गए। हत्या से बच निकले चिली के वामपंथियों के एक बड़े हिस्से ने अन्य देशों में पनाह ली, जहां उन्होंने नए सिरे से संगठित होकर तानाशाही के खिलाफ संघर्ष शुरू किया। इधर अपने नेताओं को खो चुके चिली के श्रमिक आंदोलनों को तख़्तापलट के नवनियुक्त नव–उदारवादी प्रशासन के आगे झुकना पड़ा। पिनोशे ने खुद को ‘राष्ट्र का सर्वोच्च अध्यक्ष‘ करार दिया। पिनोशे प्रशासन के कई सदस्यों को संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रशिक्षण मिला था, जिनमें से कई लोग शिकागो विश्वविद्यालय में मिल्टन फ्रीडमैन के साथ काम कर चुके थे और ‘शिकागो बॉयज़‘ के नाम से जाने जाते थे। पॉपुलर यूनिटी सरकार के समाजवादी कार्यक्रमों और नीतियों को भंग कर दिया गया। चिली नवउदारवाद की प्रयोगशाला बन गया और अवसान की ओर बढ़ने लगा।
11 सितंबर की सुबह सिपाही बैरक से क्यों निकले थे? कानून और व्यवस्था के बारे में जनरल पिनोशे या उनके करीबी लोगों द्वारा दिए गए तर्क बेतुके हैं। सच्चाई यह है कि तख़्तापलट 1973 के उस दिन अचानक ही नहीं हुआ था; अवर्गीकृत दस्तावेज दिखाते हैं कि इसकी परिकल्पना, तैयारी और कार्यान्वयन अमेरिका ने किया था। अमेरिका स्थित बहुराष्ट्रीय निगमों और उन पर आश्रित चिली के पूंजीपतियों के हक़ में काम कर रही अमेरिकी सरकार अलेंदे को राष्ट्रपति पद पर जीतने ही नहीं देना चाहती थी। लेकिन अलेंदे 4 सितंबर 1970 को चुनाव जीत गए। इसीलिए नवंबर 1970 में उनके द्वारा कार्यभार संभालने के पहले दिन से ही पॉपुलर यूनिटी सरकार को अस्थिर बनाने की कोशिशें शुरू हो गई थीं।
अलेंदे सरकार ने ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति लागू की, जिसके बाद तख़्तापलट की कोशिशें बढ़ गईं। ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति, जिसे जुलाई 1971 में कांग्रेस में मंज़ूरी मिल गई थी – लोकतांत्रिक तर्ज पर नव–उपनिवेशवादी अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक प्रणाली का लोकतांत्रिक तर्ज पर पुनर्गठन करने और तीसरी दुनिया के विचारों व लोगों को महत्व देने के मक़सद से तीसरी दुनिया में नई अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) बनाने हेतु जारी व्यापक कोशिशों का हिस्सा थी। NIEO का पहला मसौदा अर्जेंटीना के अर्थशास्त्री राउल प्रीबिश के नेतृत्व में व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (UNCTAD) द्वारा तैयार किया गया था, तथा अप्रैल से मई 1972 तक सैंटियागो, चिली में चले UNCTAD के तीसरे सत्र (UNCTAD III) में उसका संशोधन हुआ। नए मसौदे पर 5 और 9 सितंबर 1973 के बीच अल्जीयर्स (अल्जीरिया) में आयोजित गुटनिरपेक्ष आंदोलन के चौथे शिखर सम्मेलन में चर्चा की गई। सम्मेलन में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अन्य नेताओं को सूचित किया कि अलेंदे अपने देश में एक बड़ी चुनौती का सामना कर रहे हैं और कहा कि ‘हम शीघ्र ही सामान्य स्थिति बहाल होने की उम्मीद करते हैं‘। 1 मई 1974 को जब संयुक्त राष्ट्र महासभा ने नई अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था की स्थापना की घोषणा की, तब तक उस नई व्यवस्था के विचारों को आगे बढ़ाना संभव ही नहीं रहा था। अलेंदे की सरकार के खिलाफ तख़्तापलट केवल चिली में ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति अपनाने के लिए नहीं हुआ था, बल्कि इसलिए भी हुआ था क्योंकि अलेंदे ने NIEO सिद्धांतों को लागू करने की मांग कर रहे अन्य विकासशील देशों को नेतृत्व और एक उदाहरण पेश किया था। यानी, चिली के खिलाफ अमेरिका द्वारा संचालित तख़्तापलट वास्तव में तीसरी दुनिया के खिलाफ तख़्तापलट था।
चिली में संप्रभुता और गरिमा
17 दिसंबर 1969 को, साल्वाडोर अलेंदे के नेतृत्व में छ: पार्टियों – सोशलिस्ट पार्टी, कम्युनिस्ट पार्टी, रेडिकल पार्टी, सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी, पॉपुलर यूनिटरी एक्शन मूवमेंट और इंडिपेंडेंट पॉपुलर एक्शन – से बने पॉपुलर यूनिटी गठबंधन ने अपना घोषणापत्र जारी किया। इस घोषणा पत्र में प्रस्तावित कार्यक्रम के आधार पर गठबंधन की पार्टियों ने 4 सितंबर 1970 को होने वाले राष्ट्रपति चुनावों के लिए संयुक्त अभियान चलाया। उनके घोषणापत्र ने समस्या को सटीक और सीधे शब्दों में पेश किया:
सफेदपोश श्रमिकों, पेशेवरों और छोटे व मध्यम व्यापारियों के सामने बढ़ती कठिनाइयों; और महिलाओं व युवाओं के लिए उपलब्ध सीमित अवसरों के चलते चिली गहरे संकट की स्थिति में है, जो आर्थिक और सामाजिक ठहराव, व्यापक गरीबी और श्रमिकों, किसानों व अन्य शोषित वर्गों के मोर्चों की पूर्ण उपेक्षा के रूप में प्रकट हो रही है।5
यह बात अफ़्रीका, एशिया या लैटिन अमेरिका के अन्य देशों के लोगों को अजीब नहीं लगेगी। 1960 के दशक के मध्य से औसत वार्षिक आर्थिक विकास में लगातार गिरावट की निराशा UNCTAD III सम्मेलन में भी दिखाई दे रही थी।6 सम्मेलन में भाग लेने वाली 121 सरकारों ने लिखा था कि, ‘गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी और अल्परोजगार की भयावह समस्याओं से दुनिया के लाखों लोग प्रभावित हैं … यह निराशाजनक है, लेकिन एक चुनौती भी थी; ज़रूरतों के अनुसार कारवाई होनी चाहिए – तत्काल और ठोस कारवाई‘। ये आह्वान चिली के पॉपुलर यूनिटी गठबंधन के चुनावी घोषणापत्र से मेल खाता है, और इसे जारी करने वाले देश नव–उपनिवेशवादी विश्व व्यवस्था द्वारा उत्पन्न सीमाओं को बखूबी पहचानते थे। इसीलिए UNCTAD III में शामिल सरकारों ने आगे लिखा कि ‘यह नहीं भूलना चाहिए कि मौजूदा स्थिति कुछ शक्तियों द्वारा अपने हित में काम करने के कारण पैदा हुई है – वो शक्ति जो अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था के एक बड़े हिस्से को आज भी नियंत्रित करती है और नए देशों के विकास में बाधा डालती है।‘7
