Skip to main content
newsletter

चीन की क्रांति के बारे में मेरे विचार: दूसरा न्यूज़लेटर (2024)

लियू होंगजी (चीन), क्षितिज, 2021

प्यारे दोस्तो,

ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।

पिछले साल के अंत में, एक सहकर्मी ने मुझे एक पत्र भेजा था जिसमें उन्होंने चीन के बारे में मेरे कुछ लेखों और विशेष रूप से 2023 के आख़िरी न्यूज़लेटर का ज़िक्र किया। यह न्यूज़लेटर उस ख़त का जवाब है।

**

चीन के हालात वामपंथियों के बीच बड़ी घबराहट का कारण बने हुए हैं। मुझे ख़ुशी है कि आपने मेरे सामने चीन के समाजवाद का मुद्दा प्रत्यक्ष रूप से उठाया।

जैसा कि आप जानते हैं, हम बहुत ख़तरनाक समय में जी रहे हैं। संयुक्त राज्य अमेरिका और अन्य शक्तिशाली देशों के बीच बढ़ता तनाव, 1991 के बाद से दुनिया के लिए शायद कभी भी इतना घातक नहीं रहा जितना अब हो चुका है। यूक्रेन युद्ध और गाज़ा नरसंहार हमारे सामने मौजूद ख़तरों के उदाहरण हैं। साथ ही, मुझे डर है कि अमेरिका इस युद्ध में ईरान को धकेलने की कोशिश कर रहा है; जिस प्रकार से इज़राइल लेबनान में हिज़बुल्लाह के साथ टकराव बढ़ाने की धमकी दे रहा है, उससे तेहरान ऐसे कदम उठाने को मजबूर हो जाएगा जिससे अमेरिका को ईरान पर बमबारी करने की छूट मिल जाएगी। चीन के ख़िलाफ़ नया शीत युद्ध इन टकरावों को अलग ही स्तर पर ले जाएगा। ताइवान पहले से ही हत्थे चढ़ा हुआ है। मुझे उम्मीद है कि शांति की जीत होगी।

सभी समाजवादी परियोजनाएं, जैसा कि आप अच्छी तरह से जानते हैं, वर्ग संघर्ष की प्रक्रिया में उत्पन्न उत्पादक शक्तियों के विकास के साथ विकसित होती हैं। कम से कम चीन में तो ऐसा है। आपको 1990 में प्रकाशित बिल हिंटन की पुस्तकद ग्रेट रिवर्सल: द प्राइवेटाइजेशन ऑफ चाइना, 1978-1989′ याद होगी। 2004 में उनकी मृत्यु से लगभग एक साल पहले मैं कॉनकॉर्ड, मैसाचुसेट्स में बिल के साथ था और वहां चीन के बारे में उनके साथ कई बातें हुई थीं। बिल, (उनकी बहन जोन और चीन में डेयरी फार्मिंग का आधुनिकीकरण करने वाले उनके बहनोई सिड एंगस्ट सहित) उनका पूरा परिवार, और उनके दोस्तों इसाबेल क्रूक, एडगर स्नो, हेलेन फोस्टर स्नो, तथा बाद में अनुवादक जोन पिंकहैम (हैरी डेक्सटर व्हाइट की बेटी) के अलावा, अमेरिका में चीन को इनसे बेहतर कोई नहीं जानता था।

1990 और 2000 के दशक की शुरुआत में चीन को लेकर काफ़ी घबराहट थी। जब मैंने दशकों पहले चीन का दौरा किया था, तो ग्रामीण क्षेत्रों में व्याप्त ग़रीबी देखकर मैं चकित रह गया था। लेकिन इसके बावजूद, 1949 की चीनी क्रांति को जन्म देने वाले संघर्षों के महान इतिहास से प्रेरित लोगों के आत्मविश्वास को मैं महसूस कर रहा था। वे लोग जानते थे कि वे एक समाजवादी परियोजना का निर्माण कर रहे हैं। ‘थ्रू ए ग्लास डार्कली: यू.एस. व्यूज़ ऑफ़ द चाइनीज़ रिवोल्यूशन’ में बिल ने साबित किया था कि वो पक्के माओवादी थे और समाजवादी परियोजना के अंतर्विरोधों के बारे में अच्छी तरह जानते थे।

