प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
लेफ्टिनेंट कर्नल पॉल–हेनरी सांडोगो दामिबा ने जनवरी 2022 को बुर्किना फ़ासो में तख्तापलट से सत्ता हासिल की थी। उसके आठ महीने के भीतर ही, 30 सितंबर 2022 को कैप्टन इब्राहिम ट्रोरे ने बुर्किना फासो सेना के एक हिस्से का नेतृत्व करते हुए दामिबा के ख़िलाफ़ तख्तापलट कर दिया। यह दूसरा तख्तापलट बहुत तेज़ी से हुआ; बुर्किना फ़ासो की राजधानी औगाडौगौ में राष्ट्रपति के निवास, कोसयम पैलेस और सैन्य प्रशासन के मुख्यालय कैंप बाबा सी में थोड़े बहुत टकराव हुए थे। कैप्टन किसवेन्सिडा फारूक अजारिया सोरघो ने राष्ट्रीय प्रसारण, रेडियोडिफ्यूजन टेलीविजन डु बुर्किना (आरटीबी), से घोषणा की कि उनके साथी, कैप्टन ट्रोरे, अब राज्य और सशस्त्र बलों के प्रमुख हैं। उन्होंने कहा कि ‘चीजें धीरे–धीरे ठीक हो रही हैं‘। और दामिबा टोगो में निर्वासन में चले गए हैं।
यह तख्तापलट सत्ता के ख़िलाफ़ नहीं है। सत्ता तो पहले से ही एक सैन्य मंच – पैट्रियटिक मूवमेंट फॉर सेफगार्डिंग एंड रिस्टोरेशन (एमपीएसआर) – के ही हाथ में थी। बल्कि यह एमपीएसआर के अपने युवा कप्तानों के भीतर से उपजा तख्तापलट है। दामिबा के सत्ता में संक्षिप्त कार्यकाल के दौरान सशस्त्र हिंसा 23% बढ़ गई थी। इसके अलावा 2015 से देश पर शासन कर रहे पूर्व राष्ट्रपति रोच काबोरे, जो कि पहले एक बैंकर थे, के ख़िलाफ़ तख्तापलट करते समय सेना द्वारा किए गए किसी भी वादे को दामिबा पूरा करने में विफल रहे थे। एल‘यूनाइट डी‘एक्शन सिंडीकल (यूएएस) बुर्किना फ़ासो में छह ट्रेड यूनियनों का एक मंच है। इस मंच ने ‘राष्ट्रीय सेना के क्षय‘ के बारे में चेतावनी दी है। सेना की वैचारिक अव्यवस्था तख्तापलट नेताओं को मिलने वाले उच्च वेतन से स्पष्ट हो जाती है।
1987 में थॉमस संकारा की हत्या के बाद से सत्ता पर क़ाबिज़ ब्लेज़ कॉम्पोरे के ख़िलाफ़ अक्टूबर 2014 में आम विद्रोह शुरू हुआ। इस विद्रोह का काबोरे को लाभ मिला। यह ध्यान देने योग्य बात है कि, इस साल अप्रैल के महीने में, कोटे डी‘आइवर में निर्वासित कॉम्पोरे को संकारा की हत्या में शामिल होने के लिए ‘इन अबसेंटिया‘ आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई थी। कॉम्पोरे के ख़िलाफ़ चले जन विद्रोह में शामिल रही कई सामाजिक ताकतें संकारा के समाजवादी सपनों की आस लगाए उनकी तस्वीरों के साथ सड़कों पर उतरती थीं। उस जन आंदोलन के वादे काबोरे के सीमित एजेंडे, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष के दबाव और उत्तरी बुर्किना फ़ासो में बीस लाख लोगों को विस्थापित कर चुके सात साल से जारी जिहादी विद्रोह के चलते दम तोड़ गए थे। एमपीएसआर का तख्तापलट बाहर से विचित्र और अस्पष्ट दिखता है, लेकिन इसे अफ्रीकी महाद्वीप पर सोने के चौथे सबसे बड़े उत्पादक देश के भीतर एक गहरे सामाजिक संकट के संदर्भ में देखा जाना चाहिए।