पॉपुलर यूनिटी के घोषणापत्र में यह समझाने की कोशिश की गई थी कि चिली की जनता को – ताँबे जैसे प्राकृतिक संसाधनों से समृद्ध देश में भी – अपना अस्त्तिव कायम रखने के लिए संघर्ष क्यों करना पड़ रहा था:
चिली की विफलता का कारण एक ऐसी प्रणाली है जो हमारे समय की आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं है। चिली एक पूंजीवादी देश है, जो साम्राज्यवाद पर निर्भर है, और जिसपर संरचनात्मक रूप से विदेशी पूंजी से बंधे पूंजीपति वर्ग का प्रभुत्व है। ये सभी देश की मूलभूत समस्याओं को हल करने में असमर्थ हैं, क्योंकि ये समस्याएँ उनके वर्ग विशेषाधिकारों से उत्पन्न होती हैं, जिन्हें वे स्वेच्छा से कभी नहीं छोड़ेंगे।8
अलेंदे की पॉपुलर यूनिटी सरकार का ध्यान ताँबे पर था, जो कि आधुनिक दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण अलौह वाणिज्यिक धातुओं में से एक है। उस समय दुनिया के ज्ञात ताँबा भंडारों का लगभग बीस प्रतिशत हिस्सा चिली में था, जिसके अलावा संयुक्त राज्य अमेरिका, सोवियत संघ, जाम्बिया, ज़ैरे और कनाडा में भी ताँबे के पर्याप्त भंडार थे।9 अमेरिका दुनिया में ताँबे का सबसे बड़ा आयातक था, और औद्योगिक उपयोग के लिए ताँबे का प्रसंस्करण करता था। चिली में कुल ताँबा उत्पादन के अस्सी प्रतिशत हिस्से पर तीन अमेरिकी बहुराष्ट्रीय कंपनियों (एनाकोंडा, केनेकॉट और सेरो) से मिलकर बनी ग्रैन मिनेरिया निगम का क़ब्ज़ा था।10
1960 के दशक में ताँबे की ऊंची कीमतों और ग्रैन मिनेरिया के भारी मुनाफे से चिली में ताँबे के शीघ्र राष्ट्रीयकरण का दबाव बढ़ा। 1966 में, बढ़ते दबाव के चलते चिली के तत्कालीन राष्ट्रपति एडुआर्डो फ्रेई ने ताँबे के राष्ट्रीयकरण की नीति शुरू की। इस नीति के लागू होने से अमेरिकी कंपनियों का स्वामित्व धीरे–धीरे कम होना था, लेकिन अचंभे की बात है कि 1965 और 1971 के बीच ग्रैन मिनेरिया के मुनाफे में अपार वृद्धि देखी गई।11 इधर जन–आंदोलनों में देश के प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग चिली की जनता के लिए करने की माँग लगातार तेज हो रही थी। यही कारण था कि 1970 के राष्ट्रपति चुनाव के दोनों उम्मीदवार – पॉपुलर यूनिटी से अलेंदे और क्रिश्चियन डेमोक्रेट रेडोमिरो टोमिक – राष्ट्रीयकरण का समर्थन कर रहे थे।12
दिसंबर 1970 में, पॉपुलर यूनिटी सरकार ने ग्रैन मिनेरिया के स्वामित्व वाली ताँबा खदानों का राष्ट्रीयकरण करने के लिए कांग्रेस के समक्ष एक संवैधानिक संशोधन रखा; इसके तहत ग्रैन मिनेरिया से खदानों का स्वामित्व लेने के बाद उसे किसी प्रकार का कोई मुआवजा नहीं दिया जाना था। मुआवज़ा न देने के हक़ में पॉपुलर यूनिटी सरकार ने – लैटिन अमेरिका के लिए संयुक्त राष्ट्र के आर्थिक आयोग (CEPAL) के तर्क को पेश करते हुए – कहा कि ग्रैन मिनेरिया दशकों से देश से बाहर गए अतिरिक्त मुनाफे से लाभ कमाने के अलावा खदानों को काफी हद तक नष्ट कर चुका है।13 पॉपुलर यूनिटी सरकार द्वारा ग्रैन मिनेरिया को अतिरिक्त मुआवज़ा देने से इनकार करने पर अन्य राजनीतिक दल विचलित हो उठे, जो उसे खदानों के बदले मुआवज़ा देना चाहते थे।
21 दिसंबर को, अलेंदे ने प्लाजा डे ला कॉन्स्टिट्यूशन में बात रखते हुए, ‘कुछ आंकड़े‘14 सामने रखे। यह दिखाने के बाद कि कैसे चिली का ‘खून चूसा गया है‘, अलेंदे ने स्पष्ट रूप से कहा कि, ‘[ताँबा] खदानों के लिए कोई मुआवजा नहीं दिया जाएगा। … हम कानूनी और न्यायिक सीमाओं के भीतर कार्य कर रहे हैं। इसके अलावा, यह इंगित करना प्रासंगिक है कि [14 दिसंबर 1962 के संयुक्त राष्ट्र महासभा संकल्प 1803 (XVII) ‘प्राकृतिक संसाधनों पर स्थायी संप्रभुता‘ में] संयुक्त राष्ट्र ने विदेशी पूंजी के हाथों में पड़ी महत्वपूर्ण संपदा का राष्ट्रीयकरण करने पर लोगों के अधिकार को मान्यता दी है‘।15 11 जुलाई 1971 को, जिसे आज चिली में राष्ट्रीय गरिमा दिवस के रूप में मनाया जाता है, चिली की राष्ट्रीय कांग्रेस ने 17450वें क़ानून को मंज़ूरी देकर ताँबे के राष्ट्रीयकरण की पुष्टि की।
पॉपुलर यूनिटी सरकार ने ताँबे के निर्यात से बढ़े राजस्व का उपयोग चिली में जीवन स्तर को बेहतर बनाने के कार्यक्रमों में किया। स्वास्थ्य सुविधाओं, शिक्षा और कृषि में सुधार शुरू हुए, श्रमिक वर्ग और किसानों के लिए घर बनाये गए, और बच्चों को प्रति दिन आधा लीटर मुफ्त दूध देने की परियोजना भी शुरू हुई। 1973 तक, इस योजना के माध्यम से 3.6 मिलियन बच्चों को दूध मिलने लगा था, जिससे बच्चों के कुपोषण की दर में भारी गिरावट आई थी; पॉपुलर यूनिटी सरकार के कार्यभार संभालने से पहले लगभग बीस प्रतिशत बच्चे कुपोषित थे।16
13 जनवरी 1971 को, वलपरेसो स्थित चिली विश्वविद्यालय में एक नए ट्रेड यूनियन स्कूल के उद्घाटन पर अलेंदे ने घोषणा की कि उनका देश एक ‘सामाजिक प्रयोगशाला‘ है और ‘एक [ऐसी] अविराम व गंभीर क्रांतिकारी प्रक्रिया से गुजर रहा है.. जिसमें चिली के जीवन के सभी पहलुओं को महत्वपूर्ण रूप से प्रभावित करने के गुण शामिल हैं‘।17 अपनी अर्थव्यवस्था पर संप्रभुता स्थापित करने से चिली में समाजवाद का रास्ता खुला। भूमिहीन किसानों से लेकर नर्सों तक से, अलेंदे की सरकार ने एक नई वास्तविकता, एक समाजवादी भविष्य का वादा किया।
रॉबर्टो मैटा (चिली), नए मानव को जन्म देने के लिए आओ अपने भीतर गुरिल्ला युद्ध लड़ें, 1970। कैनवास पर तेल, 259 x 491 सेमी।