जियांग जेमिन (1993-2003) और हू जिंताओ (2003-2013) के दौर में असमानता काफी बढ़ गई थी। पुअरर नेशंस: ए पॉसिबल हिस्ट्री ऑफ द ग्लोबल साउथ‘ (2013) में मैंने थोड़ी निराशा के साथ चीन की क्रांति के बारे में लिखा था, जबकि एक ग़रीब देश में समाजवाद के विकास में आने वाली कठिनाइयों को मैं समझता था (और रूस के बाद तथा पश्चिम की विफल क्रांतियों के बाद, ऐसा प्रयास करने वाला देश केवल चीन ही था)। उसके कुछ साल बाद, मैंने एज़्रा वोगेल की किताब, ‘डेंग जियाओपिंग एंड द ट्रैन्स्फ़र्मेशन ऑफ़ चाइना‘ (2011) में डेंग का महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन पढ़ा, जिसमें वोगेल ने डेंग द्वारा 1978 में लिए गए फ़ैसलों का पूरी क्रांतिकारी प्रक्रिया के संदर्भ में विश्लेषण किया था। उस पुस्तक ने मुझे डेंग द्वारा किए गए सुधारों की बेहतर समझ दी। उस पुस्तक से मैंने जाना कि डेंग ने अर्थव्यवस्था की स्थिरता से पार पाने के लिए बाज़ार को उत्पादक शक्तियों के विस्तार की अनुमति दी थी। उसके बिना, यह स्पष्ट था कि चीन -एक ग़रीब और पिछड़ा देश होने के कारण- निराशा के समाजवाद में बदल जाता। चीन को एक नया दृष्टिकोण अपनाना पड़ा था। यह सही है किडेंग के सुधार बाज़ारोन्मुख थे और उन्होंने एक ख़तरनाक स्थिति के लिए रास्ता बनाया। बिल का निराशावाद उस वास्तविकता की उपज था।

शेयांग फार्मर्स पेंटिंग इंस्टीट्यूट (जियांग्सू, चीन), ‘किसान पेंटिंग’ परियोजना, 2017 से एक पेंटिंग

1990 के दशक के अंत तक चीन की कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) की पत्रिकाओं सहित कई मंचों पर जन-कार्रवाइयों के ज़रिए बढ़ती असमानता व ग़रीबी से निपटने के विषय पर चर्चा शुरू हो चुकी थी। अक्टूबर 2005 में 16वीं सीपीसी कांग्रेस की पांचवीं बैठक में, पार्टी ने कृषि, किसानों और ग्रामीण क्षेत्रों के संदर्भ में वाक्यांश ‘तीन ग्रामीण’ का उपयोग करते हुए ‘समाजवादी ग्रामीण क्षेत्र का निर्माण’ करने हेतु एक ‘महान ऐतिहासिक मिशन’ की घोषणा की। इस मिशन का मक़सद था राज्य के निवेश के ज़रिए ग्रामीण क्षेत्रों के बुनियादी ढांचे में सुधार लाना, मुफ़्त और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करना तथा चिकित्सा क्षेत्र में बाज़ारोन्मुख सुधारों से पीछे हटते हुए सहकारी चिकित्सा सेवाओं को विकसित करना। सहकारी चिकित्सा सेवा 2009 से पूरे चीन में एक राष्ट्रव्यापी नीति बन गई थी। मुझे यह अच्छा लगा कि यह अभियान नौकरशाही के तंत्र की बजाय एक जन-कार्रवाई के रूप में चलाया गया था, जिसमें हजारों सीपीसी कैडर शामिल हुए। इस अभियान के एक दशक बाद ग़रीबी उन्मूलन अभियान शुरू हुआ था।