अगस्त 2022 में फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रोन ने अल्जीरिया का दौरा किया था। मैक्रोन को ओरान की सड़कों पर अल्जीरियाई जनता के ज़बरदस्त गुस्से का सामना करना पड़ा। वा ते फेयर फाउट्रे! (भाड़ में जाओ) जैसे नारों से अपमानित मैक्रोन को वहाँ से जल्दी लौटना पड़ा। फ्रांस ने मोरक्को और ट्यूनीशियाई लोगों को मिलने वाले वीज़ा की संख्या कम की थी, जिसके ख़िलाफ़ रबात (मोरक्को) में मानवाधिकार संगठनों ने विरोध प्रदर्शन किए। इन प्रदर्शनों के परिणामस्वरूप फ्रांस को मोरक्को में अपने राजदूत को बर्खास्त करने के लिए मजबूर होना पड़ा।
उत्तरी अफ्रीका और सहारा रेगिस्तान के दक्षिण में साहेल क्षेत्र में फ्रांस–विरोधी भावना गहरा रही है। माली में अगस्त 2020 और मई 2021, गिनी में सितंबर 2021, और बुर्किना फासो में जनवरी 2022 और सितंबर 2022 के तख्तापलट इसी भावना के परिणाम हैं। फरवरी 2022 में, माली की सरकार ने फ्रांसीसी सेना को देश से बाहर कर दिया। फ़्रांसीसी सेना पर नागरिकों के खिलाफ अत्याचार करने और जिहादी विद्रोहियों के साथ मिलीभगत रचने का आरोप था।
पिछले एक दशक से, उत्तरी अफ्रीका और साहेल क्षेत्र लीबिया के ख़िलाफ़ फ्रांस और संयुक्त राज्य अमेरिका के युद्ध से उत्पन्न संकट से जूझ रहा है। नाटो अल्जीरियाई गृहयुद्ध (1991-2002) में हारने के बाद और लीबिया में मुअम्मर गद्दाफी के प्रशासन की इस्लाम विरोधी नीतियों से दिशाभ्रमित हुईं जिहादी ताकतों का साथ देता है। इसके अलावा, अमेरिका ने गद्दाफी–विरोधी युद्ध को मजबूत करने के लिए सीरिया–तुर्की सीमा से लीबिया इस्लामिक फाइटिंग ग्रुप के वेटरन व अन्य जिहादियों का इस्तेमाल किया। यह तथाकथित ‘रैट लाइनें‘ दोनों दिशाओं में बढ़ीं हैं, क्योंकि जिहादी और हथियार दोनों, गद्दाफ़ी के बाद के लीबिया से निकलकर वापस सीरिया जा रहे हैं।
इस्लामिक मघरेब में अल–कायदा तथा अल–मौराबिटौन, अंसार डाइन और कातिबत मैकिना जैसे समूह – जिनसे मिलकर 2017 में जमात नुसरत अल–इस्लाम वाल–मुस्लिमिन (‘इस्लाम और मुसलमानों के समर्थन के लिए समूह‘) बना था – दक्षिणी अल्जीरिया से कोटे डी‘आइवर तक, पश्चिमी माली से पूर्वी नाइजर तक मज़बूत हैं। ये जिहादी, जिनमें से कई अफगानिस्तान युद्ध में सिपाही रहे थे, स्थानीय डाकुओं और तस्करों के साथ आम कारण से जुड़े हुए हैं। यह ‘जिहाद का दस्युकरण‘, जैसा कि इसे कहा जाता है। और यह इस बात का एक स्पष्टीकरण है कि कैसे ये ताकतें इस क्षेत्र में इतनी गहरी जड़ें जमा चुकी हैं। एक और स्पष्टीकरण यह है कि जिहादियों ने फुलानी (एक मुस्लिम जातीय समूह) और अन्य समुदायों, जो अब कोग्लवेगो (‘झाड़ी संरक्षक‘) नामक सैनिक समूहों में जुड़ रहे हैं, के बीच के पुराने सामाजिक तनावों का इस्तेमाल किया है। जिहादी–सैन्य संघर्ष में विभिन्न अंतर्विरोधों को भड़का कर बुर्किना फासो, माली और नाइजर के बड़े हिस्से में राजनीतिक जीवन का प्रभावी ढंग से सैन्यीकरण किया गया है। ऑपरेशन बरखाने के माध्यम से फ्रांस का माली के अंदर सैन्य हस्तक्षेप 2014 से जारी हैं। इस हस्तक्षेप और उसके द्वारा बनाए गए सैन्य ठिकानों से विद्रोह और टकराव न तो रुक सके हैं और न ही कम हुए हैं। इन सब कारकों ने केवल टकरावों और विद्रोहों को बढ़ावा ही दिया है।