चिली और नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम
1961 में गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) के गठन के बाद के लगभग दस सालों में पचास से ज़्यादा देश इससे जुड़ गए थे। 1971 में चिली NAM में पचपनवें पूर्ण सदस्य के रूप में शामिल हुआ। 1970 में लुसाका (ज़ाम्बिया) में हुए तीसरे NAM शिखर सम्मेलन तक, लैटिन अमेरिकी देशों में से केवल क्यूबा ही NAM का पूर्ण सदस्य था। चिली तीसरे शिखर सम्मेलन में शामिल हुए बारह पर्यवेक्षक देशों में से एक था। NAM और UNCTAD ने एक नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम के बारे में बहस शुरू की; जिसके तहत तीसरी दुनिया के देश अपने प्राकृतिक संसाधनों पर अपना नियंत्रण स्थापित करने और अपनी औद्योगिक क्षमता बढ़ाने के मुद्दे पर एकजुट होकर नव–उपनिवेशवादी विश्व प्रणाली को बदलने की माँग कर रहे थे। इस प्रक्रिया में राजनीतिक रूप से अपना दबाव बनाते हुए अफ़्रीकी और एशियाई देशों ने UNCTAD का तीसरा सत्र जिनेवा की बजाय किसी विकासशील देश में आयोजित करने की माँग की। अलेंदे ने सत्र की मेजबानी के लिए सैंटियागो का नाम सुझाया, जिसे – कुछ विचार–विमर्श के बाद – स्वीकार कर लिया गया।18 सैंटियागो के जिस भवन में सत्र आयोजित होना था, उस भवन के उद्घाटन में अलेंदे ने कहा कि यह अंतर्राष्ट्रीय मंच विकासशील देशों को ‘अपने अल्पविकसित देशों की बिगड़ी हालत को अचानक उजागर करने‘ का मौक़ा देगा।19
UNCTAD की नई इमारत लैटिन अमेरिका के संयुक्त राष्ट्र आर्थिक आयोग (ECLAC) के कार्यालय से लगभग दस किलोमीटर दूर थी। ECLAC की स्थापना 1948 में हुई थी। ECLAC के लैटिन अमेरिकी अर्थशास्त्रियों ने निर्भरता सिद्धांत विकसित किया था। इस सिद्धांत ने दुनिया की व्याख्या करते हुए कहा कि दुनिया में नव–उपनिवेशवादी व्यवस्था चल रही है, जिसमें केंद्रीय देश (यानी पुरानी साम्राज्यवादी शक्तियाँ) औपनिवेशिक युग में हुए लाभ के पुनरुत्पादन के माध्यम से परिधि देशों (यानी विकासशील देशों) पर आज भी हावी हैं; कि कच्चे माल के स्रोत और विनिर्मित माल के बाज़ार के रूप में परिधि देशों पर व्यापार की असमान शर्तें थोपी जाती हैं; और विकास सहायता परिधि देशों को उधार ग्रहण – क़र्ज़ – मितव्ययिता के व्यूह में फँसा कर रखती है।20 ECLAC के एक अर्थशास्त्री, पेड्रो वुस्कोविक, अलेंदे की सरकार में आर्थिक मामलों के मंत्री बने, और उन्होंने निर्भरता सिद्धांत को पॉपुलर यूनिटी सरकार के कार्यक्रम व सरकारी नीति का हिस्सा बनाया।21 कुछ समय के लिए, चिली नव–उपनिवेशवादी विश्व व्यवस्था को तोड़ने और नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम को स्थापित करने की परियोजना का केंद्र बन गया था। ये वो अहम कारण हैं जिन्हें अमेरिकी सरकार और अंतरराष्ट्रीय निगम नागरिक–सैन्य तख़्तापलट के कारणों के रूप में देखने से बचते हैं।
UNCTAD के तीसरे सत्र के उद्घाटन पर, अलेंदे ने कहा कि, ‘रूढ़िवादी और मौलिक रूप से अन्यायपूर्ण आर्थिक एवं व्यापार व्यवस्था को हटा कर मानव और मानवीय गरिमा की नई अवधारणा पर आधारित एक न्यायपूर्ण व्यवस्था को स्थापित करना तथा अल्पविकसित देशों की प्रगति को बाधित कर समृद्ध देशों को लाभ पहुँचाने वाले अंतरराष्ट्रीय श्रम विभाजन का पुन: निर्माण करना‘ इस सम्मेलन का मूल मिशन है।22 अलेंदे ने कहा कि, समृद्ध देश ‘अथक दृढ़ता‘ के साथ अपने हितों की रक्षा करेंगे, इसीलिए गरीब देशों को एकजुट और अपने उद्देश्यों के बारे में स्पष्ट होना होगा। उपस्थित लोगों के पास कोई विकल्प नहीं था क्योंकि, जैसा कि अलेंदे ने आगे कहा, ‘यदि वर्तमान स्थिति जारी रही, तो तीसरी दुनिया की पंद्रह प्रतिशत आबादी भूख से मरने के लिए अभिशप्त है।‘ 23अलेंदे ने नव–उपनिवेशवादी, पूंजीवादी विश्व व्यवस्था से मानव–उन्नति पर आधारित विश्व व्यवस्था में परिवर्तन की प्रक्रिया के पांच प्रमुख बिंदुओं पर बात की:
1. मौद्रिक एवं व्यापार प्रणालियों में सुधार: संयुक्त राज्य अमेरिका में 1944 में ब्रेटन वुड्स सम्मेलन हुआ, जहां अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की स्थापना की गई। इस सम्मेलन में तीसरी दुनिया के देशों का प्रतिनिधित्व लगभग शून्य था। जब पश्चिमी देशों ने 1947 में व्यापार व टैरिफ़ पर सामान्य समझौता (GATT) बनाया, तो वहाँ भी कुछ उपनिवेशों को छोड़कर तीसरी दुनिया के देशों का कोई प्रतिनिधि नहीं था। इसलिए इन मौद्रिक एवं व्यापार प्रणालियों की संरचना इस प्रकार से हुई कि इनसे समृद्ध देशों को लाभ पहुंचे। तीसरी दुनिया ने इन प्रणालियों पर पुनर्विचार करने के लिए 1964 में UNCTAD का गठन किया। लेकिन इसकी स्थापना के बाद से ही पश्चिम ने UNCTAD को दरकीनार करने और उपनिवेशवाद से आज़ाद हुए देशों को मौद्रिक एवं व्यापार नीति की चर्चाओं में अपनी नीतियाँ पेश करने से रोकने की कोशिशें शुरू कर दीं। 1971 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने एकतरफा रूप से स्वर्ण मानक प्रणाली को हटाकर डॉलर को वैश्विक फ़ीएट मुद्रा के रूप में स्थापित कर दिया। इसके अलावा GATT पर 1973 की टोक्यो वार्ता में संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोपीय आर्थिक समुदाय और जापान ने तीसरी दुनिया से सलाह किए बिना मौद्रिक एवं व्यापार प्रणाली पर पुनर्विचार करना शुरू कर दिया। इस परिदृश्य को देखते हुए, अलेंदे ने कहा था कि, UNCTAD को एक ऐसी व्यापार प्रणाली बनानी चाहिए जो जनता में खपत बढ़ाने, भुखमरी व निरक्षरता को खत्म करने और अंतरराष्ट्रीय निगमों की शक्ति को विनियमित करने को प्राथमिकता दे।