जैसे ही यह मिशन शुरू हुआ, मुझे यह जानकर बड़ा अचंभा हुआ कि ‘लाल संसाधनों’ वाले स्थानों को कार्रवाई की सूची में आगे रखा गया था (जैसे कि गुआंग्डोंग प्रांत में हैलुफेंग, जो चीन के पहले ग्रामीण सोवियत का केंद्र था)। यह जानना ज़रूरी है कि पश्चिम के विद्वानों ने इन नए बदलावों पर ध्यान नहीं दिया, क्योंकि वे चीन के ग्रामीण इलाकों की स्थितियों का अध्ययन करने के बजाय देश के प्रशांत तट पर नज़रें जमाए थे। चीन के ग्रामीण इलाक़ों का अध्ययन करने वाले गिने-चुने विद्वानों में प्रोफेसर एलिजाबेथ पेरी और (चाइनाज़ रूरल डेवलपमेंट पॉलिसी: एक्सप्लोरिंग द ‘न्यू सोशलिस्ट कंट्रीसाइड’, 2009 के लेखक) प्रोफेसर मिंज़ी सु जैसे ईमानदार लोग हैं, जिन्हें चीन पर लिखने वाले अधिकांश टिप्पणीकार नजरअंदाज करते हैं।

समाजवादी ग्रामीण क्षेत्र बनाने के इस प्रयास ने सीपीसी में और मुक्त-बाज़ार की ताक़तों के ख़िलाफ़ जारी शांत आंदोलन में नई जान फूंक दी, जिसके परिणामस्वरूप 2012 के अंत में शी जिनपिंग पार्टी नेता के रूप में चुने गए। देश के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए शी की चिंता का बड़ा कारण यह है कि उन्होंने अपनी युवावस्था के कई साल चीन के अविकसित उत्तर-पश्चिम इलाक़ों में बिताए थे और फिर 1980 के दशक के अंत में निंग्डे प्रान्त के पार्टी सचिव के रूप में काम किया था, जो कि उस समय फ़ुज़ियान प्रांत के सबसे ग़रीब क्षेत्रों में से एक था। निंग्डे में पार्टी सचिव के रूप में शी के नेतृत्व को उस क्षेत्र में ग़रीबी कम करने और सामाजिक संकेतकों में सुधार लाने के लिए विशेष रूप से जाना जाता है, जिसकी वजह से उस प्रांत के युवाओं का शहरों की ओर पलायन कम हो गया था।

क्या चीन का विकास प्रकृति की कीमत पर होना जरूरी था? 2005 में, हुज़ोउ (झेजियांग प्रांत) में रहते हुए, शी ने आर्थिक और पारिस्थितिक विकास को साथ-साथ चलाने का सुझाव देते हुए ‘दो पर्वत’ सिद्धांत प्रस्तुत किया। इसका प्रमाण इस तथ्य से मिलता है कि, 2013 से 2020 के बीच, चीन में कणीय प्रदूषण में 39.6% की कमी आई, जिससे औसत जीवन प्रत्याशा दो साल बढ़ गई। 2023 में, शी ने ‘सुंदर चीन’ के निर्माण हेतु एक नई पारिस्थितिक रणनीति की घोषणा की, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एक पर्यावरण योजना शामिल है।

मैं आपके कुछ दावों से अचंभित हुआ। पर मैं विशेष रूप से इस दावे कि ‘ग्रामीण इलाकों में जबरन वापसी अब राज्य की नीति बन चुकी है’ पर बात करूँगा क्योंकि मुझे लगता है कि यह व्यापक ‘नए समाजवादी ग्रामीण क्षेत्र’ नीति का हिस्सा है। यह सच है कि राष्ट्रपति शी 2017 से ग्रामीण पुनरोद्धार की आवश्यकता के बारे में बात कर रहे हैं, और यह भी सच है कि विभिन्न प्रांत (जैसे गुआंग्डोंग) ग्रामीण क्षेत्र को शहरों जैसा आकर्षक बनाने के लिए कॉलेज के स्नातकों को योजनाबद्ध तरीक़े से ग्रामीण इलाक़ों में भेजते हैं। लेकिन, यह सब बलपूर्वक नहीं, बल्कि नवीन कार्यक्रमों के माध्यम से किया जाता है।

