प्यारे दोस्तों,
ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान की ओर से अभिवादन।
जब निष्कर्ष स्पष्ट हो तो सांख्यिकीय आँकड़ों की बहुत गहराई से पड़ताल करने की आवश्यकता नहीं होती है। उदाहरण के लिए, जब महिला और पुरुष एक ही तरह का काम करते हैं तब भी पुरुषों की तुलना में महिलाओं को औसतन 20 प्रतिशत कम भुगतान किया जाता है। इस निरंतर असमानता के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) और युनाइटेड नेशन वीमेन हर साल 18 सितंबर को अंतर्राष्ट्रीय समान वेतन दिवस (International Equal Pay Day) की मेज़बानी करते हैं और अपने समान वेतन अंतर्राष्ट्रीय गठबंधन (Equal Pay International Coalition) के माध्यम से निगमों और सरकारों को इस बात के लिए तैयार करते हैं कि वे वेतन के मामले में जेंडर आधारित विभेद को समाप्त करें। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के समान पारिश्रमिक सम्मेलन (Equal Remuneration Convention) (1951) में ‘समान काम के लिए समान वेतन‘ के विचार को मान्यता मिली थी, इससे पीछे का तर्क यह था कि महिलाएँ हमेशा औद्योगिक कारख़ानों में काम करती थीं, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान इसमें तेज़ी आई। सम्मेलन ने ‘एक समान काम के लिए पुरुष और महिला श्रमिकों के लिए समान पारिश्रमिक के सिद्धांत‘ को अपनाया, फिर भी सरकारों और निजी क्षेत्र ने इसका पालन करने से इनकार कर दिया।
COVID-19 महामारी के दौरान, स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र पर बहुत अधिक ध्यान केंद्रित किया गया था, स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों को ‘आवश्यक श्रमिक‘ बताकर उनकी काफ़ी सराहना की गई थी। मार्च 2021 में, ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान ने एक डोजियर, संकट को उजागर करना: कोरोनावायरस के समय में देखभाल कार्य प्रकाशित किया, जिसमें स्वास्थ्य देखभाल उद्योग में काम करने वाली महिला श्रमिकों के विचारों को दर्ज किया गया था। अर्जेंटीना वर्कर्स सेंट्रल यूनियन की जेनेट मेंडिएटा ने ‘आवश्यक कार्य‘ की अवधारणा पर विचार व्यक्त किया:
सबसे पहले, उन्हें इस बात को स्वीकार करना चाहिए कि हम आवश्यक श्रमिक हैं, और फिर हमें हमारे काम के लिए मज़दूरी मिलनी चाहिए क्योंकि हमें जितना काम करना चाहिए हम उससे कहीं अधिक काम करते हैं। हम लैंगिक समानता और स्वास्थ्य को बढ़ावा देने के लिए बहुत से काम करते हैं; हम कैंटीन और भोजनालयों में रसोइया के रूप में काम करते हैं; और इनमें से किसी भी काम की मान्यता नहीं है, न ही इस ओर किसी का ध्यान जाता है। यदि इस ओर किसी का ध्यान नहीं जाता है तो निश्चित रूप से न तो इसे मान्यता मिलेगी न ही इसके लिए पारिश्रमिक।
जेनेट मेंडिएटा ने कहा, इसमें से किसी को भी मान्यता नहीं है, न तो उस समय जब महामारी अपने चरम पर था और न ही अब जब हम महामारी के दौर से बाहर निकल रहे हैं। 2018 में, आईएलओ ने एक महत्वपूर्ण रिपोर्ट, केयर वर्क एंड केयर जॉब्स फ़ॉर द फ़्यूचर ऑफ़ डिसेंट वर्क प्रकाशित की, जिसमें अनुमान लगाया गया कि अवैतनिक देखभाल और घरेलू काम का मूल्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 9 प्रतिशत या 11 ट्रिलियन डॉलर है। कुछ देशों में, यह मूल्य कहीं अधिक है, जैसे ऑस्ट्रेलिया में, जहाँ अवैतनिक देखभाल और घरेलू कार्य सकल घरेलू उत्पाद का 41.3 प्रतिशत है। 