2. कर्ज का बोझ खत्म करें: UNCTAD के तीसरे सत्र के लगभग एक साल बाद नैरोबी (केन्या) में 1973 की विश्व बैंक बैठक हुई। विश्व बैंक के तत्कालीन अध्यक्ष रॉबर्ट मैकनामारा ने कहा कि ‘ऋण समस्या का कारण‘ कर्ज की बड़ी रक़म नहीं, बल्कि ‘राजस्व की तुलना में तेज़ी से बढ़ता ऋण और ऋण भुगतान‘ है।24 विकासशील देश निवेश के उद्देश्य से नहीं, बल्कि अपने ऋण चुकाने के लिए पूंजी ले रहे हैं।
UNCTAD III में, अलेंदे ने बताया था कि विकासशील देशों का कर्ज़ तब तक 70 बिलियन डॉलर तक पहुँच चुका था। उन्होंने कहा कि ये ऋण ‘अक्सर अनुचित व्यापार प्रणाली से होने वाले नुकसान की भरपाई से बचने, हमारी सीमाओं के भीतर विदेशी उद्यमों की स्थापना–लागत से बचने, [और] हमारे भंडारों पर सट्टा–बाज़ारी के जोखिमों से बचने के लिए अनुबंधित किए गए हैं।‘25 1971 में प्रकाशित जी-77 लीमा घोषणा और संयुक्त राष्ट्र महासभा के ‘ऋण सेवाओं का बढ़ता बोझ‘ प्रस्ताव जैसे प्रमुख दस्तावेजों में भी यह मुद्दा उठाया गया था, और संयुक्त राष्ट्र ने ‘ऋण–संकट से लंबे समय तक बचे रहने के लिए‘ लेनदारों से अपने कार्यों पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया गया।26
3. प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण मजबूत करना: मई 1969 में विना डेल मार (चिली) में लैटिन अमेरिका की विभिन्न सरकारों ने अपने प्राकृतिक संसाधनों पर नियंत्रण हासिल करने की आवश्यकता पर जोर दिया। इस बैठक से निकला लेख लीमा घोषणा (1971) को तैयार करने में सहायक रहा, जिसे अलेंदे ने UNCTAD III के दौरान उद्धृत किया: ‘अपनी जनता के आर्थिक विकास व कल्याण हेतु अपने प्राकृतिक संसाधनों के स्वतंत्र इस्तेमाल पर प्रत्येक राष्ट्र के संप्रभु अधिकार की पुष्टि… अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए खतरा बन सकती है।‘27 अलेंदे ने कहा कि, ‘चिली ने ताँबे का राष्ट्रीयकरण किया है‘ और इस राष्ट्रीयकरण के लिए ताँबा कंपनियों को अपने ‘अतिरिक्त मुनाफे‘ की क़ीमत चुकानी पड़ी है। उन्होंने कहा कि, पॉपुलर यूनिटी सरकार केवल अमूर्त विचारों पर ज़ोर देने की बजाय विचारों को ‘दृढ़ संकल्प‘ के साथ व्यवहार में भी ला रही है।28
4. प्रौद्योगिकी व विज्ञान पर राष्ट्रों के अधिकार की पुष्टि करें: अलेंदे ने कहा कि तीसरी दुनिया के देश, ‘विज्ञान के विकास को बाहरी नज़र से देखते हैं‘ और ‘तकनीकी जानकारी का आयात करते हैं, जिससे अक्सर सांस्कृतिक अलगाव और निर्भरता बढ़ती है।‘ चिली जैसे देशों को अपनी वैज्ञानिक व तकनीकी क्षमता विकसित करने की आवश्यकता है, और उन्हें ‘अपनी आवश्यकताओं तथा विकास योजनाओं के अनुरूप‘ तकनीक बनाने के लिए अन्य देशों के साथ सहयोग करने की आवश्यकता है।29
5. शांति पर आधारित अर्थव्यवस्था का निर्माण करें: अलेंदे ने कहा कि समय ‘युद्ध पर आधारित अर्थव्यवस्था को शांति पर आधारित अर्थव्यवस्था से बदलने‘ की माँग कर रहा है। युद्ध और हथियारों पर व्यर्थ होने वाले धन का उपयोग ‘वैश्विक स्तर पर एकजुटता की अर्थव्यवस्था को मजबूत करने‘ के लिए किया जाए।30 1970 में, स्टॉकहोम इंटरनेशनल पीस रिसर्च इंस्टीट्यूट ने पाया था कि दुनिया अपने सकल घरेलू उत्पाद का लगभग सात प्रतिशत हिस्सा सेना पर खर्च कर रही थी, जो कि ‘दुनिया की आधी आबादी की कुल आय के बराबर‘ था।31 अलेंदे ने कहा कि, हथियारों के खर्च में कटौती कर ‘[तीसरी दुनिया के] देशों में प्रमुख परियोजनाओं और कार्यक्रमों को वित्तपोषित किया जा सकता है।‘32
अप्रैल 1972 में, अमेरिका के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार हेनरी किसिंजर के लैटिन अमेरिकी मामलों के सहायक विलियम जोर्डन ने लिखा था कि अलेंदे ‘तेज़ी से खुद को तीसरी दुनिया के नेता के रूप में स्थापित कर रहे हैं‘।33 नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था को लागू करते हुए समाजवादी पथ पर चल रहा चिली तेज़ी से अपने धातु भंडार का राष्ट्रीयकरण कर रहा था; जिसने अलेंदे को तीसरी दुनिया की एक स्पष्ट आवाज के रूप में उभरने का मौक़ा दिया। इसके परिणामस्वरूप, चिली के नेतृत्व में, और मेक्सिको सहित तीसरी दुनिया के अन्य देशों के लगातार कूटनीतिक कार्य की बदौलत UNCTAD III में ‘राज्यों के आर्थिक अधिकारों एवं कर्तव्यों का चार्टर‘ पारित हुआ। इस चार्टर को अंततः संयुक्त राष्ट्र महासभा ने दिसंबर 1974 के संकल्प के रूप में अपनाया।34
हालाँकि UNCTAD III के ज़्यादातर सरोकारों को स्वीकृति नहीं मिली थी, लेकिन फिर भी, तीसरी दुनिया में सामान्य दृष्टिकोण यही था कि परिवर्तन अनिवार्य है।35 (संयुक्त राज्य अमेरिका, यूरोप और जापान के) ट्रायड ने नई अंतरराष्ट्रीय आर्थिक व्यवस्था (NIEO) को रोकने के लिए काफी प्रयास किए और फिर, 1973 में जी-7 का गठन किया। जी-7 की पहली बैठक में, पश्चिम जर्मनी के हेल्मुट श्मिट ने कहा कि पश्चिमी नेता ‘अफ्रीका या किसी एशियाई राजधानी के अधिकारियों‘ को विश्व अर्थव्यवस्था के बारे में निर्णय लेने की अनुमति नहीं दे सकते। यूनाइटेड किंगडम के प्रधान मंत्री हेरोल्ड विल्सन ने सहमति व्यक्त करते हुए कहा कि ऐसे निर्णय ‘इस मेज पर बैठे लोगों‘ द्वारा लिए जाने चाहिए।36
ऊपर: लुइस पोयरोट (चिली), राष्ट्रपति साल्वाडोर अलेंदे और हॉर्टेंसिया बस्सी, 1970। फोटोग्राफ, 20 x 30 सेमी।
नीचे: लुइस पोयरोट (चिली), ला मोनेडा पैलेस की बालकनी, सितंबर 1973। फोटोग्राफ, 20 x 30 सेमी।
तख़्तापलट क्या करते हैं