झांग हैलोंग (चीन), घोड़े और चरवाहे श्रृंखला 3, 2022

इन कार्यक्रमों के अगुआ युवा हैं, जिनमें से कई उन तीस लाख कैडर में भी शामिल थे जो अत्यधिक ग़रीबी को ख़त्म करने की नीति के तहत गांवों में गए थे (यह ध्यान में रखा जाना चाहिए कि उस कार्य को पूरा करते हुए 1,800 कैडर अपनी जान गँवा बैठे थे)। चीन के विशाल ग्रामीण परिदृश्य को देखते हुए, शी, माओत्से तुंग की तरह, पार्टी सदस्यों को ग्रामीण चीन की वास्तविकता का अनुभव कराने के महत्त्व को लेकर बहुत संवेदनशील हैं। सांस्कृतिक क्रांति के दौरान ख़ुद शी को चीन के ग्रामीण उत्तर-पश्चिम क्षेत्र में भेजा गया था। इस अनुभव के बारे में शी ने 2002 में लिखा था: ’15 साल की उम्र में, मैं हैरान और परेशान लिआंगजियाहे गांव आया था। 22 साल की उम्र में, मैं एक स्पष्ट जीवन लक्ष्य और आत्मविश्वास के साथ वहां से निकला था।’ चीन की नीति में कुछ इसी तरह का रवैया झलकता है। क्या पार्टी सदस्यों के लिए, जिनमें से कई राज्य के विभिन्न महकमों में नौकरियां करते हैं, ग्रामीण इलाकों में समय बिताना बुरा है? यदि आप चाहते हैं कि वे चीन की वास्तविकता को बेहतर ढंग से समझें तब ऐसा करना बुरा नहीं है।

मैं पिछले दस वर्षों में कई बार चीन गया हूं और ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में ख़ूब घुमा हुं। शी ने ‘नई समाजवादी ग्रामीण क्षेत्र’ नीति के तहत जो दोहरी संचालन रणनीति अपनाई है वह काफ़ी दिलचस्प है। मैं चीन की परियोजना के विस्तृत एवं आनुभविक मूल्यांकन के लिए कई विद्वानों के साथ काम कर रहा हूं जो चीन को, अपने मापदंडों के अनुसार, भीतर से समझने की कोशिश कर रहे हैं। इसी तरह के आकलन के आधार पर हम काम करते हैं। इनमें से कुछ विश्लेषण वेन्हुआ ज़ोंगहेंग में प्रकाशित हुए हैं और कुछ चीन में अत्याधिक ग़रीबी के उन्मूलन पर ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान द्वारा प्रकाशित अध्ययन में शामिल हैं। क्या यह प्रचार है? मुझे नहीं लगता। मुझे लगता है कि हम जल्द ही आगे बढ़ती चीनी क्रांति का सैद्धांतिक मूल्यांकन प्रस्तुत करने में सक्षम होंगे। क्या यह क्रांति परिपूर्ण है? बिल्कुल नहीं। लेकिन इसके लिए घिसे-पिटे तर्कों की बजाय, जो कि चीन के मामले में पश्चिम में बड़े स्तर पर प्रचारित किए गए हैं, वस्तुपरक समझ की ज़रूरत है।

अब्दुरकेरिम नासिरदीन (चीन), नौजवान चित्रकार, 1995

उदाहरण के लिए, (2.5 करोड़ या कुल जनसंख्या में 1.8%) चीनी मुसलमानों के उत्पीड़न के आरोप पर बात करते हैं। मुझे याद है कि मैं 2000 के दशक में मध्य एशिया में था, जब अल-कायदा और तालिबान का इस्लामिक मूवमेंट ऑफ उज़्बेकिस्तान (आईएमयू) के कार्यालयों व अन्य माध्यमों से इस क्षेत्र पर बड़ा प्रभाव था। आईएमयू ने पूरे झिंजियांग क्षेत्र पर क़ब्ज़ा करने की नीति बनाई थी, यही वजह है कि कुछ उइगुर जुमा नामंगानी के नेतृत्व में चले गए थे।