यूनियन डी‘एक्शन सिंडीकल ने दस सूत्रीय योजना जारी की है, जिसमें भुखमरी का सामना कर रहे क्षेत्रों (जैसे जिबो) के लिए तत्काल राहत, गास्किन्डे जैसे क्षेत्रों में हिंसा का अध्ययन करने के लिए एक स्वतंत्र आयोग का गठन, जीवन के लागत के संकट से निपटने के लिए एक योजना का निर्माण करने, और ‘विदेशी, विशेष रूप से फ़्रांसीसी, ठिकानों और सैनिकों को राष्ट्रीय क्षेत्र से बाहर‘ निकालने के लिए फ्रांस के साथ गठबंधन तोड़ने जैसे उपाय शामिल हैं।
संयुक्त राष्ट्र की एक हालिया रिपोर्ट बताती है कि साहेल क्षेत्र में 1.8 करोड़ लोग ‘भुखमरी के कगार‘ पर खड़े हैं। विश्व बैंक ने बताया है कि बुर्किना फ़ासो के 40% लोग गरीबी रेखा से नीचे रहते हैं। बुर्किना फासो की नागरिक या सैन्य सरकारों ने, और न ही अन्य साहेल देशों की सरकारों में, इस संकट से पार पाने की किसी परियोजना को स्पष्ट किया है। उदाहरण के लिए, बुर्किना फासो कोई गरीब देश नहीं है। सोने की बिक्री में प्रति वर्ष कम से कम 2 अरब डॉलर की कमाई करने वाले इस देश में यह बिलकुल असाधारण बात है कि इस देश के 2.2 करोड़ लोग इतनी गरीबी में फंसे हैं। यदि सोने की बिक्री से मिलने वाले राजस्व को जनसंख्या के बीच समान रूप से विभाजित किया जाए, तो बुर्किना फ़ासो के प्रत्येक नागरिक को प्रति वर्ष 9 करोड़ डॉलर मिलेंगे।
लेकिन, राजस्व का बड़ा हिस्सा कनाडा और ऑस्ट्रेलिया की खनन फर्मों – जैसे बैरिक गोल्ड, गोल्डरश रिसोर्सेज, सेमाफो, और ग्रिफॉन मिनरल्स – और उनके जैसी यूरोपीय फ़र्मों के पास जाता है। इनमें से अधिकतर फर्म सोने की बिक्री से होने वाले मुनाफे को अपने बैंक खातों में जमा करते हैं। या फिर रैंडगोल्ड रिसोर्सेज जैसी फ़र्में मुनाफ़े को चैनल द्वीप समूह के टैक्स स्वर्गों में स्थानांतरित कर देते हैं। सोने पर स्थानीय नियंत्रण स्थापित नहीं किया गया है, और न ही देश अपनी मुद्रा पर कोई संप्रभुता लागू करने में सक्षम है। बुर्किना फासो और माली, दोनों ही देश पश्चिम अफ्रीकी मुद्रा सीएफए फ्रैंक का उपयोग करते हैं। यह एक औपनिवेशिक मुद्रा है, जिसका भंडार बैंक ऑफ फ्रांस में है। और यही बैंक इन देशों की मौद्रिक नीति का प्रबंधन भी करता है।