5 अगस्त 1970 को, अलेंदे द्वारा राष्ट्रपति पद के चुनाव जीतने से एक महीने पहले ही, संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार ‘अलेंदे के तख़्तापलट के लिए कारवाई‘ करने के बारे में सोच रही थी; अमेरिका के तत्कालीन सहायक विदेश सचिव जॉन क्रिमिंस ने अमेरिकी राजदूत एडवर्ड कोरी को उपरोक्त शब्द लिखे थे।37 आज से दो सौ साल पहले, 1823 में, संयुक्त राज्य अमेरिका ने मुनरो सिद्धांत प्रस्तुत किया था, जिसमें स्पष्ट रूप से अमेरिका ने गोलार्ध को अपना ‘बैकयार्ड (अहाता)’ कहते हुए यूरोप को अमेरिकाओं में हस्तक्षेप न करने की सलाह दी थी।38 लैटिन अमेरिका में अमेरिका के हस्तक्षेप आम बात हैं। चाहे वो 1848 में मेक्सिको के एक तिहाई हिस्से पर कब्ज़ा करना हो या 1898 में क्यूबा व प्यूर्टो रिको पर कब्ज़ा करना हो या कई लैटिन अमेरिकी देशों में सरकारों का तख़्तापलट हो। 1964 में, संयुक्त राज्य सरकार ने जोआओ गौलार्ट की लोकतांत्रिक रूप से निर्वाचित सरकार को हटाने के लिए ब्राजीलियाई सेना की खुले तौर पर सहायता की। यह सैन्य तानाशाही इक्कीस सालों तक चली और इस दौरान दक्षिण अमेरिका के कई देशों में (बोलीविया, 1971; उरुग्वे, 1973; चिली, 1973; पेरू, 1975; अर्जेंटीना, 1976) तख़्तापलट करवाने में अमेरिका की मदद करती रही। इस दौर को ऑपरेशन कोंडोर के नाम से जाना जाता है।
1960 के दशक में क्रिश्चियन डेमोक्रेट्स पर लाखों डॉलर खर्च करने के बावजूद, संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार अलेंदे को जीतने से नहीं रोक पाई। चुनाव के तेरह दिन बाद, अमेरिकी सरकार ने प्रोजेक्ट फ़्यूबेल्ट की स्थापना की; उद्देश्य था कि अलेंदे को सत्ता संभालने (यानी शपथ लेने) से रोका जाए और – यदि अलेंदे शपथ लेने में कामयाब हो गए – तो चिली में अस्थिरता फैलाकर उन्हें पद से हटा दिया जाए। सीआईए की चिली टास्क फोर्स ने सिचुएशन रिपोर्ट #2 में लिखा था कि, ‘अब तख़्तापलट की संभावना है।‘39
अमेरिका की सरकार ने अलेंदे को हटाने की हर संभव कोशिश की। एक सैन्य साजिश रची गई, जिसमें चिली की सेना के सर्वोच्च अधिकारी, जनरल रेने श्नाइडर की हत्या कर दी गई। अलेंदे से पहले राष्ट्रपति रहे फ्रेई पर चुनाव रद्द करने और सत्ता अपने हाथ में लेने का दबाव बनया गया। अमेरिकी राजदूत एडवर्ड कोरी ने दूतावास में व्यापारिक नेताओं को इकट्ठा कर उनसे कहा कि ‘अलेंदे के शासन में नट–बोल्ट तक चिली में नहीं पहुँचने दिए जाएँगे‘।40 चिली के व्यापारिक नेता, एल मर्कुरियो जैसे समाचार पत्रों के मालिक और दक्षिणपंथी राजनेता हर सोमवार को लॉर्ड कोचरन स्ट्रीट (सैंटियागो) स्थित हर्नान क्यूबिलोस के कार्यालय में मिलते थे। तख़्तापलट के बाद 1978 से 1980 तक हर्नान क्यूबिलोस जनरल पिनोशे का विदेश मंत्री रहा। अमेरिकी राजदूत, कोरी और उनके बाद नथानिएल डेविस, इस सोमवार क्लब के सदस्यों के क़रीब रहे। अमेरिकी राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के 15 सितंबर 1970 को चिली की ‘अर्थव्यवस्था को घुटने पर ला देने‘ का निर्देश दिया41, जिसे पूरा करने में कोरी ने कोई कसर नहीं छोड़ी।
अमेरिकी सरकार ने वाणिज्य के माध्यम से चिली की डॉलर तक पहुंच रोक दी। सहायता राशि भी बंद कर दी गई। शिपिंग कंपनियों को माल ढुलाई के लिए ज़्यादा रेट माँगने को मजबूर किया गया। राष्ट्रीयकरण में ज़ब्त की गई अंतरराष्ट्रीय कंपनियों को विदेशों में चिली की संपत्ति पर कब्जा करने के लिए प्रोत्साहित किया गया। 1971 में ताँबे की कीमतें गिरने पर भी अलेंदे की सरकार पर हमले बंद नहीं हुए।
अलेंदे की सरकार इन तमाम आर्थिक हमलों के बावजूद टिकी रही। उनकी राजनीतिक मज़बूती का एक उदाहरण है मार्च 1973 के संसदीय चुनाव, जिसमें पॉपुलर यूनिटी गठबंधन को 43.39 प्रतिशत वोट की अप्रत्याशित जीत हासिल हुई थी, जिसकी न तो खुद पार्टी और न ही अमेरिकी सरकार ने उम्मीद की थी। अमेरिकी राजदूत नथानिएल डेविस ने वाशिंगटन को बताया था कि, पॉपुलर यूनिटी सरकार की नीतियों ने जनता की परिस्थितियों को ‘भौतिक रूप से बेहतर‘ बनाया है और ‘बढ़ती गरिमा व ऊँचे वर्गों को अपने बराबर आते देखने की संतुष्टि‘ पाने के लिए लोग ‘निस्संदेह कुछ आर्थिक कीमत चुकाने को भी तैयार‘ हैं।42 एक महीने बाद, फ़्रेई और सीआईए की अन्य पूंजीवाद–समर्थक राजनीतिक ताकतें, ‘इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि तथाकथित तीसरी दुनिया में परंपरावादी पूंजीवादी व्यवस्था विकास लक्ष्यों और आकांक्षाओं को साकार करने में सक्षम नहीं है। फ्रेई उस सापेक्ष सफलता और तेजी से भी प्रभावित हुए जिससे अलेंदे ने… आर्थिक शक्ति के पूर्ववर्तीगढ़ों को ध्वस्त कर दिया है। फ्रेई मानते हैं कि यूपी [पॉपुलर यूनिटी] ने जो कुछ किया है, उसे वो पलट नहीं सकते।‘43 यानी, चिली की पुरानी दक्षिणपंथी पार्टियों ने हार मान ली थी। इसलिए चिली की समाजवादी प्रक्रिया ‘ला विया चिलीना’ और तीसरी दुनिया की परियोजना को कुचलने के लिए नई – ज़्यादा क्रूर – ताकतों की ज़रूरत थी। जनरल ऑगस्टो पिनोशे के नेतृत्व में नई ताक़तें एकत्र हुईं और 11 सितंबर को पॉपुलर यूनिटी सरकार के तख़्तापलट के लिए निकल पड़ीं। इसके दो साल बाद, अमेरिकी कांग्रेस की चर्च समिति रिपोर्ट ने तख़्तापलट में संयुक्त राज्य अमेरिका की भूमिका के कच्चे चिट्ठे सबके सामने खोल दिए (हालांकि इस रिपोर्ट पर दुनिया में कभी सही तरीक़े से चर्चा नहीं हुई)।44
ज़िमेना अरमास (चिली), तख़्तापलट, 1973। कागज पर कोलाज, 60 x 40 सेमी।