तुर्किस्तान इस्लामिक पार्टी जैसे अन्य संगठन अल-कायदा के करीबी लोगों, जैसे अल-कायदा के शूरा के सदस्य अब्दुल हक अल-तुर्किस्तानी आदि, के नेतृत्व में इसी प्रकार के संपर्कों से शुरू हुए थे। झिंजियांग उइगुर स्वायत्त क्षेत्र सहित सार्वजनिक स्थानों पर बमबारी आम हो गई थी। अब्दुल हक ने ओलंपिक के दौरान बीजिंग में 2008 में बम विस्फोट कराए। अब्दुल शकूर अल-तुर्किस्तानी, जिसने 2010 में अब्दुल हक की जगह ली थी, ने 2008 और 2011 में काशगर हमलों और 2011 में हॉटन हमले को अंजाम दिया था। 2013 में, यह समूह सीरिया चला गया, जहां तुर्की-सीरियाई सीमा पर मेरी उनके कुछ सदस्यों से मुलाकात हुई। वे अब इदलिब में सक्रिय हैं और वहां अल-कायदा के गठन में लगे हैं। वे तुर्की राष्ट्रवाद नहीं हैं, बल्कि उनमें अल-कायदा के किस्म का इस्लामी कट्टरवाद है।

उस समय, विद्रोह से निपटने के लिए कई रास्ते अपनाए जा सकते थे। लेकिन इस क्षेत्र में अमेरिका और उसके सहयोगियों ने हिंसा का रास्ता चुना। विद्रोहियों द्वारा चलाए जा रहे संदिग्ध क्षेत्रों पर हमले किए गए और बड़ी तादाद में गिरफ़्तारियाँ की गईं। कई विद्रोहियों को अमेरिका द्वारा संचालित डिटेन्शन कैम्पों में डाल दिया गया। अब्दुल हक और अब्दुल शकूर सहित, समूह के कई सदस्य अफगानिस्तान-पाकिस्तान सीमा पर अमेरिकी ड्रोन हमलों में मारे गए। दिलचस्प बात यह है कि चीन ने यह रास्ता नहीं चुना था। कुछ साल पहले, मैंने लीबियाई इस्लामिक युद्ध दस्ता के पूर्व सदस्यों का साक्षात्कार लिया था, जो तब तक हिंसा और अल-कायदा की विचारधारा को त्याग चुके थे। इस विवादास्पद समूह, लंदन स्थित क्विलियम फाउंडेशन, का नेतृत्व नोमान बेनोटमैन जैसे लोग कर रहे थे, जिन्होंने मिस्र के ‘पश्चाताप’ और अल्जीरियाई ‘मेलजोल’ परियोजनाओं का दृष्टिकोण अपना लिया था। इन कार्यक्रमों में कट्टरवाद को ख़त्म करने के लिए संज्ञानात्मक और व्यवहारिक उपायों (क्रमशः विचारधारा को बदलने और हिंसा को रोकने जैसे कदम उठाने) किए जाते थे। लीबिया के पूर्व जिहादी, लक्षित हिंसा और सामूहिक गिरफ़्तारियों की बजाय, लीबिया (जहां वे असफल रहे थे) और पश्चिम (जहां उनमें से कई फिर से बस गए थे) में उपरोक्त उपायों को लागू करना चाहते थे। लेकिन जर्मनी छोड़कर, जहां 2012 में हयात कार्यक्रम चलाया गया, कहीं भी उनकी सुनी नहीं गई। पश्चिम ने जो हिंसक रास्ता अपनाया था, उसके साथ दिक़्क़त यह थी कि उसने कट्टरपंथी राजनीति में शामिल लोगों को कट्टरपंथ से मुक्त करने की बजाय सभी मुसलमानों को ग़लत करार दिया।