साहेल में तख्तापलट का कारण इस क्षेत्र के अधिकांश लोगों के जीवन की स्थितियाँ हैं। ये स्थितियाँ बहुराष्ट्रीय निगमों द्वारा संप्रभुता की चोरी और पुराने औपनिवेशिक शासन का परिणाम हैं। इसे केंद्रीय समस्या के रूप में स्वीकार करने के बजाय, पश्चिमी सरकारें इन समस्याओं से ध्यान भटकाती हैं और इस बात को स्थापित करने पर तुली हैं कि राजनीतिक अशांति का वास्तविक कारण जिहादी विद्रोह के ख़िलाफ़ लड़ रहे रूस के पैरामिलिटरी सैनिकों के वैगनर समूह का हस्तक्षेप है। उदाहरण के लिए, मैक्रोन ने इस क्षेत्र में उनकी उपस्थिति का वर्णन उन्हें ‘शिकारी‘ कह कर किया है। वैगनर समूह के संस्थापक येवगेनी प्रिगोझिन का कहना है कि ट्रोरे ने ‘अपने लोगों की भलाई के लिए जो जरूरी था, वह किया‘। इस बीच, अमेरिकी विदेश विभाग ने बुर्किना फासो की नई सरकार को चेतावनी दी है कि वे वैगनर समूह के साथ गठबंधन न करे। लेकिन, लग रहा है कि ट्रॉरे अपने देश के 40% हिस्से में व्याप्त उग्रवाद को रोकने के लिए किसी भी तरह के उपाय की तलाश में हैं। पश्चिम अफ्रीकी राज्यों के आर्थिक समुदाय (ईसीओडब्ल्यूएएस) के साथ दामिबा और अब ट्रोरे द्वारा किए गए समझौते, कि बुर्किना फासो जुलाई 2024 तक नागरिक शासन क़ायम कर लेगा, के बावजूद उग्रवादी विद्रोह की हार इस हस्तांतरण के लिए आवश्यक शर्त प्रतीत होती है।
1984 में, राष्ट्रपति थॉमस संकारा संयुक्त राष्ट्र गए थे। जब उन्होंने उससे एक साल पहले अपने देश की सत्ता संभाली थी, तब तक देश का औपनिवेशिक नाम अपर वोल्टा था। यानी एक देश को केवल उसकी भौगोलिक स्थिति, कि वह वोल्टा नदी के उत्तरी हिस्से में स्थित है, के रूप में परिभाषित किया गया था। संकारा और उनके राजनीतिक आंदोलन ने उस जगह का नाम बदलकर बुर्किना फासो रखा, जिसका अर्थ है ‘सीधे खड़े लोगों की ज़मीन”। उनका सपना था कि बुर्किना फ़ासो के लोग अब अपने कंधों को झुकाकर जमीन की ओर देखते हुए नहीं बल्कि सीधे खड़े हों। ‘हर प्रकार के वर्चस्व के खिलाफ शाश्वत संघर्ष, [और] क्रांति‘ की आवश्यकता को महसूस करते हुए उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय मुक्ति के साथ, ‘हमारी मातृभूमि के आकाश पर तारे पहली बार चमकने लगे हैं‘। ‘हम अपने समाज का लोकतंत्रीकरण करना चाहते हैं‘, उन्होंने आगे कहा, ‘ताकि सामूहिक जिम्मेदारी के ब्रह्मांड की ओर हमारे दिमाग खुलें, और हम भविष्य का आविष्कार करने के लिए पर्याप्त रूप से साहसी बन सकें‘। अक्टूबर 1987 में संकारा की हत्या कर दी गई। उनके सपने कई लोगों के दिलों में आज भी बसे हैं, लेकिन वे अभी तक एक पर्याप्त शक्तिशाली राजनीतिक परियोजना को प्रभावित नहीं कर पाए हैं।
संकारा की याद में, माली के एक गायक ओउमौ संगारे ने फरवरी 2022 में एक अद्भुत गीत ‘कीली मैग्नी (युद्ध एक बीमारी है)’ गाया। यह गीत पूरे साहेल की जगह से बोलता है:
युद्ध एक बीमारी है! मेरा देश गायब हो सकता है!
मैं तुमसे कहता हूँ: युद्ध कोई समाधान नहीं है!
युद्ध का न तो कोई मित्र होता है और न ही सहयोगी, और न ही इसके कोई वास्तविक शत्रु ही होते हैं।
इस युद्ध से सभी लोग पीड़ित होते हैं: बुर्किना, कोटे डी‘आइवर… हर जगह के लोग!
अन्य उपकरणों की ज़रूरत है: आकाश में नए तारों की, और समाज में नई क्रांतियों की जो घृणा पर नहीं बल्कि आशाओं पर बनती हैं।
स्नेह–सहित,
विजय।