64 देशों में एकत्र किए गए समय–उपयोग सर्वेक्षण के आँकड़ों के आधार पर, रिपोर्ट में पाया गया कि 16.4 बिलियन घंटे प्रतिदिन अवैतनिक देखभाल कार्य पर ख़र्च किए जाते हैं, जिसमें महिलाओं द्वारा किए गए अवैतनिक देखभाल कार्य के कुल घंटों की हिस्सेदारी 76.2 प्रतिशत है। दूसरे शब्दों में, दुनिया भर में लगगभ 1.5 बिलियन से अधिक महिलाएँ प्रतिदिन 8 घंटे काम करती हैं लेकिन इसके लिए उनको किसी प्रकार का वेतन नहीं मिलता है।
जुलाई 2022 में, अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन और विश्व स्वास्थ्य संगठन ने वेतन अंतर पर एक और रिपोर्ट प्रकाशित की, इस बार स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र पर ज़ोर दिया गया। उनकी रिपोर्ट, द जेंडर पे गैप इन द हेल्थ एंड केयर सेक्टर: ए ग्लोबल एनालिसिस इन द टाइम ऑफ़ कोविड -19, ने स्थापित किया कि स्वास्थ्य और देखभाल क्षेत्र में महिलाएँ पुरुषों की तुलना में औसतन 24 प्रतिशत कम कमाती हैं। इस क्षेत्र में 67 प्रतिशत पदों पर महिलाएँ काम करती हैं फिर भी उनमें से बहुत ही कम महिलाएँ उच्च प्रशासकीय पदों तक पहुँच पाती हैं, अस्पताल प्रशासकों और नर्सों के वेतन के बीच का अंतर साल दर साल बढ़ता ही जाता है।
रिपोर्ट में वेतन अंतर के कारणों पर प्रकाश डाला गया है। जैसा कि रिपोर्ट में बताया गया है कि ‘अत्यधिक नारीवादी क्षेत्रों और व्यवसायों से संबंधित काम के लिए कम वेतन देने वाली मानसिकता‘ के कारण महिलाओं को कम भुगतान किया जाता है। जैसे स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र में नर्सिंग के काम के लिए कम वेतन मिलता है इसका कारण यह नहीं है कि इसे कम कौशल वाला काम माना जाता है, बल्कि इसकी असल वजह यह है कि इस काम को ‘महिलाओं का काम‘ समझा जाता है, जिस तरह के काम के लिए दुनिया भर में नियमित रूप से कम वेतन दिया जाता है। इसके अलावा, रिपोर्ट बताती है कि वेतन में एक ‘मातृत्व अंतर‘ है, जिसके बारे में अक्सर बात नहीं की जाती है लेकिन सांख्यिकीय आँकड़ों में और स्वास्थ्य देखभाल कर्मचारियों की यूनियनों द्वारा की गई माँगों में दिखाई देती है। स्वास्थ्य देखभाल उद्योग में पार्ट टाइम काम या नौकरी भी बहुत कम है, 20 से 35 साल तक की उम्र की महिलाओं को फिर भी इस तरह का काम मिल भी जाता है लेकिन उससे ज़्यादा उम्र की महिलाओं को तो वो भी नहीं। रिपोर्ट में कहा गया है, ‘महिलाओं को या तो श्रम बाज़ार छोड़ना पड़ता है या अपने काम के घंटे कम करने पड़ते हैं ताकि वह बच्चे की अवैतनिक देखभाल तथा अपने काम के बीच संतुलन स्थापित कर सकें।’ जब महिलाएँ काम छोड़ती हैं और बाद में काम पर लौटती हैं या पार्ट टाइम काम का विकल्प चुनती हैं, तो उन्हें पदोन्नति नहीं मिलती है और मज़दूरी में वृद्धि नहीं होती है, जो सुविधा उनके पुरुष सहकर्मियों को मिलती है, इसलिए वे जब तक काम करती हैं उन्हें उनके पुरुष सहकर्मियों की तुलना में कम मज़दूरी मिलती है जबकि वो पुरुषों के समान काम करती हैं।