चिली में तख़्तापलट से पहले – इंडोनेशिया में राष्ट्रपति सुकर्णो की वामपंथी सरकार के 1965 तख़्तापलट के बाद जनरल सुहार्तो की तानाशाही में दस लाख से ज़्यादा कम्युनिस्टों, ट्रेड यूनियन नेताओं, किसान नेताओं, कलाकारों और वामपंथी समर्थकों की हत्या की याद दिलाकर जनता को डराने के लिए – दक्षिणपंथी समूहों ने पूरे सैंटियागो की दीवारों पर ‘जकार्ता याद रखना‘ लिख दिया।45 सैंटियागो की दीवारों पर लिखे ये शब्द उस हिंसा का पूर्वाभास थे जो चिली में पिनोशे के तख़्तापलट शासन में दोहराई गई।46 लाखों लोगों की हत्या कर दी गई, हज़ारों लोगों को जेल में डाल दिया गया और सैंकड़ों को निर्वासित कर दिया गया। सीआईए के साथ मिलकर, चिली से वामपंथियों का सफाया करने और संप्रभुता व आत्मनिर्णय स्थापित करने की कोशिश कर रही तीसरी दुनिया की परियोजना को सबक सिखाने के लिए, क्रूर दमन का लम्बा सिलसिला चला। तख़्तापलट शासन की हिंसा ने आने वाले दशकों में चिली के राजकीय संस्थानों को आकार दिया। इसके तहत सुरक्षा बल, काराबिनेरोस, को बे–हिचक दमन करने का प्रोत्साहन मिला। पाब्लो नेरुदा और विक्टर जारा जैसे विश्व–विख्यात कलाकारों की नृशंस हत्या पिनोशे के तख़्तापलट शासन की वामपंथियों के प्रति गहरी नफरत और हिंसा पर अंतरराष्ट्रीय निंदा की ओर असंवेदनशीलता को दर्शाती है। पिनोशे का 1980 का संविधान, 1990 में लोकतंत्र की वापसी के बाद से उसे लगातार बदलने के प्रयासों के बावजूद यथावत बना हुआ है। इस संविधान के तहत नागरिक अधिकारों को निलंबित करने के लिए कार्यपालिकाके पास आज भी आपातकालीन शक्तियां मौजूद हैं (जिसका प्रयोग 2011-2013 और 2019 के विरोध प्रदर्शनों के खिलाफ घातक रूप से किया गया)।
1969 में, चिली के अर्थशास्त्रियों के एक समूह ने एल लैड्रिलो रिपोर्ट लिखी47, जिसकी प्रस्तावना शिकागो विश्वविद्यालय में प्रशिक्षित सर्जियो डी कास्त्रो – जो बाद में पिनोशे के अर्थव्यवस्था मंत्री बने – ने लिखी थी। डी कास्त्रो और कार्लोस मसाद (जो 1967 से 1970 तक और 1996 से 2003 तक केंद्रीय बैंक के गवर्नर रहे थे), फोर्ड फाउंडेशन और रॉकफेलर फाउंडेशन द्वारा स्थापित एक कार्यक्रम में शिरकत करने शिकागो गए थे।48 डी कास्त्रो, मसाद और बाकी शिकागो बॉयज़ ने ‘शॉक (झटका) थेरेपी‘ का एजेंडा चलाया; जिसमें सरकारी खर्च में भारी कटौती, आयात का उदारीकरण और बड़े व्यापारिक समूहों को लाभ प्रदान करने के लिए सरकारी संस्थाओं का उपयोग जैसे उपाय शामिल थे। इन व्यापार समूहों में अंतरराष्ट्रीय निगम और व्यापारिक घराने शामिल थे, जिनके मालिक पिनोशे के करीबी लोग थे, जैसे कि ‘Piranhas’ के नाम से मशहूर बैंको हिपोटेकारियो ई दे फोमेंटो दे चिली और क्रुज़ैट–लारेन साम्राज्य। 1978 तक, चिली के 250 प्रमुख निगमों में से 37 का नियंत्रण क्रुज़ैट–लैरेन के हाथों में था, और वाइल 25 को नियंत्रित करता था। जोस पिनेरा, शिकागो बॉयज़ में से एक था और 2010-2013 व 2018-2022 में राष्ट्रपति रहे सेबेस्टियन पिनेरा का बड़ा भाई था। श्रम मंत्रालय के प्रमुख के रूप में जोस पिनेरा ने श्रम कानूनों को नष्ट करने और ट्रेड यूनियनों को ध्वस्त करने का काम किया। शिकागो बॉयज़ ने चिली को अपने नवउदारवादी धर्म के लिए एक प्रयोगशाला के रूप में इस्तेमाल किया, और नवउदारवाद के दो पुजारियों को पिनोशे से मिलने के लिए चिली में आमंत्रित किया। 1975 में मिल्टन फ्रीडमैन को बुलाया गया, जिसके साथ ब्राजील के तख़्तापलट शासन के अर्थशास्त्री कार्लोस लैंगोनी भी चिली आए और फिर 1977 में फ्रेडरिक हायेक को बुलाया गया।49 पिनोशे की नीतियों से अमीरों के मुनाफ़े कई गुना बढ़े, लेकिन अधिकांश आबादी गरीब होती गई।
तख़्तापलट शासन के क्रूर दमन के बावजूद, पॉपुलर यूनिटी सरकार को जन्म देने वाली सोच ने अपना रंग दिखाया और लोगों ने पुन:संगठित होकर प्रतिरोध की लंबी प्रक्रिया शुरू की और अंततः तख़्तापलट को हरा दिया। कम्युनिस्ट पार्टी (जिसकी चार पीढ़ियों को मार डाला गया था), फ़्रेन्टे पैट्रियोटिको मैनुअल रोड्रिग्ज, मोविमेंटो डी एस्क्वेरडा रेवोलुसियोनारिया (एमआईआर), और अन्य वामपंथी समूहों ने एक तरफ़ बहादुरी से अपने काडरों को संगठित कर एक्शन लेने शुरू किए, और दूसरी तरफ़ हताश व आतंकित जनता में राहत की प्रक्रिया शुरू की। लंबे समय से चिली के वामपंथ की रीढ़ रहे, लेकिन तख़्तापलट शासन में नेस्तनाबूत हो चुके ट्रेड यूनियन आंदोलन को सैंटियागो के गुडइयर कारखाने के मज़दूर, ऑस्कर पीनो, जैसे नए नेताओं से हौंसला मिला। इन प्रगतियों से भयभीत शासन ने कई नेताओं की हत्या कर दी। 1982 में 500,000 श्रमिकों का प्रतिनिधित्व करने वाले मज़दूर संगठनों के संघ – ग्रुप ऑफ टेन – के संस्थापक तुकापेल जिमेनेज की हत्या कर दी गई थी। इसके बावजूद पुराने संगठनात्मक ढाँचे, जैसे कि 1930 के दशक में स्थापित सेंट्रोस डी मैड्रेस (‘माँओं का संघ‘), बेरोजगार श्रमिक केंद्रों, सामुदायिक रसोई, और बच्चों की कैंटीन के माध्यम से श्रमिक वर्ग को राहत प्रदान करने लगे। राहत और प्रतिरोध साथ–साथ चले, बहादुर लोग अपने ऊपर थोपे गए तख़्तापलट शासन के खिलाफ मजबूती से खड़े हो गए। तख़्तापलट के एक दशक बाद, लोग अपने राजनीतिक दलों के झंडे हाथ में लेकर, 1980 के संविधान और तख़्तापलट शासन के विरोध में सड़कों पर लौट आए। 1983 में ताँबा खनिकों की सफल हड़ताल से प्रेरित होकर ट्रेड यूनियन के पुन:स्थापित हो रहे आंदोलन के नेतृत्व में 11 मई 1983 को विरोध का पहला राष्ट्रीय दिवस मनाया गया।
दुनिया भर में चिली के श्रमिकों के साथ एकजुटता में अनगिनत गतिविधियाँ आयोजित हुईं। विभिन्न यूनियनों और संगठनों ने एकजुटता आंदोलन में भाग लिया। इससे पहले एकजुटता का ऐसा नज़ारा शांति के हक़ में और वियतनाम में अमेरिकी युद्ध के खिलाफ हुए आंदोलन में ही देखने को मिला था। गुटनिरपेक्ष देशों की सरकारों और जन–आंदोलनों ने चिली व दुनिया के लोकतंत्र–समर्थकों के साथ सहानुभूति व सहयोग क़ायम रखा। तीसरी दुनिया में ही नहीं बल्कि पूरे अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर चले एकजुटता आंदोलन ने पिनोशे को उसकी जगह दिखा दी।