चीन ने, शिनजियांग में सक्रिय कट्टरपंथी समूहों और उनके समाज के ख़िलाफ़ सीधे युद्ध छेड़ने तथा सभी मुसलमानों को ग़लत ठहराने के बजाय, कट्टरपंथ को ख़त्म करने के लिए विभिन्न कदम उठाए। 2019 में बीजिंग में चीनी इस्लामिक एसोसिएशन और सीपीसी के बीच हुई बैठक को याद करना ज़रूरी है। इस बैठक का उद्देश्य था इस्लाम के चीनीकरण को जारी रखने की पंचवर्षीय योजना के तहत इस्लाम को समाजवाद के अनुकूल बनाना। यह एक दिलचस्प परियोजना है, हालाँकि इसमें स्पष्टता की कमी है। इस्लाम का चीनीकरण इस परियोजना का एक हिस्सा है; दूसरा हिस्सा है इस्लाम की प्रथाओं को समाजवादी परियोजना के अनुरूप बनाना। यह दूसरा कदम आधुनिक दुनिया के लिए समाजशास्त्र की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है: धर्म को – व्यापक अर्थों में – आधुनिक मूल्यों, और, चीन के संदर्भ में, लैंगिक भेदभाव को ख़त्म करने जैसे ‘मूल समाजवादी मूल्यों’ के अनुरूप बनाना।

Liu Xiaodong (China), Belief, 2012.

लियू ज़ियाओदोंग (चीन), विश्वास, 2012

पहले कदम को समझना ज़रा कठिन है और मैं वास्तव में इसे समझ नहीं पाया हुं। लेकिन मैं इस विचार के साथ पूरी तरह से सहमत हुं कि धर्म को आधुनिक मूल्यों, विशेषकर समाजवादी मूल्यों के साथ जोड़ा जाना चाहिए। पर यह किया कैसे जाए? क्या कुछ प्रथाओं (जैसे फ्रांस में हिजाब) पर प्रतिबंध लगा देना चाहिए या धार्मिक समुदायों के नेताओं (जो कि अक्सर सबसे ज़्यादा रूढ़िवादी होते हैं) के साथ बहस और चर्चा की प्रक्रिया शुरू करनी चाहिए? और तब क्या किया जाए जब सामना किसी ऐसे समूह से हो जिसकी जड़ें शिनजियांग के तनाव की तरह देश के भीतर नहीं बल्कि देश के बाहर हों, जैसे कि अफगानिस्तान, उज्बेकिस्तान या सीरिया में?

ये सभी गंभीर सवाल हैं। लेकिन हम अमेरिका के विदेश विभाग और लैंगली, वर्जिनिया में सीआईए के मुख्यालय के पास स्थित संदिग्ध संस्थानों में काम करने वाले संदिग्ध लोगों सहित उनके सहयोगियों की हिंसक बयानबाजी को वामपंथ के भीतर की चर्चाओं पर हावी नहीं होने दे सकते। हमें मौजूदा हालात की बेहतर समझ होनी चाहिए ताकि हम बाइडेन और नेतन्याहू की तरह ‘क्या आप हमास की निंदा करते हैं’ जैसी बहस तक सीमित न रह जाएं।

Tang Xiaohe and Cheng Li (China), Mother on the Construction Site, 1984.