महिलाओं ने सैकड़ों वर्षों से इन सामाजिक परिस्थितियों के ख़िलाफ़ संघर्ष किया है, और यह संघर्ष उन महिलाओं के नेतृत्व में हुआ जिन्होंने श्रम और मानवाधिकारों पर कई अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलनों का आयोजन किया। ट्राईकॉन्टिनेंटल: सामाजिक शोध संस्थान में हम ऐसे संघर्षों और उन संघर्षों का नेतृत्व करने वाली महिलाओं की कहानियाँ सामने लाते रहे हैं। ALBA Movimientos के सहयोग से तैयार किए गए हमारे नवीनतम प्रकाशनों में से एक का शीर्षक है Chrysalises: Feminist Memories from Latin America and the Caribbean। हमने इस अध्ययन में निकारागुआ की अर्लेन सिउ (1955-1975), ब्राज़ील की डोना नीना (जन्म 1949), और 1980 में स्थापित बोलीविया की किसान महिलाओं के बार्टोलिना सिसा राष्ट्रीय परिसंघ (जिनके सदस्यों को लास बार्टोलिनस के रूप में जाना जाता है) की चर्चा की है। इनमें से प्रत्येक महिला और उनका संगठन असमानता की दयनीय सामाजिक स्थितियों के ख़िलाफ़ वैश्विक लड़ाई का हिस्सा रहे हैं।
यह अर्लेन, डोना नीना और लास बार्टोलिनस जैसी महिलाएँ हैं जिन्होंने विश्व महिला मार्च (World March of Women) का आर्थिक स्वायत्तता संबंधी मसौदा तैयार किया था। इस सप्ताह के न्यूज़लेटर का समापन मसौदे के अंश के साथ किया जा रहा है, जैसा कि वे माँग करती हैं:
- पूरी दुनिया में बिना किसी भेदभाव (राष्ट्रीयता, लिंग, अक्षमता, विकलांगता) के सुरक्षित और स्वस्थ कामकाजी परिस्थितियों में रोज़गार पाने का सभी श्रमिकों (घरेलू और प्रवासी श्रमिकों जैसे कठिन परिस्थितियों में काम करने वाले मज़दूर) का अधिकार। जहाँ उनका शोषण न होता हो और उन्हें सम्मान मिलता हो।
- सामाजिक सुरक्षा का अधिकार, बीमारी, अक्षमता, मातृत्व और पितृत्व अवकाश की स्थिति में उनको आर्थिक सहयोग मिलता हो, और सेवानिवृत्ति की सुविधा हो ताकि महिलाएँ और पुरुष सम्मानपूर्वक जीवन जी सकें।
- ग्रामीण क्षेत्रों में काम के मेहनताना को भी ध्यान में रखते हुए महिलाओं और पुरुषों के लिए समान काम के लिए समान वेतन।
- क़ानून द्वारा तय किया गया उचित न्यूनतम वेतन ( जो उच्चतम और न्युनतम वेतन के बीच के अंतर को कम करता हो और जिससे श्रमिक अपना और अपने परिवार का जीवनयापन कर सके) है जो सभी भुगतान किए गए कार्यों (सार्वजनिक और निजी) और सार्वजनिक सामाजिक भुगतानों के लिए संदर्भ का काम करे। उप–क्षेत्रों या क्षेत्रों के लिए न्यूनतम मज़दूरी और सामान्य मूल्यों के स्थायी मूल्यांकन की नीति का निर्माण या सुदृढ़ीकरण।
- कम ब्याज ऋण, वितरण और व्यावसायीकरण के लिए मदद, और स्थानीय ज्ञान तथा प्रथाओं के आदान–प्रदान के साथ एकजुटता वाली अर्थव्यवस्था को मज़बूत करना।
- भूमि, बीज, पानी, प्राथमिक वस्तुओं तक महिलाओं की पहुँच, और कृषि, मछली पकड़ने, पशुपालन, और हस्तकला में उत्पादन और व्यावसायीकरण के लिए सभी आवश्यक सहायता।
- घरेलू और देखभाल के काम का पुनर्गठन ताकि इस काम की ज़िम्मेदारी परिवार या समुदाय के भीतर पुरुषों और महिलाओं के बीच समान रूप से साझा की जाए। इसे वास्तविकता में लागू करने के लिए, हम सामाजिक पुनरुत्पादन (जैसे क्रेच, सामूहिक लॉन्ड्री और रेस्तराँ, बुज़ुर्गों की देखभाल, आदि) के साथ–साथ वेतन में कटौती के बिना काम के घंटे कम करने का समर्थन करने वाली सार्वजनिक नीतियों को अपनाने की माँग करते हैं।
स्नेह–सहित
विजय