तख़्तापलट की कोशिशों में लगे साम्राज्यवादी गुट का नारा था ‘जकार्ता को याद रखना। लेकिन देशों की संप्रभुता और लोगों की गरिमा के लिए प्रयासरत हर परियोजना का नारा होना चाहिए ‘चिली को याद रखना‘।
Notes
1 Salvador Allende, ‘Discurso con motivo de la nacionalización del cobre’ [ताँबे का राष्ट्रीयकरण करते हुए अलेंदे का भाषण], 11 July 1971, https://www.marxists.org/espanol/allende/1971/julio11.htm, हमारा अनुवाद।
3 Salvador Allende, ‘Discurso’ हमारा अनुवाद।
4 Salvador Allende, Discurso del doctor Salvador Allende G. Presidente de Chile, inaugurando la Tercera Conferencia Mundial de Comercio y Desarrollo [व्यापार एवं विकास पर तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन में डॉ साल्वाडोर अलेंदे द्वारा दिया गया भाषण] (Santiago: UNCTAD, 1972), 9, हमारा अनुवाद। https://www.archivochile.com/S_Allende_UP/doc_de_sallende/SAde0027.pdf; United Nations, Proceedings of the United Nations Conference on Trade and Development. Second Session, vol. 1 (New York: United Nations, 1968), https://unctad.org/system/files/official-document/td180vol1_en.pdf.
5 Popular Unity, Programa básico de gobierno de la Unidad Popular. Candidatura presidencial de Salvador Allende [पॉपुलर यूनिटी का घोषणापत्र: साल्वाडोर अलेंदे की राष्ट्रपति पद की उम्मीदवारी] (Santiago: Instituto Geográfico Militar, 1970), 3, हमारा अनुवाद।
6 United Nations, Proceedings of the United Nations Conference on Trade and Development [व्यापार और विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन की कार्यवाही] Second Session, vol.1 (New York: United Nations, 1968) 7.
7 United Nations, Proceedings, 77, 73.
8 Popular Unity, Programa básico [घोषणापत्र], 4, हमारा अनुवाद।
9 C. J. Tesar and Sheila C. Tesar, ‘Recent Chilean Copper Policy’, Geography 58, no. 1 (January 1973): 9.
10 1970 में, केवल छह बहुराष्ट्रीय निगमों के पास दुनिया के साठ प्रतिशत तांबे के उत्पादन का स्वामित्व था, जिनमें इन तीन अमेरिकी कंपनियों, दो ब्रिटिश कंपनियाँ (ब्रिटिश इंसुलेटेड कॉलेंडर केबल्स और आईएमआई रिफाइनर्स), और एक बेल्जियम की कंपनी (मेटालर्जी होबोकेन–ओवरपेल्ट) शामिल थीं। देखें C. J. Tesar and Sheila C. Tesar, ‘Recent Chilean Copper Policy’, Geography 58, no. 1 (January 1973): 9.
11 Dale Johnson, ed., The Chilean Road to Socialism (Garden City: Anchor Press, 1973), 28.
12 Andrés Zauschquevich and Alexander Sutulov, El cobre chileno (Santiago: Corporacion del Cobre, 1975), 42–48; Norman Girvan, Copper in Chile (Mona: University of the West Indies, Institute of Social and Economic Research, 1972).
13 Comisión Económica Para America Latina (CEPAL), Estudio económico de america latina 1971 [लैटिन अमेरिका का आर्थिक सर्वेक्षण 1971] (New York: United Nations, 1972), 118.
14 Salvador Allende, ‘Nacionalizacion del cobre’ [ताँबे का राष्ट्रीयकरण], In La vía chilena hacia el socialismo (Santiago: Editorial Fundamentos, 1971), 71, हमारा अनुवाद।
15 Allende, ‘Nacionalizacion del cobre’, 74 and 76–77, हमारा अनुवाद।
16 Mario Amorós Quiles, Compañero Presidente: Salvador Allende, una vida por la democracia y el socialismo [कॉमरेड राष्ट्रपति: साल्वाडोर अलेंदे, लोकतंत्र और समाजवाद को समर्पित जीवन] (València: València University, 2008), 160–161; Fernando Mönckeberg Barros, ‘Prevención de la desnutrición en Chile. Experiencia vivida por un actor y espectador’ [चिली में कुपोषण की रोकथाम: एक अभिनेता और दर्शक का अनुभव], Revista Chilena de Nutrición 30, no. 1 (2003)’
17 Allende, ‘Participacion y movilizacion’ [भागीदारी और लामबंदी], In La via chilena hacia el socialismo, 99–100, हमारा अनुवाद।.
18 Tanya Harmer, Allende’s Chile and the Inter-American Cold War (Chapel Hill: University of North Carolina Press, 2011), 82–83.
19 ‘Series S-0858: Commissions, Committees, and Conferences’, व्यापार एवं विकास पर संयुक्त राष्ट्र सम्मेलन (विविध) के महासचिव यू. थांट की फ़ाइलें, 1961-1971, संयुक्त राष्ट्र अभिलेखागार, 23। इस सम्मेलन के भवन का निर्माण रिकॉर्ड समय में किया गया था, वॉलंटीयरों ने आगे बढ़ कर मजदूरों की मदद की थी। तख़्तापलट के बाद, चूंकि ला मोनेडा भवन क्षतिग्रस्त हो गया था, इसलिए इमारत का इस्तेमाल सैन्य जुंटा के मुख्यालय के रूप में किया गया था। भवन का एक हिस्से में अब सेंट्रो कल्चरल गैब्रिएला मिस्ट्रल चलता है।
20 Tricontinental: Institute for Social Research, ‘Dependency and Super-exploitation: The Relationship Between Foreign Capital and Social Struggles in Latin America’, dossier no. 67, August 2023; Margarita Fajardo, The World That Latin America Created: The United Nations Economic Commission for Latin America in the Development Era (Cambridge: Harvard University Press, 2022).