तांग ज़ियाओहे और चेंग ली (चीन), निर्माण स्थल पर माँ, 1984

अपने ईमेल में आपने लिखा है कि ‘इसमें कोई संदेह नहीं है कि पिछले दशकों में आम चीनी लोगों, विशेषकर शहरवासियों के जीवन स्तर में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है।’ वास्तव में, सभी आँकड़े – और मेरी अपनी यात्राएँ – यह दर्शाती हैं कि जीवन स्तर में सुधार ‘विशेषकर’ शहरवासियों के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे देश में और सुदूर पश्चिम व सुदूर उत्तर के क्षेत्रों में भी हुआ है। उदाहरण के लिए, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के आंकड़ों के अनुसार चीन के वार्षिक वास्तविक वेतन में 4.7% वृद्धि हुई है, जो कि दक्षिण गोलार्ध के अन्य देशों, और निश्चित रूप से भारत (1.3%) व अमेरिका (0.3%) की तुलना में कहीं अधिक है। 2013 से 2021 के बीच, यानी केवल आठ वर्षों में, चीन के 49.8 करोड़ ग्रामीण निवासियों की प्रति व्यक्ति प्रयोज्य आय (हाथ में आनेवाली राशि) में 72.6% से अधिक की वृद्धि हुई है, और शहरी क्षेत्रों के 91.4 करोड़ निवासियों की प्रति व्यक्ति प्रयोज्य आय में 53.5% की वृद्धि हुई है। इस दौरान ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के बीच प्रयोज्य आय के अंतर में 5% की गिरावट आई और ग्रामीण निवासियों की प्रयोज्य आय की वृद्धि दर लगातार बारह वर्षों (2009-2021) तक शहरी निवासियों से ज़्यादा रही।

2012 और 2020 के बीच लक्षित ग़रीबी उन्मूलन कार्यक्रम ने लगभग दस करोड़ ग्रामीण लोगों को अत्यधिक ग़रीबी से बाहर निकाला और अत्यधिक ग़रीबी से पीड़ित हर परिवार को सहायता मुहैया कराई। इस अभिनव प्रक्रिया के तहत, सीपीसी ने ज़मीनी स्तर के कैडर का प्रशिक्षण एवं विकास डिजिटल तकनीक से जोड़ा, जिससे स्थानीय स्तर पर आधुनिक प्रशासनिक क्षमताओं को बढ़ावा मिला और पार्टी सदस्य व कैडर लोगों को सटीक तथा कुशल सेवा देने में सक्षम बनें।

तुलना के लिए, गिनी इंडेक्स का प्रयोग करते हैं, जिसमें (ग्रामीण घरों के लिए किराये में मुआवज़ा जैसी) सार्वजनिक सेवाओं की गणना नहीं होती। इस संकेतक के अनुसार भारत में आय असमानता चीन से 24% ज़्यादा है।

जो लोग चीन में असमानता के आंकड़ों को देखते हैं उनका ध्यान अक्सर चीन के अरबपतियों पर केंद्रित होता है। यह आपके ईमेल में स्पष्ट रूप से झलका, जहां आपने लिखा है कि चीन ‘राज्य-सब्सिडी प्राप्त करोड़पतियों और अरबपतियों से भरा हुआ है। दरअसल, सुपर-बुर्जुआ वर्ग लगातार बढ़ रहा है, जिनमें से कई ‘विदेशों में निवेश’ करते हैं। ज़ाहिर तौर पर सुधार युग ने कुछ लोगों के लिए अमीर बनने की सामाजिक परिस्थितियाँ उत्पन्न की थीं। लेकिन, उनकी संख्या घट रही है: 2023 में, दुनिया के 2,640 अरबपतियों में से लगभग 562 चीन के थे, जो कि पिछले वर्ष के 607 चीनी अरबपतियों की संख्या से कम है। इसके साथ ही पिछली कुछ सीपीसी कांग्रेस में इस अरबपति-उत्पादन प्रक्रिया को उलटने पर ज़ोर दिया गया है। 20वीं राष्ट्रीय कांग्रेस के 2,296 प्रतिनिधियों में से केवल 18 ही निजी क्षेत्र के अधिकारी थे, जिनमें से अधिकांश छोटे व मध्यम आकार के उद्यमों से संबद्ध थे और यह संख्या 2012 में हुई 18वीं राष्ट्रीय कांग्रेस में भाग लेने वाले 34 निजी क्षेत्र के अधिकारियों से कम थी।