21 Pedro Vuskovic, ‘Algunas experiencias del desarrollo latinoamericano’ [लैटिन अमेरिका में विकास के कुछ अनुभव], In Dos polémicas sobre el Desarrollo de América Latina [लैटिन अमेरिका के विकास पर दो नज़रिए ] (Santiago: Editorial Universitaria, 1970) and ‘La política de transformación y el corto plazo’ [स्थानांतरण नीति और लघु काल], In El pensamiento económico del gobierno de Allende [अलेंदे सरकार की इकनॉमिक सोच], ed. Gonzalo Martner (Santiago: Editorial Universitaria, 1972).
22 United Nations, Proceedings, 16.
23 Salvador Allende, Discurso del doctor Salvador Allende G. Presidente de Chile, inaugurando la Tercera Conferencia Mundial de Comercio y Desarrollo [व्यापार एवं विकास पर तीसरे अंतरराष्ट्रीय सम्मेलन के उद्घाटन में डॉ साल्वाडोर अलेंदे द्वारा दिया गया भाषण] (Santiago: UNCTAD, 1972), 9, हमारा अनुवाद।
24 Robert S. McNamara, Address to the Board of Governors. Robert S. McNamara, President, World Bank Group (Nairobi, Kenya. Washington, DC: International Bank for Reconstruction and Development, 1973), 8.
25 United Nations, Proceedings, 354.
26 United Nations General Assembly, ‘The Increasing Burden of Debt Services’, A/RES/2807 (14 December 1971).
27 United Nations, Proceedings, 355.
28 United Nations, Proceedings, 351-55; Allende, Discurso, 23.
29 Salvador Allende, ‘El desarrollo del tercer mundo y las relaciones internacionales’ [तीसरी दुनिया और अंतरराष्ट्रीय संबंधों का विकास], व्यापार एवं विकास पर थर्ड वर्ल्ड सम्मेलन में उद्घाटन भाषण (Santiago, 13 April 1972), हमारा अनुवाद।
30 United Nations, Proceedings, 357; Allende, Discurso, 28; Allende, ‘El desarrollo’, हमारा अनुवाद।
31 Stockholm International Peace Research Institute, SIPRI Yearbook of World Armaments and Disarmament 1969/70 (Stockholm: Almqvist & Wiksell, 1970), 3.
32 United Nations, Proceedings, 357.
33 Harmer, Allende’s Chile, 161.
34 1970 में, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार आयोग ने ईरान के राजनीतिज्ञ मनौचेहर गंजी को विशेष प्रतिवेदक के रूप में नियुक्त किया। गंजी की रिपोर्ट – The Widening Gap: A Study of the Realisation of Economic, Social, and Cultural Rights (1973) – ने तीसरी दुनिया की आर्थिक और राजनीतिक कमजोरियों पर जोर दिया और सुझाव दिया कि मानवाधिकारों की लड़ाई को एक नव अंतर्राष्ट्रीय आर्थिक क्रम की स्थापना की लड़ाई से जुड़ा होना चाहिए।
35 अल्जीरिया के विदेश मंत्री, अब्देलअज़ीज़ बुउटफ्लिका ने 1972 में कहा था कि ‘तीसरी दुनिया की आर्थिक मुक्ति का रास्ता… UNCTAD से होकर नहीं गुजरता‘; लेकिन उन्होंने अल्जीरिया में NAM के चौथे शिखर सम्मेलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, जहां संयुक्त राष्ट्र महासभा में NIEO प्रस्ताव का आधार रखा गया था। Harmer, Allende’s Chile, 163
36 Vijay Prashad, The Poorer Nations: A Possible History of the Global South (Various publishers, 2013), 53, 54.
37 Peter Kornbluh, The Pinochet File. A Declassified Dossier on Atrocity and Accountability (New York: The New Press, 2013), 7.
38 हालाँकि, 1810 और 1814 के बीच, अमेरिकी सरकार ने स्पेनिश साम्राज्य के खिलाफ युद्ध में सहायता करने और अमेरिकी हितों की पैरवी के लिए जोएल रॉबर्ट्स पॉइन्सेट को अर्जेंटीना और चिली भेजा था।
39 The Pinochet File, 2.
40 The Pinochet File, 17.
41 The Pinochet File, 36.
42 Harmer, Allende’s Chile.
43 Harmer, Allende’s Chile, 205–206.
44 US Senate, Senate Select Committee to Study Governmental Operations with Respect to Intelligence Activities (Washington, 1976). बहुत सी जानकारी और CIA व निक्सन सरकार के दस्तावेज The Pinochet Files में मिल जाएगी. वॉशिंटन के हस्तक्षेपों के बारे में विस्तृत जानकारी के लिए, देखें Vijay Prashad, Washington Bullets: A History of the CIA, Coups, and Assassinations (Various publishers, 2021).
45 Vincent Bevins, The Jakarta Method: Washington’s Anticommunist Crusade and the Mass Murder Program that Shaped Our World (New York: Public Affairs, 2020).
46 हालाँकि इन आँकड़ों पर विवाद बना हुआ है, लेकिन आधिकारिक आंकड़े Informe de la Comisión Nacional de Verdad y Reconciliación (सत्य व सलाह पर चिली के राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट) (Santiago: Comisión Nacional de Verdad y Reconciliación, 1991), जिसे Retting Commission भी कहा जाता है, और Informe de la Comisión Nacional Sobre Prisión Política y Tortura [राजनीतिक कारावास और यातना पर राष्ट्रीय आयोग की रिपोर्ट] (Santiago: Comisión Nacional Sobre Politica y Tortura, 2004), जिसे Valech Commission भी कहा जाता है, में उपलब्ध हैं। The Pinochet Files, 220–225.
47 यह किताब 1992 में Centro de Estudios Públicos द्वारा प्रकाशित की गई थी; इस प्रकाशन घर की स्थापना 1980 में शिकागो बॉयज़ के काम का समन्वयन करने के उद्देश्य के साथ की गई थी।
48 Sebastian Edwards, The Chile Project: The Story of the Chicago Boys and the Downfall of Neoliberalism (Princeton: Princeton University Press, 2023); Javier Campos Gavilán, Antecedentes del neoliberalismo en Chile (1955–1975): El autoritarismo como camino a la libertad económica [चिली में नवउदारवाद की पृष्टभूमि (1955–1975): आर्थिक स्वतंत्रता के लिए अधिनायकवाद का रास्ता] (Santiago: Universidad de Chile, Facultad de Derecho, 2013).
49 फ्रीडमैन की यात्रा सर्वविदित है, लेकिन हायेक की यात्रा के बार में ज़्यादा लोग नहीं जानते। उस यात्रा के बारे में जानने के लिए देखें, Bruce Caldwell and Leonidas Montes, ‘Friedrich Hayek and his Visits to Chile’, Review of Austrian Economics 28, no. 3 (2015).