शायद आप जानते होंगे कि 2021 में शी ने ‘साझा समृद्धि’ की नीति का आह्वान किया था। 1953 में सीपीसी ने पहली बार इस संज्ञा का इस्तेमाल किया था। इस नीति से कई अरबपति चिंता में पड़ गए और जैसा कि आपने कहा ‘विदेशों में निवेश’ करने लगे। लेकिन चीन का पूंजी नियंत्रण काफ़ी मजबूत है, जिसके तहत केवल 50,000 डॉलर ही विदेशों में भेजे जा सकते हैं। पिछले कुछ वर्षों में अमीरों ने अपना धन बाहर भेजने के लिए हांगकांग के खुले रास्तों सहित कई अवैध तरीक़े खोज निकाले हैं। लेकिन राज्य इस पर नकेल कस रहा है, ठीक उसी तरह जैसे भ्रष्टाचार को खदेड़ा जा रहा है। अगस्त 2023 में, पुलिस ने शंघाई में अवैध विदेशी मुद्रा हस्तांतरण की सुविधा प्रदान करने वाली आव्रजन फर्म के मालिकों को गिरफ़्तार किया था। जैक मा (फिनटेक कंपनी एंट ग्रुप के मालिक) हुई का यान (प्रॉपर्टी डेवलपर एवरग्रांडे के मालिक) और बाओ फैन (निवेश बैंक रेनेसां होल्डिंग्स के मालिक) पर जो दबाव है उससे अरबपतियों के संबंध में सीपीसी के वर्तमान दृष्टिकोण की स्पष्ट झलक मिलती है।

आपने लिखा है कि चीन में जीवन स्तर में सुधार हुआ है, लेकिन ‘समाजवाद उस देश के एजेंडे में नहीं है’। यदि सीपीसी के एजेंडे में समाजवाद नहीं है, तो चीन कैसे अत्यधिक ग़रीबी को ख़त्म करने और असमानता दर को कम करने में सक्षम हुआ है, ख़ासकर तब जब वैश्विक असमानता लगातार बढ़ रही है और उत्तर के पूंजीवादी देशों तथा दक्षिण गोलार्ध के अधिकतर देशों का सामाजिक लोकतांत्रिक एजेंडा इस स्तर की उपलब्धियों के करीब पहुंचने में भी विफल रहा है? यह अच्छा है कि चीन के बड़े बैंक राज्य के नियंत्रण में हैं, जिससे बड़ी पूंजी को सामाजिक समस्याओं से निपटने के लिए कुशलतापूर्वक प्रबंधित किया जा सकता है, जैसा कि हमने कोविड-19 महामारी के दौरान भी देखा था। हां, चीन में वर्ग संघर्ष अब भी जारी है और यह वर्ग संघर्ष (9.8 करोड़ सदस्यों की पार्टी) सीपीसी पर असर भी डालता है।

Wang Zihua (China), When the Wind Blows Through the Summer, 2022.

वांग जिहुआ (चीन), जब गर्मियों में हवा चलती है, 2022

मैंने हमारी चर्चा को आगे बढ़ाने के लिए केवल तथ्यों का सहारा नहीं लिया है, बल्कि उन्हें समाजवाद के उस सिद्धांत में पिरोने का प्रयास किया है जो मुझे काफ़ी आकर्षक लगता है। उस सिद्धांत के अनुसार, समाजवाद कोई घटना नहीं है, बल्कि एक प्रक्रिया है, और वर्ग संघर्ष में निहित इस प्रक्रिया में उतार-चढ़ाव आते रहते हैं। ये उतार-चढ़ाव ग़रीब देशों में उत्पादक शक्तियों को बढ़ाने की तत्काल आवश्यकता के साथ और प्रत्यक्ष रूप से दिखने लगते हैं। इन्हें सर्वज्ञ की तरह देखने की बजाय यह महत्वपूर्ण होगा कि हम इन प्रक्रियाओं के साथ चलते हुए उन्हें समझें।

सनेह-सहित,

विजय।